Bhagat Singh Biography In Hindi :
जब शक्ति का दुरूपयोग हो तो वो हिंसा बन जाती है लेकिन जब शक्ति का प्रयोग सही काम में किया जाए तो वो न्याय का ही रूप ले लेती है। भारत के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद भगत सिंह भारत देश की महान विभूति हैं , सिर्फ 23 साल की उम्र में इन्होने अपने देश के लिए अपने प्राण दे दिए थे। भारत की आजादी के समय भगत सिंह सभी नौजवानों के लिए यूथ आइकॉन थे जो उन्हें देश के लिए आगे आने को प्रोत्साहित करते थे।
अपने 23 साल 5 महीने और 23 दिन के अल्पकालीन जीवन में जिस महामानव ने देश भक्ति के मायने बदल कर रख दिए और मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्य कैसे निभाया जाता है इसकी अद्भुत मिसाल दी थी। भगत सिंह का जीवन चरित्र लाखों नौजवानों को देश और मातृभूमि के प्रति कर्तव्य पालन की सीख देता रहा है। पाकिस्तान में भी भगत सिंह जी को आजादी के दीवाने की तरह याद किया जाता है।
एक सामान्य नवयुवक के सपनों से अलग भगत सिंह जी का केवल आजादी का ही एक सपना था। भगत सिंह जी अपने देश अपनी मातृभूमि को अंग्रेजों से आजाद कराने के लिए ही सांसे ले रहे थे। भगत सिंह जी का कहना था कि कोई भी त्याग हमारी मातृभूमि की आजादी से बड़ा नहीं होता है , आज हम इन्हीं लोगों के त्याग के कारण आजाद हैं। भगत सिंह जी के बलिदान को पूरे भारत में बहुत गंभीरता से याद किया जाता है। भगत सिंह जी को समाजवादी , वामपंथी और मार्क्सवादी विचारधारा में रूचि लेते थे।
भगत सिंह का जन्म और परिवार :
क्रांतिकारी भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर , 1907 को पंजाब के लयालपुर के बावली गाँव में हुआ था जो अब इस समय में पाकिस्तान का हिस्सा है। भगत सिंह के पिता का नाम सरदार किशन सिंह था और माता का नाम विद्यावती कौर था। भगत सिंह जी के चाचा का नाम अजीत सिंह था। भगत सिंह जी के पांच भाई थे और तीन बहने थीं जिनके नाम रणवीर , कुलतार , राजिंदर , कुलबीर , जगत , प्रकाश कौर , अमर कौर एवं शकुंतला कौर थीं।
भगत सिंह जी सरदार किशन सिंह और विद्यावती की तीसरी संतान थे। भगत सिंह जी के जन्म के बाद उनकी दादी जी ने उनका नाम भागो वाला रखा था जिसका मतलब था अच्छे भागों वाला लेकिन बाद में उन्हें भगत सिंह जी के नाम से जाना जाने लगा। भगत सिंह जी के पिता और चाचा जी स्वतंत्रता सेनानी थे। जब भगत सिंह जी का जन्म हुआ था तब उनके पिता जी जेल में बंद थे।
भगत सिंह की शिक्षा :
भगत सिंह के दादा जी बहुत अधिक स्वाभिमानी थे उन्होंने ब्रिटिश स्कूल में भगत सिंह जी को पढ़ाने से मना कर दिए तो गाँव के ही आर्य समाज के स्कूल में इनकी बाल्य शिक्षा हुई। भगत सिंह जी ने अपनी नौवीं की परीक्षा डी.ए.वी. स्कूल से उत्तीर्ण की थी। सन् 1923 में भगत सिंह जी ने इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की थी।
भगत सिंह जी की शिक्षा दयानन्द एंग्लो वैदिक हाई स्कूल में हुई थी। भगत सिंह जी लाहौर के नेशनल कॉलेज से बी.ए. कर रहे थे तभी उनके देश प्रेम और मातृभूमि के प्रति कर्तव्य ने उनसे पढाई छुडवाकर देश की आजादी के पथ पर ला खड़ा किया।
भगत सिंह का प्रारंभिक जीवन :
भगत सिंह का जन्म सिक्ख परिवार में हुआ था। उनके जन्म के समय उनके पिता जेल में थे। भगत सिंह जी ने बचपन से ही अपने घरवालों में देशभक्ति देखी थी क्योंकि उनके पिता और चाचा बहुत बड़े स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। भगत सिंह जी के चाचा जी ने भारतीय देशभक्ति एसोसिएशन भी बनाई थी इसमें उनके साथ सैयद हैदर राजा थे।
भगत सिंह जी के चाचा जी के नाम पर 22 केस दर्ज थे जिससे बचने के लिए उन्हें ईरान जाना पड़ा था। अपने चाचा अजीत सिंह और पिता किशन सिंह के साए में बड़े हो रहे भगत सिंह बचपन से ही अंग्रेजों की ज्यादती और बर्बरता के किस्से सुनते आ रहे थे। भगत सिंह जी एक सिक्ख परिवार में जन्मे थे।
बचपन से ही उन्होंने अपने आस-पास अंग्रेजों को भारतियों पर अत्याचार करते हुए देखा था जिससे कम उम्र में ही अपने देश के लिए कुछ करने की बात उनके मन में घर कर गई थी। भगत सिंह जी के चाचा और पिता किशन सिंह ग़दर पार्टी के सदस्य थे इस पार्टी की स्थापना ब्रिटिश शासन को भारत से निकालने के लिए अमेरिका में हुई थी।
