सरदार वल्लभ भाई पटेल भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। भारत की आजादी के बाद वे प्रथम गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री बने थे। बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व कर रहे पटेल को सत्याग्रह की सफलता पर वहां की महिलाओं ने सरदार की उपाधि दी थी।
आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केन्द्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को भारत का बिस्मार्क और लौह पुरुष भी कहा जाता है। सरदार पटेल जी ने स्वतंत्र भारत के उप प्रधानमंत्री के रूप में भारतीय संघ के साथ सैंकड़ों रियासतों का विलय किया था जिसे आज हमारा भारत देश एकता का प्रतिक मानता है।
सरदार पटेल जी वकील के रूप में हजारों रूपए कमाते थे लेकिन फिर भी उन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए अपनी वकिली छोड़ दी। किसानों के नेता के रूप में उन्होंने ब्रिटिश सरकार हो पराजय स्वीकार करने के लिए विवश कर दिया था।
सरदार पटेल जी एक प्रसिद्ध वकील थे लेकिन उन्होंने अपनी पूरा जीवन भारत को आजादी दिलाने में लगा दिया था। पटेल जी एक ऐसा नाम एवं ऐसे व्यक्तित्व थे जिन्हें स्वतंत्रता संग्राम के बाद बहुत से भारतीय प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते थे लेकिन अंग्रेजों की नीति और गाँधी जी के निर्णय की वजह से उनका यह सपना पूरा न हो सका था।
सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म :
सरदार वल्लभ भाई पटेल जी का जन्म 31 अक्टूबर , 1875 में नडियाद , गुजरात में के लेउवा गुर्जर किसान परिवार में हुआ था। पटेल जी के पिता का नाम झवेरभाई पटेल था और माता का नाम लाडबा देवी था। वे उनकी चौथी सन्तान थे। उनके तीन बड़े भाई भी थे जिनका नाम सोमाभाई , नरसीभाई और विट्टलभाई था। सरदार वल्लभ भाई पटेल जी का पूरा नाम वल्लभभाई झावरभाई पटेल था।
सरदार वल्लभ भाई पटेल की शिक्षा :
सरदार वल्लभ भाई पटेल जी की शिक्षा मुख्यतः स्वाध्याय से ही हुई थी। पटेल जी ने शिक्षा पेटलाद के एन.के. हाई स्कूल से प्राप्त की थी। लंदन जाकर उन्होंने बैरिस्टर की पढाई की और सन् 1913 में लंदन से वापस आकर अहमदाबाद में वकालत करने लगे थे। महात्मा गाँधी जी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था।
सरदार वल्लभ भाई पटेल का विवाह :
सरदार वल्लभभाई जी का विवाह सन् 1893 में सिर्फ 16 साल की उम्र में झाबेरवा देवी के साथ हुआ था। सन् 1904 में इनकी पहली पुत्री मणिबेन का जन्म हुआ था और सन् 1905 में इनके दुसरे पुत्र दह्या का जन्म हुआ था।
सरदार वल्लभ भाई पटेल को उपलब्धियां :
ब्रिटिश सरकार के खिलाफ खेडा सत्याग्रह और बारडोली विद्रोह का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। सन् 1922 , 1924 और 1927 में अहमदाबाद नगर निगम के अध्यक्ष चुने गए , 1931 में कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए , स्वतंत्र भारत के उपप्रधानमंत्री और गृह मंत्री बने , भारत के राजनैतिक एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई , सन् 1991 में भारतरत्न के लिए पुष्टि की गई।
भारत के प्रथम उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री सरदार पटेल लोकप्रिय लौह पुरुष के रूप से भी जाने जाते हैं। उनका पूरा नाम वल्लभ भाई पटेल था। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई भारत के प्रथम उपप्रधानमंत्री और गृह मंत्री बने। उन्हें भारत के राजनैतिक एकीकरण का श्रेय दिया जाता है।
सरदार वल्लभ भाई पटेल प्रारंभिक जीवन :
