लाल बहादुर शास्त्री :
भारत में ऐसे बहुत कम लोग हुए हैं जिन्होंने समाज के बहुत साधारण वर्ग से अपने जीवन की शुरुआत की और देश के सबसे बड़े पद को प्राप्त किया। इन्ही लोगों में से एक लाल बहादुर शास्त्री जी भी थे। शास्त्री जी को उनकी सादगी , देशभक्ति और ईमानदारी के लिए आज भी पूरा भारत श्रद्धापूर्वक याद करता है।
30 सालों से ज्यादा अपनी समर्पित सेवा के दौरान लाल बहादुर शास्त्री जी ने अपनी उदात्त निष्ठा एवं क्षमता के लिए वे लोगों में प्रसिद्ध हो गए। विनम्र , दृढ , सहिष्णु एवं जबर्दस्त आंतरिक शक्ति वाले शास्त्री जी लोगों के बीच ऐसे व्यक्ति बनकर उभरे जिन्होंने लोगों की भावनाओं को समझा था। शास्त्री जी दूरदर्शी थे जो देश को प्रगति के रास्ते पर लेकर आए।
लाल बहादुर शास्त्री जी महात्मा गाँधी जी के राजनैतिक शिक्षाओं से बहुत अधिक प्रभावित थे। महात्मा गाँधी जी के समान विचार रखने वाले लाल बहादुर शास्त्री जी भारतीय संस्कृति की एक श्रेष्ठ पहचान हैं। लाल बहादुर शास्त्री जी भारत देश के सच्चे सपूत थे जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन देशभक्ति के लिए समर्पित कर दिया था।
एक साधारण परिवार में जन्मे शास्त्री जी का जीवन गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन से शुरू हुआ और स्वतंत्र भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री के रूप में समाप्त हुआ। देश के लिए उनके समर्पण भाव को राष्ट्र कभी भुला नहीं सकेगा।
लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म :
लाल बहादुर शस्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर ,1904 में उत्तर प्रदेश के बनारस की पावन धरती के मुगलसराय में मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव के घर पर हुआ था। लाल बहादुर शास्त्री जी के पिता का नाम मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव था और माता का नाम राम दुलारी था। लोग इन्हें प्यार से नन्हें कहकर बुलाते थे लेकिन इनका वास्तविक नाम ला बहादुर श्रीवास्तव था।
लाल बहादुर शास्त्री जी की शिक्षा :
लाल बहादुर शास्त्री जी की प्रारंभिक शिक्षा मिर्जापुर से हुई थी। अपनी प्रारंभिक शिक्षा के दौरान शास्त्री जी नंगे पैरों से ही नदी तैरकर पढने जाया जरते थे। यहाँ तक कि भीषण गर्मी में जब सडकें बहुत अधिक गर्म होती थीं तब भी उन्हें ऐसे ही जाना पड़ता था। शास्त्री जी को उनके चाचा जी के यहाँ पर वाराणसी भेज दिया गया था जिससे वे उच्च विद्यालय की शिक्षा प्राप्त कर सकें।
इसके बाद उन्होंने आगे की परीक्षा हरिश्चन्द्र हाई स्कूल और काशी विद्यापीठ से पूरी की थी। काशी विद्या पीठ से ही उन्होंने शास्त्री की उपाधि प्राप्त की थी। शस्त्री की उपाधि मिलने के बाद उन्होंने जन्म से चला आ रहा जातिसूचक शब्द श्रीवास्तव को उन्होंने हमेशा-हमेशा के लिए हटा दिया और अपने नाम के आगे शास्त्री लगा लिया। इसके बाद वे शास्त्री शब्द लाल बहादुर का पर्याय बन गया।
लाल बहादुर शास्त्री जी का विवाह :
लाल बहादुर शास्त्री जी का विवाह सन् 1928 में मिर्जापुर के निवासी गणेशप्रसाद की बेटी ललिता से हुआ था। उनकी पत्नी ललिता देवी मिर्जापुर से थीं जो उनके अपने शहर के पास ही था। उनकी शादी सभी तरह से पारंपरिक थी। दहेज के नाम पर एक चरखा एवं हाथ से बने हुए कुछ मीटर कपड़े थे।
वे दहेज के रूप में इससे ज्यादा कुछ नहीं चाहते थे। ललिता शास्त्री जी से उनकी 6 संतानें हुईं थी जिनमें दो पुत्रियाँ और चार पुत्र हुए थे। उनकी पुत्रियों का नाम कुसुम और सुमन हैं और उनके चार पुत्रों के नाम हरिकृष्ण , अनिल , सुनील और अशोक हैं। इनके चार पुत्रों में से दो पुत्र अनिल शास्त्री और सुनील शास्त्री अभी भी हैं और बाकी के दो पुत्र दिवंगत हो चुके हैं।
