भूमिका : होली बसंत का एक उल्लासमय पर्व है। इसमें सभी छोटे-बड़े लोग मिलकर पुराने भेदभावों को भुला देते हैं। होली रंग का त्यौहार होता है। होली का पर्व सबसे ज्यादा खुशियाँ लेकर आता है क्योंकि इस दिन हम सबसे ज्यादा हंसते हैं। लोगों के रंग से लिपे-पुते चेहरों को देखकर सभी हंसने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
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यतार्थ उद्देश्य : होली के इस त्यौहार को होलिकोत्सव भी कहा जाता है। होलिका शब्द से ही होली बना है। होलिका शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के होल्क शब्द से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ भुना हुआ अन्न होता है।
रंगों में परिवर्तित : भगवान श्री कृष्ण से पहले यह पर्व सिर्फ होलिका दहन करके मनाया जाता था जिसमें नवान्न अर्पित किये जाते थे। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने इसे रंगों के त्यौहार में परिवर्तित कर दिया था। भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन पूतना राक्षसी का वध करके उन्होंने इस त्यौहार को गोप-गोपिकाओं के साथ रासलीला और रंग खेलने के उत्सव के रूप में मनाया।
ऐतिहासिकता : हिरण्यकश्यप की एक बहन थी जिसका नाम होलिका था। होलिका अपने भाई के आदेश पर प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर चिता पर बैठ गयी। भगवान की महिमा की वजह से होलिका उस चिता में चलकर राख हो गयी, लेकिन प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ था। इसी वजह से इस दिन होलिका दहन भी किया जाता है। क्योंकि इस दिन हिरण्यकश्यप की अहंकारी बहन होलिका की मृत्यु हुई थी।
होली का उत्सव : होली के दिन को सगे-संबंधियों, परिवार, मित्रों, और पड़ोसियों के साथ मिलकर मनाते हैं। होली को सभी लोग रंग-बिरंगे गुलाल और पानी में रंगों को घोलकर पिचकारियों से एक-दुसरे के उपर रंग डालकर प्रेम से खेलते हैं। नाचते-गाते छोटे-बड़े सभी लोग इस त्यौहार को खुशी के साथ मनाते हैं।
शाम के समय नए वस्त्र पहनकर एक-दूसरे से मिलते हैं। छोटे बच्चे बड़ों को उनके पैरों में गुलाल डालकर प्रणाम करते हैं और बड़े छोटों को गुलाल से टिका लगाकर आशीर्वाद देते हैं। सभी लोग अपने प्रियजनों के घर जाकर पकवान खाते हैं और बधाईयाँ देते हैं। बहुत से लोग एक-दुसरे को उपहार भी देते हैं। चारों दिशाएं खुशियों से सराबोर हो जाती हैं।
होली का महत्व : होली का त्यौहार दुश्मनों को भी दोस्त बना देता है। अमीर-गरीब , क्षेत्र , जाति , धर्म का कोई भेद नहीं रहता है। इस दिन लोग एक-दूसरे के घर जाते हैं और रंगों के साथ खेलते हैं। इस दिन सभी लोग अपनी नाराजगी , गम और नफरत को भुला कर एक-दूसरे के साथ एक नया रिश्ता बनाते हैं।
प्रेम और एकता का प्रतीक : होली के इस त्यौहार में हर कोई एकता में बंध जाता है। इस दिन बुरा मानना अनुचित समझा जाता है लेकिन बुरा कहने में कोई रोक नहीं होती है। व्यक्ति एक-दुसरे से गले मिलते हैं और अपने ह्रदय की खुशियों को पूर्ण-रूपेण बिखेर देते हैं । मानो इससे मेल व प्रेम का स्त्रोत बहने लगता है।
उपसंहार : होली मेल, एकता, प्रेम, खुशी व आनन्द का त्यौहार है। इस दिन छोटे-बड़ों के गले मिलकर उन्हें एकता का उदाहरण देना चाहिए। असली अर्थों में होली का त्यौहार मनाना तभी सार्थक हो पायेगा। नहीं तो नफरत, द्वेष, और विषमता के रावण को जलाये बिना कोरी लडकियों की होली को जलाना व्यर्थ होता है।