1. आपका मन अगर आप अपने वश में नहीं करेंगे, तो वो आपके दुश्मन की तरह काम करना शुरू कर देगा।
2. निर्माण केवल पहले से बनी चीजो का नया रूप हैं।
3. केवल किस्मतवाला योद्धा ही स्वर्ग तक पहुँचाने वाला युद्ध लड़ता हैं।
4. इंसान अपने विश्वास की बुनियाद पर उस जैसा बनता चला जाता हैं।
5. आपके साथ अब तक जो हुआ अच्छे के लिए हुआ, आगे जो कुछ होगा अच्छे के लिए होगा, जो हो रहा हैं, वो भी अच्छे के लिए हो रहा हैं, इसलिए हमेशा वर्तमान में जीओ, भविष्य की चिंता मत करो।
6. कोशिश की जाए तो अपने अशांत मन को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता हैं।
7. इंसान नहीं उसका मन किसी का दोस्त या दुश्मन होता हैं।
8. जो किसी दुसरो पर शक करता हैं, उसे किसी भी जगह पर खुशी नहीं मिल सकती।
9. अपने जरुरी कार्य करना, बाकी गलत कार्य करने से बेहतर हैं।
10. कर्म ना करने से बेहतर हैं, कैसा भी कर्म करना।
11. आपका निराश ना होना ही परम सुख होता हैं।
12. क्रोध मुर्खता को जन्म देता हैं, अफवाह से अकल का नाश, और अकल से नाश से इंसान का नाश होता हैं।
13. किसी भी काम में आपकी योग्यता को योग कहते हैं।
14. भगवान सभी लोगो मन में बसते हैं, और अपनी माया से उनके मन को जैसा चाहे वैसा घड़े की तरह घड़ते हैं।
15. सही मायने में चोर वो हैं, जो अपने हिस्से का काम किये बिना भोजन करता हैं।
16. कर्म किये जाओ, फल की चिंता मत करो।
17. मन बहुत चंचल हैं, जो इंसान के दिल में उथल-पुथल कर देता हैं।
18. हर कोई खाली हाथ आया था, और खाली हाथ ही इस दुनिया से जाएगा।
19. परिवर्तन संचार का नियम हैं, कल जो किसी और का था आज वो तुम्हारा हैं कल वो किसी और का होगा।
20. आत्मा अमर हैं, इसलिए मरने की चिंता मत करो।
21. मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया मन से मिटा दो फिर सब तुम्हारा हैं और तुम सबके हो।
22. भूत और भविष्य में नही, जीवन तो इस पल में हैं अर्थात वर्तमान का अनुभव ही जीवन हैं।
23. तू करता वही हैं, जो तू चाहता हैं, होता वही है जो मैं चाहता हूँ, तू वही कर जो मैं चाहता हूँ फिर होगा वही, जो तू चाहता हैं।
24. जो मन को नियंत्रित नही करते उनके लिए वह शत्रु के सामान कार्य करता हैं।
25. खुशियों में तो सब साथ होते हैं, असली दोस्त वही हैं जो दुःख में साथ दे।
26. सदैव संदेह करने वाले व्यक्ति को कभी भी सुख नही मिल सकता।
27. नर्क के तीन द्वार हैं:वासना, क्रोध और लालच।
28. मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता हैं, जैसा वह विश्वास करता हैं, वैसा वह बन जाता हैं।
29. जानने की शक्ति झूठ को सच से पृथक करने वाली जो विवेक बुद्धि हैं, उसी का नाम ज्ञान हैं।
30. परिवर्तन ही संसार का नियम हैं।
31. क्रोध से भ्रम पैदा होता हैं, भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती हैं तब तर्क नष्ट हो जाता हैं जब तर्क नष्ट होता हैं तब व्यक्ति का पतन हो जाता हैं।
32. मन अशांत हो तो उसे नियंत्रित करना कठिन हैं लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता हैं।
33. तुम उसके लिए शोक करते हो जो शोक करने के योग्य नही हैं, और फिर भी ज्ञान की बातें करते हो, बुद्धिमान व्यक्ति ना जीवित और ना ही मृत व्यक्ति के लिए शोक करते हैं।
34. खाली हाथ आये हो और खाली हाथ जाना हैं इसलिए व्यर्थ की चिंता छोड़कर व्यक्ति को हमेशा सद्कर्म करना चाहिए।