लाल बहादुर शास्त्री जी की उपलब्धियां :
लाल बहादुर शास्त्री जी ने बहुत उपलब्धियां प्राप्त की थीं। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में मुख्य भूमिका , उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत के संसदीय सचिव , पंत मंत्री मंडल में पुलिस और परिवहन मंत्री , केंद्रीय मंत्री मंडल में रेलवे और परिवहन मंत्री , केंद्रीय मंत्री में परिवहन और संचार , वाणिज्य और उद्योग , 1964 में भारत के प्रधानमंत्री बने आदि उपलब्धियां प्राप्त की थीं।
लाल बहादुर शास्त्री जी स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे। शरीरिक कद में छोटे होने के बाद भी वे महान साहस और इच्छा शक्ति के व्यक्ति थे। पाकिस्तान के साथ सन् 1965 के युद्ध के दौरान उन्होंने सफलतापुर्वक देश का नेतृत्व किया था। युद्ध के दौरान देश को एकजुट करने के लिए उन्होंने जय जवान जय किसान का नारा दिया।
स्वतंत्रता से पहले उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने बड़ी सादगी और ईमानदारी के साथ अपना जीवन व्यतीत किया और सभी देशवासियों के लिए एक प्रेरणा के श्रोत बने। लाल बहादुर शास्त्री जी उनकी मृत्यु के बाद उनके कार्यों के लिए सन् 1966 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
लाल बहादुर शास्त्री जी का प्रारंभिक जीवन :
लाल बहादुर शास्त्री जी के पिता जी प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे और सब उन्हें मुंशीजी कहकर बुलाते थे। बाद में उन्होंने राजस्व में लिपिक की नौकरी कर ली थी। गरीब होने के बाद भी शारदा प्रशाद अपनी ईमानदारी और शराफत के लिए जाने जाते थे। परिवार में सबसे छोटा होने की वजह से उन्हें परिवार वाले प्यार से नन्हें कहकर बुलाते थे।
जब लाल बहादुर शास्त्री जी 18 महीने के थे तब उनके पिता जी का देहांत हो गया। पति की मृत्यु हो जाने के बाद लाल बहादुर शस्त्री जी की माँ अपने पिता हजारीलाल जी के घर मिर्जापुर चली गईं थीं। कुछ समय के बाद उनके नाना जी का भी देहांत हो गया। बिना पिता के बच्चे लाल बहादुर शास्त्री की परवरिश करने के लिए उनके मौसा जी रघुनाथ प्रसाद ने उनकी माँ का बहुत सहयोग किया था।
उन्होंने अपनी शिक्षा ननिहाल से की थी। कम उम्र में आर्थिक संकट उन्हें सताता था। लाल बहादुर शास्त्री जी नदी तैरकर पार करके पढने जाया करते थे। एक दिन स्कूल से घर लौटते समय लाल बहादुर जी और उनके दोस्त एक आम के बाग में गए जो उनके घर के रास्ते में पड़ता था। उनके दोस्त आम तोड़ने के लिए पेड़ों पर चढ़ गए जबकि लाल बहादुर जी नीचे ही खड़े रहे।
इसी बीच माली वहां पर आ गया और उसने लाल बहादुर को पकड़कर खूब डांट लगाई और पिटाई करने लगा। लाल भदौर जी ने माली से निवेदन किया कि वे एक अनाथ हैं इसलिए वे उन्हें छोड़ दें। बच्चे पर दया दिखाते हुए माली ने कहा कि चूँकि तुम एक अनाथ हो इसलिए यह सबसे अधिक जरूरी है कि तुम बेहतर आचरण सीखो।
इन शब्दों ने उन पर एक बहुत ही गहरा प्रभाव डाला और उन्होंने भविष्य में बेहतर व्यवहार करने की कसम खायी। स्कूली पढाई के समय में उन पर राम-कृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद का विशेष प्रभाव पड़ा था। विद्यापीठ में अनुकूल वातावरण होने की वजह से उनकी प्रांजल प्रतिभा को प्रस्फुटित होने का अवसर मिला था। स्थानीय हरिश्चन्द्र शिक्षा संस्था में नका संपर्क भारत रत्न डॉ० भगवान दास , स्वर्गीय आचार्य नरेंद्र देव और डॉ० संपूर्णचंद से हुआ।
