1. सभी कमजोरी, सभी बंधन मात्र कल्पना हैं,कमजोर न पड़ें! मजबूती के साथ खड़े हो जाओ! शक्तिशाली बनो! मैं जानता हूँ कि सभी धर्म यही हैं। कभी कमजोर नहीं पड़ें। आप अपने आपको शक्तिशाली बनाओ। आप के भीतर अनंत शक्ति है।
2. मनुष्य खुद अपने भाग्य का निर्माता है।
3. लगातार पवित्र विचार करते रहे। बुरे संस्कारों को दबाने के लिए एक मात्र समाधान यही है।
4. एक बार किसी शख्स ने स्वामी विवेकानन्द जी से पूछा, सब कुछ खोने से ज्यादा बुरा क्या है? स्वामी जी ने जबाव दिया, उस उम्मीद को खो देना जिसके भरोसे पर हम सब कुछ वापस पा सकते हैं।
5. सत्य एक हजार अलग तरीकों से कहा जा सकता है, फिर भी हर एक सच हो सकता है।
6. आप जैसे विचार करेंगे, वैसे ही बन जाएँगे। अगर आप अपने को कमजोर मानेंगे तो आप कमजोर बन जाएंगे और अगर आप अपने को ताकतवर मानेंगे तो ताकतवर बन जाएंगे।
7. जिंदगी में जोखिम उठाना जरूरी है। जीतने पर आप नेतृत्व कर सकते हैं, हारने की सूरत में दूसरों को दिशा दिखा सकते हैं।
8. जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते, तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
9. संभव की सीमा जानने का केवल एक ही तरीका है असंभव से भी आगे निकल जाना।
10. मन की एकाग्रता ही समग्र ज्ञान है।
11. जीवन में ज्यादा रिश्ते होना जरुरी नहीं है पर जो रिश्ते हैं उसमें जीवन होना जरुरी है।
12. नेतृत्व करने वालों के शब्दकोशों में असंभव शब्द नहीं होता। कितनी भी बड़ी चुनौतियाँ क्यों न हो, मजबूत इरादे और संकल्प से उन्हें सुलझाया जा सकता है।
13. क्या आप युवा हैं? युवा वह है- जो अनीति से लड़ता है, जो दुर्गुणों से दूर रहता है, जो काल की चाल को बदल देता है, जिसमें जोश के साथ होश भी है, जिसमें राष्ट्र के लिए बलिदान की आस्था है, जो समस्याओं का समाधान निकालता है, जो प्रेरक इतिहास रचता है, जो बातों का बादशाह नहीं बल्कि करके दिखाता है।
14. सबसे पहले एक विचार को लें, उस विचार को अपना इवान बनाएं-उसके विषय में सोचें, सपने देखें और उस विचार के साथ जिएं। अपने मस्तिष्क, मांसपेशियों, नसों अपने शरीर के सभी भागों को उन विचारों से भर दें और दूसरे विचारों को भूल जाएं। यही सफलता का रास्ता है।
15. हम जो भी हैं हमारे विचारों ने हमें बनाया है इसलिए अपने विचारों पर ध्यान दें। शब्द तो दूसरे स्तर की बात है। विचार हमेशा जिंदा रहते हैं, और ज्यादा दूर तक साथ निभाते हैं।
16. आपको अपने अंदर विकास लाना होगा। कोई आपको नहीं सिखा सकता, कोई आपको आध्यात्मिक नहीं बना सकता। आत्मा के बिना और कोई शिक्षक नहीं जो इसका ज्ञान पढ़ा सके।
17. जीवन में अस्तित्व होने के मुख्य रहस्य है जीवन में डर न होना। कभी मत डरो, आपके साथ क्या होगा, यह किसी पर भी निर्भर नहीं है।
18. जितना हम बाहर निकलेंगे और दूसरों का भला करेंगे, उतना हमारा ह्रदय पवित्र होगा, और उनमें भगवान बसेंगे।