पटेल जी गुजरात राज्य में ही पले बढ़े थे। पटेल जी बचपन से ही परिश्रमी थे। बचपन से ही वे खेती में अपने पिता की मदद किया करते थे। एक बार पटेल जी की काख में एक फोड़ा हो गया था जिसका बहुत इलाज भी हुआ था लेकिन वह फोड़ा थीं नहीं हो रहा था इसलिए एक वैध ने उन्हें सलाह दी की अगर इस फोड़े को गर्म लोहे से सेक दिया जाए तो यह ठीक हो सकता है।
लेकिन यह बात सुनकर उनके परिवार वाले गर्म लोगे के दागने की कल्पना से ही कांप उठे थे और किसी की हिम्मत नहीं हुई की कोई ऐसा करे यह सब कुछ देखकर सरदार वल्लभभाई पटेल जी ने अपने साहस का परिचय देते हुए उस फोड़े को खुद ही गेम लोहे से दाग दिया और जरा भी आवाज नहीं की। पटेल जी के इस साहस को देखकर सभी लोग नतमस्तक हो गए।
बचपन से ही गरीबी और आर्थिक तंगी हाल में गुजारा करने वाले वल्लभभाई पटेल जी के माता-पिता उन्हें ऊँची शिक्षा दिलाना चाहते थे जिससे उनकी गरीबी की परछाई उनके बेटे पर न पड़े। स्कूल के दिनों से ही पटेल जी बहुत होशियार और विद्वान् थे। वे अपने पिता के साथ खेती में काम करने के साथ-साथ पढई भी किया करते थे।
लेकिन एक बार पटेल जी मैट्रिक की परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो गए और उच्च शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से एक वकालत की परीक्षा भी दी जिसमें वे पास हो गए थे और इस प्रकार उन्हें वकालत करने का अवसर प्राप्त हुआ था। सन् 1900 में जिला अधीक्षक की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए जिससे उन्हें वकालत करने की अनुमति मिलती थी।
गोधरा में वकालत का अभ्यास शुरू कर दिया था। यहाँ पर इन्होने प्लेग की महामारी से पीड़ित कोटर ऑफिशियल की बहुत सेवा की थी। घर की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बाद भी उनके पिता ने उन्हें सन् 1896 में हाई-स्कूल परीक्षा पास करने के बाद कॉलेज भेजने का फैसला लिया लेकिन वल्लभभाई ने कॉलेज जाने से मना कर दिया।
इसके बाद करीब 3 साल तक वल्लभ भाई पटेल जी घर पर ही रहे थे और कठिन परिश्रम करके बेरिस्टर की उपाधि संपादन की और साथ ही में देशसेवा में भी काम करने लगे। इसके बाद उन्होंने वकालत करनी शुरू कर दी ताकि उनकी पढाई के खर्च का बोझ उनके परिवार पर न पड़े। इस तरह से पटेल जी ऐसे केसों को सुलझाने लगे थे जिन्हें लोग हारा हुआ मानने लगे थे।
इस तरह से समय के साथ-साथ वल्लभभाई की प्रसिद्धि भी बढने लगी थी और सन् 1893 में इनका विवाह हो गया था लेकिन इन्होने अपनी पढाई के बीच में अपने पारिवारिक जीवन को बाधा बनने नहीं दिया था। इस तरह से उन्होंने अपने आगे की पढाई जारी रखी और फिर अपने वकालत के पैसों से इतना पैसा एकत्रित कर चुके थे कि विदेश जाकर वकालत की पढाई कर सकते थे।
अपने बड़े भाई विट्ठलभाई की मदद से वकालत की पढाई के लिए सन् 1905 में इंग्लैण्ड चले गए और 3 साल की पढाई करने के बाद भारत वापस लौट आए और फिर वकालत शुरू कर दी। इंग्लैण्ड में उन्होंने आधी समयावधि में ही अपना पूरा कोर्स कर लिया था। वहन पर फर्स्ट डिविजन के साथ-साथ रेंक प्राप्त की जिसके लिए उन्हें 50 पौंड इनाम भी मिला था।
इन्हें अपनी वकालत की पढाई पूरी करने के लिए किताबें उधार लेनी पडती थीं। सन् 1909 में वल्लभभाई पटेल कोर्ट में एक केस लद रहे थे और इसी दौरान एक सन्देशवाहक एक चिट्ठी लेकर वल्लभभाई पटेल जी के पास आया जिसे देखकर पटेल जी ने तुरंत पढकर अपनी जेब में रख लिया और फिर कोर्ट की कार्यवाही में लगे रहे और जब कोर्ट स्थगित हुआ तो सबको पता चला कि वल्लभभाई पटेल जी पत्नी का देहांत हो चुका है।
इस पर न्यायधीश जी ने वल्लभभाई जी से पूछा कि जब आपको पता चल गया था कि आपकी पत्नी का देहांत हो गया है फिर भी आप अपने काम में व्यस्त रहे ऐसा क्यों ? इस पर वल्लभ भाईपरनी उस वक्त अपने फर्ज की सीमाओं में बंधा हुआ था। मेरी पत्नी का जितना दिन मेरे साथ निभाना था वो तो निभाकर चली गई इसपर बला मैं अपने फर्ज से कैसे मुंह मोड़ लेता ?
