सूर्य नमस्कार क्या है :
सूर्य नमस्कार एक आसन है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है सूर्य को अर्पण या नमस्कार करना। यह योगासन शरीर को सही आकार देने और मन को शांत व स्वस्थ रखने का उत्तम तरीका है। सूर्य नमस्कार सर्वश्रेष्ठ योगासन है। इसके अभ्यास से साधक का शरीर निरोग और स्वस्थ होकर तेजस्वी हो जाता है। सूर्य नमस्कार स्त्री, पुरुष, बाल, युवा तथा वृद्धों के लिए उपयोगी बताया गया है। संसार में दिखाई देने वाली सभी वस्तुओं का मूल आधार सूर्य होता है। सूर्य नमस्कार आसन से मिलने वाले लाभों को विज्ञान ने भी माना है। सूर्य नमस्कार आसन के अभ्यास से शरीर में लचीलापन आता है तथा विभिन्न प्रकार के रोगों में लाभ होता है। इसकी 12 स्थितियां होती हैं। सभी स्थिति अपनी पहली स्थिति में आई कमी को दूर करती है।
सूर्य नमस्कार की 12 विधियों के नाम :
1. प्रणाम आसन (Prayer pose)
2. हस्तपाद आसन (Raised Arms pose)
3. हस्तापदासना (Hand to Foot pose)
4. अश्व संचालन आसन (Equestrian pose)
5. दंडासन (Dandasana)
6. अष्टांग नमस्कार (Ashtanga Namaskara)
7. भुजंग आसन (Bhujangasana)
8. पर्वत आसन (Parvatasana)
9. अश्वसंचालन आसन (Ashwa Sanchalanasana)
10. हस्तपाद आसन (Hasta Padasana)
11. हस्तउत्थान आसन (Hastauttanasana)
12. ताड़ासन (Tadasana)
सूर्य नमस्कार की 12 विधियाँ :
1. प्रणाम आसन : सबसे पहले आप नीचे कोई चटाई बिछा लें और उसके किनारे पर सावधान अवस्था मैं हाथ जोड़कर खड़े हो जाएँ। अब अपने दोनों पंजे एक साथ जोड़ लें और अपना पूरा वजन दोनों पैरों पर समान रूप से डालें। अब अपनी छाती फुलाएँ और कंधे ढीले रखें। श्वास लेते हुए दोनों हाथ बगल से ऊपर उठाएँ और श्वास छोड़ते हुए हथेलियों को जोड़ते हुए छाती के सामने प्रणाम मुद्रा में ले आएँ।
2. हस्तपाद आसन : अब श्वास लेते हुए अपने दोनों हाथों को ऊपर की ओर उठाएँ और पीछे ले जाएँ व बाइसेप्स को कानों के समीप रखें। इस आसन में पूरे शरीर को एड़ियों से लेकर हाथों की उंगलियों तक सभी अंगों को ऊपर की तरफ खींचने की कोशिश करें।
3. हस्तपाद आसन : अब श्वास छोड़ते हुए व रीढ़ की हड्डी सीधी रखते हुए कमर से आगे झुकें। अब पूरी तरह श्वास छोड़ते हुए दोनों हाथों को पंजो के समीप जमीन पर रखें।
4. अश्व संचालन आसन : अब आप श्वास लेते हुए जितना संभव हो सके दाहिना पैर पीछे ले जाएँ, दाहिने घुटने को जमीन पर रख सकते हैं, दृष्टि को ऊपर की ओर ले जाएँ।
5. दंडासन : अब श्वास लेते हुए बाएँ पैर को पीछे ले जाएँ और संपूर्ण शरीर को सीधी रेखा में रखें।
6. अष्टांग नमस्कार : अब आराम से अपने दोनों घुटने जमीन पर लाएँ और श्वास छोडें। अब अपने कूल्हों को पीछे ऊपर की ओर उठाएँ और पूरे शरीर को आगे की ओर खिसकाएँ। फिर अपनी छाती और ठुड्डी को जमीन से छुएँ। अब अपने कुल्हों को थोड़ा उठा कर ही रखें। अब दो हाथ, दो पैर, दो घुटने, छाती और ठुड्डी जमीन को छूते हुए होंगे।
7. भुजंग आसन : आगे की ओर सरकते हुए, भुजंगासन में छाती को उठाएँ। कुहनियाँ मुड़ी रह सकती हैं लेकिन कंधे कानों से दूर और दृष्टि ऊपर की ओर रखें।
8. पर्वत आसन : श्वास छोड़ते हुए कूल्हों और रीढ़ की हड्डी के निचले भाग को ऊपर उठाएँ, छाती को नीचे झुकाकर एक उल्टे वी (˄) के आकार में आ जाएँ।