भगत सिंह जी का सोचना था कि देश के नौजवान देश की काया पलट सकते हैं इसलिए उन्होंने सभी नौजवानों को एक नई दिशा दिखने की कोशिश की। भगत सिंह जी के पिता ने उनका दाखिला दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल में करवाया था। जब भगत सिंह जी बच्चे थे तो उनकी माँ अक्सर देखा करती थीं कि वो एक अगरबत्ती लेकर रोज के छोटे कमरे में जाते थे और कमरा अंदर से बंद करके घंटों अंदर ही रहते थे।
एक दिन जब भगत सिंह जी अगरबत्ती लेकर कमरे में गए तो माँ ने जिज्ञासावश एक कोने से अंदर देखा तो उनकी आँखें भर आयीं। भगत सिंह जी ने एक हाथ में अगरबत्ती ले रखी थी और सामने भारत माँ की तस्वीर टंगी हुई थी और भगत सिंह जी फूट-फूटकर रो रहे थे। भगत सिंह जी की आँखों में आजादी की चमक थी।
भगत सिंह जी बार-बार माँ से वादा करते रहे थे कि माँ मैं अपने प्राणों की आहुति देकर तुम्हें आजाद करूँगा। यह सब कुछ देखकर माँ का सीना गर्व से फूल गया। सन् 1919 में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड से भगत सिंह जी बहुत दुखी थे और महात्मा गाँधी जी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन का उन्होंने बहुत ही खुलकर समर्थन किया गया था।
भगत सिंह जी खुले आम अंग्रेजों की ललकारा करते थे और गाँधी जी के कहने के अनुसार ब्रिटिश बुक्स को जला दिया करते थे लेकिन चौरी-चौरा में हुई हिंसात्मक गतिविधि के चलते गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन बंद कर दिया था जिसके बाद भगत सिंह जी उनके फैसले से खुश नहीं थे तथा उन्होंने गाँधी जी की अहिंसावादी बातों को छोडकर दूसरी पार्टी में सम्मिलित करने का विचार किया।
भगत सिंह जी लाहौर के नेशनल कॉलेज से बी.ए. कर रहे थे तब उस समय उनकी मुलाकात सुखदेव , भगवती चरन और बहुत से लोगों से हुई थी। उस समय आजादी की लड़ाई जोरों पर थी। देशप्रेम में भगत सिंह ने अपनी कॉलेज की शिक्षा छोड़ दी और आजादी की लड़ाई में कूद गए। इसी दौरान उनके घर वाले उनकी शादी के बारे में सोचने लगे। भगत सिंह जी ने शादी से मना कर दिया और कहा ” अगर मैं आजादी से पहले शादी करूं तो मेरी दुल्हन मौत होगी”।
भगत सिंह जी बहुत से नाटकों में भाग लिया करते थे वे बहुत अच्छे नाटककार थे। उनके नाटक , स्क्रिप्ट देशभक्ति से परिपूर्ण होती थी जिसमें वे कॉलेज के नौजवानों को आजादी के लिए आगे आने को प्रोत्साहित करते थे , साथ में अंग्रेजों को नीचा दिखाया करते थे। भगत सिंह जी बहुत ही मस्त मौला प्रवृति के व्यक्ति थे। भगत सिंह जी को लिखने का बहुत शौक था। कॉलेज में उन्हें निबन्ध में भी बहुत से पुरस्कार मिले थे।
भगत सिंह का क्रांतिक्रारी जीवन :
सन् 1921 में जब महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध असहयोग आंदोलन का आवाहन किया तब भगत सिंह जी ने अपनी पढाई छोड़ आंदोलन में सक्रिय हो गए। सन् 1922 में जब महात्मा गाँधी जी ने गोरखपुर के चौरी-चौरा में हुई हिंसा के बाद असहयोग आंदोलन बंद कर दिया तब भगत सिंह बहुत निराश हुए।
अहिंसा में उनका विश्वास कमजोर हो गया और वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सशस्त्र क्रांति ही स्वतंत्रता दिलाने का एकमात्र उपयोगी रास्ता है। अपनी पढाई जारी रखने के लिए भगत सिंह ने लाहौर में लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित राष्ट्रिय विद्यालय में प्रवेश लिया। यह विद्यालय क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र था और यहाँ पर वह भगवती चरण वर्मा , सुखदेव और दूसरे क्रांतिकारियों के संपर्क में आए।
शादी से बचने के लिए भगत सिंह जी घर से भागकर कानपुर चले गए यहाँ पर वे गणेश शंकर विद्यार्थी नामक क्रांतिकारी के संपर्क में आए और क्रांति का प्रथम पाठ सीखा। जब भगत सिंह जी को अपनी दादी जी की बीमारी की खबर मिली तो वे घर लौट आए। उन्होंने अपने गाँव से ही अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को सुचारू रूप से जारी रखा।
भगत सिंह जी लाहौर गए और नौजवान भारत सभा नाम से एक क्रांतिकारी संगठन बनाया। उन्होंने पंजाब में क्रांति का संदेश फैलाना शुरू किया। सन् 1928 में उन्होंने दिल्ली में क्रांतिकारियों की एक बैठक में हिस्सा लिया और चन्द्रशेखर आजाद के संपर्क में आए। भगत सिंह जी और चन्द्रशेखर ने मिलकर हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ का गठन किया।
