महात्मा गांधी (About Gandhi ji In Hindi) :
हमारे भारत देश की भूमि ऐसे महान पुरुषों की जन्मस्थली और कर्मस्थली रही है जिन्होंने अपनी कार्यशैली से न सिर्फ जनमानस को प्रेरणा दी बल्कि अपने व्यक्तित्व एवं कार्यों का प्रकाश भारतवर्ष में ही नहीं संसार भर में फैलाया था। जब भी हम अपने देश भारत के इतिहास की बात करते हैं तो उसमें स्वतंत्रता संग्राम की बात जरुर होती है और इस स्वतंत्रता संग्राम में किन-किन सैनानियों ने भाग लिया इस बात पर भी चर्चा अवश्य होती है।
स्वतंत्रता में गाँधी जी ने बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान दिया था जिसकी वजह से भारत के साथ-साथ पूरे विश्व के लोगों में महात्मा गाँधी के बारे में जानने के लिए उत्सुकता रहती है। क्योंकि गाँधी जी की वजह से ही हम लोग आजाद हो पाए हैं। महात्मा गाँधी जी उन महान देशभक्तों में से एक थे जिनके कठिन प्रयासों की वजह से हमारा देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हो सका। गाँधी जी के शांति , सत्य और अहिंसा का पालन करने के रवैये की वजह से उन्हें महात्मा कहकर संबोधित किया जाता था।
गाँधी जी का जन्म : गाँधी जी का जन्म 2 अक्टूबर , 1869 में गुजरात के काठियावाड एजेंसी के पोरबंदर में हुआ था। गाँधी जी के पिता का नाम करमचंद गाँधी था और माता का नाम पुतलीबाई था। पुतलीबाई करमचंद गाँधी जी की चौथी पत्नी थीं। गाँधी जी के पिता हिन्दू धर्म की पंसारी जाति से संबंध रखते थे। गाँधी जी की माता एक धार्मिक विचारों वाली महिला थीं। गाँधी जी के पिता अपने पूरे परिवार में अधिक पढ़े-लिखे थे। गाँधी जी के पिता काठियावाड़ में एक दीवान के पद पर कार्यरत थे।
गाँधी जी का विवाह : गाँधी जी का 13 वर्ष की उम्र में कस्तूरबा बाई माखनजी कपाडिया के साथ विवाह हो गया था। गाँधी जी अपनी पत्नी से उम्र में एक साल छोटे थे। गाँधी जी ने अपनी पत्नी का नाम छोटा करके कस्तूरबा कर दिया और उन्हें प्यार से बा कहकर बुलाते थे। यह विवाह उनके माता-पिता द्वारा तय किया गया व्यवस्थित बाल विवाह था जो उस समय उस क्षेत्र में बहुत प्रचलित था।
लेकिन उस क्षेत्र में यह रीति थी कि किशोर दुल्हन को अपने माता-पिता के घर और अपने पति से अलग अधिक समय तक रहना पड़ता था। 15 साल की उम्र में मोहनदास और कस्तूरबा को पहली सन्तान हुई लेकिन वह केवल कुछ दिनों तक ही जीवित रही और इसी साल उनके पिता करमचंद का भी निधन हो गया था। उसके बाद मोहनदास और कस्तूरबा को चार संताने हुई जिनमे से पहली हरिलाल गाँधी (1888) , दूसरी मणिलाल गाँधी (1892) , तीसरी रामदास गाँधी (1897) और चौथी देवदास गाँधी (1900)।
गाँधी जी का प्रारंभिक जीवन : गाँधी जी का जन्म गुजरात राज्य के पोरबन्दर में हुआ था। गाँधी जी के पिता पोरबंदर में दीवान थे और उनकी माता एक धार्मिक महिला थीं। गाँधी जी की माँ बहुत अधिक धार्मिक प्रवृति की महिला थीं जिनका प्रभाव मोहनदास करमचन्द गाँधी जी पर पड़ा था और इन्ही मूल्यों ने आगे चलकर उनके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
गाँधी जी की माँ नियमित रूप से वृत रखती थीं और परिवार में किसी के बीमार पड़ जाने पर उसकी सेवा सुश्रुषा में दिन-रात एक कर देती थीं। इस तरह मोहनदास जी ने स्वभाविक रूप से अहिंसा , शाकाहार , आत्मशुद्धि के लिए वृत और विभिन्न धर्मों और पंथों को मानने वालों के बीच परस्पर सहिष्णुता को अपनाया।
गाँधी जी बचपन से ही थोड़े संकोची , आज्ञाकारी और हमेशा बड़ों का मान-सम्मान करते थे। सन् 1883 में साढ़े 13 साल में गाँधी जी का विवाह हो गया था। जब गाँधी जी 15 साल के थे तब इनकी पहली संतान का जन्म हुआ था लेकिन वह ज्यादा दिनों तक जीवित नहीं रह सकी थी। इसी साल गाँधी जी के पिता का भी देहांत हो गया था। इसके बाद गाँधी जी की चार संताने हुईं थीं।
गाँधी जी के विचार : गांधी जी सत्य और अहिंसा को जीवन में सर्वाधिक महत्व देते थे। सत्याग्रह और असहयोग द्वारा उन्होंने अंग्रेजों का मुकाबला किया। गाँधी जी सभी मनुष्यों को एक समान मानते थे। धर्म , जाति , सम्प्रदाय , रंग , नस्ल के आधार पर किए जाने वाले भेदभाव को मानवता के विरुद्ध कलंक मानते थे। गाँधी जी ने अछूतों को हरिजन कहा। वे आर्थिक असमानता को मिटाकर वर्गविहीन , जातिविहीन समाज की स्थापना करना चाहते थे।
गाँधी जी ने शरीरिक श्रम व सामाजिक न्याय को विशेष महत्व दिया। वे प्रजातांत्रिक राज्य को कल्याणकारी राज्य मानते थे। गाँधी जी के अनुसार नैतिक आचरण का जीवन में विशेष महत्व होना चाहिए। सत्य , न्याय , धर्म , अहिंसा , अपरिग्रह , निस्वार्थ सेवा मानवता की सच्ची सेवा है। दीन-दुखियों की सेवा ही सच्चा धर्म है।