मैंने भी किसी के जीवन का मोल लिया है और अगर मैं यहाँ से फर्ज को बीच में ही छोडकर चला जाता तो भला मेरा मुवक्किल मुझे कैसे माफ कर सकता है और मैं किसी के साथ ऐसा अन्याय कैसे कर सकता हूँ इसलिए मेरा फर्ज मुझे उस वक्त जाने से रोककर रखा हुआ था। यह सब बातें सुनकर वहां पर उपस्थित सभी लगों की आँखें भर आईं।
फर्ज के प्रति ऐसी मिशाल बहुत ही कम देखने को मिलते हैं जो शायद वल्लभभाई पटेल के साहस के द्वारा ही ऐसा मुमकिन हो सका था। जब इनकी पत्नी का देहांत हो गया तो इन्होने दूसरी शादी करने से मना कर दिया और अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए मेहनत करने लगे। सन् 1917 में वे अहमदाबाद नगरपालिका में चुनकर आये।
सरदार वल्लभ भाई पटेल का खेडा संघर्ष :
गाँधी जी की अगुवाई में सरदार वल्लभभाई पटेल का पहला आंदोलन खेडा संघर्ष था। स्वतंत्रता आंदोलन में सरदार वल्लभ भाई पटेल का सबसे पहला और बड़ा योगदान खेडा संघर्ष में ही हुआ था। गुजरात का खेडा खंड उन दिनों भयंकर सूखे की चपेट में आया हुआ था।
सूखे के चलते भारतीय किसान अंग्रेजों को टैक्स देने की स्थिति में असमर्थ थे जिसपर अंग्रेज कोई भी सुनवाई नहीं चाहते थे। सन् 1917 में गाँधी जी ने वल्लभ भाई पटेल से कहा कि वे खेडा के किसानों को इकट्ठा करे और उन्हें अंग्रेजों के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए प्रेरित करें। उन दिनों सिर्फ कृषि ही भारत का सबसे बड़ा आय का स्त्रोत था लेकिन कृषि हमेशा ही प्रकृति पर निर्भर करती आई है।
वैसा ही कुछ उन दिनों का आलम था। सन् 1917 में जब ज्यादा वर्ष की वजह से किसानों की फसल नष्ट हो गई थी लेकिन फिर भी अंग्रेजी हुकूमत को विधिवत कर देना बाकी था। किसानों ने अंग्रेज सरकार से भारी कर में छूट की मांग की। जब इस मांग को स्वीकार नहीं किया गया तो सरदार वल्लभ भाई पटेल , गाँधी जी और अन्य लोगों ने किसानों का नेतृत्व किया और उन्हें कर न देने के लिए प्रेरित किया।
उन्होंने अंग्रेजी नीतियों का जमकर विरोध किया जिसके चलते अंग्रेजों को भारी विरोध का सामना करना पड़ा था। अंत में सरकार झुक गई और उस साल करों में राहत दी गई। इस तरह से स्वतंत्रता सेनानी के रूप में सरदार वल्लभ भाई पटेल की अंग्रेजों के विरुद्ध पहली सफलता थी जो इतिहास में खेडा संघर्ष के नाम से प्रसिद्ध है। इन्होने गाँधी जी के हर आंदोलन में उनका साथ दिया। इन्होने और इनके पूरे परिवार ने अंग्रेजी कपड़ों का बहिष्कार किया और खादी को अपनाया।
सरदार की उपाधि :
बारडोली सत्याग्रह भारतीय स्वधीनता संग्राम के दौरान सन् 1928 में गुजरात में हुआ था जिसका नेतृत्व वल्लभ भाई पटेल जी ने किया था। इस आन्दोलन को साइमन कमीशन के विरुद्ध किया गया था। उस समय प्रांतीय सरकार ने किसानों की लगान में 30% तक की वृद्धि कर दी थी।
पटेल जी ने इस लगान वृद्धि का जमकर विरोध किया था। सरकार ने इस सत्याग्रह आंदोलन को कुचलने के लिए कठोर कदम उठाए लेकिन अंततः मजबूर होकर उसे किसानों की मांगों को पूरा करना पड़ा। इस सत्याग्रह आंदोलन के सफल होने के बाद वहां की महिलाओं ने वल्लभभाई पटेल को सरदार की उपाधि प्रदान की थी।
भारत का बिस्मार्क और लौह पुरुष :
15 अगस्त , 1947 को भारत देश स्वतंत्र हो चुका था। भारत आजाद होने के बाद से अखंड भारत की स्थिति बहुत खराब हो चुकी थी क्योंकि अंग्रेज जाते-जाते इस विशाल देश के दो टुकड़ों में बाँट चुके थे। इसकी वजह से हर हिंदुस्तानी के मन में रोष था लेकिन भारत देश के 520 से ज्यादा दशी रियासतें और स्वतंत्र प्रदेश थे जो सभी अपने तरह की आजादी देख रहे थे।
बंटवारे की वजह से देश के कई हिस्सों में निराशा और आक्रोश था जिसे रोकने का काम वल्लभभाई पटेल जी ने किया था जिसमें उन्हें बखूबी सफलता प्राप्त हुई थी। सरदार वल्लभ भाई पटेल जी भारत के पहले गृहमंत्री और उपप्रधानमंत्री थे। स्वतंत्रता के बाद वभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में इन्होने सफलतापूर्वक केन्द्रीय भूमिका निभाई थी और इसी कारण से इन्हें भारत का बिस्मार्क और लौह पुरुष कहा जाता है।
