1. सदा याद करो भगवान को, वही करता दूर सबकी मुश्किल, हर दुःख बन जाता सुख, जो चाहो होता वो हासिल।
2. काम करने से पहले जो सोचे वो है-बुद्धिमान, वो है-सतर्क काम करते हुए जो सोचे, काम करने के बाद सोचे वो है-बुद्धू, सदा सोचो, बड़ा सोचो, स्वामी जी ने है सिखाया।
3. सबसे प्यारा संगीत है आवाज तुम्हारी, मीठी आवाज ने सबकी दुनिया संवारी, सरल बनो, लेकिन बनो तुम स्पष्ट, ऐसे बनोगे तो होगा ना किसी को कष्ट।
4. अगर दोगे तुम दुनिया को अपना बेस्ट, तो मिलेगा तुमको भी वापिस बेस्ट, लालच कभी ना करना तुम, ये है तुम्हारा सबसे बड़ा रोग।
5. ईश्वर है पूर्ण पवित्र और शक्तिमान, वो है अजन्मा, अपार दयालु और रक्षक, खुदा निराकार है और सर्व-व्यापी है, उसको पाकर सब दुःख दूर होते हैं।
6. हर राष्ट्र करता उन्नति तब है, जब होता उसका धर्म, भाषा भी एक, अपने देश से सदा करो प्रीती, इससे ही तो बना अपना तन और मन।
8. जो इंसान सबसे कम ग्रहण करता है, सबसे ज्यादा अपना योगदान देता है, आखिर जीवन तो है वो ही, जिसमे हो आत्म-विकास निहित।
9. लोग कहते हैं कि मैं जो कहता हूं उसे वे समझ जाते हैं और मैं बहुत सरल हूं। लेकिन मैं सरल नहीं हूं, मैं स्पष्ठ हूं।
10. आपके पास जो सबसे अच्छी चीज है उसे दुनिया को दो, आप देखेंगे कि आपको भी दुनिया से सबसे अच्छी चीज मिल रही है।
11. सेवा का सबसे अच्छा रूप है यह है कि आप उस व्यक्ति की मदद करें जो इस उपकार का बदला देने के बारे में भी न सो सके।
12. वेदों मे वर्णीत सार का पान करने वाले ही ये जान सकते हैं कि जिन्दगी का मूल बिन्दु क्या है।
13. क्रोध का भोजन विवेक है, अतः इससे बचके रहना चाहिए। क्योंकि विवेक नष्ट हो जाने पर, सब कुछ नष्ट हो जाता है।
14. क्षमा करना सबके बस की बात नहीं, क्योंकी ये मनुष्य को बहुत बड़ा बना देता है।
15. काम मनुष्य के विवेक को भरमा कर उसे पतन के मार्ग पर ले जाता है।
16. संस्कार ही मानव के आचरण की नींव होता है, जितने गहरे संस्कार होते हैं, उतना ही अडिग मनुष्य अपने कर्तव्य, धर्म, सत्य और न्याय पर होता है।
17. सबकी उन्नति में ही अपनी उन्नति समझनी चाहिए..