35. जिसे तुम अपना समझ कर मग्न हो रहे हो बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दुखो का कारण हैं।
36. जो कोई भी जिस किसी भी देवता की पूजा विश्वास के साथ करने की इच्छा रखता है, मैं उसका विश्वास उसी देवता में दृढ कर देता हूँ।
37. कवल मन ही किस का मित्र और शत्रु होता है।
38. अपने अनिवार्य कार्य करो, क्योंकि वास्तव में कार्य करना निष्क्रियता स बेहतर है।
39. कर्म का फल व्यक्ति को उसी तरह ढूंढ लेता है, जैसे कोई बछड़ा सैकड़ों गायों के बीच अपनी मां को ढूंढ लेता है।
40. आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है, ना ही इसे जलाया जा सकता है, ना ही पानी से गिला किया जा सकता है, आत्मा अमर और अविनाशी है।
41. मैं किसी के भाग्य का निर्माण नहीं करता और ना ही किसी के कर्मो के फल देता हूँ।
42. व्यक्ति या जीव का कर्म ही उसके भाग्य का निर्माण करता है।
43. आत्मा पुराने शरीर को वैसे ही छोड़ देती है, जैसे मनुष्य पुराने कपड़ों को उतार कर नए कपड़े धारण कर लेता है।
44. इस संसार में कुछ भी स्थाई नहीं है।
45. मन शरीर का हिस्सा है, सुख दुख का एहसास करना आत्मा का नहीं शरीर का काम है।
46. मान, अपमान, लाभ-हानि खुश हो जाना या दुखी हो जाना यह सब मन की शरारत है।
47. वर्तमान परिस्थिति में जो तुम्हारा कर्तव्य है, वही तुम्हारा धर्म है।
48. मैं ऊष्मा देता हूँ, मैं वर्षा करता हूँ और रोकता भी हूँ, मैं अमरत्व भी हूँ और मृत्यु भी।
49. मेरे भी कई जन्म हो चुके हैं, तुम्हारे भी कई जन्म हो चुके हैं, ना तो यह मेरा आखिरी जन्म है और ना यह तुम्हारा आखिरी जन्म है।
50. हे अर्जुन अगर तुम अपना कल्याण चाहते हो, तो सभी उपदेशों, सभी धर्मों को छोड़ कर मेरी शरण में आ जाओ, मैं तुम्हें मुक्ति प्रदान करुंगा।
51. मोहग्रस्त होकर अपने कर्तव्य पथ से हट जाना मूर्खता है, क्योंकि इससे ना तो तुम्हें स्वर्ग की प्राप्ति होगी और ना ही तुम्हारी कीर्ति बढ़ेगी।
52. धर्म युद्ध में कोई भी व्यक्ति निष्पक्ष नहीं रह सकता है। धर्म युद्ध में जो व्यक्ति धर्म के साथ नहीं खड़ा है इसका मतलब है वह अधर्म का साथ दे रहा है, वह अधर्म के साथ खड़ा है।
53. भगवान प्रत्येक वस्तु में, प्रत्येक जीव में मौजूद हैं।
54. मुझे जानने का केवल एक हीं तरीका है, मेरी भक्ति, मुझे बुद्धि द्वारा कोई न जान सकता है, न समझ सकता है।
55. आत्मा का अंतिम लक्ष्य परमात्मा में मिल जाना होता है।
56. मैं हीं इस सृष्टि की रचना करता हूँ, मैं हीं इसका पालन-पोषण करता हूँ और मैं हीं इस सृष्टि का विनाश करता हूँ।
57. मैं सभी प्राणियों को जानता हूँ, सभी के भूत, भविष्य और वर्तमान को जानता हूँ. लेकिन मुझे कोई नहीं जानता है।
58. जो मुझे जिस रूप में पूजता है… मैं उसी रूप में उसे उसकी पूजा का फल देता हूँ।
59. जन्म लेने वाले व्यक्ति की मृत्यु निश्चित है, और मरने वाले व्यक्ति का फिर से जन्म लेना निश्चित है।
60. क्या नींद क्या ख्वाब, आँखे बन्द करू तो, तेरा चेहरा, आंख खोलू तो तेरा ख्याल मेरे कान्हा…
61. रख लूँ नजर मे चेहरा तेरा, दिन रात इसी पे मरती रहूँ.., जब तक ये सांसे चलती रहे, मे तुझसे मोहब्बत करती रहूँ.., !!…मेरे कान्हा मेरी दुनिया..!!
62. मत रख अपने दिल में इतनी नफरते ऐ इंसान, जिस दिल में नफरत हो उस दिल में मेरा श्याम नहीं रहता..
63. बड़ी आस ले कर आया, बरसाने में तुम्हारे कर दो शमा, किशोरी जी अपराध मेरे सारे, सवारू में भी अपना जीवन, श्री राधा नाम जपते जपते…, प्रेम से बोलो श्री राधे..