19. यह हमारा कर्तव्य है कि हम सभी को उनके मुश्किल समय में प्रोत्साहित करें ताकि वह अपने सबसे बड़े या उच्च विचारों के बल पर जिएं, और एक ही प्रयास में उसी समय जितना हो सके सच करने के लिए।
20. अगर पैसे से किसी मनुष्य का अच्छा हो सकता है तो पैसे का कोई मूल्य है, पर अगर नहीं, तो यह साधारण रूप स बुराई का एक टुकड़ा है, और जितना जल्दी यह हाथ से चले जाए, उतना अच्छा है।
21. कभी भी मत सोचिए की आत्मा के लिए कुछ भी असंभव है। यह सबसे बड़ा गलत सोच है। अगर कोई पाप है, तो यह सिर्फ पाप है कि, अपने आपको कमजोर सोचना और दूसरों को भी।
22. अगर हम भगवान को खुद के ह्रदय में नहीं देख सकते, या किसी दुसरे जीवित प्राणी के तो हम कहाँ जा सकते हैं ईश्वर को ढूंढने के लिए।
23. जब एक विचार विशेष रूप से मन में जगह बना लेता है, तो यह वास्तविक शारीरिक या मानसिक रूप में तब्दील हो जाता है।
24. वेदांत किसी भी पाप को नहीं पहचानता है, यह मात्र गलतियों को पहचानता है। और सबसे बड़ी गलती यह है कि वेदांत कहता है कि आप कमजोर हैं, आप एक पापी हैं, एक दुखी प्राणी हैं और आपके पास कोई ताकत नहीं है और आप ये नहीं कर सकते वो नहीं कर सकते।
25. एकही शब्द में आदर्श यह है कि तुम पवित्र हो।
26. अगर आपको कभी दिल और दिमाग में कभी किसी एक को चुनना पड़े तो, दिल को चुनें या उसका पालन करें।
27. एक दिन, जब आपके जीवन में कोई भी मुश्किलें न हों तो आप पक्का कर लें कि आप गलत रास्ते में हो।
28. सबसे बड़ा रहस्य असली सफलता के लिए, असली खुशियों के लिए, यह है कि आदमी और औरत या मनुष्य जो बिना किसी फल की मांग करते हैं, बिना किसी मतलब के, वही सफल व्यक्ति कहलाता है।
29. किसी भी चीज से न डरे। आप बहुत अच्छे से अपना कार्य पूर्ण करोगे। यह निडरता ही है जो स्वर्ग प्रदान करती है, किसी एक पल में।
30. जो भी आपको मिले, न तो उसको ढूंढे/तलाश करें न ही उसे भूलें।
31. जो आग हमें गर्मी देती है, वही हमें राख भी कर सकती है, इसमें आग की कोई गलती नहीं है।
32. शक्ति जीवन है, कमजोरी मृत्यु है! विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु है! प्यार जीवन है, नफरत मृत्यु है।
33. आराम सच्चाई की कोई परीक्षा नहीं है। सच तो अक्सर आराम से कोसों दूर है।
34. कुछ भी न पूछो, फल पाने की आशा न करें। दीजिए जो आपके पास है देने के लिए, वह वापस नहीं मिलेगा, लेकिन फल के विषय में समय है।
35. सभी काम तीन रास्तों से होकर गुजरता है-विरोध, स्वीकृति, उपहास।
36. यह पूरा जीवन सपनों का उत्तराधिकार है और घिरा हुआ। मेरी महत्वाकांक्षा तो जीवन में सचेत सपने देखना है, बस इतना ही।
37. पुस्तकें अंकों में अनंत हैं लेकिन समय बहुत ही कम है। ज्ञान का असली रहस्य तो यह है कि किसको सही समझें और किसको चुनें।
38. यह दुनिया एक बहुत ही बड़ी व्यायामशाला है, जहाँ हम अपने आपको मजबूत बनाने के लिए आये हैं।
39. खुद पर विश्वास करो और पूरी दुनिया आपके कदम पर होगी।