लाल बहादुर शास्त्री जी 10 साल की उम्र तक अपने दादा जी के यहाँ पर रहे थे और तब तक उन्होंने कक्षा 6 की परीक्षा उत्तोर्ण कर ली थी। बड़े होने के साथ ही लाल बहादुर शास्त्री जी विदेशी दासता से आजादी के लिए संघर्ष में रूचि रखने लगे थे। शास्त्री जी भारत में ब्रिटिश शासन का समर्थन कर रहे भारतीय राजाओं की महात्मा गाँधी जी द्वारा की गई निंदा से अत्यंत प्रभावित हुए।
लाल बहादुर शास्त्री जी जब 11 साल के थे तब उन्होंने राष्ट्रिय स्तर पर कुछ करने का मन बना लिया था। जब शास्त्री जी 16 साल के थे तब गाँधी जी की प्रेरणा से सन् 1921 में शिक्षा छोडकर असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। शास्त्री जी के पढाई छोड़ने के फैसले ने उनकी माँ की उम्मीदों को तोडकर रख दिया था।
उनके परिवार वालों ने उनके इस फैसले को गलत बताते हुए उन्हें रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन वे सफल नहीं हो सके। इस आन्दोलन में भाग लेने की वजह से उन्हें जेल जाना पड़ा। जेल से छूटने पर इन्होने काशी विद्यापीठ में अपनी शिक्षा पुनः शुरू कर दी और वहीं से शास्त्री की डिग्री प्राप्त की। यहाँ पर वे महान विद्वानों और देश के राष्ट्रवादियों के प्रभाव में आये।
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लाला लाजपतराय ने सर्वेट्स ऑफ इण्डिया सोसाइटी की स्थापना की थी जिसका उद्देश्य गरीब प्रष्ठभूमि से आने वाले स्वतंत्रता सेनानियों आर्थिक सहायता प्रदान करवाना था। आर्थिक सहायता पाने वाले लोगों में लाल बहादुर शास्त्री जी भी थे। उन्हें घर का खर्चा चलाने के लिए 50 रूपए प्रति दिए जाते थे।
एक बार जब वे जेल में थे तब उन्होंने जेल से अपनी पत्नी ललिता शास्त्री जी को पत्र लिखकर पूछा कि क्या उन्हें 50 रूपए समय से मिल जाते हैं और क्या इन पैसों में से उनका खर्चा चल जाता है। ललिता शास्त्री जी जी ने जबाव दिया था कि वे केवल 40 रूपए ही खर्च करती हैं वे 10 रूपए की महीने में बचत कर लेती हैं।
लाल बहादुर शास्त्री जी ने तुरंत सर्वेट्स ऑफ इण्डिया सोसाइटी को पत्र लिखकर कहा कि उनके परिवार का गुजरा 40 रूपए में हो जाता है इसलिए उनकी आर्थिक सहायता घटाकर 40 रूपए के दी जाये और बाकी के 10 रूपए किसी और जरुरतमंदों को दे दिए जाएँ। लाल बहादुर शास्त्री जी की जवाहर लाल नेहरु की साथ निकटता बढती चली गई।
इसके बाद तो शास्त्री जी का कद लगातार बढ़ता ही चला गया और एक के बाद एक सफलता की सीढियाँ चढ़ते हुए वे नेहरु जी के मंत्री मंडल के गृहमंत्री के प्रमुख पद तक जा पहुंचे और इतना ही नहीं नेहरु जी के निधन के बाद भारत वर्ष के प्रधानमंत्री भी बने।
लाल बहादुर शास्त्री जी का राजनितिक जीवन :
संस्कृत में स्नातक स्तर की शिक्षा समाप्त करने वे भारत सेवक संघ से जुड़ गए और देशसेवा का व्रत लेते हुए यहीं से अपने राजनैतिक जीवन का आरंभ किया। शास्त्री जी एक सच्चे गाँधीवादी थे जिन्होंने अपना सारा जीवन सादगी में बिताया और उसे गरीबों की सेवा में लगाया।
भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों और आंदलनों में उनकी सक्रिय भागीदारी रही जिसके परिणामस्वरूप उन्हें कई बार जेल यात्रा भी करनी पड़ी। सन् 1921 में जब महात्मा गाँधी जी ने ब्रिटश सरकार के विरुद्ध असहयोग आंदोलन की शुरुआत की तब लाल बहादुर शास्त्री जी केवल 17 साल के थे।
जब महात्मा गाँधी जी ने युवाओं को सरकारी स्कूलों , कॉलेजों , दफ्तरों और दरबारों से बाहर आकर आजादी के लिए सब कुछ न्यौछावर करने का आह्वान किया तब उन्होंने अपना स्कुल छोड़ दिया। हालाँकि उनके माता-पिता और रिश्तेदार ने उन्हें ऐसा न करने का सुझाव दिया लेकिन वे अपने निर्णय पर अटल रहे।