इतिहास में ऐसे उदाहरण बहुत ही कम देखने को मिलते हैं जिस तरह जर्मन नेता बिस्मार्क ने पूरे जर्मन को बिना हिंसा किए इकट्ठे देश का निर्माण किया ठीक वैसा ही सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भी भारत को अखंड भारत में अपने सुझबुझ का परिचय दिया था जिसकी वजह से सरदार वल्लभ भाई पटेल को भारत का बिस्मार्क भी कहा जाता है।
बारडोली सत्याग्रह में योगदान :
बारडोली सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक प्रमुख घटना है यह घटना 1928 में गुजरात के बारडोली प्रान्त में हुयी थी। बारडोली सत्याग्रह भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दौरान सन् 1928 में गुजरात में हुआ यह एक प्रमुख किसान आंदोलन था जिसका नेतृत्व वल्लभ भाई पटेल जी ने किया था।
उस समय में प्रांतीय सरकार ने किसानों के लगान में 30% तक की वृद्धि कर दी थी। पटेल जी ने वहां के लोगों के साथ मिलकर इस लगान वृद्धि का जमकर विरोध किया था। सरकार ने इस सत्याग्रह आंदोलन को कुचलने के लिए कठोर कदम उठाए लेकिन अंततः मजबूर होकर उसे किसानों की मांगों को मानना ही पड़ा था।
एक न्यायिक अधिकारी बूमफील्ड और एक राजस्व अधिकारी मैक्सवेल ने पुरे मामलों की जाँच कर 22% लगान वृद्धि को गलत ठहराते हुए इसे घटाकर 6.03% कर दिया था। इस सत्याग्रह आंदोलन के सफल होने के बाद वहां की महिलाओं ने वल्लभ भाई पटेल को सरदार की उपाधि दी।
किसान संघर्ष एवं राष्ट्रिय स्वाधीनता संग्राम के अंर्तसंबंधों की व्याख्या बारडोली किसान संघर्ष के सन्दर्भ में करते हुए गांधीजी ने कहा कि इस प्रकार का प्रत्येक संघर्ष , प्रत्येक कोशिश हमें स्वराज के समीप पहुंचा रही है और हम सभी को स्वराज की मंजिल तक पहुँचाने में ये संघर्ष सीधे स्वराज के लिए संघर्ष से कहीं ज्यादा सहायक सिद्ध हो सकते हैं।
आजादी की लडाई में पटेल की भूमिका :
सरदार वल्लभ भाई पटेल जी गुजरात के रहवासी थे। उन्होंने सबसे पहले अपने स्थानीय क्षेत्रों में शराब , छुआछूत एवं नारियों के अत्याचार के विरुद्ध लड़ाई की इन्होने हिन्दू-मुस्लिम एकता को बनाए रखने की अपनी पूरी कोशिश की। सरदार वल्लभभाई पटेल जी महात्मा गाँधी जी के आंदोलनों से बहुत प्रभावित थे और गांधीजी के नेतृत्व में आजादी की लड़ाई में बढ़-चढकर हिस्सा लिया।
गाँधी जी का कोई भी आंदोलन जैसे – असहयोग आंदोलन , दांडी यात्रा , भारत छोड़ों आंदोलन रहा हो उसमें सरदार वल्लभभाई पटेल जी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी जिसकी वजह से सरदार वल्लभ भाई उनकी बुलंद आवाज थी जब ये बोलते सभी को एक बंधन में बांध देते थे इस तरह सभी आंदोलनों में लोगों को जोड़ने का कार्य सरदार वल्लभ भाई पटेल बखूबी निभाते थे।
आजादी के बाद पटेल जी के कार्य :
यद्यपि अधिकांश प्रांतीय कांग्रेस समितियां पटेल के पक्ष में थीं गांधीजी की इच्छा का आदर करते हुए पटेल जी ने प्रधानमंत्री पद की दौड़ से अपने आप को दूर रखा और इसके लिए नेहरु का समर्थन भी किया। वल्लभभाई पटेल जी एक भारतीय बेरिस्टर और राजनेता थे।
पटेल जी भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के मुख्य नेताओं में से एक थे और साथ ही भारतीय गणराज्य के संस्थापक जनकों में से भी एक थे। वे एक सामाजिक कार्यकर्ता थे जिन्होंने देश की आजादी के लिए बहुत संघर्ष किया था और उन्होंने भारत को एकता के धागे में बांधने और आजाद बनाने का सपना देखा था। पटेल जी ने सफलतापूर्वक वकिली का प्रशिक्षण लिया हुआ था।
बाद में उन्होंने खेडा , बोरसद और बारडोली की किसानों को एकत्रित किया और ब्रिटिश राज में पुलिसकर्मी द्वारा किए जा रहे जुल्मों का विरोध अहिंसात्मक ढंग से किया था। इन सब के साथ-साथ पटेल जी गुजरात के मुख्य स्वतंत्रता सेनानियों और राजनेताओं में से एक बन गए थे।
पटेल जी ने भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस में भी अपने पद को विकसित किया था और सन् 1934 और 1937 के चुनाव में उन्होंने एक पार्टी की स्थापना भी की थी। उन्होंने निरंतर भारत छोड़ो आंदोलन का प्रचार-प्रसार किया था। उन्हें उपप्रधानमंत्री एवं गृह मंत्री का कार्यभार सौंपा गया था। पटेल जी ने गृहमंत्री और उपप्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए पंजाब और दिल्ली से आए शरणार्थियों के लिए देश में शांति का माहौल विकसित किया था।