9. अश्वसंचालन आसन : श्वास लेते हुए दाहिना पैर दोनों हाथों के बीच ले जाएँ लेकिन आप अपने बाएँ घुटने को जमीन पर रख सकते हैं। आप अपनी दृष्टि को ऊपर की ओर रखें।
10. हस्तपाद आसन : श्वास छोड़ते हुए बाएँ पैर को आगे लाएँ पर हथेलियों को जमीन पर ही रहने दें। अगर जरूरत हो तो घुटने मोड़ सकते हैं।
11. हस्तउत्थान आसन : अब श्वास लेते हुए रीढ़ की हड्डी को धीरे-धीरे ऊपर लाएँ, हाथों को ऊपर और पीछे की ओर ले जाएँ, कुल्हों को आगे की तरफ धकेलें।
12. ताड़ासन : अब श्वास छोड़ते हुए पहले शरीर सीधा करें फिर हाथों को नीचे लाएँ। आप इस अवस्था में विश्राम करें और शरीर में हो रही संवेदनाओं के प्रति सजगता ले आएँ।
सूर्य नमस्कार करते समय बोले जाने वाले 12 मंत्रों के नाम :
1. ऊँ ह्राँ मित्राय नम:।
2. ऊँ ह्राँ रवये नम:।
3. ऊँ ह्रूँ सूर्याय नम:।
4. ऊँ ह्रैं मानवे नम:।
5. ऊँ ह्रौं खगाय नम:।
6. ऊँ ह्र: पूष्पो नम:।
7. ऊँ ह्राँ हिरण्यगर्भाय नम:।
8. ऊँ ह्री मरीचये नम:।
9. ऊँ ह्रौं अर्काय नम:।
10. ऊँ ह्रूँ आदित्याय नम:।
11. ऊँ ह्र: भास्कराय नम:।
12. ऊँ ह्रैं सविणे नम:।
सूर्य नमस्कार आसन के लाभ :
1. मासिकधर्म में फायदेमंद : यह आसन मासिकधर्म से जुडी लगभग सभी समस्याओं में फायदेमंद होता है। 10 से 15 साल की आयु की लड़की के अंडाशय हर महीने एक विकसित डिम्ब उत्पन्न करना शुरू कर देते हैं। वह अण्डा अण्डवाहिका नली के द्वारा नीचे जाता है जो कि अंडाशय को गर्भाशय से जोड़ती है। जब अण्डा गर्भाशय में पहुंचता है, उसका अस्तर रक्त और तरल पदार्थ से गाढ़ा हो जाता है।
ऐसा इसलिए होता है कि यदि अण्डा उर्वरित हो जाए, तो वह बढ़ सके और शिशु के जन्म के लिए उसके स्तर में विकसित हो सके। यदि उस डिम्ब का पुरूष के शुक्राणु से सम्मिलन न हो तो वह स्राव बन जाता है जो कि योनि से निष्कासित हो जाता है। इसी स्राव को मासिक धर्म, रजोधर्म या माहवारी कहते हैं।
2. तनाव से मुक्ति पाने के लिए : तनाव कम करने और मानसिक तनाव से मुक्ति पाने के लिए यह आसन बहुत ही लाभदायक होता है। चिकित्सा शास्त्र डिप्रेशन का कारण मस्तिष्क में सिरोटोनीन, नार-एड्रीनलीन तथा डोपामिन आदि न्यूरो ट्रांसमीटर की कमी मानता है तो आप इन सब से छुटकारा पाने के लिए इस आसन को करें। इसके साथ-साथ इसको करने से व्यक्ति में आत्म विश्वास की भावना बढती है।
3. सकारात्मक सोच बढाने हेतु : इस आसन के नियमित अभ्यास से हम अपनी स्मरणशक्ति व सकारात्मक सोच बढ़ा सकते हैं। जब हमारी सोच सकारात्मक बन जाती है तो उसके परिणाम भी सकारात्मक आने लगते है और इसके साथ-साथ ही इसके अभ्यास से मन और मस्तिष्क को शांति मिलती हैं।
4. पेट की चर्बी को करता है कम : यह आसन पेट की चर्बी को कम करने में हमारी मदद करता है। पेट की चर्बी या शरीर के अन्य भागों की चर्बी, वसा का एक विशेष रूप से हानिकारक प्रकार है जो आपके अंगों के आसपास जमा होती है।
5. श्वास संबंधित समस्याओं के लिए : इस आसन के नियमित अभ्यास से श्वास से संबंधित समस्याओं को आसनी से दूर किया जा सकता है। प्रदूषण, धूम्रपान, संक्रमण और जीवनशैली की वजह से बढ़ती अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, एलर्जी सहित श्वास संबंधी विभिन्न समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए यह आसन बहुत ही जरूरी है।