40. श्री रामकृष्ण परमहंस जी का कहना था, जितने दिन भी मैं जीवित रहूँगा, मैं कुछ-न-कुछ सीखता रहूँगा या सीखने की कोशिश करता रहूँगा। जिस किसी भी मनुष्य या समाज के पास सीखने को कुछ नहीं या सीखने की इच्छा नहीं वह पहले से ही मौत के मुंह में है।
41. अपने जीवन में जोखिम लीजिए, अगर आप जीत जाते हो, तो आप नेतृत्व करोगे! अगर आप हार जाओगे, तो आपकी सीख मिलेगी जिससे कि दोबारा आपको असफलता न मिले।
42. मनुष्य के मन में शक्ति की कोई सीमा नहीं होती। यह जितना ज्यादा ध्यान केंद्रित करता है उतना ही दिमाग एक बिंदु पर शक्ति लगता है। इस कारण जितना हो सके हमें अपने सपने और लक्ष्य के बारे में हमेशा सोचना चाहिए।
43. एक मुर्ख भले ही दुनिया के सभी किताबों को खरीद ले, और हो सकता है उन किताबों को अपने लाइब्रेरी में रख ले, लेकिन वह उन्हें तभी पढ़ सकता है अगर वह उसके काबिल है तो।
44. जितना भी ज्ञान इस दुनिया में प्राप्त हुआ है या पहुंचा है, मन से विकसित/उत्पन हुआ है, ब्रह्माण्ड का सबसे बड़ा और अनंत पुस्तकालय हमारा खुद का मन है।
45. आपको खुद को कृष्ण में पूजना चाहिए न कि कृष्णा को कृष्णा में।
46. क्या आप निस्वार्थ है? यही प्रश्न है? अगर आप निस्वार्थ हैं, आप बिलकुल सही हैं और आपको किसी भी धार्मिक किताब को पढने की जरुरत है।
47. वे धन्य हैं जिनका शरीर दूसरों की सेवा में नष्ट हो जाता है।
48. प्रकृति के अस्तित्व रहने के लिए सबसे बड़ा कारण है आत्मा की शिक्षा।
49. यह पृथ्वी में हीरो ही सभी चीजों का आनंद उठाते हैं-यह एक न बदल सकने वाला सच है। हीरो बनें। हमेशा खुद से कहें, मुझमे कोई डर नहीं है।
50. एक बहुत ही मुर्ख व्यक्ति भी किसी कार्य को पूरा कर सकता है अगर वह उसके दिल को पसंद आए या वह उस कार्य की चाह रखता हो। लेकिन एक बुद्धिमान व्यक्ति के लिए कोई भी कार्य हो चाहे उसे पसंद आता हो या नहीं वह उसको अपनी पसंद के अन्य्सर पूरा कर ही लेता है।
51. कर्तव्य के प्रति समर्पण भगवान की पूजा का उच्चतम रूप है।
52. हालत बेहतर होते नहीं है, वे वैसे के वैसे ही रहते हैं। वो हम हैं जो अपने आपको बेहतर बनाते हैं, अपने खुद के अंदर बदलाव ला कर।
53. स्वतंत्रता अपने आपको बेहतर बनाने की पहली शर्त है। यह गलत है, एक हजार बार गलत हैं, अगर आप हिम्मत से कहते हैं कि मैं इस महिला या बच्चे के उद्धार के लिए।
54. मनुष्य परमात्मा को साकार करने से परमात्मा बन गया है। मूर्तियाँ और मन्दिरों, या चर्च या किताबें, सिर्फ समर्थन के लिया है, अपने आध्यात्मिक बचपन की मदद कर रहे हैं।
55. इस दुनिया में अच्छाई और बुराई का मिश्रण होना जारी रहेगा। हमारा कर्तव्य यह है कि कमजोर व्यक्ति से सहानुभूति रखें और गलती करने वालों से प्यार भाव।
56. उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य न प्राप्त हो जाए।
57. ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियाँ पहले से हमारी हैं। वो हमीं हैं जो अपनी आँखों पर हाथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार है।