लाल बहादुर शास्त्री जी को असहयोग आंदोलन के दौरान जेल भी जाना पड़ा। जेल से छुटने के बाद लाल बहादुर शास्त्री जी ने काशी विद्यापीठ में चार वर्षों तक दर्शनशास्त्र की पढाई की। सन् 1926 में लाल बहादुर जी को शास्त्री की उपाधि प्राप्त हुई। कशी विद्यापीठ छोड़ने के बाद वे द सर्वेट्स ऑफ द पीपल सोसाइटी से जुड़ गए जिसकी शुरुआत 1921 में लाला लाजपतराय द्वारा की गई थी।
इस सोसाइटी का प्रमुख उद्देश्य उन युवाओं को प्रशिक्षित करना था जो अपना जीवन देश की सेवा में समर्पित करने के लिए तैयार थे। सबसे पहले सन् 1929 में इलाहबाद आने के बाद उन्होंने टंडनजी के साथ भारत सेवक संघ की इलाहबाद की इकाई के सचिव के रूप में कार्य करना शुरू कर दिया। इलाजाबाद में रहते हुए ही नेहरु जी के साथ उनकी निकटता बढ़ी थी।
सन् 1930 में गाँधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन का आह्वान किया और लाल बहादुर शास्त्री भी इस आंदोलन से जुड़े और लोगों को सरकार को भू-राजस्व और करों का भुगतान न करने के लिए प्रेरित किया। इस आंदोलन के कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और जेल भेज दिया गया।
जेल में वे पश्चिमी देशों के दार्शनिकों , क्रांतिकारियों और समाज सुधारकों के कार्यों से परिचित हुए। वह बहुत ही आत्म सम्मानी व्यक्ति थे। एक बार जब वे जेल में थे तब उनकी बेटी बहुत ही गंभीर रूप से बीमार हो गई थी। अधिकारीयों ने उन्हें कुछ समय के लिए इस शर्त पर रिहा किया कि वे लिखकर हमें दे कि इस दौरान वे किसी भी आंदोलन में भाग नहीं लेंगे।
लाल बहादुर शास्त्री जेल से कुछ समय के लिए रिहा होने के दौरान स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के इच्छुक नहीं थे फिर भी उन्होंने कहा कि वह यह बात लिखकर नहीं देंगे। उनका मानना था कि लिखित रूप में देना उनके आत्म सम्मान के विरुद्ध है। सन् 1939 में दूसरे विश्वयुद्ध में इंग्लैण्ड को बुरी तरह से उलझता देख जैसे ही नेता जी ने आजाद हिन्द फौज को दिल्ली चलो का नारा दिया।
युद्ध शुरू होने के बाद सन् 1940 में कांग्रेस ने आजादी की मांग के लिए एक जन आंदोलन की शुरुआत की। लाल बहादुर शास्त्री जी को जन आंदोलन के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया था और एक साल के बाद छोड़ दिया गया था। तब गाँधी जी ने वक्त की नजाकत को समझते हुए 8 अगस्त , 1942 की रात में ही मुम्बई से अंग्रेजों को भारत छोड़ो तथा भारतियों को करो या मरो का आदेश दे दिया और सरकारी सुरक्षा में यरवदा पुणे में स्थित आगा खान पैलेस में चले गए।
भारत छोड़ो आंदोलन में शास्त्री जी ने सक्रिय रूप से भाग लिया था। 9 अगस्त , 1942 के दिन शास्त्री जी ने इलाहबाद पहुंचकर इस आंदोलन के गाँधीवादी नारे को बहुत ही चालाकी से मरो नहीं मारो में बदल दिया और अप्रत्याशित रूप से क्रांति की दावानल को पूरे देश में प्रचंड रूप दे दिया।
11 दिन तक भूमिगत रहते हुए यह आंदोलन चलाने के बाद 19 अगस्त , 1942 को शास्त्री जी गिरफ्तार हो गए। शास्त्रीजी के दिग्दर्शकों में पुरुषोत्तमदास टंडन और पंडित गोविंद बल्लभ पन्त के अतिरिक्त जवाहर लाल नेहरु भी शामिल थे। सन् 1945 में दुसरे बड़े नेताओं के साथ अल बहदुर शास्त्री जी को भी रिहा कर दिया गया था।