लेकिन इसके बाद भी नेहरु और पटेल के संबंध तनावपूर्ण ही रहे थे। इसके चलते कई मौकों पर दोनों ने ही अपने पद का त्याग करने की धमकी दे दी थी। गृह मंत्री के रूप में उनकी पहली प्राथमिकता देसी रियासतों को भारत में मिलाना था। इसको उन्होंने बिना कोई खून-खराबा किए सम्पादित कर दिखाया था। सिर्फ हैदराबाद के आपरेशन पोलो के लिए उनको सेना भेजनी पड़ी थी।
इसके बाद पटेल जी ने एक भारत के कार्य को अपने हाथों में लिया था और वह देश को ब्रिटिश राज मुक्ति दिलाने की एक सफल योजना थी। भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान के लिए उन्हें भारत का लौह पुरुष के रूप में भी जाना जाता है। सन् 1950 में उनका देहांत हो गया था। इसके बाद नेहरु जी का कांग्रेस के अंदर बहुत कम विरोध शेष रहा था।
देसी राज्यों का एकीकरण :
भारतीय स्वतंत्रता एक्ट 1947 के तहत पटेल जी देश के सभी राज्यों की स्थिति को आर्थिक और दार्शनिक रूप से मजबूत बनाना चाहते थे। वे देश की सैन्य शक्ति और जन शक्ति दोनों को विकसित करके देश को एकता के बंधन में बांधना चाहते थे। पटेल जी के अनुसार आजाद भारत बिलकुल नया और सुंदर होना चाहिए। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने आजादी के ठीक पहले ही पीवी मेनन के साथ मिलकर कई देसी राज्यों को भारत में मिलाने के लिए काम शुरू कर दिया था।
आजादी के बाद भारत में कुल 565 रियासतें थीं। कुछ महाराजा और नवाब जिनका रियासतों पर शासन था वे जागरूक और देशभक्त थे लेकिन उनमें से बहुत से दौलत और सत्ता के नशे में थे। जब अंग्रेजों ने भारत छोड़ा तब वे स्वतंत्र शासक बनने के सपने देख रहे थे। उन्होंने तर्क दिया कि स्वतंत्र भारत की सरकार उन्हें बराबरी का दर्जा दे।
उनमे से कुछ लोग संयुक्त राष्ट्र संगठन को अपना प्रतिनिधि भेजने की योजना बनाने की हद तक चले गए। पटेल जी ने भारत के राजाओं से देशभक्ति का आह्वान किया और उनसे कहा कि वो देश की स्वतंत्रता से जुड़े और एक जिम्मेदार शासक की तरह व्यवहार करें जो केवल अपनी प्रजा के भविष्य की चिंता करते हैं।
पटेल और मेनन ने देसी राजाओं को बहुत समझाया कि उन्हें स्वायत्तता देना संभव नहीं होगा। इसके परिणामस्वरूप तीन को छोडकर बाकी सभी रजवाड़ों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था। सिर्फ जम्मू एवं कश्मीर , जूनागढ़ और हैदराबाद के राजाओं ने ऐसा करना नहीं स्वीकार किया था।
जूनागढ़ के नवाब के खिलाफ जब बहुत विरोध हुआ तो वह भागकर पाकिस्तान चला गया और जूनागढ़ को भी भारत में मिला लिया गया। जब हैदराबाद ने निजाम ने भारत में विलय के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया तो सरदार पटेल ने वहां पर सेना भेजकर निजाम का आत्म समर्पण करा दिया था लेकिन नेहरु जी ने कश्मीर को यह कहकर अपने पास रख लिया कि यह समस्या एक अंतर्राष्ट्रीय समस्या है।
महात्मा गाँधी, जवाहर लाल नेहरु और सरदार वल्लभ भाई पटेल में अंतर :
स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु और उप-प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल में आकाश-पाताल का अंतर था। यद्यपि दोनों नही इंग्लैण्ड जाकर बैरिस्टरी की डिग्री प्राप्त की थी लेकिन सरदार वल्लभ भाई पटेल वकालत में पंडित जवाहर लाल नेहरु से बहुत आगे थे तथा उन्होंने पूरे ब्रिटिश साम्राज्य के विद्यार्थियों में प्रथम स्थान प्राप्त किया था।
नेहरु जी प्राय: सोचते रहते थे , सरदार पटेल उसे कर डालते थे। नेहरु जी शास्त्रों के ज्ञाता थे और पटेल जी शस्त्रों के पुजारी थे। पटेल जी ने ऊँची शिक्षा प्राप्त की थी लेकिन उनमें जरा सा भी अहंकार नहीं था। वे खुद कहा करते थे कि मैंने कला या विज्ञान के विशाल गगन मव ऊँची उड़ानें नहीं भरीं।
मेरा विकास कच्ची झोंपड़ियों में गरीब किसान के खेतों की भूमि और शहरों के गंदे मकानों में हुआ है। पंडित जवाहर लाल नेहरु जी को गाँव की गंदगी और जीवन से चिढ थी। पंडित जवाहर लाल नेहरु अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के इच्छुक थे तथा समाजवादी प्रधानमंत्री बनना चाहते थे।