गाँधी जी ने राष्ट्रिय और अंतर्राष्ट्रीय विचारों के तहत वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को विशेष महत्व दिया। किसी भी राष्ट्र के समुचित उत्थान के लिए परिवार , जाति , गाँव , प्रदेश तथा देश की समस्याओं का सुधार होना चाहिए। खुद सुधरो , तो जग सुधरेगा यह उनका मानना था।
गांधीजी का शिक्षा दर्शन : गाँधी जी का शिक्षा दर्शन बहुत ही व्यापक था। वे शिक्षा को व्यक्ति के शारीरिक , मानसिक , आध्यात्मिक विकास की प्रक्रिया और उद्देश्य मानते थे। शिक्षा को बेरोजगारी के खिलाफ एक प्रकार का बीमा होना चाहिए , जो व्यक्ति को किसी प्रकार का कौशल प्रदान करे। उनकी बुनियादी शिक्षा प्रणाली इसी सिद्धांत पर आधारित थी। कुटीर उद्योग धंधों का प्रशिक्षण व मातृभाषा का ज्ञान शिक्षा की अनिवार्य प्रक्रिया मानते थे।
गाँधी जी का कार्य और उपलब्धियां : गाँधी जी ने सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मोहनदास करमचन्द गाँधी जी जो महात्मा गाँधी जी के नाम से मशहूर हैं ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक नेता थे। सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांतों पर चलकर उन्होंने भारत को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनके इन सिद्धांतों ने पूरी दुनिया में लोगों को नागरिक अधिकारों एवं स्वतंत्रता आंदोलन के लिए प्रेरित किया।
उन्हें भारत का राष्ट्रपिता भी कहा जाता है। सुभाष चन्द्र बोस ने साल 1944 में रंगून रेडियो से गाँधी जी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया था। महात्मा गाँधी जी पूरी मानव जाति के लिए एक मिशाल हैं। उन्होंने हर परिस्थिति में अहिंसा और सत्य का पालन किया और लोगों से भी इनका पालन करने के लिए कहा। उन्होंने अपना जीवन सदाचार में गुजारा। वह हमेशा परंपरागत भारतीय पोशाक धोती व सूत से बनी शाल पहनते थे।
हमेशा शाकाहारी भोजन खाने वाले इस महापुरुष ने आत्मशुद्धि के लिए कई बार लंबे उपवास भी रखे थे। सन् 1915 में भारत वापस आने से पहले गाँधी जी ने एक प्रवासी वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के लोगों के नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष किया।भारत आकर गांधी जी ने समूचे देश का भ्रमण किया और किसानों , मजदूरों तथा श्रमिकों को भारी भूमि कर और भेदभाव के खिलाफ संघर्ष करने के लिए एकजुट किया।
सन् 1921 में उन्होंने भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस की बागडोर संभाली और अपने कामों से देश के राजनैतिक , सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य को प्रभावित किया। उन्होंने सन् 1930 में नमक सत्याग्रह और इसके बाद सन् 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में बहुत अधिक प्रसिद्धि प्राप्त की थी। भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान कई मौकों पर गाँधी जी कई वर्षों तक जेल में भी रहे थे।
विदेश में शिक्षा और वकालत (Foreign Education and Advocacy In Hindi) :
महात्मा गाँधी जी की प्रारंभिक शिक्षा काठियावाड़ से हुई थी। उसके बाद गाँधी जी ने सन् 1881 में राजकोट से हाई स्कुल की परीक्षा पास की थी। सन् 1887 में गाँधी जी ने मैट्रिक की परीक्षा पास की और मैट्रिक के बाद की परीक्षा गाँधी जी ने भावनगर के शामलदास कॉलेज से पूरी की थी। शामलदास कॉलेज से पढाई के समय गाँधी जी अप्रसन्न थे क्योंकि उनके परिवार के लोग उन्हें बैरिस्टर बनाना चाहते थे।
मोहनदास जी अपने परिवार में सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे थे इसलिए उनके परिवार वाले ऐसा मानते थे कि वह अपने पिता और चाचा के उत्तराधिकारी बन सकते थे। उनके एक परिवारिक मित्र मावजी दवे ने ऐसी सलाह दी की अगर एक बार मोहनदास जी ने लन्दन से बैरिस्टर बन जाएँ तो उनको आसानी से दीवान की पदवी मिल सकती थी। गाँधी जी की माँ पुतलीबाई और परिवार के एनी सभी सदस्यों ने उनके विदेश जाने के विचार का विरोध किया पर मोहनदास के आश्वासन पर तैयार हो गए थे।
सन् 1888 में मोहनदास यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में क़ानूनी पढाई करने और बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैण्ड चले गए। भारत छोड़ते समय जैन भिक्षु बेचारजी के समक्ष हिन्दुओं को मांस , शराब तथा संकीर्ण विचारधारा को त्यागने के लिए अपनी माता जी को दिए एक वचन ने उनके शाही राजधानी लन्दन में बिताये गए समय को बहुत प्रभावित किया।
गाँधी जी भारतीय संस्कारों में पले-बढ़े थे उन्हें वहां की पाश्चात्य सभ्यता से समन्वय करने में बहुत कठिनाई हुई। गाँधी जी ने पश्चात्य सभ्यता का अनुकरण करके भी देखा किन्तु जीत उनके पारिवारिक संस्कारों की ही हुई। गांधीजी ने यहाँ रहकर पारिवारिक संस्कारों का पूर्णत: पालन किया। गाँधी जी ने अपनी माँ को वचन दिया था और इसी वचन के अनुसार लंदन में अपना समय गुजारा था।