उन्होंने सन् 1946 में प्रांतीय चुनावों के दौरान अपनी कड़ी मेहनत से पंडित गोविंद वल्लभ पंत को बहुत अधिक प्रभावित किया। लाल बहादुर शास्त्री की प्रशासनिक क्षमता और संगठन कौशल इस दौरान सामने आए थे। जब गोविंद वल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री बने तो उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री को संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया।
सन् 1947 में शास्त्री जी पंत मंत्री मंडल में पुलिस और परिवहन मंत्री बने। भारत के गणराज्य बनने के बाद जब पहले आम चुनाव आयोजित किए गए तब लाल बहादुर शास्त्री कांग्रेस पार्टी के महासचिव थे। कांग्रेस पार्टी ने भरी बहुमत के साथ चुनाव जीता था। सन् 1952 में जवाहर लाल नेहरु जी ने लाल बहादुर शास्त्री जी को केंद्रीय मंत्री मंडल में रेलवे और परिवहन मंत्री के रूप में नियुक्त किया।
उन्होंने प्रथम श्रेणी और तृतीय श्रेणी के अंतर को बहुत कम किया था। सन् 1956 में लाल बहादुर शास्त्री ने एक रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मंत्री पद को त्याग दिया। जवाहर लाल नेहरु जी ने लाल बहादुर शास्त्री जी को मनन की बहुत कोशिश की लेकिन शास्त्री जी अपने फैसले पर कायम रहे।
अगले चुनावों में जब कांग्रेस सत्ता में वापस आई तब लाल बहादुर शास्त्री परिवहन और संचार मंत्री और बाद में वाणिज्य और उद्योग मंत्री बने। सन् 1961 में गोविन्द वल्लभ पंत के देहांत के बाद वे गृह मंत्री बने। सन् 1962 में भारत चीन युद्ध के दौरान शास्त्रीजी ने देश की आंतरिक सुरक्षा बनाए रखने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सन् 1964 में जवाहर लाल नेहरु के मरने के बाद सर्वसम्मति से लाल बहादुर शास्त्री को भारत का प्रधानमंत्री चुना गया। यह एक बहुत ही मुश्किल समय था और देश बड़ी चुनौतियों से लड़ रहा था। देश में खाद्यान्न की कमी थी और पाकिस्तान सुरक्षा के मोर्चे पर समस्या खड़ी कर रहा था।
प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने 26 जनवरी , 1965 को देश के जवानों और किसानों को अपने कर्म और निष्ठाके प्रति सुदृढ रहने और देश को खाद्य के क्षेत्र में आत्म निर्भर बनाने के लिए उन्होंने जय जवान जय किसान का नारा दिया।
भारत के दूसरे प्रधानमंत्री :
लाल बहादुर शास्त्री जी भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे। भारत की स्वतंत्रता के बाद शास्त्रीजी को उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। गोविन्द बल्लभ पंत के मंत्रीमंडल में उन्हें पुलिस एवं परिवहन मंत्रालय सौंपा गया था। परिवहन मंत्री के कार्यकाल में उन्होंने पहली बार महिला संवाहकों की नियुक्ति की थी।
एक रेल दुर्घटना जिसमें कई लोग मारे गए थे उनके लिए स्वंय को जिम्मेदार मनाते हुए उन्होंने रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। देश और संसद ने उनकी इस अभूतपूर्व फल को बहुत सराहा था। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु जी निस घटना पर संसद में बोलते हुए लाल बहादुर शास्त्री की ईमानदारी और उच्च आदर्शों की बहुत अधिक तारीफ की।
उन्होंने कहा कि उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री जी का इस्तीफा इसलिए स्वीकार नहीं किया है क्योंकि जो कुछ हुआ वे उसके लिए जिम्मेदार हैं बल्कि इसलिए स्वीकार किया क्योंकि इससे संवैधानिक मर्यादा में के मिसाल कायम होगी। रेल दुर्घटना पर लंबी बहस का जवाब देते हुए लाल बहादुर शास्त्री जी ने कहा कि शायद मेरे लंबाई में छोटे और नम्र होने की वजह से लोगों को लगता है कि मैं दृढ नहीं हो पा रहा हूँ।