58. उठो मेरे शेरों, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो, तुम एक अमर आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, धन्य हो, सनातन हो, तुम तत्व नहीं हो, न ही शरीर हो, तत्व तुम्हारा सेवक है तुम तत्व के सेवक नहीं हो।
59. जिस तरह से विभिन्न स्त्रोतों से उत्पन्न धाराएँ अपना जल समुद्र में मिला देती हैं, उसी तरह मनुष्य द्वारा चुना हुआ हर रास्ता, चाहे अच्छा हो या बुरा भगवान तक जाता है।
60. किसी की निंदा न करें। अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो जरुर बढ़ाएं। अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़ें, अपने भाइयों को आशीर्वाद दें और उन्हें उनके मार्ग पर जाने दें।
61. उस व्यक्ति ने अमरत्व प्राप्त कर लिया है, जो किसी सांसारिक वास्तु से व्याकुल नहीं होता।
62. अगर खुद में विश्वास करना, अधिक विस्तार से पढ़ाया और अभ्यास कराया गया होता, तो मुझे यकीन है कि बुराईयों और दुःख का एक बहुत बड़ा हिस्सा गायब हो गया होता।
63. अंदर से बाहर की तरफ विकसित होना है। कोई तुम्हें पढ़ा नहीं सकता, कोई तुम्हें आध्यात्मिक नहीं बना सकता। तुम्हारी आत्मा के अलावा तुम्हारा कोई गुरु नहीं है।
64. स्वतंत्र होने का साहस करो। जहाँ तक तुम्हारे विचार जाते हैं वहां तक जाने का साहस करो और उन्हें अपने जीवन में उतारने का साहस करो।
65. खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है।
66. जितना बड़ा संघर्ष होगा जीत उतनी ही शानदार होगी।
67. जिस समय जिस काम के लिए प्रतिज्ञा करो, ठीक उसी समय पर उसे करना ही चाहिए, नहीं तो लोगों का विश्वास उठ जाता है।
68. यह जीवन अल्पकालीन है, संसार की विलासिता क्षणिक है, लेकिन जो दूसरों के लिए जीते हैं, वे वास्तव में जीते हैं।
69. भगवान की एक परम प्रिय के रूप में पूजा की जानी चाहिए, इस या अगले जीवन की सभी चीजों से बढ़कर।
70. बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप है।
71. जिस पल मैंने यह जान लिया कि भगवान हर एक मानव शरीर रूपी मन्दिर में विराजमान हैं, जिस पल मैं हर व्यक्ति के सामने श्रद्धा से खड़ा हो गया और उसके भीतर भगवान को देखने लगा-उसी पल मैं बंधनों से मुक्त हूँ, हर वो चीज जो बांधती है नष्ट हो गई, और मैं स्वतंत्र हूँ।
72. पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है, फिर उसका विरोध होता है, ओत फिर उसे स्वीकार कर लिया जाता है।
73. प्रेम विस्तार है, स्वार्थ संकुचन है। इसलिए प्रेम जीवन का सिद्धांत है। वह जो प्रेम करता है जीता है, वह जो स्वार्थी हैं मन रहा है। इसलिए प्रेम के लिए प्रेम करो, क्योंकि जीने का यही एक मात्र सिद्धांत है, वैसे ही जैसे कि तुम जीने के लिए साँस लेते हो।