6. पाचन क्रिया में फायदेमंद : यह आसन पाचन क्रिया को ठीक रखने में मदद करता है। अगर हमारी पाचन क्रिया ठीक है तो पेट संबंधी सभी रोगों से छुटकारा पाया जा सकता है क्योंकि हमारी ज्यादातर बीमारियाँ पेट से ही उत्पन्न होती हैं और हम बीमारियों से बच सकते हैं।
7. कब्ज व एसिडिटी में फायदेमंद : इस आसन के नियमित अभ्यास से कब्ज व एसिडिटी से मुक्ति पायी जा सकती है। कब्ज, पाचन तंत्र की उस स्थिति को कहते हैं जिसमें कोई व्यक्ति या जानवर का मल बहुत कड़ा हो जाता है तथा मलत्याग में कठिनाई होती है। कब्ज अमाशय की स्वाभाविक परिवर्तन की वह अवस्था है, जिसमें मल निष्कासन की मात्रा कम हो जाती है।
8. बवासीर रोग में फायदेमंद : यह आसन बवासीर रोग में बहुत लाभ पहुंचाता है। इस आसन का नियमित रूप से अभ्यास करना चाहिए। बवासीर या पाइल्स एक खतरनाक बीमारी है। बवासीर 2 प्रकार की होती है। आम भाषा में इसको खूनी और बादी बवासीर के नाम से जाना जाता है। कही पर इसे महेशी के नाम से जाना जाता है।
9. आंतो को साफ करता है : इस आसन के नियमित अभ्यास से आतों शुद्ध व साफ हो जाती है। मानव शरीर रचना विज्ञान में, आंत आहार नली का हिस्सा होती है जो पेट से गुदा तक फैली होती है, तथा मनुष्य और अन्य स्तनधारियों में, यह दो भागों में, छोटी आंत और बड़ी आंत के रूप में होती है।
10. भूख को बढाता है : भूख-प्यास ना लगने की समस्या दूर होती है। भूख न लगने को मेडिकल भाषा में एनोरेक्सिया या अरुचि रोग कहते हैं। एनोरेक्सिया या अरुचि रोग में रोगी को भूख नहीं लगती, यदि जबरदस्ती भोजन किया भी जाए तो वह अरुचिकर लगता है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति 1 या 2 ग्रास से ज्यादा नहीं खा पाता और उसे बिना कुछ खाये-पिये ही खट्टी डकारें आने लगती हैं।
सूर्य नमस्कार के अन्य लाभ :
1. पेट, पीठ, छाती, पैर और भुजाओं के लिए लाभकारी होती है।
2. हथेलियों, हाथों, गर्दन, पीठ, पेट, आंतों, नितम्ब, पिण्डलियों, घुटनों और पैरों को लाभ मिलता है।
3. पैरों के पंजों और गर्दन पर असर पड़ता है।
4. घुटनों पर बल पड़ता है और वह शक्तिशाली बनते हैं।
5. पीठ के स्नायुओं और घुटनों को बल मिलता है।
6. इस योगासन को करने से शरीर स्वस्थ व रोगमुक्त रहता है।
7. चेहरे पर चमक व रौनक रहती है।
8. यह स्नायुमण्डल को शक्तिशाली बनाता है।
9. इसको करने से ऊर्जा केन्द्र उर्जावान बनता है।
10. बुद्धि का विकास होता है।
11. इसको करने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।
12. शरीर में लचीलापन आता है।
13. रीढ़ की हड्डी और जोड़ो का दर्द दूर होता है।
14. शरीर से आलस खत्म हो जाता है।
15. सूर्य नमस्कार के आसन से पूरे शरीर का वर्कआउट होता है। इससे शरीर फ्लेक्सिबल होता है।
सूर्य नमस्कार आसन करते समय सावधानी बरतें :
1. सूर्य नमस्कार आसन का अभ्यास हार्निया रोगी को नहीं करना चाहिए।
2. ध्यान- सूर्य नमस्कार आसन का अभ्यास करते हुए अपने ध्यान को विशुद्धि चक्र पर लगाएं।
3. हमेसा खाली पेट करना चाहिए।
4. शुरू शुरू मैं धीरे-धीरे करना चाहिए।