देश की स्वतंत्रता के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल उपप्रधानमंत्री के साथ प्रथम गृह , सूचना तथा रियासत विभाग के मंत्री भी थे। सरदार वल्लभ भाई पटेल जी की महानतम देन थी 562 छोटी-छोटी रियासतों का भारतीय संघ में विलीनीकरण करके भारतीय एकता का निर्माण करना था। संसार के इतिहास में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं हुआ जिसने इतनी बड़ी संख्या में राज्यों का एकीकरण करने का साहस किया हो।
5 जुलाई , 1947 को एक रियासत विभाग की स्थापना की गई थी। एक बार उन्होंने सुना कि बस्तर की रियासत में कच्चे सोने का एक बहुत बड़ा भारी क्षेत्र है और इस जमीन को दीर्घकालिक पट्टे पर हैदराबाद की निजाम सरकार खरीदना चाहती है। उसी दिन से वे परेशान हो उठे थे। उन्होंने अपना एक थैला उठाया तथा वीपी मेनन को साथ लेकर चल पड़े।
वे उड़ीसा पहुंचे और वहां के 23 राजाओं से कहा कि कुएं के मेंढक मत बनो , महासागर में आ जाओ। उड़ीसा के लोगों की सदियों पुरानी इच्छा कुछ ही घंटों में पूरी हो गई थी। वे फिर नागपुर पहुंचे और यहाँ के 38 राजाओं से मिले। इन्हें सैल्यूट स्टेट कहा जाता था अथार्त जब कोई इनसे मिलने जाता तो तोप छोडकर सलामी दी जाती थी।
पटेल जी ने इन राज्यों की बादशाहत को आखिरी सलामी दी थी। इसी तरह वे काठियावाड़ पहुंचे , वहां पर 250 रियासतें थी। कुछ तो सिर्फ 20-20 गाँव की रियासतें थीं। सबका एकीकरण किया गया था। एक शाम को वे मुम्बई पहुंचे और आसपास के राजाओं से बातचीत की तथा उनकी राजसत्ता अपने थैले में डालकर चल दिए।
सरदार वल्लभ भाई पटेल पंजाब गए। उन्होंने जब पटियाला का खजाना देखा तो खाली था। फरीदकोट के रजा के कुछ आनाकानी की तब सरदार पटेल जी ने फरीदकोट के नक्शे पर अपनी लाल पेंसिल घुमाते हुए सिर्फ इतना पूछा कि क्या मर्जी है ? यह सुनते ही राजा कांप उठा।
आख़िरकार 15 अगस्त , 1947 तक सिर्फ तीन रियासतें -कश्मीर , जूनागढ़ और हैदराबाद को छोडकर उस लौह पुरुष ने सभी रियासतों को भारत में मिला दिया था। इन तीन रियासतों में भी जूनागढ़ को 9 नवंबर , 1947 को मिला लिया गया और जूनागढ़ का नबाव पाकिस्तान भाग गया। 13 नवंबर को सरदार वल्लभ भाई पटेल जी ने सोमनाथ के भग्न मंदिर के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया था जो पंडित जवाहरलाल नेहरु के तीव्र विरोध के पश्चात भी बना।
सन् 1948 में हैदराबाद भी सिर्फ 4 दिन की पुलिस कार्यवाई द्वारा मिला लिया गया। न कोई बम्ब चला , न कोई क्रांति हुई जैसा कि डराया जा रहा था। जहाँ तक कश्मीर का सवाल है इसे पंडित जवाहरलाल नेहरु ने स्वंय अपने अधिकार में लिया हुआ था लेकिन यह सच है कि सरदार पटेल कश्मीर में जनमत संग्रह तथा कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने पर बहुत क्षुब्ध थे।
सरदार वल्लभ भाई पटेल जी के द्वारा यह 562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का एक आश्चर्य था। भारत की यह एक रक्तहीन क्रांति थी। महात्मा गाँधी जी ने सरदार वल्लभ भाई पटेल को इन रियासतों के बारे में लिखा था कि रियासतों की परेशानी इतनी जटिल थी जिसे सिर्फ तुम ही हल कर सकते थे।
यद्यपि विदेश विभाग पंडित जवाहर लाल नेहरु जी का कार्यक्षेत्र था लेकिन बहुत बार उपप्रधानमंत्री होने के नाते कैबिनेट की विदेश विभाग समिति में उनका जाना होता था। उनकी दूरदर्शिता का फायदा अगर उस समय लिया जाता तो अनेक वर्तमान समस्याओं का जन्म नहीं होता।
सन् 1950 में पंडित जवाहर लाल नेहरु जी को लिखे एक पत्र में पटेल जी ने चीन और उसकी तिब्बत के प्रति नीति से सावधान किया था। चीन का रवैया कपटपूर्ण और विश्वासघाती बताया गया था। अपने पत्र में उन्होंने चीन को अपना दुश्मन , उसके व्यवहार को अभद्रतापूर्ण और चीन के पत्रों की भाषा को किसी दोस्त की नहीं बल्कि भावी शत्रु की भाषा कहा था। उन्होंने यह भी लिखा था कि तिब्बत पर चीन का कब्जा नई समस्याओं को जन्म देगा।