इसका प्रमुख उद्देश्य था की सशस्त्र क्रांति के माध्यम से भारत में गणतंत्र की स्थापना करना था। फरवरी 1928 में इंग्लैण्ड से साइमन कमीशन नामक एक आयोग भारत दौरे पर आया। उसके भारत दौरे का मुख्य उद्देश्य था भारत के लोगों की स्वयत्तता और राजतन्त्र में भागेदारी लेकिन इस आयोग में कोई भी भारतीय सदस्य नहीं था जिसके कारण साइमन कमीशन के विरोध में फैसला किया।
लाहौर में साइमन कमिशन के विरुद्ध नारेबाजी करते समय लाला लाजपतराय पर क्रूरता पूर्वक लाठी चार्ज किया गया जिससे वह बुरी तरह से घायल हो गए और बाद में उन्होंने दम तोड़ दिया। भगत सिंह जी ने लाला लाजपतराय की मौत का बदला लेने के लिए ब्रिटिश अधिकारी स्कॉट जो उनकी मौत का जिम्मेदार था को मारने का संकल्प लिया।
उन्होंने गलती से सहायक अधीक्षक सौन्डर्स को स्कॉट समझकर मार गिराया। मौत की सजा से बचने के लिए भगत सिंह को लाहौर चोदना पड़ा था। ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों को अधिकार और आजादी देने और असंतोष के मूल कारण को खोजने के बजाय अधिक दमनकारी नीतियों का प्रयोग किया।
डिफेन्स ऑफ इण्डिया ऐक्ट के द्वारा अंग्रेजी सरकार ने पुलिस को और दमनकारी अधिकार दे दिया। इसके तहत पुलिस संदिग्ध गतिविधियों से संबंधित जुलूस को रोक और लोगों को गिरफ्तार कर सकती थी। केन्द्रिय विधान सभा में लाया गया यह अधिनियम एक मत से हार गया था।
फिर भी अंग्रेज सरकार ने इसे जनता के हित में कहकर एक अध्यादेश के रूप में पारित किये जाने का फैसला किया। भगत संह जी ने स्वेच्छा से केन्द्रीय विधान सभा जहाँ पर अध्यादेश पारित करने के लिए बैठक का आयोजन किया जा रहा था में बम्ब फेंकने की योजना बनाई।
यह एक सावधानी पूर्वक रची गई साजिश थी जिसका उद्देश्य किसी को मरना या चोट पहुँचाना नहीं था बल्कि सरकार का ध्यान आकर्षित करना था और उनको यह दिखाना था कि उनके दमन के तरीकों को और अधिक सहन नहीं किया जाएगा। 8 अप्रैल , 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने केन्द्रिय विधान सभा स्तर के दौरान विधान सभा भवन में बम्ब फेंका गया।
बम्ब से किसी को भी नुकसान नहीं पहुंचा था। उन्होंने घटनास्थल से भगाने की जगह जानबूझ कर गिरफ्तारी दे दी थी। अपनी सुनवाई के दौरान भगत सिंह जी ने किसी भी बचाव पक्ष क वकील को नियुक्त करने से मना कर दिया था। जेल में उन्होंने जेल अधिकारीयों द्वारा साथी राजनैतिक कैदियों पर हो रहे अमानवीय व्यवहार के विरोध में भूख हड़ताल की।
7 अक्टूबर , 1930 को भगत सिंह जी , सुखदेव और राजगुरु को विशेष न्यायालय द्वारा मौत की सजा सुनाई गई थी। भारत के तमाम राजनैतिक नेताओं द्वारा अत्यधिक दबाव और कई अपीलों के बाद भी भगत सिंह और उनके साथियों को 23 मार्च , 1931 को सुबह फांसी दे दी गई थी।
भगत सिंह के विचार :
भगत सिंह एक स्पष्ट वक्ता और अच्छे लेखक थे। बचपन से ही भगत सिंह जी क्रांतिकारी पात्रो पर लिखी गई किताबों को पढने में अधिक रूचि लेते थे। भगत सिंह जी को हिंदी , पंजाबी , अंग्रेजी और बंगाली भाषा का ज्ञान था। एक आदर्श क्रांतिकारी के सभी गुण भगत सिंह में थे। भगत सिंह जी धार्मिक मान्यता में अथार्त अर्चना पूजा में ज्यादा विश्वास नहीं रखते थे। अगर भगत सिंह जी को नास्तिक कहा जाए तो कुछ गलत नहीं होगा।
भगत सिंह जी की उपलब्धियां :
भगत सिंह जी ने बहुत सी उपलब्धियां प्राप्त की थीं जैसे – भारत के क्रांतिकारी आंदोलन को एक नई दिशा दी , पंजाब में क्रांति के संदेश को फैलाने के लिए नौजवान भारत सभा का गठन किया गया , भारत में गणतंत्र की स्थापना के लिए चन्द्रशेखर आजाद के साथ मिलकर हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र संघ का गठन किया , लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए पुलिस अधिकारी सौन्डर्स की हत्या की , बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर केन्द्रिय विधान सभा में बम्ब फेंका आदि।