74. हम जो बोते हैं बो काटते हैं। हम खुद अपने भाग्य के विधाता हैं। हवा बह रही है, वो जहाज जिनके पाल खुले हैं, इससे टकराते हैं, और अपनी दिशा में आगे बढ़ते हैं, पर जिनके पाल बंधे हैं हवा को नहीं पकड़ पाते। क्या यह हवा की गलती है?… हम खुद अपना भाग्य बनाते हैं।
75. शारीरिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक रूप से जो कुछ भी आपको कमजोर बनाता है-उसे जहर की तरह त्याग दो।
76. एक समय में एक काम करो, ओए ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमें दाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ।
77. मनुष्य की सेवा करो। भगवान की सेवा करो।
78. मस्तिष्क की शक्तियाँ सूर्य की किरणों के समान हैं। जब वो केंद्रित होती हैं, चमक उठती हैं।
79. आकांक्षा, अज्ञानता और असमानता-यह बंधन की त्रिमूर्तियां हैं।
80. यह भगवान से प्रेम का बंधन वास्तव में ऐसा है जो आत्मा को बांधता नहीं है बल्कि प्रभावी ढंग से उसके सरे बंधन तोड़ देता है।
81. जब लोग तुम्हें गली दें तो तुम उन्हें आशीर्वाद दो। सोचो, तुम्हारे झूठे दंभ को बाहर निकालकर वो तुम्हारी कितनी मदद कर रहे हैं।
82. कामनाएं समुद्र की भांति अतृप्त हैं, पूर्ति का पराया करने पर उनका कोलाहल और बढ़ता है।
83. स्त्रियों की स्थिति में सुधार न होने तक विश्व कल्याण का कोई भी रास्ता नहीं है।
84. भय ही पतन और पाप का मुख्य कारण है।
85. आगया देने की क्षमता प्राप्त करने से पहले हर व्यक्ति को आज्ञा का पालन करना सीखना चाहिए।
86. जगत को जिस वास्तु की आवश्यकता है वह है चरित्र। संसार को ऐसे लोग चाहिए जिनका जीवन स्वार्थहीन ज्वलंत प्रेम का उदाहरण है। वह प्रेम एक-एक शब्द को वज्र के समान प्रतिभाशाली बना देगा।
87. हम भले ही पुराने सड़े घाव को स्वर्ण से धक् कर रखने की चेष्टा करे, एक दिन ऐसा आएगा जब वह स्वर्ण वस्त्र खिसक जाएगा और वह घाव अत्यंत वीभत्स रूप में आँखों के सामने प्रकट हो जाएगा।
88. जब तक लोग एक ही प्रकार के ध्येय का अनुभव नहीं करेंगे, तब तक वे एकसूत्र से आबद्ध नहीं हो सकते। जब तक ध्येय एक न हो, तब तक सभा, समिति और वक्तृता से साधारण लोगों को एक नहीं कर सकता।
89. अगर उपनिषदों से बम की तरह आने वाला और बम गोले की तरह अज्ञान के अमुह पर बरसने वाला कोई शब्द है तो वह है निर्भयता।
90. आदर्श, अनुशासन, मर्यादा, परिश्रम, ईमानदारी और उच्च मानवीय मूल्यों के बिना किसी का जीवन महान नहीं बन सकता।
91. पढने के लिए जरुरी है एकाग्रता, एकाग्रता के लिए जरूरी है ध्यान। ध्यान से ही हम इंद्रियों पर संयम रखकर एकाग्रता प्राप्त कर सकते हैं।
92. तुम्हारे ऊपर जो प्रकाश है, उसे पाने का एक ग=ही साधन है-तुम अपने भीतर का आध्यात्मिक दीप जलाओ, पाप और पवित्रता खुद नष्ट हो जाएगी। तुम अपनी आत्मा के उददात रूप का ही चिंतन करो।
93. खुद में बहुत सी कमियों के बावजूद अगर मैं खुद से प्रेम कर सकता हूँ तो दूसरों में थोड़ी बहुत कमियों की वजह से उनसे नफरत कैसे कर सकता हूँ।
