1. होली बसंत का एक उल्लासमय पर्व है जिसे बसंत का यौवन भी कहा जाता है।
2. होली के दिन प्रकृति सरसों की पीली साड़ी पहनकर किसी की राह देखती हुई प्रतीत होती है।
3. होली रंग का त्यौहार होता है जो आनन्द पर्याय होते हैं जिसमें बाहर का रंग अंदर के रंग का प्रतीक है।
4. होली आनंद का प्रतीक होती है जिसमें सारी प्रकृति के रंग से सराबोर होने पर मनुष्य भी आनन्द से झूमने लगता है।
5. जिस तरह से मुसलमानों के लिए ईद का त्यौहार, ईसाईयों के लिए क्रिसमस का त्यौहार महत्व रखता हैं उसी तरह से हिन्दुओं के लिए भी होली का त्यौहार बहुत महत्व रखता है।
6. होली का पर्व सबसे ज्यादा खुशियाँ लेकर आता है क्योंकि इस दिन हम सबसे ज्यादा हंसते हैं।
7. होली के दिन लोगों के रंग से लिपे-पुते चेहरों को देखकर सभी हंसने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
8. होली का त्यौहार अब इतना प्रसिद्ध हो चुका है कि यह त्यौहार केवल भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी लोकप्रिय होता जा रहा है जिसकी वजह से होली को वेदेशों में भी मनाया जाता है।
9. होलिका शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के होल्क शब्द से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ भुना हुआ अन्न होता है और होली शब्द को होलिका शब्द से ही लिया गया है।
10. प्राचीनकाल में जब किसान अपनी नई फसल काटता था तो सबसे पहले देवता को भोग लगाया जाता था इसलिए नवान्न को अग्नि को समर्पित कर भूना जाता था और उस भुने हुए अन्न को सब लोग परस्पर मिलकर खाते थे जिसकी खुशी में नवान्न का भोग लगाने के लिए उत्सव मनाया जाता था।
11. भगवान श्री कृष्ण से पहले होली के पर्व को सिर्फ होलिका दहन करके मनाया जाता था जिसमें नवान्न अर्पित किये जाते थे।
12. उन्होंने इस त्यौहार को गोप-गोपिकाओं के साथ रासलीला और रंग खेलने के उत्सव के रूप में मनाया बस तभी से इस त्यौहार पर दिन में रंग खेलने और रात्रि में होली जलाने की परंपरा बन गई।
13. वसंत में जब प्रकृति के अंग-अंग में यौवन फूट पड़ता है तो होली का त्यौहार उसका श्रंगार करने आता है क्योंकि होली एक ऋतू संबंधी त्यौहार है।
14. शीतकाल की समाप्ति और ग्रीष्मकाल के आरम्भ या इन दोनों ऋतुओं को मिलाने वाले संधि काल का पर्व ही होली कहलाता है।
15. जब शीतकाल की समाप्ति होती हिया तो किसान लोग आनन्द विभोर हो उठते हैं क्योंकि उनका पूरी साल भर का किया गया कठोर परिश्रम सफल हो उठता है और उनकी फसल पकनी शुरू हो जाती है।
16. पुरातन काल में राजा हिरण्यकश्यप, उसकी बहन होलिका के अहंकार और हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद की भक्ति से ही इस उत्सव की शुरुआत हुई थी।
17. प्रहलाद का पिता हिरण्यकश्यप ईश्वर को नहीं मानता था लेकिन उसका पुत्र विष्णु का नाम लेता था इसलिए प्रहलाद का पिता उसे ईश्वर का नाम लेने से रोकता था क्योंकि वह खुद को भगवान समझता था।
18. वह चाहता था कि लोग उसकी भक्ति और पूजा करें लेकिन प्रहलाद इस बात को किसी भी रूप से स्वीकार नहीं कर रहा था जिसके लिए उसे अनेक दंड दिए गये लेकिन भगवान की कृपा होने की वजह से वे सभी दंड विफल हो गए।
19. हिरण्यकश्यप की एक बहन थी जिसका नाम होलिका था उसे यह वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि जला नहीं सकती इसलिए होलिका अपने भाई के आदेश पर प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर चिता पर बैठ गयी परंतु भगवान की महिमा की वजह से होलिका उस चिता में चलकर राख हो गयी, लेकिन प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ था जिसकी वजह से इस दिन होलिका दहन भी किया जाता है जो हिरण्यकश्यप की अहंकारी बहन होलिका की मृत्यु की खुशी में किया जाता है।
20. होली से पहली रात को होलिका दहन किया जाता है जिस पर घमंड और हर तरह की नकारात्मक प्रवृति का आहुति स्वरूप दहन किया जाता है उसके बाद अग्नि के फेरे लगाकर मंगलकामना की जाती है और राख से तिलक लगाया जाता है।