यद्यपि शारीरिक रूप से मैं मजबूत नहीं हूँ लेकिन आंतरिक रूप से इतना कमजोर भी नहीं हूँ। पुलिस मंत्री होने के बाद भी उन्होंने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए लाठी की जगह पर पानी की बौछार का प्रयोग करना शुरू किया था। सन् 1951 में जवाहर लाल नेहरु के नेतृत्व में वे अखिल भारत कांग्रेस कमेटी के महासचिव नियुक्त किये गए थे।
उन्होंने अपने प्रथम संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि उनकी शीघ्र प्राथमिकता खाद्यान्न मूल्यों को बढने से रोकना है और वे ऐसा करने में सफल भी हुए थे। उनके क्रियाकलाप सैद्धांतिक न होकर पूर्णत: व्यावहारिक और जनता की आवश्यकताओं के अनुरूप थे। निष्पक्ष रूप से दृष्टि डालें तो शास्त्रीजी का शासनकाल बहुत ही कठिन रहा था।
पूंजीपति देश पर हावी होना चाहते थे और दुश्मन देश हम पर आक्रमण करने की फिराक में थे। सन् 1965 में अचानक पाकिस्तान ने भारत पर शाम साढ़े सात बजे हवाई हमला कर दिया। परंपरानुसार राष्ट्रपति ने आपात बैठक बुला ली जिसमें तीनों रक्षा अंगों के प्रमुख व मंत्री मंडल के सदस्य शामिल थे।
संयोग से प्रधानमंत्री उस बैठक में थोड़ी देर से पहुंचे थे लेकिन उनके आते ही विचार-विमर्श शुरू हो गया। तीनों प्रमुखों ने उनको सारी वस्तुस्थिति समझाते हुए पूंछा कि सर क्या आदेश है ? श्स्त्रीजी ने एक वाक्य में तुरंत उत्तर दिया कि आप देश की रक्षा कीजिए और मुझे बताईये कि हमें क्या करना है ? शास्त्री जी ने इस युद्ध में नेहरु जी के मुकाबले राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और जय जवान जय किसान का नारा दिया।
इससे भारत देश की जनता का मनोबल बढ़ा और सारा देश एकता के बंधन में बंध गया। शास्त्रीजी ने अप्रत्याशित रूप से हुए इस युद्ध में नेहरु के मुकाबले राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और पाकिस्तान को पराजित किया था। इसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी सपने में भी नहीं की थी।
उन्होंने सन् 1952 , सन् 1957 और सन् भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान 6 सितंबर को भारत देश की 15 वी पैदल सैन्य इकाई ने द्वितीय विश्व युद्ध के अनुभवी मेजर जनरल प्रसाद के नेतृत्व में इच्छोगिल नहर के पश्चिमी किनारे पर पाकिस्तान मुल्क के बहुत बड़े हमले का डटकर मुकाबला किया। इच्छोगिल हर भारत को पाकिस्तान की वास्तविक सीमा थी।
इस हमले में स्वंय मेजर जनरल प्रसाद के काफिले पर भी बहुत भीषण हमला हुआ और उन्हें अपना वाहन छोडकर पीछे हटना पड़ा था। भारतीय थलसेना ने दूनी शक्ति से प्रत्याक्रमण करके बरकी गाँव के नजदीक नहर को पार करने में सफलता प्राप्त की। इससे भारतीय सेना लाहौर के हवाई अड्डे पर हमला करने की सीमा के भीतर पहुंच गई।
इस अप्रत्याशित हमले से घबराकर अमेरिका ने अपने नागरिकों को लाहौर से निकालने के लिए कुछ समय के लिए युद्ध विराम की अपील की। अंत में रूस और अमेरिका की मिलीभगत से शास्त्रीजी पर दबाव डाला गया। उन्हें एक सोची समझी साजिश के तहत उन्हें रूस बुलवाया गया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया।
हमेशा उनके साथ जाने वाली उनकी पत्नी ललिता शास्त्री जी को जोर डालकर इस बात के लिए राजी किया गया कि वे शास्त्री जी के साथ रूस की राजधानी ताशकंद न जाएँ और इसके लिए वे राजी हो गईं। अपनी इस भूल का ललिता शास्त्रीजी को अपनी मृत्यु तक पछतावा रहा था।
जब समझौते की बात चली शुरू हुई तब शास्त्रीजी की एक ही जिद थी कि उन्हें बाकी सभी शर्तें मंजूर हैं लेकिन जीती हुई जमीन को पाकिस्तान को लौटना मंजूर नहीं है। बहुत जद्दोजहद के बाद शास्त्रीजी पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव डालकर ताशकंद समझौते के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करा लिए गए।