शहीद भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारियों में से एक थे। केवल 24 साल की आयु में देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दने वाला यह वीर सदा के लिए अमर हो गए थे। भगत सिंह जी के लिए क्रांति का अर्थ था – अन्याय से पैदा हुए हालत को बदलना। भगत सिंह जी ने यूरोपियन क्रांतिकारी आंदोलन के बारे में पढ़ा और समाजवाद की ओर अत्यधिक आकर्षित हुए।
भगत सिंह जी के अनुसार ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने और भारतीय समाज के पुनर्निर्माण के लिए राजनीतिक सत्ता हासिल करना आवश्यक था। हालाँकि अंग्रेजी सरकार ने उन्हें आतंकवादी घोषित किया था पर सरदार भगत सिंह व्यक्तित्व तौर पर आतंकवाद के आलोचक थे। भगत सिंह ने भारत में क्रांतिकारी आंदोलन को एक नई दिशा दी थी।
उनका तत्कालीन लक्ष्य ब्रिटिश साम्राज्य का विनाश करना था। अपनी दूरदर्शिता और दृढ इरादे जैसो विशेषता के कारण भगत सिंह जी को राष्ट्रिय आंदोलन के दूसरे नेताओं से हटकर थे। ऐसे समय पर जब गाँधी और भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस ही देश की आजादी के लिए एक मात्र विकल्प थे। भगत सिंह जी एक नई सोच के साथ एक दूसरे विकल्प के रूप में उभर कर सामने आए।
स्वतंत्रता की लड़ाई में भगत सिंह जी का योगदान :
भगत सिंह ने जी अपनी स्वतंत्रता की लड़ाई में सबसे पहले नौजवान भारत सभा को ज्वाइन किया। जब भगत सिंह जी के परिवार वालो ने उन्हें यह विश्वास दिलाया कि वे अब शादी की बात नहीं करेंगे तो वे घर वापस लौट गए। वहां उन्होंने कीर्ति किसान पार्टी के लोगों से मेल जोल बढ़ाया और उनकी मैगजीन कीर्ति के लिए कार्य करने लगे। भगत सिंह जी इसके द्वारा भारत देश के नौजवानों को अपने संदेश पहुंचाते थे।
भगत सिंह जी बहुत अच्छे लेखक थे जो पंजाबी , उर्दू पेपर के लिए भी लिखा लरते थे। सन् 1928 में उन्होंने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ज्वाइन कर ली जो एक मौलिक पार्टी थी जिसे चन्द्रशेखर जी ने बनाया था। पूरी पार्टी के साथ मिलकर 30 अक्टूबर , 1928 को भारत में आए साइमन कमीशन का विरोध किया जिसमें उनके साथ लाला लाजपत राय भी थे। साइमन वापस जाओ का नारा लगाते हुए वे लोग लाहौर रेलवे स्टेशन में ही खड़े रहे थे।
जिसके बाद वहां लाठी चार्ज कर दिया गया जिसमें लाला जी बुरी तरह से घायल हुए और फिर उनकी मृत्यु हो गई। लाला जी की मृत्यु से आघात भगत सिंह जी और उनकी पार्टी ने अंग्रेजों से बदला लेने का निश्चय किया और लाला जी मौत के लिए जिम्मेदार ऑफिसर स्कॉट को मारने की योजना बनाई लेकिन भूल से उन्होंने असिस्टेंट पुलिस सौन्डर्स को मार डाला। अपने आप को बचाने के लिए भगत सिंह तुरंत लाहौर से भाग निकले लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उनको ढूंढने के लिए चारों तरह जाल बिछा दिया।
भगत सिंह जी ने अपने आप को बचाने के लिए बाल और दाढ़ी कटवा दी थी जो कि उनके सामाजिक धर्मिकता के विरुद्ध है लेकिन उस समय भगत सिंह को देश के आगे कुछ भी नहीं दिखाई देता था। चन्द्रशेखर आजाद , भगत सिंह , राजदेव और सुखदेव ये सब अब मिलकर काम करने लगे थे और इन्होने कुछ बड़ा धमाका करने की योजना बनाई।
भगत सिंह कहते थे अंग्रेज भरे हो गए , उन्हें ऊँचा सुनाई देता है जिसके लिए बड़ा धमाका बहुत ही जरूरी है। इस बार उन्होंने फैसला किया कि वे लोग कमजोरों की तरह भागेंगे नहीं बल्कि अपने आपको पुलिस के हवाले करेंगे जिससे देशवासियों को सही संदेश पहुंचे। दिसंबर 1929 को भगत सिंह ने अपने साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर ब्रिटिश सरकार की असेंबली हॉल में बम्ब ब्लास्ट किया जो केवल आवाज करने वाला था जिसे खाली स्थान में फेंका गया था। इसके साथ ही उन्होंने इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाए और पर्चे बाटें। इसके बाद दोनों ने अपने आप को गिरफ्तार करवाया।
भगत सिंह पर जलियांवाला बाग हत्याकांड का प्रभाव :
जिलायांवाला बाग में शांतिपूर्ण तरीके से सभा आयोजित करने के इरादे से इकट्ठे हुए मासूम बेकसूर लोगों को जिस प्रकार से घेर कर मारा गया उस घटना ने भगत सिंह जी को पूरी तरह से झंझोर कर रख दिया था। जलियांवाला बाग में बच्चों , बूढों , औरतों और नौजवानों की भारी तादात पर अंधाधुंध गोलियां बरसाकर अंग्रेजों ने अपनी अमानवीय , क्रूर और घातकी होने का पुख्ता सबूत दिया था।