सन् 1950 में नेपाल के संदर्भ में लिखे पत्रों से भी पंडित जवाहर लाल नेहरु जी सहमत नहीं थे। सन् 1950 में ही गोवा की स्वतंत्रता के संबंध में चली दो घंटे की कैबिनेट बैठक में लंबी वार्ता सुनने के बाद सरदार पटेल जी ने सिर्फ इतना कहा कि क्या हम गोवा जाएंगे केवल दो घंटे की बात है। नेहरु जी इससे बहुत नाराज हुए थे।
अगर पटेल जी की बात मानी गई होती तो सन् 1961 तक गोवा की स्वतंत्रता की प्रतीक्षा नहीं करनी पडती। गृहमंत्री के रूप में वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीय नागरिक सेवाओं का भारतीयकरण कर इन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवाएं बनाया। अंग्रेजों की सेवा करने वालों में विश्वास भरकर उन्हें राजभक्ति से देशभक्ति की तरफ मोड़ा।
अगर सरदार वल्लभ भाई पटेल जी कुछ सालों जीवित रहते तो संभवतः नौकरशाही का पूर्ण कायाकल्प हो जाता। सरदार पटेल जी जहाँ पर पाकिस्तान की छद्म और चालाकी पूर्ण चालों से सावधान थे वहीं देश के विघटनकारी तत्वों से भी सावधान करते थे। विशेषकर वे भारत में मुस्लिम लीग तथा कम्युनिस्टों की विभेदकारी तथा रूस के प्रति उनकी भक्ति से सजग थे।
अनेक विद्वंनों का कथन है कि सरदार पटेल बिस्मार्क की तरह थे। लेकिन लंदन के टाइम्स ने लिखा था कि बिस्मार्क की सफलताएँ पटेल जी के सामने महत्वहीन रह जाती हैं। अगर पटेल जी के कहने पर चलते तो कश्मीर , चीन , तिब्बत और नेपाल के हालात आज के जैसे नहीं होते। पटेल जी सही मायनों में मनु के शासन की कल्पना थे। उनमें कौटिल्य की कूटनीतिज्ञता और महाराज शिवाजी की दूरदर्शिता थी। वे सिर्फ सरदार ही नहीं बल्कि भारतियों के दिल के सरदार थे।
सरदार वल्लभभाई पटेल जी की मृत्यु :
जो इस पृथ्वी पर जन्म लेता है उसे एक दिन इस दुनिया को छोडकर जाना पड़ता है यही सच है जब महात्मा गाँधी जी को मारकर हत्या कर दी है थी तो सरदार वल्लभ भाई पटेल इस घटना से बहुत अधिक छुब्ध हो चुके थे। मन ही मन उन्हें बहुत गहरा आघात पूंचा और फिर 15 दिसंबर , 1950 में सरदार वल्लभभाई पटेल जी की मृत्यु हो गई थी।
मुंबई में ही उनका अंतिम संस्कार किया गया था। सरदार वल्लभभाई पटेल जी की मौत के बाद भारत ने अपना नेता खो दिया था। सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे दूसरे नेता को ढूंढना बहुत मुश्किल होगा जिन्होंने आधुनिक भारत के इतिहास में इतनी सारी भूमिकाएं निभायीं थीं। सरदार पटेल जी एक महान व्यक्ति थे , प्रदर्शन में महान , व्यक्तित्व में महान – आधुनिक भारत के इतिहास में रचनात्मक राजनीतिक नेता थे।
पटेल का लेखन कार्य और प्रकाशित पुस्तकें :
लगातार संघर्षपूर्ण जीवन जीने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल जी को स्वतंत्र रूप से पुस्तक रचना का अवकाश नहीं मिला लेकिन उनके लिखे पत्रों , टिप्पणियों एवं उनके द्वारा दिए गए व्याख्यानों के रूप में बृहद् साहित्य उपलब्ध है जिनका संकलन विविध रूपाकारों में प्रकाशित होते रहा है।
इनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण तो सरदार पटेल जी के वे पत्र हैं जो स्वतंत्रता संग्राम के संदर्भ में दस्तावेज का महत्व रखते हैं। सन् 1945 से 1950 ई. की समयावधि के इन पत्रों का सबसे पहले दुर्गा दास के संपादन में नवजीवन प्रकाशन मन्दिर से 10 खंडों में प्रकाशन हुआ था।
इस बृहद् संकलन में से चुने हुए पत्र-व्यवहारों का वी० शंकर के संपादन में दो खंडों में भी प्रकाशन हुआ जिनका हिंदी अनुवाद भी प्रकाशित किया गया था। इन संकलनों में सिर्फ सरदार वल्लभ भाई पटेल के पत्र न होकर उन-उन संदर्भों में उन्हें लिखे गए अन्य व्यक्तियों के महत्वपूर्ण पत्र भी संकलित हैं। विभिन्न विषयों पर केंद्रित उनके विविध रूपेण लिखित साहित्य को संकलित करके अनेक पुस्तकें तैयार की गई हैं। उनके समग्र उपलब्ध साहित्यों का विवरण इस तरह से है –
1. सरदार वल्लभ भाई पटेल : चुना हुआ पत्र व्यवहार (1945-1950) – दो खंडों में , संपादक – वी० शंकर , प्रथम संस्कार-1976
2. सरदार श्री के विशिष्ट और अनोखे पत्र (1918-1950) – दो खंडों में , संपादक – गणेश मा० नांदुरकर , प्रथम संस्कार-1981