गाँधी जी को लंदन में शाकाहारी खाने से संबंधित कुछ कठिनाईयों का सामना भी करना पड़ा और कभी-कभी भूखा भी रहना पड़ता था। धीरे-धीरे उन्होंने शाकाहारी भोजन वाले होटलों का पता लगाया और बाद में वेजिटेरियन सोसाइटी की सदस्यता भी ग्रहण कर ली थी। इस सोसाइटी के कुछ सदस्य थियोसोफिकल सोसाइटी के सदस्य भी थे और उन्होंने मोहनदास को गीता पढने का सुझाव दिया।
इस सोसाइटी की स्थापना 1875 में विश्व बंधुत्व को प्रबल करने के लिए की गई थी और इसे बौद्ध धर्म एवं सनातन धर्म के साहित्य के अध्धयन के लिए समर्पित किया गया था। उन लोगों ने महात्मा गाँधी जी को श्रीमद्भागवद्गीता पढने के लिए प्रेरित किया। हिन्दू , ईसाई , बौद्ध , इस्लाम और एनी धर्मों के बारे में पढने से पहले गाँधी जी ने धर्म में विशेष रूचि नहीं दिखाई थी।
इंग्लैण्ड और वेल्स बार एसोसिएशन में वापस बुलावे पर वे भारत लौट आए किंतु बंबई में वकालत करने में उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली। बाद में एक हाई स्कूल शिक्षक शिक्षक के रूप में अंशकालिक नौकरी का प्रार्थना पत्र अस्वीकार कर दिया जाने पर उन्होंने जरुरतमंदों के लिए मुकदमें की अर्जियां लिखने के लिए राजकोट को ही अपना स्थायी मुकाम बना लिया था। परन्तु एक अंग्रेज अधिकारी की मूर्खता के कारण उन्हें यह कारोबार भी छोड़ना पड़ा।
अपनी आत्मकथा में उन्होंने सन् 1893 में एक भारतीय फर्म से नेटाल दक्षिण अफ्रीका में जो उन दिनों ब्रिटिश साम्राज्य का भाग हटा था एक साल के करार पर वकालत का कारोबार स्वीकार कर लिया। जून 1891 में गाँधी जी बैरिस्टर बनकर भारत लौट गए और वहां जाकर उन्हें अपनी माँ की मौत के बारे में पता चला। उन्होंने बॉम्बे में वकालत की शुरुआत की पर उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली थी।
इसके बाद वो राजकोट चले गए जहाँ उन्होंने जरुरतमंदों के लिए मुकदमे की अर्जियां लिखने का काम शुरू कर दिया लेकिन कुछ समय बाद उन्हें यह काम भी छोड़ना पड़ा था। अंत में सन् 1893 में एक भारतीय फर्म से नेटल में एक साल के करार पर वकालत का कार्य स्वीकार कर लिया।
गाँधी जी का दक्षिण अफ्रीका गमन : गाँधी जी 24 साल की उम्र में दक्षिण अफ्रीका पहुंचे। वह प्रिटोरिया स्थित कुछ भारतीय व्यापारियों के न्यायिक सलाहकार के तौर पर वहां गए थे। उन्होंने अपने जीवन के 21 साल दक्षिण अफ्रीका ने बिताए जहाँ उनके राजनैतिक विचार और नेतृत्व कौशल का विकास हुआ। दक्षिण अफ्रीका में उनको गंभीर नस्ली भेदभाव का सामना करना पड़ा था।
एक बार ट्रेन में प्रथम श्रेणी कोच की वैध टिकट होने के बाद भी उन्हें तीसरी श्रेणी के डिब्बे में जाने के लिए कहा गया था जब उन्होंने इस बात से इंकार किया तो उन्हें ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया था क्योंकि वे एक काले भारतीय थे। यह सभी घटनाएँ उनके जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ बन गई थीं और मौजूदा सामाजिक और राजनैतिक अन्याय के प्रति जागरूकता का कारण बनीं।
दक्षिण अफ्रीका में भारतियों पर हो रहे अन्याय को देखते हुए गाँधी जी के मन में ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत भारतियों के सम्मान और स्वंय अपनी पहचान से संबंधित प्रश्न उठने लगे। दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी ने भारतियों को अपने राजनैतिक और सामाजिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया। गाँधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में रंग भेद का विरोध किया जिस वजह से उन्हें बहुत बड़ी मुशीबत का सामना करना पड़ा।
लेकिन वे इन सब से डिगे नहीं बल्कि अफ्रीका में रह रहे हिंदुस्तानियों को सम्मान दिलाने के लिए और तेजी से सक्रिय हो गए। मई 1894 में गाँधी जी ने नेटाल में इंडियन कांग्रेस की स्थापना की। सन् 1896 में भारत आकर दक्षिण अफ़्रीकी भारतियों के लिए उन्होंने आन्दोलन शुरू कर दिया। गाँधी जी उसी साल अपने परिवारसहित वहां आ बसे थे।
उन्होंने भारतियों की नागरिकता संबंधित मुद्दे को भी दक्षिण अफ्रीकी सरकार के सामने उठाया और सन् 1906 के जुलु युद्ध में भारतियों को भर्ती करने के लिए ब्रिटिश अधिकारीयों को सक्रिय रूप से प्रेरित किया। गांधीजी के अनुसार अपनी नागरिकता के दावों को कानूनी जामा पहनाने के लिए भारतियों को ब्रिटिश युद्ध प्रयासों में सहयोग देना चाहिए। गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका 20 सालों तक रहे थे।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का संघर्ष : सन् 1914 में गांधीजी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौट आए। इस समय तक गाँधी एक राष्ट्रवादी नेता और संयोजक के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे। गाँधी जी उदारवादी कांग्रेस नेता गोपाल कृष्ण गोखले के कहने पर भारत आए थे और शुरुआती दौर में गाँधी जी के विचार काफी हद तक गोखले जी के विचारों से प्रभावित थे। आरंभ में गाँधी जी ने देश के विभिन्न भागों का दौरा किया और राजनैतिक , आर्थिक और सामाजिक मुद्दों को समझने की कोशिश की थी।