94. जन्म, व्याधि, जरा और मृत्यु ये तो सिर्फ अनुषांगिक है, जीवन में यह अनिवार्य है, इसलिए यह एक स्वाभाविक घटना है।
95. सुख और दुःख सिक्के के दो पहलु है। सुख जब मनुष्य के पास आता है तो दुःख का मुकुट पहन कर आता है।
96. दुनिया के ज्यादातर लोग इसलिए असफल हो जाते हैं, क्योंकि उनमें समय पर साहस का संचार नहीं पाता। वे भयभीत हो उठते है।
97. किसी मकसद के लिए खड़े हो तो एक पेड़ की तरह, गिरो तो बीज की तरह। ताकि दुबारा उगकर उसी मकसद के लिए जंग कर सको।
98. पवित्रय, धैर्य और प्रयत्न के द्वारा सारी बाधाएं दूर हो जाती है। इसमें कोई संदेह नहीं की महान कार्य सभी धीरे-धीरे होते हैं।
99. जब तक लाखों लोग भूखे और अज्ञानी है तब तक मैं उस प्रत्येक व्यक्ति को गद्दार मानता हूँ जो उनके बल पर शिक्षित हुआ और जब वह उसकी और ध्यान नहीं देता।
100. हमें ऐसी शिक्षा चाहिए, जिसमें चरित्र का निर्माण हो, मन की शक्ति बढ़े, बुद्धि लका विकास हो और मनुष्य अपने पैरों पर खड़ा हो सके।
101. यही दुनिया है! अगर तुम किसी का उपकार करो तो लोग उसे कोई महत्व नहीं देंगे, लेकिन ज्यों ही तुम उस काम को बंद कर दो, वे तुरंत तुम्हें बदमाश साबित करने में नहीं हिचकिचाएंगे।
102. जब प्रलय का समय आता है तो समुद्र भी अपनी मर्यादा छोड़कर किनारों को छोड़ अथवा तोड़ जाते है, लेकिन सज्जन पुरुष प्रलय के समान भयंकर आपत्ति एवं विपत्ति में भी अपनी मर्यादा नहीं बदलते।
103. डर निर्बलता की निशानी है।
104. जिंदगी का रास्ता बना बनाया नहीं मिलता है, खुद को बनाना पड़ता है, जिसने जैसा मार्ग बनाया उसे वैसी ही मंजिल मिलती है।
105. शुभ और स्वस्थ विचारों वाला ही संपूर्ण स्वस्थ प्राणी है।
106. जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहो-उससे लोगों को कष्ट होता है या नहीं, इस तरह ध्यान मत दो। दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत दो। सत्य की ज्योति बुद्धिमान मनुष्यों के लिए अगर अत्यधिक मात्रा में प्रखर होती है, और उन्हें बहा ले जाती है, तो ले जाने दो-वे जितना शीघ्र बह जाए उतना अच्छा ही है।
107. खड़े हो जाओ, हिम्मतवान बनो, ताकतवर बन जाओ, सब जवाबदारिया अपने सर पर ओढ़ लो, और समझो कि अपने नसीब के रचियता आप खुद हो।
108. जिंदगी बहुत छोटी है, दुनिया में किसी भी चीज का घमंड अस्थाई है पर जीवन सिर्फ वही जी रहा है जो दूसरों के लिए जी रहा है, बाकी सभी जीवित से अधिक मृत है।
109. जिस शिक्षा से हम अपना जीवन निर्माण कर सके, मनुष्य बन सके, चरित्र गठन कर सके और विचारों का सामंजस्य कर सके। वही वास्तव में शिक्षा कहलाने योग्य है।
110. एक नायक बनो, और हमेशा कहो-मुझे कोई डर नहीं है।
111. हमारा कर्तव्य है कि हम हर किसी को उसका उच्चतम आदर्श जीने के संघर्ष में प्रोत्साहित करें, और साथ-ही-साथ उस आदर्श को सत्य के जितना निकट हो सके लाने का प्रयास करें।
112. इस दुनिया में सभी भेदभा किसी स्तर के हैं, न कि प्रकार के, क्योंकि एकता ही सभी चीजों का रहस्य है।