64. वो दिन कभी न आए, हद से ज्यादा गरूर हो जाये, बस इतना झुका कर रखना, “मेरे कन्हैया”, की हर दिल दुआ देने को मजबूर हो जाये…
65. कैसे लफ्जो मे बयां करूँ खूबसुरती तुम्हारी सुंदरता का झरना भी तुम हो…. मोहब्बत का दरिया भी तुम हो….. मेरे श्याम
66. साँवरे को दिल में बसा कर तो देखो, दुनिया से मन को हटा के देखो, बड़े ही दयालु हैं बाँके बिहारी, एक बार चौखट पे दामन, फैला कर तो देखो….
67. उन्होंने नस देखि हमारी और बीमार लिख दिया… रोग हमने पूछा तो वृंदावन से प्यार लिख दिया… कर्जदार रहेगे उम्र भर हम उस वैद के जिसने दवा में.. “श्री राधे कृष्ण” नाम लिख दिया…
68. इस नये साल मे खुद को भी, एक गिफ्ट देना है साँवरे, जिससे आप की परवाह नही, उसे छोड देना है..
69. जय श्रीराधे राधे! श्रीकृष्ण जिनका नाम है, गोकुल जिनका धाम है! ऐसे श्रीकृष्ण को मेरा, बारम्बार प्रणाम है!
70. मेरे दिल की दीवारों पर श्याम तुम्हारी छवि हो, मेरे नैनो की पलकों में कान्हा तस्वीर तेरी हो, बस और न मांगू तुझसे मेरे गिरधर… तुझे हर पल देखू मेरे कन्हैया ऐसी तकदीर हो मेरी….
71. डूबे ना वो नैया, चाहे तूफान आए या सुनामी, जिसकी नांव का मांझी, खुद है शीश का दानी।
72. जहाँ बेचैन को चैन मिले वो घर तेरा वृन्दावन है, जहां आत्मा को परमात्मा मिले वो दर तेरा वृन्दावन है, मेरी रूह तो प्यासी थी, प्यासी है तेरे लिए सावरिया, जहां इस रूह को जन्नत मिले वो स्थान ही मेरा श्री वृन्दावन है।
73. सुन्दर से भी अधिक सुंदर है तु, लोग तो पत्थर पूजते है, मेरी तो पूजा है तु, पूछे जो मुझसे कौन है तु? हँसकर कहता हुँ, जिंदगी हुँ में और साँस है तु…
74. भाव बिना बाज़ार मै वस्तु मिले न मोल, तो भाव बिना हरी ” कैसे मिले, जो है अनमोल…
75. हे बांके बिहारी… नही रही कोई और हसरत इक तेरे दिदार के सिवा… गौ़रतलब ये है मेरे नूर-ऐ-हरि…. अब हर तमन्ना ने मुझसे किनारा कर लिया… राधे राधे जय श्री कृष्णा ……
76. मेरे कान्हा, जानते हो फिर भी अंजान बनते हों, इस तरह क्यों हमें परेशान करते हों, पुछते हो तुम्हें क्या क्या पंसद है, जबाब खुद हो फिर भी सवाल करते हों… राधे राधे। जय श्री राधे कृष्णा।
77. तुम क्या मिले की साँवरे, मेरा मुकद्दर सवंर गया, उजड़े हुए नसीब का गुलशन निखर गया… जय श्री कृष्णा।
78. अजीब नशा है, अजीब खुमारी है, हमे कोई रोग नहीं बस, जय श्री राधे कृष्णा, राधे कृष्णा बोलने बीमारी है…
79. वृंदावन की हवा, जरा अपना रुख हमारी तरफ भी मोड दे, इस वीरान दिल मे राधा नाम की मस्ती छोड दे… उड़ जाये माया की मिट्टी ओर, दीदार हो सांवरे का, ऐसी प्रीत हमारी राधा नाम से जोड़ दे… जय श्री राधे।
80. गजब के चोर हो कान्हा, चोरी भी करते हो, और दिलो पर राज भी….