चम्पारण और खेडा सत्याग्रह : भारत लौटने के बाद गाँधी जी स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए और भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस अधिवेशन में उन्होंने अपने विचारों को व्यक्त किया। बिहार के चम्पारण और गुजरात के खेडा में हुए आंदोलनों ने गाँधी जी को भारत में पहली राजनैतिक सफलता दिलाई थी। चंपारण और खेडा में अंग्रेजी हुकुमत का संरक्षण पाकर जमींदार गरीब किसानों का शोषण कर रहे थे।
चंपारण में ब्रिटिश जमींदार किसानों को खाद्य फसलों की खेती करने की जगह नील की खेती करने के लिए मजबूर करते थे और नील को एक निश्चित कीमत पर बेचने के लिए भी मजबूर करते थे। अंग्रेज उनसे बहुत ही सस्ते मूल्य पर फसल खरीदते थे जिससे किसानों की स्थिति बदतर होती जा रही थी। इस वजह से वे बहुत अधिक गरीबी से घिर गए।
एक बहुत ही विनाशकारी अकाल के बाद अंग्रेजी सरकार ने बहुत से दमनकारी कानून लगा दिए जिनका भार दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही गया। वहां की स्थिति बहुत ही निराशाजनक हो गई थी। गाँधी जी ने जमींदारों के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन और हड़तालों का नेतृत्व किया जिसके बाद गरीब और किसानों की मांगों को माना गया।
सन् 1918 में गुजरात में स्थित खेडा बाढ़ और सूखे की चपेट में आ गया था जिसकी वजह से किसान और गरीबों की स्थिति बदतर हो गई और लोग कर को माफ़ करने की मांग करने लगे। खेडा में गाँधी जी के मार्गदर्शन में सरदार पटेल ने अंग्रेजों के साथ इस समस्या पर विचार-विमर्श के लिए किसानों का नेतृत्व किया। इसके बाद अंग्रेजों ने राजस्व संग्रहण से मुक्ति देकर सभी कैदियों को रिहा कर दिया।
इस तरह से चंपारण और खेडा के बाद गाँधी जी की ख्याति पूरे देश में फ़ैल गई और वह स्वतंत्रता आंदोलन के एक महत्वपूर्ण नेता बनकर उभरे थे। ये दोनों सत्याग्रह ब्रिटिश लैंडलार्ड के विरुद्ध चलाया गया था। चंपारण और खेडा के उस सफल सत्याग्रह के बाद जिसमें गाँधी जी ने गरीब किसानों को जमीदारों के जुर्म से मुक्ति दिलाई जिस कारण महात्मा गाँधी का स्तर बहुत ऊँचा हो गया था और आम लोगों के प्रति उनके निस्वार्थ सेवा भाव से लोगों में गाँधी जी की एक अलग ही छवि बन गई।
महात्मा गाँधी के स्वतंत्रता संग्राम में आने से पूरे भारत में उम्मीद की एक लहर दौड़ पड़ी थी क्योंकि अभी तक किसी को भी इतनी भारी तादात में लोगों का समर्थन नहीं मिला था।
खेडा गाँव में पहला आश्रम : गुजरात के खेडा गाँव में एक आश्रम बनाकर गांधीजी तथा उनके समर्थकों ने इस गाँव की सफाई का कार्य आरंभ किया तथा विद्यालय और अस्पताल भी निर्मित किए। इस आश्रम में उनके बहुत सारे समर्थकों और नए स्वेच्छिक कार्यकर्ताओं को संगठित किया गया।
उन्होंने गाँव का एक विस्तृत अध्धयन और सर्वेक्षण किया गया जिसमें प्राणियों पर हुए अत्याचार के भयानक कांडों का लेखाजोखा रखा गया और इसमें लोगों की अनुत्पादकीय सामान्य अवस्था को भी शामिल किया गया था। खेडा सत्याग्रह की वजह से महात्मा गाँधी को गिरफ्तार कर यह जगह छोड़ने का आदेश दिया गया जिसके विरोध में लाखों लोगों ने प्रदर्शन किया।
गाँधी जी के समर्थक व हजारों लोगों ने रैलियां निकालीं और उन्हें बिना किसी शर्त के रिहा करने के लिए आवाज उठाई जिसके फलस्वरूप उन्हें रिहाई मिली। जिन जमींदारों ने अंग्रेज के मार्गदर्शन में किसानों का शोषण किया और गरीब लोगों को क्षति पहुंचाई।
उनके विरोध में कई प्रदर्शन हुए जिनका मार्गदर्शन गाँधी जी ने स्वं किया। उनकी देश के लिए निस्वार्थ सेवा को तथा देशवासियों के लिए प्रेम को देखते हुए लोगों ने उन्हें बापू कहकर संबोधित किया। खेडा और चंपारण में सत्याग्रह में सफलता पाने के बाद महात्मा गाँधी पूरे देश के बापू बन गए।
खिलाफत आंदोलन : गाँधी जी को सन् 1919 में इस बात का एहसास होने लगा कि कांग्रेस कहीं-न-कहीं पर कमजोर पद रही है तो गाँधी जी ने काग्रेस की डूबती हुई नैया को बचाने के लिए और हिन्दू-मुस्लिम एकता के द्वारा ब्रिटिश सरकार को बाहर निकालने के लिए अनेक प्रयास शुरू कर दिए। कांग्रेस में और मुसलमानों के बीच अपनी लोकप्रियता फ़ैलाने का मौका गाँधी जी को खिलाफत आन्दोलन के माध्यम से मिला था।