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21. होलिका दहन के समय पौराणिक कथा को याद कर नकारात्मकता को त्याग कर सकारात्मक प्रवृति को अपनाया जाता है।
22. होलिका दहन की अगली सुबह फूलों के रंगों से खेलते हुए होली शुभारम्भ किया जाता है और इस दिन को सगे-संबंधियों, परिवार, मित्रों और पड़ोसियों के साथ मिलकर मनाते हैं।
23. होली को सभी लोग रंग-बिरंगे गुलाल और पानी में रंगों को घोलकर पिचकारियों से एक-दुसरे के ऊपर रंग डालकर प्रेम से खेलते हैं।
24. होली के दिन छोटे बच्चे बड़ों को उनके पैरों में गुलाल डालकर प्रणाम करते हैं और बड़े छोटों को गुलाल से टिका लगाकर आशीर्वाद देते हैं।
25. होली दो दिन का त्यौहार होता है जिसमें पहले दिन को होली कहा जाता है और दूसरे दिन को धुलेंडी कहा जाता है।
26. होली के दिन एक झंडा या कोई बड़ी डंडी को गाडा जाता है जिसे किसी सार्वजनिक स्थान पर गाडा जाता है और इस डंडे को पूजा कर होली की मुहूर्त के समय निकालकर इसके चारों तरफ लकड़ियाँ और उपले इकट्ठे किए जाते हैं जिसमें हिन्दू धर्म के अनुसार पूजा के बाद लकड़ियों में आग लगाई जाती है जिसे होलिका दहन का प्रतीक माना जाता है।
27. होलिका दहन की आग में किसान अपने-अपने खेत के पहले अनाज के कुछ दानों को सेकते हैं और सब में बांटते हैं जिससे मिलन और भाईचारे की भावना जागृत होती है।
28. दूसरे दिन दोपहर तक पूर्ण आनन्द के साथ होली खेली जाती है जिसे धुलेंडी भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन लोग एक-दूसरे पर रंग, गुलाल-अबीर डालते हैं जिसके साथ-साथ सडकों पर बच्चों, बूढों, लडकियों और औरतों की टोलियाँ गाती, नाचती, गुलाल मलती और रंग भरी पिचकारी छोडती हुई देखी जाती हैं।
29. सारे देश में लोग अपनी-अपनी परम्परा से होली मनाते हैं लेकिन सभी रंग द्वारा अपनी खुशी की अभिव्यक्ति करते हैं क्योंकि आज के दिन अमीर-गरीब, क्षेत्र, जाति, धर्म का कोई भेद नहीं रहता है।
30. होली के दिन सभी लोग अपनी नाराजगी, गम और नफरत को भुला कर एक-दूसरे के साथ एक नया रिश्ता बनाते हैं।
31. आनन्द का सरोवर व खुशी का खजाना सबके अंत:करण में विद्यमान होता है लेकिन कुछ बाह्य शिष्टाचार के बंधनों की वजह से वह पूर्ण-रूपेण व्यक्त नहीं हो पाता है, परन्तु जब वे बंधन टूट जाते हैं तो खुशी का खजाना फुट जाता है और हम एक अतुलित आनन्द की अनुभूति करते हैं।
32. होली के पीछे एक मनोवैज्ञानिक नियम समाविष्ट है जिसमें हम शिष्टाचार के बंधन तोड़ कर एक-दुसरे पर रंग बिखेरते हैं और शब्दों द्वारा कुछ कहकर, नाचकर, गाकर अपने अंत:करण की खुशियाँ व्यक्त करते हैं।
33. होली के त्यौहार में हर कोई एकता में बंध जाता है क्योंकि आज के दिन बुरा मानना अनुचित समझा जाता है लेकिन बुरा कहने में कोई रोक नहीं होती है।
34. व्यक्ति एक-दूसरे से गले मिलते हैं और अपने ह्रदय की खुशियों को पूर्ण-रूपेण बिखेर देते हैं जिससे मेल व प्रेम का स्त्रोत बहने लगता है।
35. इतनी खुशियों के त्यौहार में भी कई लोग शराब पीकर और नशे में चूर होकर लड़ाई-झगड़े पर उतर जाते हैं और कई स्थानों पर अपनी शत्रुता का बदला लेने के लिए अनुचित साधनों का प्रयोग किया जाता है जिसका फल यह होता है कि रंग का त्यौहार रंज के त्यौहार में बदल जाता है जिसे कहते हैं रंग में भंग होना।
36. होली के दिन सुंदर और कच्चे रंगों की जगह पर बहुत से लोग काली स्याही और तवे की कालिख का प्रयोग करते हैं और एक-दुसरे पर गंदगी भी फेंकते हैं।
37. उत्सव के आयोजकों द्वारा इन बुराईयों को कम किया जाना चाहिए और जो लोग होली के महत्व को समझ नहीं पाते हैं वो ही ऐसा करते हैं।
38. होली खेलने के लिए लोग ज्यादातर रंगों का प्रयोग करते हैं हमें रंगों के स्थान पर गुलाल का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि रंग त्वचा और आँखों के लिए हानिकारक होते है लेकिन गुलाल बहुत ही सुरक्षित होते हैं उनसे ऐसा कुछ होने का डर नहीं रहता है।
39. होली बहुत ही पवित्र त्यौहार है इसलिए हमें इसे अपने आपसी मतभेद की वजह से बेकार नहीं करना चाहिए।