जलियांवाला बाग में बंदूक से निकलने वाली गोलियों से बचने के लिए मासूम लाचार लोग वहां की ऊँची दीवारों से कूदने की कोशिश करते रहे थे। बाग में एक कुआँ था जिसमें लोग गोलियों के लगने से बचने के लिए कूद गए थे। जान बचाने की अफरातफरी में चीख पुकार करते हुए लोगों पर जालिम अंग्रेजों को अत्याचार करते समय जरा भी दया नहीं आई थी।
जलियांवाला बाग में जब यह हत्याकांड हुआ था तब भगत सिंह जी की उम्र सिर्फ बारह साल थी। जलियांवाला बाग हत्याकांड की खबर मिलते ही नन्हे भगत सिंह बाढ़ मील दूर तक चलकर हत्याकांड वाली जगह पर पहुंचे थे। जलियांवाला बाग पर हुए अमानवीय और बर्बर हत्याकांड के निशान चीख-चीख कर जैसे भगत सिंह जी को इंसानियत की मौत के मंजर की गवाही दे रहे थे।
भगत सिंह जी पर गाँधी के असहयोग आन्दोलन से पीछे हटने का प्रभाव :
महात्मा गाँधी जी एक दिग्गज स्वतंत्रता सेनानी थे। सत्य बोलना , अहिंसा के मार्ग पर चलना , अपनी बात दूसरों से अच्छे तरीके से मनवाना , यह सब गाँधी जी के अग्रिम गुण थे। महात्मा गाँधी जी चौरी-चौरा में हुई हिंसात्मक कार्यवाही के चलते जब अंग्रेजों के खिलाफ छेदा हुआ असहयोग आंदोलन रद्द किया तब भगत सिंह और देश के कई अन्य नौजवानों के मन में रोष भर गया था और तभी भगत सिंह ने गाँधी जी के अहिंसावादी विचारधारा से अलग पथ चुन लिया गया था।
भगत सिंह का येरवडा जेल में वीर सावरकर से मिलाप :
वीर सावरकर ही वो इंसान थे जिनके कहने पर भगत सिंह जी की मुलाकात चन्द्रशेखर आजाद से हुई थी। वीर सावरकर से भगत सिंह ने क्रांति और देशभक्ति के रास्ते पर चलने के बहुत से गूढ़ रहस्य सीखे थे। चन्द्रशेखर आजाद के दल में शामिल होने के बाद कुछ ही समय में भगत सिंह उनके दल के प्रमुख क्रांतिकारी बन गए थे।
भगत सिंह और काकोरी कांड :
काकोरी कांड के आरोप में गिरफ्तार हुए तमाम आरोपियों में से चार को मौत की सजा सुनाई गई थी और बाकि अन्य सोलह आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा दी गई थी। इस खबर ने ही भगत सिंह जी को क्रांति के धधकते हुए अंगारे में बदल दिया था और उसके बाद भगत सिंह जी ने अपनी पार्टी नौजवान भारत सभा का विलय हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन कर की नई पार्टी हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का आहवाहन किया था।
भगत सिंह द्वारा लाला लाजपतराय की मौत का बदला :
सन् 1928 में साइमन कमीशन के विरोध में पूरे देश में प्रदर्शन रहे थे और इसी के चलते एक महत्वपूर्ण प्रदर्शन में लाठी चार्ज के दौरान लाला लाजपतराय बहुत ही गंभीर रूप से घायल हुए जिसके बाद उनकी मृत्यु हो गई थी। अब भगत सिंह जी से रहा नहीं गया। भगत सिंह जी और उनके दल ने लाला लाजपतराय की मौत का बदला लेने के लिए स्काट को मारने की योजना बनाई थी।
दिनांक 17 दिसंबर , 1928 को दोपहर सवा चार बजे लाहौर कोतवाली पर भगत सिंह , राजगुरु जयगोपाल , चन्द्रशेखर , तैनात हुए और स्काट की जगह सौन्डर्स को देखकर उसे मारने के लिए आगे बढ़ गए थे। गोपाल के संकेत पर सभी सचेत हो गए। चन्द्रशेखर आजाद जी पास के डी.ए. वी. स्कूल की चारदीवारी के समीप छिपकर घटना को अंजाम देने में रक्षक का काम कर रहे थे।
क्योंकि सौन्डर्स भी उसी जालिम हुकुमत का एक नुमाइंदा था। राजगुरु ने एक गोली सौन्डर्स को कंधे पर मारी थी फिर भगत सिंह ने सौन्डर्स को तीन-चार गोलियां मारी थीं और इस प्रकार सौन्डर्स को मार कर भगत सिंह और उनके साथियों ने लालाजी की मौत का बदला लिया था।
दिल्ली की केंद्रीय एसम्बली में बम्ब फेंकना :
भगत सिंह जी यद्यपि रक्तपात के पक्षधर नहीं थे परन्तु वे कम्युनिष्ठ विचारधारा पर चलते थे। भगत सिंह जी कार्ल मार्क्स के सिद्धांतों से बहुत अधिक प्रभावित थे। भगत सिंह जी समाजवाद के पक्के शोषक भी थे। इसी वजह से उन्हें पूंजीपतियों की मजदूरों के प्रति शोषण की नीति पसंद नहीं आती थी। ब्रिटिश सरकार को भारत के आम आदमी , मजदूर , छोटे व्यवसायी , गरीब कामगार , वर्ग के दुःख और तकलीफों से कोई लेना देना नहीं था।
उनका उद्देश्य केवल भारत देश को लूटना और भारत पर शासन करना था। अपने इसी नापाक इरादे के साथ ब्रिटिश सरकार मजदूर विरोधी बल पारित करवाना चाहती थी। भगत सिंह , चन्द्रशेखर आजाद और उनके दल को यह मंजूर नहीं था कि देश के आम इंसान जिनकी हालत पहले से ही गुलामी की वजह से खराब थी वह और भी खराब हो जाए।