गाँधी जी अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए मुस्लिम समाज के पास गए। खिलाफत एक विश्वव्यापी आन्दोलन था जिसके द्वारा खलीफा के गिरते प्रभुत्व का विरोध सारी दुनिया के मुसलमानों द्वारा किया जा रहा था। प्रथम विश्वयुद्ध में पराजित होने के बाद ओटोमन साम्राज्य विखंडित कर दिया गया था जिसके कारण मुसलमानों को अपने धर्म और धार्मिक स्थलों की सुरक्षा को लेकर चिंता बनी हुई थी।
भारत में खिलाफत का नेतृत्व आल इण्डिया मुस्लिम कांफ्रेंस द्वारा किया जा रहा था। धीरे-धीरे गाँधी जी इसके मुख्य प्रवक्ता बन गए। इस आन्दोलन में मुसलमानों को बहुत स्पोर्ट किया और गाँधी जी के स प्रयास ने उन्हें राष्ट्रिय नेता बना दिया और कांग्रेस में उनकी खास जगह बन गई थी।
लेकिन सन् 1922 में खिलाफत आन्दोलन बुरी तरह से बंद हो गया और इसके बाद भारतीय मुसलमानों के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए उन्होंने अंग्रेजों द्वारा दिए सम्मान और मैडल वापस कर दिया। इसके बाद गाँधी जी न केवल कांग्रेस बल्कि देश के एकमात्र ऐसे नेता बन गए जिसका प्रभाव विभिन्न समुदायों के लोगों पर पड़ा था।
असहयोग आंदोलन (Non-Cooperation Movement In Hindi) :
इस आन्दोलन को शुरू करने के पीछे महात्मा गाँधी जी की यह सोच थी कि भारत में ब्रिटिश सरकार सिर्फ़ इसलिए राज कर पा रही हैं क्योंकि उन्हें भारतीय लोगों द्वारा ही सपोर्ट किया जा रहा है तो अगर उन्हें यह सपोर्ट मिलना ही बंद हो जाए तो ब्रिटिश सरकार के लिए भारतीयों पर राज करना बहुत मुश्किल होगा इसलिए उन्होंने गाँधी जी से अपील की कि वे ब्रिटिश सरकार के किसी भी काम में सहयोग न दें परन्तु इसमें किसी भी तरह की हिंसात्मक गतिविधि सम्मिलित न हो।
गाँधी जी का मानना था कि भारत में अंग्रेजी हुकुमत भारतियों के सहयोग से ही संभव हो पाई थी और अगर हम सब मिलकर अंग्रेजों के विरुद्ध हर बात पर असहयोग करें तो आजादी संभव है। गाँधी जी द्वारा चलाये गए तीन आंदोलनों में से यह सबसे पहला आन्दोलन था। गाँधी जी की बढती हुई लोकप्रियता ने उन्हें कांग्रेस का सबसे बड़ा नेता बना दिया था और अब वह इस स्थिति में थे कि अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग , अहिंसा तथा शांतिपूर्ण प्रतिकार जैसे अस्त्रों का प्रयोग कर सकें।
13 अप्रैल , 1919 को बैशाखी के दिन रोलेक्त एक्ट के विरोध के लिए अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक सभा हो रही थी जिसमें जनरल डायर नाम के एक ब्रिटिश ऑफिसर ने बिना किसी कारण के निर्दोष लोगों पर गोलियां चलवा दी। इस प्रकार अचानक भीड़ में गोलियां चलवाने से वहां उपस्थति 1000 से भी ज्यादा लोग मरे गए थे और 2000 से भी ज्यादा लोग घायल हो गए थे।
इस नरसंहार से पूरे भारत में ब्रिटिश सरकार के प्रति आक्रोश फैल गया। ब्रिटिश सरकार द्वारा किए गए इस अत्याचार से महात्मा गाँधी को बहुत बड़ा आघात लगा। गाँधी जी ने स्वदेशी नीति को अपनाया जिसमें विदेशी वस्तुओं विशेष रूप से अंग्रेजी वस्तुओं का बहिष्कार करना था। गाँधी जी का कहना था कि सभी भारतीय अंग्रेजों द्वारा बनाए वस्त्रों की अपेक्षा हमारे अपने लोगों द्वारा हाथ से बनाई गई खादी के वस्त्र पहनें। गाँधी जी ने पुरुषों और महिलाओं को रोज सूत कातने के लिए कहा।
इसके अतिरिक्त गाँधी जी ने ब्रिटेन की शैक्षिक संस्थाओं और अदालतों का बहिष्कार किया , सरकारी नौकरियों को छोड़ने तथा अंग्रेजी सरकार से मिले तमगों और सम्मान को वापस लौटाने का भी अनुरोध किया था। इस आन्दोलन में लोगों ने सरकार को सहयोग देना बंद कर दिया जैसे छात्रों ने स्कूल जाना छोड़ दिया , वकीलों ने अदालत जाने से मना कर दिया एवं पूरे देश में लोगों ने ब्रिटिश सरकार का सहयोग करना बंद कर दिया।
असहयोग आन्दोलन का उद्देश्य था कि किसी तरह की हिंसा न करते हुए भारतियों के द्वारा अंग्रेज सरकार की किसी भी तरह की मदद ने की जाए। असहयोग आन्दोलन को अपार सफलता मिल रही थी जिससे समाज के सभी वर्गों में जोश और भागीदारी बढ़ गई लेकिन फरवरी 1922 में इसका अंत चौरी-चौरा कांड के साथ हो गया था।
क्योंकि यह असहयोग आन्दोलन संपूर्ण देश में अहिंसात्मक तरीके से चलाया जा रहा था तो इस दौरान उत्तर प्रदेश राज्य के चौरी-चौरा नामक स्थान पर जब कुछ लोग शांतिपूर्ण तरीके से रैली नकाल रहे थे तब अंग्रेजी सैनिकों ने उन पर गोली चला दी और कुछ लोगों की इसमें मौत हो गई थी। तब इस गुस्से से भरी भीड़ ने पुलिस स्टेशन में आग लगा दी और वहां उपस्थित 22 सैनिकों की भी हत्या कर दी।