81. एक तेरे ख्वाबो का शोक एक तेरी, याद की आदत, तू ही बता साँवरे… सोकर तेरा दीदार करूँ या जाग कर तुझे याद…
82. बैरागी बने तो जग छूटे, सन्यासी बने तो छूटे तन, कान्हा से प्रेम हो जाये, तो छूटे आत्मा के सब बन्धन।
83. शिव भी मैं हूँ, दुर्गा भी मैं हूँ। समस्त ब्रह्माण्ड, समस्त सृष्टि में मैं ही हूँ, मृत्यु भी मैं ही हूँ। सरे देवी-देवता मुझी को जानो। आकाश, पर्वत, वन सब मैं ही हूँ।
84. कोई मुझे दुर्गा रूप में माता समझकर पूजता है, तो कोई मुझे विष्णु मानकर पूजता है।
85. मैं अजन्मा हूँ, मैं नित्य हूँ, न मेरा ओर है.. न छोर।
86. मूलतः मैं निराकार हूँ।लेकिन मेरे भक्त बड़े ही अनोखे और निराले हैं। कोई मेरी मूर्ति बनाकर मुझे अपनी नजरों से देखना चाहता है, तो कोई मुझसे प्रेमी, पुत्र या पिता के रूप में अपने समीप देखना चाहता है। अपने भक्तों के वश में होकर ही मैं भिन्न-भिन्न रूप धरता हूँ।
87. मन की गतिविधियों, होश, श्वास, और भावनाओं के माध्यम से भगवान की शक्ति सदा तुम्हारे साथ है, और लगातार तुम्हे बस एक साधन की तरह प्रयोग कर के सभी कार्य कर रही है।
88. ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एक रूप में देखता है, वही सही मायने में देखता है।
89. सभी अच्छे काम छोड़ कर बस भगवान में पूर्ण रूप से समर्पित हो जाओ। मैं तुम्हे सभी पापों से मुक्त कर दूंगा। शोक मत करो।
90. किसी और का काम पूर्णता से करने से कहीं अच्छा है कि अपना काम करें, भले ही उसे अपूर्णता से करना पड़े।
91. मैं सभी प्राणियों को सामान रूप से देखता हूँ, ना कोई मुझे कम प्रिय है ना अधिक। लेकिन जो मेरी प्रेमपूर्वक आराधना करते हैं वो मेरे भीतर रहते हैं और मैं उनके जीवन में आता हूँ।
92. प्रबुद्ध व्यक्ति सिवाय ईश्वर के किसी और पर निर्भर नहीं करता।
93. मेरी कृपा से कोई सभी कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए भी बस मेरी शरण में आकर अनंत अविनाशी निवास को प्राप्त करता है।
94. मैं धरती की मधुर सुगंध हूँ। मैं अग्नि की ऊष्मा हूँ, सभी जीवित प्राणियों का जीवन और सन्यासियों का आत्मसंयम हूँ।
95. तुम उसके लिए शोक करते हो जो शोक करने के योग्य नहीं हैं, और फिर भी ज्ञान की बाते करते हो.बुद्धिमान व्यक्ति ना जीवित और ना ही मृत व्यक्ति के लिए शोक करते हैं।
96. कभी ऐसा समय नहीं था जब मैं, तुम,या ये राजा-महाराजा अस्तित्व में नहीं थे, ना ही भविष्य में कभी ऐसा होगा कि हमारा अस्तित्व समाप्त हो जाये।
97. कर्म मुझे बांधता नहीं, क्योंकि मुझे कर्म के प्रतिफल की कोई इच्छा नहीं।
98. वह जो वास्तविकता में मेरे उत्कृष्ट जन्म और गतिविधियों को समझता है, वह शरीर त्यागने के बाद पुनः जन्म नहीं लेता और मेरे धाम को प्राप्त होता है।
99. बुद्धिमान व्यक्ति को समाज कल्याण के लिए बिना आसक्ति के काम करना चाहिए।
100. जो व्यक्ति आध्यात्मिक जागरूकता के शिखर तक पहुँच चुके हैं, उनका मार्ग है निःस्वार्थ कर्म। जो भगवान के साथ संयोजित हो चुके हैं उनका मार्ग है स्थिरता और शांति।
101. वह जो सभी इच्छाएं त्याग देता है और मैं और मेरा की लालसा और भावना से मुक्त हो जाता है उसे शांती प्राप्त होती है।
102. मेरे लिए ना कोई घृणित है ना प्रिय। किन्तु जो व्यक्ति भक्ति के साथ मेरी पूजा करते हैं, वो मेरे साथ हैं और मैं भी उनके साथ हूँ।
103. जो इस लोक में अपने काम की सफलता की कामना रखते हैं वे देवताओं का पूजन करें।