इसलिए योजना के अनुसार दल की सर्व सम्मति से भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त का नाम एसम्ब्ली बम्ब फेंकने के लिए चुना गया था। इसके बाद ब्रिटिश सरकार के अहम मजदूर विरोधी नीतियों वाले बिल पर विरोध जताने के लिए भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की केंद्रीय एसम्ब्ली में 8 अप्रैल , 1929 को बम्ब फेंके थे।
बम्ब फेंकने का उद्देश्य किसी की जान लेना नहीं था बल्कि ब्रिटिश सरकार को अपनी बेखबरी भरी गहरी नींद से जगाना और बिल के विरुद्ध विरोध जताना था। एसम्ब्ली में फेंके गए बम्ब बहुत ही सावधानी से खाली जगह का चुनाव करके फेंके गए थे और उन बम्बों में कोई भी जानलेवा विस्फोटक इस्तेमाल नहीं किया गया था। बम्ब फेंकने के बाद भगत सिंह जी और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाते हुए स्वैच्छित गिरफ्तारी दी थी।
चन्द्रशेखर आजाद जी बम्ब फेंकने के बाद गिरफतारी देने के प्रस्ताव से अधिक सहमत नहीं थे क्योंकि उन्हें लगता था कि भगत सिंह जी की देश को आगे और अधिक आवश्यकता है लेकिन भगत सिंह जी ने दृढ निश्चय कर लिया था कि उनका जीवन इतना अधिक आवश्यक नहीं है जितना अंग्रेजों द्वारा भारतियों पर किए जा रहे अत्याचारों को संसार के सामने लाना था। एसम्ब्ली के फेंके गए बम्ब के धमाकों की गूंज ब्रिटेन की महारानी के कानों तक भी पहुंची थी।
जेलवास के दौरान भूख हड़ताल :
भगत सिंह जी को जेल में रहकर भी कई यातनाओं को सहन किया उस समय भारतीय कैदियों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता था उन्हें न तो अच्छा खाना मिलता था और न ही कपड़े मिलते थे। भगत सिंह जी ने अपने लगभग दो साल के कारावास के दौरान कई पत्र लिखे थे और अपने कई लेख में भगत सिंह जी ने पूंजीपतियों की शोषण युक्त नीतियों की कड़ी निंदा की थी।
जेल में कैदियों को कच्चे-पक्के खाने और अस्वच्छ निर्वास में रखा जाता था। भगत सिंह जी और उनके साथियों ने इस अत्याचार के विरुद्ध आमरण अनशन यानि भूख हड़ताल का आहवाहन किया था और तकरीबन दो महीनों तक भूख हड़ताल जारी रखी थी। उन्होंने अपनी मांगों को पूरा करने के लिए कई दिनों तक न पानी और न ही अन्न का एक दाना ग्रहण किया।
अंग्रेज पुलिस उन्हें मरती थी , तरह-तरह की यातनाएं देती थी जिससे भगत सिंह प्रेषण होकर हार जाएँ और आंदोलन बंद कर दें लेकिन उन्होंने अंत तक हार नहीं मानी। सन् 1930 में भगत सिंह जी ने Why I Am Atheist नाम की किताब भी लिखी। अंत में अंग्रेज सरकार ने घुटने टेक दिए और उन्हें मजबूर होकर भगत सिंह और उनके साथियों की मांगे मंजूर करनी पड़ीं लेकिन भूख हड़ताल की वजह से क्रांतिकारी यतींद्रनाथ दास शहीद हो गए थे।
भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी :
भगत सिंह स्वंय अपने आप को शहीद कहा करते थे जिसके बाद उनके नाम के आगे यह जुड़ गया। भगत सिंह , राजगुरु और सुखदेव के मुकदमे चले जिसके बाद उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई , कोर्ट में भी तीनों इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाते रहे। देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की प्रवाह किए बिना लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को 23 मार्च , 1931 की शाम को लगभग 7 बजकर 33 मिनट पर फांसी दे दी गई थी।
जब भगत सिंह को फांसी दी गई तब उनकी उम्र 23 साल 5 महीने और 23 दिन थी और उन्हें जिस दिन फांसी दी गई थी उस दिन भी लगभग 23 तारीख थी। ऐसा कहा जाता है कि इन तीनों क्रांतिकारियों को निश्चित समय से पहले ही फांसी दे दी गई थी ताकि देश के आम लोगों में इस फैसले के विरुद्ध क्रांति की ज्वाला न भडक उठे।
कहा जाता है कि जिस दिन भगत सिंह और उनके साथियों को फंसी दी गई थी उस दिन भगत सिंह जी क्रांतिकारी लेनिन की किताब पढ़ रहे थे और फांसी पर चढने से पहले भगत सिंह जी ने लेनिन की किताब को साइन से लगाकर जेलर से कहा था कि ” उनकी इच्छा थी कि उन्हें अपराधी की तरह फांसी पर चढ़ा कर नहीं बल्कि युद्धबंदी की तरह गोली मारकर सजा दी जाए लेकिन उनकी बात मान्य नहीं रखी गई थी। भगत सिंह जी और उनके साथियों को अंततः फांसी दे दी गई थी।