तब गाँधी जी का कहना था कि हमें संपूर्ण आन्दोलन के दौरान किसी भी हिंसात्मक गतिविधि को नहीं करना था शायद हम अभी आजादी पाने के लायक नहीं हुए हैं। इस हिंसक घटना के बाद गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन को वापस ले लिया। उन्हें गिरफ्तार कर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया जिसमें उन्हें 6 साल की कैद की सजा सुनाई गई थी। खराब स्वास्थ्य की वजह से उन्हें फरवरी 1924 में सरकार द्वारा रिहा कर दिया गया था।
स्वराज और नमक सत्याग्रह (Swaraj and Salt Satyagraha In Hindi) :
असहयोग आन्दोलन के दौरान गिरफ्तारी के बाद गाँधी जी फरवरी 1924 में रिहा हुए और सन् 1928 तक सक्रिय राजनीति से दूर ही रहे। इस दौरान वह स्वराज्य पार्टी और कांग्रेस के बीच मनमुटाव को कम करने में लगे रहे और इसके अतिरिक्त अस्पृश्यता , शराब , अज्ञानता और गरीबी के विरुद्ध भी लड़ते रहे।
इसी वक्त अंग्रेजी सरकार के सर जॉन साइमन के नेतृत्व में भारत के लिए एक नया संवैधानिक सुधार आयोग बनाया लेकिन उसका एक भी सदस्य भारतीय नहीं था जिसकी वजह से भारतीय राजनैतिक दलों ने इसका बहिष्कार किया। इसके बाद दिसंबर 1928 में कलकत्ता अधिवेशन में गाँधी जी ने अंग्रेजी हुकुमत को भारतीय साम्राज्य को सत्ता प्रदान करने के लिए कहा और ऐसा न करने पर देश की आजादी के लिए असहयोग आन्दोलन का सामना करने के लिए तैयार रहने के लिए भी कहा था।
अंग्रेजों के द्वारा कोई जवाब न मिलने पर 31 दिसंबर , 1929 को लाहौर में भारत का झंडा फहराया गया और कांग्रेस ने 26 जनवरी , 1930 का दिन भारतीय स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया। स्वराज शब्द का अर्थ होता है अपना राज्य , स्वराज्य आन्दोलन को चलाने का उद्देश्य था स्वाधीनता प्राप्त करना।
कुछ लोगों ने पूर्ण स्वाधीनता को दुलर्भ मानते हुए अच्छी सरकार को वरीयता दी लेकिन गाँधी जी के अनुसार स्वराज्य का अर्थ जन प्रतिनिधियां द्वारा संचालित एक ऐसी व्यवस्था से था जो आम आदमी की अपेक्षाओं और जरूरतों के अनुकूल हो। अत: महात्मा गाँधी जी के स्वराज्य का विचार अंग्रेज सरकार की आर्थिक , सामाजिक , राजनितिक , कानून एवं शैक्षणिक संस्थाओं के बहिष्कार का आन्दोलन था।
नमक सत्याग्रह गाँधी जी के द्वारा चलाया गया एक बहुत ही महत्वपूर्ण सत्याग्रह था और उस समय ब्रिटिश सरकार ने रोजमर्रा की जरूरत की सभी चीजों पर भी अपना एकाधिकार जमा रखा था और उस समय देशवासियों को रोज इस्तेमाल होने वाले नमक को बनाने का भी अधिकार नहीं था एवं देशवासियों को इंग्लैण्ड से आने वाले नमक के लिए उसके वास्तविक मूल्य से कई गुणा पैसे चुकाने पड़ते थे।
इस आन्दोलन में लोगों ने सरकार को सहयोग देना बंद कर दिया जैसे छात्रों ने स्कूल जाना छोड़ दिया , वकीलों ने अदालत जाने से मना कर दिया एवं पूरे देश में लोगों ने ब्रिटिश सरकार का सहयोग करना बंद कर दिया। असहयोग आन्दोलन का उद्देश्य था कि किसी तरह की हिंसा न करते हुए भारतियों के द्वारा अंग्रेज सरकार की किसी भी तरह की मदद ने की जाए।
इसके बाद गाँधी जी ने सरकार द्वारा नमक पर कर लगाए जाने के विरोध में नमक सत्याग्रह चलाया जिसके अंतर्गत उन्होंने 12 मार्च से 6 अप्रैल तक अहमदाबाद से दांडी , गुजरात तक लगभग 388 किलोमीटर की यात्रा की। इस यात्रा का उद्देश्य खुद नमक उत्पन्न करना था। इस यात्रा में हजारों भारतियों ने भाग लिया और अंग्रेजी सरकार को विचलित करने में भी सफल रहे। इस दौरान सरकार ने लगभग 60 हजार से भी ज्यादा लोगों को गिरफ्तार करके जेल भेजा गया।
इसके पश्चात लार्ड इरविन के प्रतिनिधित्व वाली सरकार ने गाँधी जी के साथ विचार-विमर्श करने का निर्णय लिया जिसके फलस्वरूप गाँधी-इरविन संधि पर मार्च 1931 में हस्ताक्षर हुए। गाँधी इरविन संधि के तहत ब्रिटिश सरकार ने सभी कैद भारतियों को रिहा करने की अनुमति दे दी थी।
इसी समझौते के परिणामस्वरूप गाँधी जी ने कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधित्व के रूप में लन्दन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया लेकिन यह सम्मेलन कांग्रेस और दूसरे राष्ट्रवादियों के लिए बहुत निराशाजनक रहा। इसके बाद गाँधी जी को फिर से गिरफ्तार कर लिए गया और सरकार ने राष्ट्रवादी आन्दोलन को कुचलने की कोशिश की। सन् 1934 में गाँधी जी ने कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया।
गाँधी जी ने राजनितिक गतिविधियों की जगह पर अब रचनात्मक कार्यक्रमों के माध्यम से सबसे निचले स्तर से राष्ट्र के निर्माण पर अपना ध्यान लगाया। गाँधी जी ने ग्रामीण भारत को शिक्षित करने , छुआछूत के विरुद्ध आन्दोलन जारी रखने , कताई , बुनाई और अन्य कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने और लोगों की आवश्यकताओं के अनुकूल शिक्षा प्रणाली बनाने का काम शुरू किया।
गोलमेज सम्मेलन (Round Table Conference In Hindi) :