शास्त्रीजी ने यह कहते हुए हस्ताक्षर किये थे कि वे हस्ताक्षर तो करेंगे लेकिन यह जमीन कोई दूसरा प्रधानमंत्री ही लौटाएगा वो नहीं। 1962 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत से जिताने के लिए बहुत परिश्रम किया था। जवाहरलाल नेहरु का उनके प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान 27 मई , 1964 को देहांत को जाने के बाद साफ-सुथरी छवि की वजह से शास्त्रीजी को सन् 1964 में देश का प्रधानमंत्री बनाया गया था।
उन्होंने 9 जून , 1964 को भारत के प्रधानमंत्री का पद ग्रहण किया था। उनके शासनकाल में सन् 1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध शुरू हो गया था। इसमें 3 साल पहले चीन का युद्ध भारत हार चुका था। ताशकंद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ युद्ध खत्म करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी , 1966 की रात में ही रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई थी।
यह बात आज तक रहस्य बनी हुई है कि क्या सच में शास्त्री जी की मौत दिल के दौरे की वजह से हुई थी ? बहुत से लोग उनकी मौत का कारण जहर को मानते हैं। उनकी सादगी , देशभक्ति और ईमानदारी के लिए मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। लाल बहादुर शास्त्री जी 9 जून , 1964 से 11 जनवरी , 1966 को अपनी मृत्यु तक वे लगभग अठारह महीने भारत के प्रधानमंत्री रहे थे। इस प्रमुख पद पर उनका कार्यकाल अद्वितीय रहा था।
लाल बहादुर शास्त्री जी की मृत्यु का सच :
ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद उसी रात उनकी मृत्यु हो गई थी। मौत का कारण दिल का दौरा बताया गया था। शास्त्री जी शास्त्रीजी का अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ शांतिवन के आगे यमुना किनारे की गई और उस स्थल को विजय घाट का नाम दिया गया था।
जब तक कांग्रेस संसदीय दल ने इंदिरा गाँधी को शास्त्री का विधिवत उत्तराधिकारी नहीं चुन लिया तब तक गुलजारी लाल नंदा जी कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे थे। शास्त्रीजी की मृत्यु को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जाते रहे। बहुत से लोगों का जिनमें उनके परिवार के लोग भी शामिल हैं का मत है कि शास्त्रीजी की मृत्यु दिल के दौरे से नहीं हुई थी बल्कि जहर से हुई थी।
पहली राज राज नारायण ने करवाई थी जो बिना किसी नतीजे के समाप्त हो गई थी। रूचि की बात तो यह है कि इंडियन पार्लियामेंट्री लाइब्रेरी में आज तक उसका कोई भी रिकॉर्ड मौजूद नहीं है। यह भी आरोप लगाया गया था कि शास्त्रीजी का पोस्ट मार्टम नहीं हुआ था।
वर्ष 2009 में जब यह सवाल उठाया गया तो भारत सरकार की ओर से यह जबाव दिया गया कि शास्त्रीजी के प्राईवेट डॉक्टर आर०एन०चुघ और कुछ रुच के डॉक्टरों ने मिलकर उनकी मौत के कारण की जाँच की थी लेकिन सरकार के पास उसका कोई भी रिकॉर्ड नहीं है। बाद में जब प्रधानमंत्री कार्यालय से इसकी भागीदारी की मांग की गई तो उसने भी अपनी मजबूरी जताई।
शास्त्रीजी की मौत का संभावित साजिश का रहस्य आउटलुक नाम की एक पत्रिका में खुला था। वर्ष 2009 में जब साउथ एशिया पर सीआईए की नजर नाम की पुस्तक के लेखक अनुज धर ने सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी पर प्रधानमंत्री कार्यालय कि तरफ से यह कहना कि शास्त्रीजी की मृत्यु के दस्तावेज सार्वजनिक करने से हमारे देश के अंतर्राष्ट्रीय संबंध खराब हो सकते हैं और इस रहस्य पर से पर्दा उठते ही देश में उथल-पुथल मचले के अतिरिक्त संसदीय विशेषधिकारों को ठेस भी पहुंच सकती है।