भगत सिंह जी के अनमोल वचन :
भगत सिंह जी ने अपनी स्मृति के रूप में बहुत से अनमोल वचनों को आगे आने वाली पीढ़ी के लिए छोड़ा था।
1. प्रेमी , पागल एवं कवि एक ही थाली के चट्टे बट्टे होते हैं यानि समान होते हैं।
2. मेरी गर्मी के कारण रख का एक-एक कण चलायमान हैं मैं ऐसा पागल हूँ जो जेल में भी स्वतंत्र हैं।
3. यदि बेहरों को सुनाना है तो आवाज तेज करनी होगी। जब हम ने बम्ब फेंका था तब हमारा इरादा किसी को जान से मारने का नहीं था। हमने ब्रिटिश सरकार पर बम्ब फेंका था। ब्रिटिश सरकार को भारत छोड़ना होगा और उसे आजाद करना होगा।
4. किसी को भी क्रांति को परिभाषित नहीं करना चाहिए। इस शब्द के कई अर्थ और मतलब हैं जो कि इसका उपयोग अथवा दुरूपयोग करने वाले तय करते हैं।
5. क्रांति में सदैव संघर्ष हो यह जरूरी नहीं। यह बम्ब और पिस्तौल की राह नहीं है।
6. सामान्यत: लोग परिस्थिति के आदि हो जाते हैं और उनमें बदलाव करने की सोच मात्र से ही डर जाते हैं। अत: हमें सभी भावना को क्रांति की भावना से बदलने की आवश्यकता है।
7. जो व्यक्ति उन्नति के लिए राह में खड़ा होता है उसे परंपरागत चलन की आलोचना एवं विरोध करना होगा साथ ही उसे चुनौति देनी होगी।
8. मैं यह मानता हूँ कि मैं महत्वकांक्षी , आशावादी एवं जीवन के प्रति उत्साही हूँ लेकिन आवश्यकता अनुसार मैं इस सबका परित्याग कर सकता हूँ यही सच्चा त्याग होगा।
9. अहिंसा को आत्म-विश्वास का बल प्राप्त है जिसमें जीत की आशा से कष्ट वहन किया जाता हैं लेकिन अगर यह प्रयत्न विफल हो जाए तब क्या होगा ? तब हमें इस आत्म शक्ति को शरीरिक शक्ति से जोड़ना होता है ताकि हम अत्याचारी दुश्मन की दया पर न रहे।
10. किसी भी कीमत पर शक्ति का प्रयोग न करना काल्पनिक आदर्श है और देश में जो नवीन आंदोलन शुरू हुआ हैं जिसके शुरुआत की हम चेतावनी दे चुके हैं वो गुरु गोबिंद सिंह और शिवाजी , कमाल पाशा और राजा खान , वाशिंगटन और गैरीबाल्डी , लाफायेतटे और लेनिन के आदर्शों का अनुसरण है।
11. कोई भी व्यक्ति तभी कुछ करता है जब वह अपने कार्य के परिणाम को लेकर आश्वस्त होता है जैसे हम एसम्ब्ली में बम्ब फेंकने पर थे।
12. कठोरता एवं आजाद सोच ये दो क्रांतिकारी होने के गुण हैं।
13. मैं इंसान हूँ और जो भी चीजें इंसानियत पर प्रभाव डालती हैं मुझे उनसे फर्क पड़ता है।
14. जीवन अपने दम पर चलता है दूसरों का कंधा अंतिम यात्रा में ही साथ देता है।
15. क्रांति मनुष्य का जन्म सिद्ध अधिकार है साथ ही आजादी भी जन्म सिद्ध अधिकार है और परिश्रम समाज का वास्तव में वहन करता है।
16. जीवन का अर्थ केवल अपने मन को नियंत्रित करना नहीं है बल्कि इसको विकसित करना भी है।
17. क्रांति लाना किसी एक अकेले इंसान की शक्ति के परे है इसके लिए मिलकर प्रयास करना होगा।
18. कोई भी नियम या कनून तभी तक पवित्र और मानी है जब तक ये लोगों की इच्छाओं का आदर करता है।
19. क्रांतिक्रारी विचारों के लिए एक स्वतंत्र बहाना का होना बहुत जरूरी है।
20. बुराई इसलिए नहीं बढती की बुरे लोग बढ़ गए है बल्कि बुराई इसलिए बढती है क्योंकि बुराई सहन करने वाले लोग बढ़ गए हैं।
21. मेरी कलम मेरी भावनाओं से इस कदर रूबरू है कि मैं जब भी इश्क लिखना चाहूँ तो हमेशा इंकलाब लिखा जाता है।
भगत सिंह जी के रोचक तथ्य :
बचपन में जब भगत सिंह जी अपने पिता के साथ खेत में जाया करते थे तो पूंछते थे कि हम जमीन में बंदूक क्यों नहीं उपजा सकते। जलियांवाला बाग हत्याकांड के समय भगत सिंह जी की आयु केवल बारह वर्ष की थी। इस घटना ने भग सिंह जी को हमेशा के लिए क्रांतिकारी बना दिया था। भगत सिंह जी ने अपने कॉलेज के दिनों में नेशनल यूथ ऑर्गेनाइजेशन की स्थापना भी की थी।
कॉलेज के दिनों में भगत सिंह जी एक अभिनेता भी थे। उन्होंने बहुत से नाटकों में हिस्सा लिया। भगत सिंह जी को कुश्ती का भी बहुत शौक था। भगत सिंह जी शादी नहीं करना चाहते थे। जब उनके माता-पिता ने उनकी शादी की योजना बनाई टी वे घर छोडकर कानपुर आ गए। भगत सिंह जी ने कहा था की अब तो आजादी ही मेरी दुल्हन बनेगी। भगत सिंह जी एक अच्छे लेखक भी थे क्योंकि वो उर्दू और पंजाबी भाषा में कई अख़बारों के लिए नियमित रूप से लिखते थे।