113. तुम फुटबोल के माध्यम से स्वर्ग के ज्यादा निकट होगे बजाए गीता का अध्धयन करने के।
114. भय और अधूरी इच्छाएं ही समस्या दुखों का मूल है।
115. अगर आप मेरे पास आकर किसी और की बुराई करते हैं तो मुझे कोई संदेह नहीं कि आप दूसरों के पास जाकर मेरी भी बुराई करते होंगे।
116. जब आप व्यस्त होते हैं तो सब कुछ आसन लगता है लेकिन आलसी होने पर कुछ भी आसान नहीं लगता।
117. जब भी मैंने भगवान से शक्ति मांगी उसने मुझे मुश्किल हालात में डाल दिया।
118. समाज अपराधियों के कारण नहीं बल्कि अच्छे लोगों की ख़ामोशी के कारण खराब होता है।
119. महान कार्य के लिए महान त्याग करने पड़ते हैं।
120. महात्मा वो है, जो गरीबों और असहाय के लिए रोता है अन्यथा वो दुरात्मा है।
121. परोपकार धर्म का दूसरा नाम है पर पीड़ा सबसे बड़ा पाप।
122. राम-राम करने से कोई धार्मिक नहीं हो जाता। जो प्रभु की इस्च्चानुसार काम करता है वही धार्मिक है।
123. ज्ञान का प्रकाश सभी अंधेरों को खत्म कर देता है।
124. दिन में कम-सेकम एकबार खुद से बात करें अन्यथा आप एक उत्कृष्ट व्यक्ति के साथ एक बैठक गंवा देंगे।
125. अपनी अंतरात्मा को छोड़कर किसी के आगे मस्तक न झुकाओ। ईश्वर तुम्हारे अंदर ही विद्यमान है, इसका अनुभव करो।
126. हिंदू संस्कृति आध्यात्मिक की अमर आधारशिला पर आधारित है।
127. वस्तुएं बल से छीनी या धन से खरीदी जा सकती हैं, लेकिन ज्ञान सिर्फ अध्धयन से ही प्राप्त हो सकता है।
128. वह नास्तिक है, जो अपने आप में विश्वास नहीं रखता।
129. विश्वास करें कि यहाँ जो कुछ भी है उसके पीछे कोई अर्थ छुपा हुआ है। इस दुनिया में सब कुछ अच्छा है, पवित्र है और सुंदर भी है। अगर आप, कुछ बुरा देखते हो तब इसका मतलब है आप इसे पूर्ण रूप से समझ नहीं पाए हैं। आप अपने ऊपर का सारा बोझ उतार फेंके।
130. आप मसीह की तरह महसूस करें तो आप मसीह जैसा बनेंगे, आप बुद्ध की तरह महसूस करें तो आप बुद्ध जैसा बनेगे। विचार ही जीवन है, यह शक्ति है और इसके बिना कोई बौद्धिक गतिविधि भगवान तक नहीं पहुँच सकती है।
131. जब कभी आप बुरे दौर से गुजरते है उस समय सब कुछ आपके विरोध में होता है। आपको एक मिनट भी बहुत भारी लगता है उस समय हार मत मानो क्योंकि उसी समय से आपका अच्छा वक्त शुरू हो जाता है।
132. कदम ऐसा चलो, कि निशान बन जाए, काम ऐसा करो, कि पहचान बन जाए, यहाँ जिंदगी तो, सभी जी लेते हैं, मगर जिंदगी जिओ तो ऐसी, कि सबके लिए मिसाल बन जाए।
133. तुम अपनी अंतःस्थ आत्मा को छोड़ किसी और के सामने सिर मत झुकाओ। जब तक तुम यह अनुभव नहीं करते कि तुम खुद देवों के देव हो, तब तक तुम मुक्त नहीं हो सकते।
134. ईश्वर ही ईश्वर की उपलब्धी कर सकता है। सभी जीवंत ईश्वर हैं-इस भाव से सब को देखो। मनुष्य का अध्धयन करो, मनुष्य ही जीवंत काव्य है। जगत में जितने ईसा या बुद्ध हुए हैं, सभी हमारी ज्योति से ज्योतिष्मान हैं। इस ज्योति को छोड़ देने पर ये सब हमारे लिए और अधिक जीवित नहीं रह सकेंगे, मर जाएंगे। तुम अपनी आत्मा के ऊपर स्थिर रहो।