जनवरी 1931 को महात्मा गाँधी जी को जेल से रिहा कर दिया गया था और उसके बाद उन्होंने लार्ड इरविन के साथ समझौता किया जिसमें उन्होंने नमक सत्याग्रह खत्म करने के बदले हजारों राजनितिक कैदियों को छोड़ने की शर्त रखी। इस समझौता का नमक अधिनियम पर बहुत बड़ा प्रभाव हुआ और समुद्र तट पर रहने वालों को नमक बनाने का अधिकार मिल गया।
इस समझौते को स्वराज के मील का पत्थर मानते हुए इंडियन नेशनल कांग्रेस का एकमात्र प्रतिनिधि बनकर गाँधी जी ने अगस्त 1931 में भारतीय संवैधानिक सुधार के लिए गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया हालाँकि यह सम्मेलन निरर्थक सिद्ध हुआ था। महात्मा गाँधी जी ने भारत लौटकर नए वायसराय लार्ड विल्लिंगडॉन कार्यवाई की मांग पूरी न करने का विरोध में जनवरी 1932 खुद को एक बार फिर जेल में बंद होने का फैसला किया।
उसी साल उन्होंने जातिप्रथा में अछूतों को अलग निर्वाचन क्षेत्र आवंटित करने अंग्रेजों के खिलाफ 6 दिन का उपवास किया। जनता के विरोध ने अंग्रेजी सरकार को प्रस्ताव मानने पर मजबूर कर दिया। अंत में उनकी जेल से रिहाई के बाद गाँधी जी ने 1934 में इंडियन नेशनल कांग्रेस छोड़ दी और नेतृत्व जवाहरलाल नेहरु को सौंप दिया। एक बार फिर उन्होंने राजनीति से दूर रहकर शिक्षा , गरीबी और ग्रामीण क्षेत्रों की समस्याओं में अपना ध्यान लगाना शुरू कर दिया।
हरिजन आंदोलन (Harijan movement In Hindi) :
भारतवर्ष में वर्णव्यवस्था के विकृत हो आने से जाति-पाति का भेदभाव अपने चरम सीमा पर पहुंच चूका था और दलितों को अछूत समझा जाता था। यह देखकर कि दलित नाम ही अपमानजनक लगने लगा है गुजरात के एक दलित ने महात्मा गाँधी जी से दलितों के लिए हरिजन नाम का सुझाव दिया। गाँधी जी को यह नाम पसंद आया था और इसके बाद यह नाम बहुत तेजी से प्रचलन में आया।
गाँधी जी ने इस आन्दोलन के माध्यम से जाति भेदभाव और छुआछूत की विकृत परंपरा के अंत की शुरुआत कर दी। हालाँकि हरिजनों ने गाँधी जी की अपेक्षा डॉ बी.आर.अम्बेडकर को अपना नेता चुना था लेकिन महात्मा गाँधी जी के द्वारा किए गए हरिजन आन्दोलन ने हरिजनों के विकास एवं उत्थान में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
दलित नेता बी.आर.अम्बेडकर की कोशिशों के परिणामस्वरूप अंग्रेज सरकार ने अछूतों के लिए एक नए संविधान के अंतर्गत पृथक निर्वाचन मंजूर कर दिया था। येरवडा जेल में बंद गाँधी जी ने इसके विरोध में सितंबर 1932 में छ: दिन का उपवास किया और सरकार को एक समान व्यवस्था अपनाने के लिए मजबूर किया।
अछूतों के जीवन को सुधारने के लिए गाँधी जी द्वारा चलाए गए अभ्यं की यह शुरुआत थी। 8 मई , 1933 को गाँधी जी ने आत्म-शुद्धि के लिए 21 दिन का उपवास किया और हरिजन आन्दोलन को आगे बढ़ाने के लिए एक-वर्षीय अभियान की शुरुआत की। अम्बेडकर जैसे दलित नेता इस आन्दोलन से खुश नहीं थे और गाँधी जी के द्वारा दलितों के लिए हरिजन शब्द का उपयोग करने की निंदा भी की।
भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement In Hindi) :
द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत में गाँधी जी अंग्रेजों को अहिंसात्मक नैतिक सहयोग देने के पक्षधर थे लेकिन कांग्रेस के बहुत से नेता इस बात से नाखुश थे कि जनता के प्रतिनिधियों के परामर्श लिए बिना ही सरकार ने देश को युद्ध में झोंक दिया था। गाँधी जी ने घोषणा की कि एक तरफ भारत को आजदी देने से इंकार किया जा रहा था और दूसरी तरफ लोकतान्त्रिक शक्तियों की जीत के लिए भारत को युद्ध में शामिल किया जा रहा था।
जैसे-जैसे युद्ध बढ़ता गया गाँधी जी और कांग्रेस ने भारत छोड़ो आन्दोलन की मांग को तीव्र कर दिया। भारत छोड़ो आन्दोलन की शुरुआत महात्मा गाँधी जी ने अगस्त 1942 में की थी। लेकिन इसके संचालन में हुई गलतियों के कारण यह आन्दोलन जल्द ही धराशायी हो गया। भारत छोड़ो स्वतंत्रता आन्दोलन के संघर्ष का सर्वाधिक शक्तिशाली आन्दोलन बन गया जिसमें व्यापक हिंसा और गिरफ्तारी हुई।
इस संघर्ष में हजारों स्वतंत्रता सेनानियों या तो मारे गए या घायल हो गए और हजारों को गिरफ्तार भी कर लिया गया। गाँधी जी ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वे ब्रिटिश युद्ध प्रयासों को तब तक समर्थन नहीं देंगे जब तक भारत की तत्काल आजादी न दे दी जाए। गाँधी जी ने यह भी कह दिया था कि व्यक्तिगत हिंसा के बावजूद यह आन्दोलन बंद नहीं होगा।
उनका मानना था कि देश में फैली सरकारी अराजकता असली अराजकता से भी खतरनाक है। गाँधी जी ने सभी कांग्रेसियों और भारतियों को अहिंसा के साथ करो या मरो के साथ अनुशासन बनाए रखने को कहा। जैसा सबका अनुमान था अंग्रेजी सरकार ने गाँधी जी और कांग्रेस कार्यकारणी समिति के सभी सदस्यों को मुम्बई में 9 अगस्त , 1942 को गिरफ्तार कर लिया और गाँधी जी को पुणे के आंगा खां महल ले जाया गया जहाँ पर उन्हें दो साल तक बंदी बनाकर रखा गया।