3. भारत विभाजन
4. गाँधी , नेहरु , सुभाष
5. आर्थिक एवं विदेश नीति
6. मुसलमान और शरणार्थी
7. कश्मीर और हैदराबाद
8. Sardar Patel’s correspondence , 1945-50 – Edited by Durga Das.
9. The Collected Works of Sardar Vallabhbhai Patel – Edited By Dr. P.N. Chopra & Prabha Chopra.
पटेल का सम्मान :
सरदार पटेल जी के सम्मान में अहमदाबाद के हवाई अड्डे का नाम सरदार वल्लभभाई पटेल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा रखा गया है। गुजरात के वल्लभनगर में सरदार पटेल विश्वविद्यालय स्थित है। सन् 1991 में मरने के बाद उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। इस अवार्ड को उनके पोते विपिनभाई पटेल द्वारा स्वीकार किया गया था।
अपने असंख्य योगदानों की वजह से देश की जनता ने उन्हें आयरन मैं ऑफ इण्डिया – लौह पुरुष की उपाधि से सम्मानित किया जाता है। इसके साथ ही उन्हें सम्मान के लिए भारतीय सिविल सर्वेंट के संरक्षक भी कहा जाता है क्योंकि उन्होंने ही भारत के सर्विस सिस्टम की स्थापना की थी।
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी :
31 अक्टूबर , 2013 को सरदार वल्लभ भाई पटेल जी की 137 वीं जयंती के अवसर पर गुजरात के तत्कालीन मुख्य मंत्री नरेंद्र मोदी जी ने गुजरात के नर्मदा जिले में सरदार वल्लभभाई पटेल के एक नए स्मारक का शिलान्यास क्या। यहाँ लौहे से बनाया गई सरदार वल्लभभाई पटेल जी की एक विशाल प्रतिमा लगाने का फैसला किया गया और अत: इस स्मारक का नाम एकता की मूर्ति रखा गया है।
यह मूर्ति स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी से भी दुनी ऊँची बनेगी। इस प्रस्तावित प्रतिमा को एक छोटे चट्टानी द्वीप पर स्थापित किया जाएगा जो केवाडिया में सरदार सरोबर बांध के सामने नर्मदा नदी के बीच स्थित है। स्थापित हो जाने पर सरदार वल्लभभाई पटेल जी की यह मूर्ति दुनिया की सबसे ऊँची धातु मूर्ति होगी जो 5 साल में लगभग 2500 करोड़ रूपए की लागत से तैयार होगी।
सरदार वल्लभ भाई पटेल के अनमोल वचन और नारे :
1. कभी-कभी मनुष्य की अच्छाई उसके रास्ते में बाधक बन जाती है कभी-कभी क्रोध ही सही रास्ता दिखाता है। क्रोध की अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने की ताकत देता है।
2. डर का सबसे बड़ा कारण विश्वासी में कमी हैं।
3. सरदार पटेल की परिभाषा : जिनके पास शस्त्र चलाने का हुनर हैं लेकिन फिर भी वे उसे अपनी म्यान में रखते हैं असल में वे अहिंसा के पुजारी हैं। कायर अगर अहिंसा की बात करे तो वह व्यर्थ है।
4. जिस काम में मुसीबत होती हैं उसे ही करने का मजा हैं जो मुसीबत से डरते हैं वे युद्ध नहीं। हम मुसीबत से नहीं डरते।
5. फालतू मनुष्य सत्यानाश कर सकता हैं इसलिए सदैव कर्मठ रहे क्योंकि कर्मठ ही ज्ञानेन्द्रियों पर विजय ओराप्त कर सकता है।
सरदार जी के विषय में रोचक तथ्य :
सन् 1917 में खेडा सत्याग्रह में उन्होंने हिस्सा लिया , साराबंदी आंदोलन का नेतृत्व उन्होंने किया , आखिरकार सरकार को झुकना ही पड़ा , सभी टेक्स वापस लिए गए , सरदार इनके नेतृत्व में हुए इस आंदोलन को विजय मिली , सन् 1918 के जून के महीने में किसानों ने विजयोस्तव मनाया गया उस समय गांधीजी को बुला कर वल्लभभाई को मानपत्र दिया गया।
सन् 1919 को रोलेट एक्ट के विरोध के लिए वल्लभभाई पटेल जी ने अहमदाबाद में बहुत बड़ा मोर्चा निकाला। सन् 1920 में गांधीजी ने असहकार आंदोलन शुरू किया था। इस असहकार आंदोलन में वल्लभभाई जी ने अपना पूरा जीवन देश को अर्पण किया था और महीने में हजारों रूपए मिलने वाली वकिली भी उन्होंने छोड़ दी थी।
सन् 1921 में गुजरात प्रांतीय कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष स्थान पे उन्हें चुना गया था। सन् 1923 में अंग्रेज सरकार ने तिरंगे पर बंदी का कानून किया और अलग-अलग स्थान से हजारों सत्याग्रही नागपुर को एकत्रित हुए। साढ़े 3 महीने पूरे जोश के साथ वो लड़ाई शुरू हुई और सरकार ने इस लड़ाई को दबाने के लिए असंभव कोशिश की।
सन् 1928 को बारडोली को वल्लभभाई ने अपने नेतृत्व में किसानों के लिए साराबंदी आंदोलन शुरू किया। पहले वल्लभभाई ने सरकार को सारा काम करने का निवेदन किया लेकिन सरकार ने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया। योजना के साथ और सावधानी से आंदोलन को शुरू किया गया।
आंदोलन को दबाने के लिए सरकार ने असंभव कोशिश की लेकिन इसी समय बंबई विधानसभा के कुछ सदस्यों ने अपने स्थान पर से इस्तीफा दे दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि सरकार ने किसानों की मांगे सशर्त मान लीं और बारडोली किसानों ने वल्लभभाई को सरदार को बहुमान दिया।
सन् 1931 में कराची में हुए राष्ट्रिय कांग्रेस के अधिवेशन के अध्यक्ष स्थान पर वल्लभभाई थे। सन् 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लेले की वजह से उन्हें जेल जाना पड़ा था। सन् 1946 को स्थापन हुए मध्यवर्ती अभिनय मंत्री मंडल में वे गृहमंत्री थे। वे घटना समिति के सदस्य भी थे।
15 अगस्त , 1947 को भारत आजाद हुआ और स्वतंत्रता के बाद पहले मंत्री मंडल में उपपंत प्रधान का स्थान उन्हें मिला था। उनके पास गृह जानकारी और प्रसारण वैसे ही घटक राज्य संबंधित प्रश्न ये ख्याति दी गई। वल्लभ भाई जी ने स्वतंत्रता के बाद लगभग 600 संस्थान का भारत में विलिकरण किया। हैदराबाद संस्थान भी उनके पुलिस एक्शन की वजह से 17 सितंबर , 1948 को भारत में विलीन हुआ था।