104. बुरे कर्म करने वाले, सबसे नीच व्यक्ति जो राक्षसी प्रवित्तियों से जुड़े हुए हैं, और जिनकी बुद्धि माया ने हर ली है वो मेरी पूजा या मुझे पाने का प्रयास नहीं करते।
105. स्वर्ग प्राप्त करने और वहां कई वर्षों तक वास करने के पश्चात एक असफल योगी का पुन: एक पवित्र और समृद्ध कुटुंब में जन्म होता है।
106. केवल मन ही किसी का मित्र और शत्रु होता है।
107. मैं सभी प्राणियों के ह्रदय में विद्यमान हूँ।
108. ऐसा कुछ भी नहीं, चेतन या अचेतन, जो मेरे बिना अस्तित्व में रह सकता हो।
109. वह जो मृत्यु के समय मुझे स्मरण करते हुए अपना शरीर त्यागता है, वह मेरे धाम को प्राप्त होता है। इसमें कोई शंशय नहीं है।
110. वह जो इस ज्ञान में विश्वास नहीं रखते, मुझे प्राप्त किये बिना जन्म और मृत्यु के चक्र का अनुगमन करते हैं।
111. जो दान बिना सत्कार के, कुपात्र को दिया जाता है वह तमस दान कहलाता है।
112. मनुष्य संप्रदाय दो ही तरह के है एक दैवीय सम्प्रदा वाले एक आसुरी सम्प्रदा वाले।
113. दैवीय सम्प्रदा मुक्ति की तरफ और आसुरी सम्प्रदा नार्को की और ले जाने वाली है।
114. मन, वाणी और कर्म से किसी को भी दुःख न देना, प्रिय भाषण, अपना बुरा करने वाले पर भी क्रोध न करना, चित की चंचलता का आभाव,दम्भ, अहंकार, घमंड, क्रोध अज्ञान ये आसुरी सम्प्रदा के लक्षण है।
115. भय का आभाव, अनन्तःकरण की निर्मलता, तत्ज्ञान के लिए ध्यानयोग में स्थिति, दान, गुरुजन की पूजा, पठन पाठन, अपने धर्म के पालन के लिए कष्ट सहना ये दैवीय सम्प्रदा के लक्षण है।
116. शास्त्र, वर्ण, आश्रम की मर्यादा के अनुसार जो काम किया जाता है वह कार्य है और शास्त्र आदि की मर्यादा से विरुद्ध जो काम किया जाता है वह अकार्य है।
117. हे कान्हा जिंदगी लहर थी आप साहिल हुए न जाने कैसे हम आपके काबिल हुए न भूलेंगे हम उस हसीन पल को जब आप हमारी छोटी सी जिंदगी में शामिल हुए।
118. कान्हा तुम मुझे बासुरी बजाना सिखा दो जिस तरह से तुम बासुरी से राधा राधा नाम पुकारते हो उसी तरह मुझे भी बासुरी से कान्हा कान्हा कहना सिखा दो।
119. राधा ने कन्या से पूछा : कोईं अपना तुझे छोड़ कर चला जाये तो क्या करोगे।
कन्या ने उत्तर दिया: अपने कभी छोड़ कर नहीं जाते और जो चले जाये है वह अपने नहीं होते।
120. मेरे दिल की दीवारों पर श्याम तेरी छवि हो, मेरे नैनों के दरवाज़े पर कान्हा तेरी तस्वीर हो, बस कुछ और न मांगू तुझसे मेरे मुरलीधर, तूझे हर पल देखूं मेरे कन्हैया ऐसी मेरी तकदीर हो।
121. आज फिर आईना पोछता है के तेरी आँखों में नमी क्यों है, जिसकी चाहत में खुद को भुला दिया, फिर उसकी आँखों में नमी क्यों है।
122. बिना देखे तेरी तस्बीर बना सकते है बिना मिले तेरा हाल बता सकते है हमारे प्यार में इतना दम है तेरे आंसू अपने आँखों में गिरा सकते है।
123. राधे जी का प्यार मुरली की मिठास माखन का स्वाद गोपियन का रास इन से मिल कर बनाता है राधे कृष्णा का प्यार।
124. प्यार तो एक ताज होता है साथी को जिस पर नाज होता है।
125. सावरिया अभी बाकि दिल में बहुत हसरत पर मगर तुम वह अधूरे मुलाकात छोड़ गए।
126. मुरली मनोहर ब्रज के धरोहर, वो नंदलाल गोपाल है बंसी की धुन पर सब दुःख हरनेवाला।
127. कोई प्यार करे तो राधा-कृष्ण की तरह करे जो एक बार मिले, तो फिर कभी बिछड़े हीं नहीं।