इसी दौरान गाँधी जी की पत्नी कस्तूरबा बाई का देहांत 22 फरवरी , 1944 को हो गया और कुछ समय बाद गाँधी जी भी मलेरिया से पीड़ित हो गए। अंग्रेज गाँधी जी को इस हालत में जेल में नहीं छोड़ सकते थे इसलिए आवश्यक उपचार के लिए 6 मई 1944 को गाँधी जी को रिहा कर दिया गया।
आंशिक सफलता के बावजूद भारत छोड़ो आन्दोलन ने भारत को संगठित कर दिया और द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक ब्रिटिश सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि बहुत जल्द भारत की सत्ता भारतीयों के हाथों में सौंप दी जाएगी। गाँधी जी ने भारत छोड़ो आन्दोलन समाप्त कर दिया और सरकार ने लगभग 1 लाख राजनैतिक कैदियों को रिहा कर दिया।
देश का विभाजन और आजादी : द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होते-होते ब्रिटिश सरकार ने देश को आजाद करने का संकेत दे दिया था। भारत की आजादी के आन्दोलन के साथ-साथ , जिन्ना के नेतृत्व में एक अलग मुसलमान बाहुल्य देश की मांग भी तीव्र हो गई थी और 40 के दशक में इन ताकतों ने एक अलग राष्ट्र पाकिस्तान की मांग को वास्तविकता में बदल दिया था। गाँधी जी देश का बंटवारा नहीं चाहते थे क्योंकि यह उनके धार्मिक एकता के सिद्धांत से बिलकुल अलग थ लेकिन ऐसा हो नहीं पाया और अंग्रेजों ने देश को दो टुकड़ों भारत और पाकिस्तान में विभाजित कर दिया।
गाँधी जी की मृत्यु (Gandhiji’s death In Hindi) :
30 जनवरी , 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की दिल्ली के बिरला हाउस में शाम के समय हत्या कर दी गई थी। गाँधी जी एक प्रार्थना सभा को संबोधित करने जा रहे थे तब नाथूराम गोडसे ने उनके सीने में तीन गोलियां दाग दीं। ऐसा माना जाता है कि हे राम उनके मुख से निकले आखिरी शब्द थे। नाथूराम गोडसे और उनके सहयोगियों पे मुकदमा चलाया गया और सन् 1949 में उन्हें मौत की सजा सुनाई गई।
भारत के स्वतंत्रता नायक महात्मा गाँधी की मृत्यु पर पूरे देश ने शोक मनाया था। गाँधी जी एक ऐसे महान नेता थे जो बिना किसी अस्त्र-शस्त्र के ही अंग्रेज सरकार को देश से बाहर निकालने में सफल हुए थे। गाँधी जी ने अपना पूरा जीवन देश के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। अपने कार्यों , विचारों एवं अनुशासन के कारण से उनका जीवन पूरे संसार के लिए प्रेरणा का श्रोत है।
गाँधी की अंतिम यात्रा और अस्थियाँ : गांधीजी की मौत पर पूरे देश ने शोक व्यक्त किया। महात्मा गाँधी की शवयात्रा में बीस लाख लोग पांच मील तक चलते रहे और राजघाट तक पहुंचने में पांच घंटे लगे जहाँ पर उनकी हत्या हुई थी। गाँधी जी के शरीर को एक हथियार वाहन पर लाया गया था जिसके ढांचे को रातों रात बदला गया था जिसमें एक ऊँची मंजिल बनाई गई जिससे लोग उनके अंतिम दर्शन कर सकें।
इस वाहन को चलाने के लिए इंजन का प्रयोग नहीं किया गया था इसके बजाए 50 लोगों ने रस्सी से इस वाहन को खींचा था। उस दिन गाँधी जी के शोक में सारे राजकीय प्रतिष्ठान बंद रहे थे। सरकार ने यह विश्वास दिलाया था कि दोषी दल मुस्लिम नहीं था। कांग्रेस ने दाह संस्कार के दो सप्ताह तक स्थिथि को संभाले रखा ताकि कोई दंगा न भडके। सरकार के इस निर्णय से हिन्दुओं के दिल से शोक का बोझ उठ गया और कांग्रेस पार्टी की अहमियत बढ़ गई।
सरकार ने इसके बाद RSS और मुस्लिम नेशनल गार्ड के 2 लाखों की गिरफ्तारी की। हिन्दू प्रथा के अनुसार उनकी अस्थियाँ नदी में बहा दी गईं। गाँधी जी की अस्थियों को कलश में भरकर देशभर की अलग-अलग स्मारकों में भेजा गया। सबसे ज्यादा इलाहबाद के संगम में प्रवाहित की गईं थीं। गाँधी जी की कुछ अस्थियाँ नील नदी और युगांडा में भी बहाई गईं थीं।
गाँधी जी की कुछ रोचक बातें : महात्मा गाँधी जी को भारत के राष्ट्रपिता का ख़िताब भारत सरकार ने नहीं दिया था उन्हें एक बार सुभाषचन्द्र बोस ने उन्हें राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया था। गाँधी जी की मृत्यु पर एक अंग्रेजी अफसर ने कहा था की जिस गाँधी को उन्होंने इतने सालों तक कुछ नहीं होने दिया ताकि भारत में हमारे खिलाफ जो माहौल है वो और न बिगड़ जाए उस गाँधी जी को स्वतंत्र भारत एक साल भी जिन्दा नहीं रख सका।
गांधीजी ने स्वदेशी आन्दोलन भी चलाया था जिसमें उन्होंने सभी लोगों से विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने की मांग की और फिर स्वदेशी कपड़ों आदि के लिए खुद चरखा चलाया और कपड़ा भी बनाया। गाँधी जी ने देश-विदेश में कुछ आश्रमों की स्थापना भी की। गाँधी जी आत्मिक शुद्धि के लिए बहुत कठिन उपवास भी किया करते थे। गाँधी जी ने जीवन भर हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए प्रयास किया।