ये सभी कारण हैं जिसकी वजह से इस सवाल का जबाव नहीं दिया जा सकता है। सबसे पहले सन् 1978 में प्रकाशित एक अन्य हिंदी पुस्तक ललिता के आँसू में शास्त्रीजी की मृत्यु की करुण कथा को स्वाभाविक ढंग से उनकी धर्मपत्नी ललिता शास्त्री के माध्यम से कहलवाया गया था।
उस समय ललिता जी जीवित थीं। यही नहीं कुछ समय पहले प्रकाशित एक अन्य अंग्रेजी पुस्तक में लेखक पत्रकार कुलदीप नैयर ने भी जो उस समय ताशकंद में शास्त्रीजी के साथ गए थे। इस घटना चक्र पर विस्तार से प्रकाश डाला है। गत वर्ष जुलाई 2012 में शास्त्रीजी के तीसरे पुत्र सुनील शास्त्री ने भी भारत सरकार से इस रहस्य पर से पर्दा हटाने की मांग की थी।
लाल बहादुर शास्त्री जी के रोचक तथ्य :
भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में देश के दूसरे प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी 9 साल तक जेल में रहे थे। असहयोग आन्दोलन के लिए पहली बार वे 17 साल की उम्र में जेल गए लेकिन बालिग न होने की वजह से उन्हें छोड़ दिया गया। इसके बाद सविनय अवज्ञा आंदोलन के लिए सन् 1930 में ढाई साल के लिए जेल गए।
सन् 1940 और फिर 1941 से लेकर 1946 के बीच भी वे जेल में रहे थे इस तरह से उन्होंने कुल नौ साल जेल में व्यतीत किये थे। स्वतंत्रता की लड़ाई में जब वे जेल में थे तब उनकी पत्नी चुपके से दो आम छिपाकर ले आई थी। इस बात से खुश होने की जगह पर उन्होंने उनके खिलाफ ही धरना दे दिया।
शास्त्री जी का तर्क था कि कैदियों को जेल के बाहर की कोई भी चीज खाना कनून के विरुद्ध है। शास्त्री जी में नैतिकता इतनी कूट-कूटकर भरी थी कि एक बार उनको बीमार बेटी से मिलने के लिए 15 दिन की पैरोल पर छोड़ा गया लेकिन बीच में वह चल बसी तो शास्त्री जी उस अवधि के पूरा होने से पहले ही जेल वापस आ गए। शास्त्री जी जात-पात के विरुद्ध थे। तभी उन्होंने अपने नाम के पीछे सरनेम नहीं लगाया।
शास्त्री की उपाधि उनको कशी विद्यापीठ से पढाई करने के बाद मिली थी। वहीं उन्होंने अपने विवाह में दहेज लेने से मना कर दिया था। लेकिन अपने ससुर के बहुत जोर देने पर उन्होंने कुछ मीटर कड़ी कपड़े का दहेज लिया था। सन् 1964 में जब वे प्रधानमंत्री बने थे तब देश खाने की चीजें आयात करता था। उस समय देश PL-480 स्कीम के तहत नॉर्थ अमेरिका पर अनाज के लिए निर्भर था।
सन् 1965 में पाकिस्तान से जंग के दौरान देश में बहुत भयंकर सुखा पड़ा। तक के हालात को देखते हुए उन्होंने देशवासियों से एक दिन का उपवास रखने की अपील की। इन्हीं हालातों से उन्होंने देश को जय जवान जय किसान का नारा दिया था। ट्रांसपोर्ट मंत्री के तौर पर सबसे पहले उन्होंने ही इस इंडस्ट्री में महिलाओं को बतौर कंडेक्टर लेन की शुरुआत की।
यही नहीं प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए उन्होंने लाठी चार्ज की जगह पर पानी की बौछार का सुझाव दिया। पाकिस्तान के साथ सन् 1965 की जंग को खत्म करने के लिए वह समझौते पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए ताशकंद गए थे। इसके सही एक दिन बाद 11 जनवरी , 1966 को समाचार प्राप्त हुआ कि शास्त्री जी की दिल के दौरे से मौत हो गई है।
इस बात का अभी तक पता नहीं चल पाया है कि उनकी मौत हुई थी या फिर उनकी हत्या की गई थी। लाल बहादुर शास्त्री जी के बेटे अनिल शास्त्री जी कांग्रेस पार्टी के एक वरिष्ठ नेता हैं जबकि सुनील शास्त्री जी भारतीय जनता पार्टी में चले गए हैं।