हेपेटाइटिस डी-(Hepatitis D In Hindi) :
यह रोग डी वायरस के फैलने की वजह से होता है। जो लोग पहले से ही एचबीवी नाम के वायरस से संक्रमित होते हैं सिर्फ वही लोग इस रोग से ग्रस्त होते हैं। हेपेटाइटिस डी वायरस अपनी संख्या बढ़ाने और छूत फैलाने के लिए हेपेटाइटिस बी पर निर्भर करता है।
एचबीवी और एचडीवी जब ये दोनों एक साथ हो जाते हैं तो रोगी की स्थिति बद से बदत्तर हो जाती है। बुरी खबर यह है कि जब कोई व्यक्ति डी से संक्रमित होता है तो सिर्फ बी से संक्रमित व्यक्ति की तुलना में उसके लिवर के नुकसान का खतरा अधिक होता है।
सन् 1977 में पहचान की गई थी कि हेपेटाइटिस डी आम तौर पर संक्रमित इंट्रावीनस इंजेक्शन उपकरणों के द्वारा फैलता है। हेपेटाइटिस बी के खिलाफ प्रतिरक्षित होने पर यह कुछ हद तक हेपेटाइटिस डी से सुरक्षा कर सकता है।
हेपेटाइटिस डी के कारण-(Hepatitis D Causes In Hindi) :
1. एचडीवी के कारण : जब किसी पुरुष को एचडीवी का रोग हो जाता है तो उस व्यक्ति को हेपेटाइटिस डी की समस्या भी हो सकती है क्योंकि एचडीवी बढ़कर इस रोग को जन्म देता है।
2. संक्रमण के कारण : जब कोई व्यक्ति संक्रमित होता है और कोई दूसरा स्वस्थ व्यक्ति उस व्यक्ति के संपर्क में आ जाता है तो वह व्यक्ति भी खुद संक्रमित हो जाता है तो हो सकता है कि उसे हेपेटाइटिस डी की समस्या हो जाए।
3. गर्भावस्था के कारण : जब कोई स्त्री गर्भवती होती है और वह संक्रमित हो जाती है या पहले से ही संक्रमित होती है तो उसके बच्चे को हेपेटाइटिस होने का खतरा बहुत अधिक रहता है क्योंकि प्रजनन के समय इस रोग का वायरस बच्चे को भी पास हो सकता है।
4. हेपेटाइटिस बी से : जब किसी व्यक्ति को हेपेटाइटिस बी की समस्या हो जाती है और उस समस्या का समय पर इलाज नहीं कराया जाता है तो वह परेशानी बढ़कर हेपेटाइटिस डी का रूप ले लेती है क्योंकि बी वायरस बढ़ जाता है जिससे डी वायरस का जन्म होता है।
5. खून से : जब किसी संक्रमित व्यक्ति को बिना दस्तानों के सुई लगाते समय या उसकी चोट या घाव पर दवाई लगाते समय जब उस व्यक्ति का स्पर्श उसके खून से हो जाता है तो दूसरा व्यक्ति भी संक्रमित हो जाता है और उसे हेपेटाइटिस डी की समस्या हो जाती है।
6. घावों के संपर्क से : आपने अक्सर देखा होगा कि जब किसी व्यक्ति को घाव या चोट लग जाती है और उससे खून बहने लगता है तब वहां के सभी लोग उसकी मदद करने के लिए आप जाते हैं जिससे कभी-कभी ज्यादा खून बहने की वजह से खून लोगों के शरीर, हाथों और कपड़ों पर लग जाता है लेकिन जब चोट खाया हुआ व्यक्ति संक्रमित होता है तो उसके घाव को छूने से दुसरे लोग भी संक्रमित हो जाते हैं।
7. निजी चीजों से : जब कोई स्वस्थ व्यक्ति संक्रमित व्यक्ति की निजी वस्तुओं का प्रयोग करता है तो संक्रमित व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति को संक्रमन होने का खतरा बन जाता है क्योंकि उसकी निजी चीजों में भी उसके संक्रमण के कण होते हैं जो उसे संक्रमित कर सकते हैं।
हेपेटाइटिस डी के लक्षण-(Hepatitis D Symptoms In Hindi) :
1. थकान होना : इस रोग से ग्रस्त रोगी जब कोई काम कर लेता है तो उसे बहुत अधिक थकन महसूस होने लगती है और उसके शरीर में भी दर्द होने लगता है।
2. उल्टी होना : हेपेटाइटिस डी से ग्रस्त रोगी को कुछ भी पच नहीं पाता है जिसकी वजह से उसके द्वारा खाया हुआ भोजन उल्टियों के द्वारा वापस बाहर आ जाता है।
3. बुखार आना : रोगी के शरीर का तापमान हमेशा कुछ अधिक रहता है जिसकी वजह से उसे बुखार की समस्या रहती है।
4. दस्त जाना : रोगी को पानी पीने की वजह से दस्त आते हैं और साथ-साथ मल का रंग भी बदल जाता है।
5. गहरे रंग का मूत्र आना : इस रोग में रोगी को पीलिया भी हो जाता है जिसकी वजह से उसके मूत्र का रंग सफेद की जगह पर गहरे पीले रंग का हो जाता है।
6. पेट दर्द होना : इस रोग में रोगी के पेट में उस जगह पर दर्द होता है जिस जगह पर यकृत होता है।
7. भूख न लगना : रोगी को कुछ भी पचता नहीं है और उसे भोजन से भी अरुचि हो जाती है जिसकी वजह से उसे भूख लगनी बंद हो जाती है।
8. जोड़ो में दर्द होना : इस रोग से ग्रस्त रगी के शरीर में कैल्शियम और पानी की कमी हो जाती है जिसकी वजह से रोगी के जोड़ों, हड्डियों और मांसपेशियों में दर्द होता है।
9. वजन कम होना : जब रोगी इस रोग से ग्रस्त हो जाता है तो उसे कमजोरी हो जाती है जिसकी वजह से उसका वजन भी कम हो जाता है।
हेपेटाइटिस डी का इलाज-(Hepatitis D Treatment In Hindi) :
कपालभाती प्राणायाम से हेपेटाइटिस डी का इलाज :
कपालभाती प्रणायाम लीवर को ठीक रखता है। सुबह-सुबह के समय कपालभाती प्रणायाम करने से लीवर कि समस्यायों को ठीक किया जा सकता है। आप कपालभाती प्रणायाम करके हेपेटाइटिस रोग से मुक्ति पा सकते हैं।
हेपेटाइटिस डी से बचाव के उपाय-(Prevention of Hepatitis D In Hindi) :
- अगर आपके घर में छोटे बच्चे हैं या किसी को यह रोग हो गया है तो परिवार के बाकी सदस्यों को इस रोग का टीका जरुर लगवाना चाहिए।
- शारीरिक संबंध स्थापित करते समय कंडोम का प्रयोग करना न भूलें।
- रोगी को जितना हो सके धुम्रपान न करने दें।
- टैटू न गुदवाएं लेकिन अगर आप गुदवाना चाहते हैं तो सुई और दुकान का परीक्षण करके ही टैटू गुदवाएं।
- रोगी को जितना हो सके कम-से-कम दवाईयों का सेवन करने के लिए देना चाहिए।
- रोगी के पास जाते समय या उसकी नीडल को बदलते समय दस्तानों का प्रयोग करें।
- रोगी की निजी चीजों को भूलकर भी इस्तेमाल न करें।
- शौच के लिए या मलत्याग के लिए जाने के बाद हाथों को अच्छी और साफ तरह से धोना चाहिए।