भगत सिंह जी ने ब्रिटिश पुलिस से बचने के लिए अपने बाल कटवाकर और दाढ़ी साफ करवाकर अपना भेष बदला था। सेंट्रल एसम्ब्ली में जो बम्ब फेंके गए थे वो निचले स्तर के विस्फोटक से बनाए गए थे क्योंकि वह किसी को मारना नहीं बल्कि अपना आदेश देना चाहते थे। हिन्दू-मुस्लिम दंगों से प्रेषण होकर भगत सिंह जी ने यह घोषणा कर दी थी कि वे नास्तिक हैं।
महात्मा गाँधी जी की अहिंसा की नीतियों से भगत सिंह जी सहमत नहीं थे। भगत सिंह जी को लगता था कि बिना हथियार उठाए आजादी नहीं मिल सकती है। भगत सिंह जी को फिल्में देखना और रसगुल्ले खाना बहुत पसंद था। वे राजगुरु और यशपाल के साथ जब भी अवसर मिलता था फिल्म देखने चले जाते थे। भगत सिंह जी को चार्ली चैप्लिन की फिल्में बहुत पसंद थीं।
इस सब पर चन्द्रशेखर बहुत क्रोधित होते थे। इन्कलाब जिंदाबाद का नारा शहीद भगत सिंह जी ने दिया था। देश की सरकार भगत सिंह जी को शहीद नहीं मानती थी क्योंकि आजदी के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले भगत सिंह हर हिन्दुस्तानी के दिल में बसते हैं। भगत सिंह जी को फांसी की सजा सुनाने वाले न्यायधीश का नाम जी.सी.हिल्टन था।
ऐसा कहा जाता है कि महात्मा गाँधी जी चाहते तो उनकी फांसी रुकवा सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। भगत सिंह जी को फांसी की सजा एसम्ब्ली पर बम्ब गिराने की वजह से सुनाई गई थी। ऐसा माना जाता है भगत सिंह जी के जूते, घड़ी और शर्त आज तक सुरक्षित हैं। कुछ लोगों का कहना है कि भगत सिंह जी की चिता को एक बार नहीं बल्कि दो बार जलाया गया था।
भगत सिंह जी की इच्छा थी कि उन्हें गोली मारकर मौत दी जाए लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उनकी इस इच्छा को नजरंदाज कर दिया था। भगत सिंह का जन्म पंजाब के नवांशहर जिले के खटकर कलां गाँव में हुआ था। भगत सिंह जी की याद में अब इस जिले का नाम बदल कर शहीद भगत सिंह नगर रख दिया गया है।
भगत सिंह की मौत का सच :
24 मार्च , 1931 की सुबह थी और लोगों में एक अजीब सी बेचैनी थी। एक खबर लोग अपने आस-पास से सुन रहे थे और उसका सच जानने के लिए यहाँ-वहां भागते हुए अख़बार तलाश रहे थे। यह खबर सरदार भगत सिंह और उनके दो साथी सुखदेव और राजगुरु की फांसी की थी।
उस सुबह जिन लोगों को अखबार मिला उन्होंने काली पट्टी वाली हेडिंग के साथ यह खबर पढ़ी कि भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु को लाहौर सेंट्रल जेल में पिछली शाम 7 बजकर 33 मिनट पर फांसी दे दी गई वह सोमवार का दिन था। ऐसा कहा जाता है कि उस शाम जेल में पंद्रह मिनट तक इंकलाब जिंदाबाद के नारे गूंज रहे थे।
केंद्रीय एसम्ब्ली में बम्ब फेंकने के जिस मामले में भगत सिंह जी को फांसी की सजा हुई थी तारीख 24 मार्च तय की गई थी लेकिन उस समय के पूरे भारत में इस फांसी को लेकर जिस तरह से प्रदर्शन और विरोधी जारी था उससे सरकार डरी हुई थी। उसी का परिणाम रहा कि भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु को चुपचाप से तय की गई तारीख से एक दिन पहले ही फांसी दे दी गई। फासी के समय जो भी आधिकारिक लोग सम्मिलित थे उनमे से एक यूरोप के डिप्टी कमिश्नर थे।
जितेंदर सान्याल की लिखी किताब भगत सिंह के अनुसार ठीक फंसी पर चढने के पहले वक्त भगत सिंह जी ने उनसे कहा , मिस्टर मजिस्ट्रेट आप बेहद भाग्यशाली हैं कि आपको यह देखने का अवसर मिल रहा है कि भारत के क्रांतिकारी किस तरह अपने आदर्शों के लिए फंसी पर भी झूल जाते हैं।
भगत सिंह जी के ये आखिरी वाक्य थे। लेकिन भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु की मौत के बारे में सिर्फ इतना जानना कि उन्हें फांसी हुई थी या तय तारीख से एक दिन पहले हुई थी बहुत नहीं होगा। फांसी के बाद कहीं अंडों न भडक जाए इसके डर से अंग्रेजों ने पहले इनके मृत शरीर के टुकड़े किये और इन टुकड़ों को बोरियों में भरकर फिरोजपुर की ओर ले गए जहाँ मिट्टी का तेल डालकर इनको जलाया जाने लगा था।
गाँव के लोगों ने आग जलती हुई देखकर आग जलने की जगह के पास गए। इससे डरकर अंग्रेजों इ इनकी लाश के अधजले टुकड़ों को सतलुज नदी में फेंककर भाग गए। जब गाँव वाले पास आये तब उन्होंने इनके मृत शरीरों के टुकड़ों को एकत्रित करके विधिवत दाह संस्कार किया गया था।