128. तेरे बिना एक सजा है ये जिंदगी मेरे कान्हा किस्मतवाला बस वो है, जो दीवाना है तेरा कान्हा।
129. पूरी दुनिया मोह-माया में खोई हुई है मेरे कान्हा बस मैं हीं हूँ, जिसे तेरी माया जकड़ न पाई।
130. चारों तरफ फ़ैल रही है इनके प्यार की खुशबू थोड़ी-थोड़ी
कितनी प्यारी लग रही है, साँवरे-गोरी की यह जोड़ी।
131. कान्हा तेरे साँवले रंग से जलने लगे हैं लोग तेरे जैसा कोई ढूढ़ नहीं पाए हैं लोग इसलिए तुझे तेरे रंग का उलाहना देने लगे हैं लोग।
132. जब भोर हुई तो मैंने कान्हा का नाम लिया सुबह की पहली किरण ने फिर मुझे उसका पैगाम दिया सारा दिन बस कन्हैया को याद किया जब रात हुई तो फिर मैंने उसे ओढ़ लिया।
133. राधा ने किसी और की तरफ देखा हीं नहीं… जब से वो कृष्ण के प्यार में खो गई कान्हा के प्यार में पड़कर, वो खुद प्यार की परिभाषा हो गई।
134. राधा कृष्ण का मिलन तो बस एक बहाना था दुनिया को प्यार का सही मतलब जो समझाना था। जब कृष्ण ने बंसी बजाई, तो राधा मोहित होने लगी जिसे कभी न देखा था उसने, उससे मिलने को व्याकुल होने लगी।
135. प्यार दो आत्माओं का मिलन होता है ठीक वैसे हीं जैसे.. प्यार में कृष्ण का नाम राधा और राधा का नाम कृष्ण होता है।
136. प्रेम करना हीं है, तो मेरे कान्हा से करो जिसकी विरह में रोने से भी तेरा उद्धार हो जाएगा।
137. हे मन, तू अब कोई तप कर ले एक पल में सौ-सौ बार कृष्ण नाम का जप कर ले।
138. जमाने का रंग फिर उस पर नहीं चढ़ता… जिस पर कृष्ण प्रेम का रंग चढ़ जाता है वो सभी को भूल जाता है, जो साँवरे का हो जाता है।
139. कृष्ण की आँखों में राधा हीं राधा नजर आती है, मानो कृष्ण की आँखें, राधा की थाती है।
140. अगर तुमने राधा के कृष्ण के प्रति समर्पण को जान लिया
तो तुमने प्यार को सच्चे अर्थों में जान लिया।
141. राधा-राधा जपने से हो जाएगा तेरा उद्धार क्योंकि यही वही वो नाम है जिससे कृष्ण को प्यार।
142. किसी दुसरे के जीवन के साथ पूर्ण रूप से जीने से बेहतर है की हम अपने स्वयं के भाग्य के अनुसार अपूर्ण जियें।
143. एक उपहार तभी अलसी और पवित्र है जब वह हृदय से किसी सही व्यक्ति को सही समय और सही जगह पर दिया जाये, और जब उपहार देने वाला व्यक्ति दिल में उस उपहार के बदले कुछ पाने की उम्मीद ना रखता हो।
144. ऐसा कोई नहीं, जिसने भी इस संसार में अच्छा कर्म किया हो और उसका बुरा अंत हुआ है, चाहे इस काल में हो या आने वाले काल में।
145. जो भी मनुष्य अपने जीवन अध्यात्मिक ज्ञान के चरणों के लिए दृढ़ संकल्पों में स्थिर है, वह सामान रूप से संकटों के आक्रमण को सहन कर सकते हैं, और निश्चित रूप से यह व्यक्ति खुशियाँ और मुक्ति पाने का पात्र है।
146. जो खुशियाँ बहुत लम्बे समय के परिश्रम और सिखने से मिलती है, जो दुख से अंत दिलाता है, जो पहले विष के सामान होता है, परन्तु बाद में अमृत के जैसा होता है – इस तरह की खुशियाँ मन की शांति से जागृत होतीं हैं।
147. भगवान या परमात्मा की शांति उनके साथ होती है जिसके मन और आत्मा में एकता/सामंजस्य हो, जो इच्छा और क्रोध से मुक्त हो, जो अपने स्वयं/खुद के आत्मा को सही मायने में जानते हों।
148. नरक तिन चीजों से नफरत करता है: वासना, क्रोध और लोभ।
149. आपको कर्म करने का अधिकार है, परन्तु फल पाने का नहीं। आपको इनाम या फल पाने के लिए किसी भी क्रिया में भाग नहीं लेना चाहिए, और ना ही आपको निष्क्रियता के लिए लम्बे समय तक करना चाहिए। इस दुनिया में कार्य करें, अर्जुन, एक ऐसे आदमी जिन्होंने अपने आपको स्वयं सफल बनाया, बिना किसी स्वार्थ के और चाहे सफलता हो या हार हमेशा एक जैसे।