135. ज्ञान स्वयमेव वर्तमान है, मनुष्य सिर्फ उसका अविष्कार करता है।
136. मानव देह ही सर्वश्रेष्ठ देह है, एवं मनुष्य ही सर्वोच्च प्राणी है, क्योंकि इस मानव देह तथा इस जन्म में ही हम इस सापेक्षिक जगत से संपूर्णता बाहर हो सकते हैं-निश्चय ही मुक्ति की अवस्था प्राप्त कर सकते हैं, और यह मुक्ति ही हमारा चरम लक्ष्य है।
137. जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ेगा। वह जिस युग में जन्म है, उससे उसे बहुत आगे जाना पड़ेगा, किन्तु साधारण लोग किसी तरह रेंगते-रेंगते ही आगे बढ़ सकते हैं।
138. जो महापुरुष प्रचार कार्य के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं, वे उन महापुरुषों की तुलना में अपेक्षाकृत अपूर्ण हैं, जो मौन रहकर पवित्र जीवनयापन करते हैं और श्रेष्ठ विचारों का चिंतन करते हुए जगत की सहायता करते हैं। इन सभी महापुरुषों में एक के बाद दूसरे का आविर्भाव होता है-अंत में उनकी शक्ति का चरम फलस्वरूप ऐसा कोई शक्तिसंपन्न पुरुष आविर्भूत होता है, जो जगत को शिक्षा प्रदान करता है।
139. आध्यात्मिक दृष्टि से विकसित हो चुकने पर धर्मसंघ में बना रहना अवांछनीय है। उससे बाहर निकलकर स्वाधीनता की मुक्ति वायु में जीवन व्यतीत करो।
140. मुक्ति लाभ के अतिरिक्त और कौन सी उच्चावस्था का लाभ किया जा सकता है? देवदूत कभी कोई बुरे काम नहीं करते, इसलिए उन्हें कभी दंड भी प्राप्त नहीं होता, अतएव वे मुक्त भी नहीं हो सकते। सांसारिक धक्का ही हमें जगा देता है, वही इस जगतस्वप्न को भंग करने में सहायता करता है। इस तरह के लगातार आघात ही इस संसार से छुटकारा पाने की अथार्त मुक्ति-लाभ करने की हमारी आकांक्षा को जाग्रत करते हैं।
141. हमारी नैतिक प्रकृति जितनी उन्नत होती है, उतना ही उच्च हमारा प्रत्यक्ष अनुभव होता है, और उतनी ही हमारी इच्छा शक्ति अधिक बलवती होती है।
142. तुमने बहुत बहादुरी की है। शाबाश! हिचकने वाले पीछे रह जायेंगे और तुम कुद कर सबके आगे पहुँच जाओगे। जो अपना उध्दार में लगे हुए हैं, वे न तो अपना उद्धार ही कर सकेंगे और न दूसरों का। ऐसा शोर – गुल मचाओ की उसकी आवाज़ दुनिया के कोने कोने में फैल जाय। कुछ लोग ऐसे हैं, जो कि दूसरों की त्रुटियों को देखने के लिए तैयार बैठे हैं, किन्तु कार्य करने के समय उनका पता नही चलता है। जुट जाओ, अपनी शक्ति के अनुसार आगे बढो।इसके बाद मैं भारत पहुँच कर सारे देश में उत्तेजना फूँक दूंगा। डर किस बात का है? नहीं है, नहीं है, कहने से साँप का विष भी नहीं रहता है। नहीं नहीं कहने से तो ‘नहीं’ हो जाना पडेगा। खूब शाबाश! छान डालो – सारी दूनिया को छान डालो! अफसोस इस बात का है कि यदि मुझ जैसे दो – चार व्यक्ति भी तुम्हारे साथी होते।
143. तमाम संसार हिल उठता। क्या करूँ धीरे-धीरे अग्रसर होना पड़ रहा है। तूफान मचा दो तूफान।