150. सन्निहित आत्मा के अनंत का अस्तित्व है, अविनाशी और अनंत है, केवल भौतिक शरीर तथ्यात्मक रूप से खराब है, इसलिए हे अर्जुन लड़ते रहो।
151. बुद्दिमान व्यक्ति ना ही जीवित लोगों के लिए शोक मनाते हैं ना ही मृत व्यक्ति के लिए। ऐसा कोई समय नहीं था, जब तुम और मैं और सभी राजा यहाँ एकत्रित हुए हों, पर ना ही अस्तित्व में था और ना ही ऐसा कोई समय होगा जब हम अस्तित्व को समाप्त कर देंगे।
152. अपने कर्म पर अपना दिल लगायें, ना की उसके फल पर।
153. सभी काम धयान से करो, करुणा द्वारा निर्देशित किये हुए।
154. जैसे की एक कवी जनता है, तप स्वार्थी गतिविधियों को छोड़ रहा है, और बुद्धिमान घोषित करता है, त्याग फल के कार्रवाई को छोड़ रहा है।
155. अपने कर्त्तव्य का पालन करना जो की प्रकृति द्वारा निर्धारित किया हुआ हो, वह कोई पाप नहीं है।
156. गर्मी और सर्दी, खुशी और दर्द की भावनाएं, उनकी वस्तुओं के साथ होश से संपर्क के कारण होता है। वे आते हैं और चले जाते हैं, लम्बे समय तक बरक़रार नहीं रहते हैं। आपको उन्हें स्वीकार करना चाहिए।
157. में आत्मा हूँ, जो सभी प्राणियों के हृदय/दिल से बंधा हुआ हूँ। मैं साथ ही शुरुवात हूँ, मध्य हूँ और समाप्त भी हूँ सभी प्राणियों का।
158. सभी वेदों में से मैं साम वेद हूँ, सभी देवों में से मैं इंद्र हूँ, सभी समझ और भावनाओं में से मैं मन हूँ, सभी जीवित प्राणियों में मैं चेतना हूँ।
159. हम जो देखते/निहारते हैं वो हम है, और हम जो हैं हम उसी वस्तु को निहारते हैं। इसलिए जीवन में हमेशा अच्छी और सकारात्मक चीजों को देखें और सोचें।
160. यह तो स्वभाव है जो की आंदोलन का कारण बनता है।
161. वह मैं हूँ, जो सभी प्राणियों के दिल/ह्रदय में उनके नियंत्रण के रूप में बैठा हूँ; और वह मैं हूँ, स्मृति का स्रोत, ज्ञान और युक्तिबाद संबंधी. दोबारा, मैं ही अकेला वेदों को जानने का रास्ता हूँ, मैं ही हूँ जो वेदों का मूल रूप हूँ और वेदों का ज्ञाता हूँ।
162. बुद्धिमान अपनी चेतना को एकजुट करना चाहिए और फल के लिए इच्छा/लगाव छोड़ देना चाहिए।
163. आपका अपने ड्यूटी पर नियंत्रण है, परन्तु किसी परिणाम पर दावा करने का नियंत्रण नहीं। असफलता के डर से, किसी कार्य के फल से भावनात्मक रूप से जुड़े रहना, सफलता के लिए सबसे बड़ी बाधा है, क्योंकि यह लगातार कार्यकुशलता को परेशान कर के धैर्य को लूटता है।
164. इन्द्रियों की दुनिया में कल्पना सुखों की एक शुरुवात है और अंत भी जो दुख को जन्म देता है, हे अर्जुन।
165. मेरे प्रिय अर्जुन, केवल अविभाजित भक्ति सेवा को में समझता हूँ, मैं आपसे पहले खड़ा हूँ, और इस प्रकार सीधे देख सकता हूँ। केवल इस तरह से ही आप मेरे मन के रहस्यों तक पहुँच सकते हो।
166. हजारों लोगों में से, कोई एक ही पूर्ण रूप से कोशिश/प्रयास कर सकता है, और वो जो पूर्णता पाने में सफल हो जाता है, मुश्किल से ही उनमे से कोई एक सच्चे मन से मुझे जनता हैं।
167. स्वार्थ से भरा हुआ कार्य इस दुनिया को कैद में रख देगा। अपने जीवन से स्वार्थ को दूर रखें, बिना किसी व्यक्तिगत लाभ के।
168. एक योगी, तपस्वी से बड़ा है, एक अनुभववादी और एक कार्य के फल की चिंता करने वाले व्यक्ति से भी अधिक. इसलिए, हे अर्जुन, सभी परिस्तिथियों में योगी बनो।
169. भले ही सबसे बड़ा पापी दिल से मेरी पूजा/तपस्या करे, वह अपने सही इच्छा की वजह से सही होता है। वह जल्द ही शुद्ध हो जाते हैं और चिरस्तायी/अनंत शांति प्राप्त करते हैं। इन शब्दों में मेरी प्रतिज्ञा है, जो मुझे प्रेम/प्यार करते हैं, वह कभी नष्ट नहीं होते।
170. मैं समय हूँ, सबका नाशक, मैं आया हूँ दुनिया को उपभोग करने के किये।
171. एक जीवित इकाई/रहने वाले मनुष्यों, के संकट का कारण होता है भगवान/परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते को भुला देना।
172. क्योंकि भौतिकवादी श्री कृष्ण के अध्यात्मिक बातों को समझ नहीं सकते हैं, उन्हें यह सलाह दी जाती है कि वे शारीरिक बातों पर अपना ध्यान केन्द्रित करें और देखने की कोशिश करें की कैसे श्री कृष्ण अपने शारीरिक अभ्यावेदन से प्रकट होते हैं।
173. वासना, क्रोध और लालच नरक के तीन दरवाजे हैं।
174. क्रोध से पूरा भ्रम पैदा होता है, और भ्रम से चेतना में घबराहट। अगर चेतना ही घबराया हुआ है, तो बुद्धि तो घटेगी ही, और जब बुद्धि में कमी आएगी तो एक के बाद एक गहरे खाई में जीवन डूबती नज़र आएगी।
175. आदमी/मनुष्य के लिए मन बंधन का कारण है और मन मुक्ति का कारण भी है। मन वस्तुओं की भावना में लीन रहे तो बंधन का कारण है, और अगर मन वस्तुओं की भावना से अलग रहे तो वह मुक्ति का कारण है।
176. ऐसा कोई समय नहीं था जब मेरा अस्तित्व ना हो, ना तुम, ना ही इनमे से कोई राजा। और ऐसा ना ही कोई भविष्य है जहाँ हमें कोई रोक सके।
177. वह जो अपने भीतर अपने स्वयं से खुश रहता है, जिसके मनुष्य जीवन एक आत्मज्ञान है, और जो अपने खुद से संतुष्ट हैं, पूरी तरीके से तृप्त है – उसके लिए जीवन में कोई कर्म नहीं हैं।
178. अपनी इच्छा शक्ति के माध्यम से अपने आपको नयी आकृति प्रदान करें। कभी भी स्वयं को अपन आत्म इच्छा से अपमानित न करें। इच्छा एक मात्र मित्र/दोस्त होता है स्वयं का, और इच्छा ही एक मात्र शत्रु है स्वयं का।
179. देवत्व का परम व्यक्तित्व कहता है: यह सिर्फ वासना ही है, अर्जुन, जिसका जन्म चीजों के जुनून के साथ संपर्क होने के लिए हुआ है और बाद में यह क्रोध में तब्दील हो जाता है, और जो सभी इस दुनिया के भक्षण पापी दुश्मन है।
180. हमारी गलती अंतिम वास्तविकता के लिए यह ले जा रहा है, जैसे सपने देखने वाला यह सोचता है की उसके सपने के अलावा और कुछ भी सत्य नहीं है।
181. हम कभी वास्तव में दुनिया की मुठभेड़ में घुसते, हम बस अनुभव करते हैं अपने तंत्रिता तंत्र को।
182. जन्म के समय में आप क्या लाए थे जो अब खो दिया है? आप ने क्या पैदा किया था जो नष्ट हो गया है? जब आप पैदा हुए थे, तब आप कुछ भी साथ नहीं लाए थे। आपके पास जो कुछ भी है, आप को इस धरती पर भगवान से ही प्राप्त हुआ है। आप इस धरती पर जो भी दोगे, तुम भगवान को ही दोगे। हर कोई खाली हाथ इस दुनिया में आया था और खाली हाथ ही उसी रास्ते पर चलना होगा। सब कुछ केवल भगवान के अंतर्गत आता है।
183. मेरे लिए न कोई ग्रहणीत है न प्रिय, किन्तु जो व्यक्ति भक्ति के साथ मेरी पूजा करते है, वो मेरे साथ है और मैं भी उनके साथ हूँ।
184. वह जो सभी इच्छाएं त्याग देता है और मै और मेरे की लालसा और भावना से मुक्त हो जाता है उसे शांति प्राप्त होती है।
185. फल की अभिलाषा छोड़कर कर्म करने वाला पुरुष ही अपने जीवन में सफल बनता है।