18. जिसने गर्व किया, उसका पतन अवश्य हुआ है।
19. जिसको परमात्मा और जीवात्मा का यथार्थ ज्ञान, जो आलस्य को छोड़कर सदा उद्योगी, सुखदुःखादि का सहन, धर्म का नित्य सेवन करने वाला, जिसको कोई पदार्थ धर्म से छुड़ा कर अधर्म की ओर न खेंच सके वह पण्डित कहाता है।
20. मानव को अपने पल-पल को आत्मचिन्तन मे लगाना चाहिए, क्योकी हर क्षण हम परमेश्वर द्वार दिया गया समय खो रहे है।
21. क्रोध का भोजन विवेक है, अतः इससे बचके रहना चाहिए। क्योकी विवेक नष्ट हो जाने पर, सब कुछ नष्ट हो जाता है।
22. काम मनुष्य के विवेक को भरमा कर उसे पतन के मार्ग पर ले जाता है।
23. मानव जीवन मे तृष्णा और लालसा है, और ये दुखः के मूल कारण है।
24. अगर मनुष्य का मन शाँन्त है, चित्त प्रसन्न है, ह्रदय हर्षित है, तो निश्चय ही ये अच्छे कर्मो का फल है।
25. लोभ वो अवगुण है, जो दिन प्रति दिन तब तक बढता ही जाता है, जब तक मनुष्य का विनाश ना कर दे।
26. अहंकार एक मनुष्य के अन्दर वो स्थित लाती है, जब वह आत्मबल और आत्मज्ञान को खो देता है।
27. गीत व्यक्ति के मर्म का आह्वान करने में मदद करता है। और बिना गीत के, मर्म को छूना मुश्किल है।
28. वेदों मे वर्णीत सार का पान करने वाले ही ये जान सकते हैं कि जिन्दगी का मूल बिन्दु क्या है।
29. आत्मा, परमात्मा का एक अंश है, जिसे हम अपने कर्मों से गति प्रदान करते है। फिर आत्मा हमारी दशा तय करती है।
30. जो इंसान हर काम से संतुष्ट हो जाए वही इंसान इस दुनिया का सबसे खुश नसीब इंसान होता है।
31. इंसान के आचारण की नींव संस्कार होती है, जितना गहरा इंसान का संस्कार होगा। उतना ही मजबूत उसका कर्तव्य, धर्म, सत्य और न्याय होगा।
32. ईर्ष्या से इंसानों को दूर रहना चाहिए। क्योंकि ईर्ष्या इंसान के अंदर ही अंदर जलाती है और इंसानों को उनके रास्ते से भटकाकर उन्हें नष्ट कर देती है।
33. जब एक इंसान अपने क्रोध पर विजय हासिल कर लेता है, अपने काम को काबू में कर लेता है, यश की इच्छा को त्याग देता है, मोह माया से दूर चला जाता है। तब उसके अंदर एक अद्भुत शक्तियाँ आ जाती है।
34. मोह जाल की तरह होता है। इसमें जो फास गया वह पूरी तरह से उलझ जाता है।
35. काम करने से पहले उसके बारे में सोचना बुद्धिमानी है, और अगर काम करते हुए उस पर सोचना सतर्कता होती है, और अगर आप काम खत्म करने के बाद सोचते हो तो आप मुर्ख हो।
36. इंसान की आत्मा परमात्मा का ही अंश होता है जिसे हम अपने कर्म से गति प्रदान करते है, और फिर आत्मा हमारी दशा को तय करती है।
37. लालच वह अवगुण होता है, जो हर दिन बढ़ता ही जाता है। जब तक इंसान का पतन नहीं हो जाता है।
38. एक इंसान को अपने नश्वर शरीर के बजाए ईश्वर से प्रेम करना चाहिए और सत्य और धर्म से प्यार करना चाहिए।
39. वह लोग जो दूसरों के लिए अच्छा करते है वह कभी भी आत्म सम्मान और दुरूपयोग के बारे में नहीं सोचते है।
40. सबसे उच्च कोटि की सेवा ऐसे व्यक्ति की मदद करना है, जो बदले में आपको धन्यवाद कहने में असमर्थ हो।
41. अगर आप पर हमेशा ऊँगली उठाई जाती रहे तो आप भावनात्मक रूप से अधिक समय तक खड़े नहीं हो सकते।
42. लोगों को कभी भी चित्रों की पूजा नहीं करनी चाहिए। मानसिक अंधकार का फैलाव मूर्ति पूजा के प्रचलन की वजह से है।
43. अज्ञानी होना गलत नहीं है, अज्ञानी बने रहना गलत है।
44. धन एक वस्तु है जो ईमानदारी और न्याय से कमाई जाती है, इसका विपरीत अर्थ यह अधर्म का खजाना है।
45. आत्मा अपने स्वरूप में एक है, लेकिन उसके अस्तित्व अनेक हैं।
46. भगवान का न कोई रूप है न रंग है। वह अविनाशी और अपार है। जो भी इस दुनिया में दीखता है वह उसकी महानता का वर्णन करता है।
47. जिह्वा को उसे व्यक्त करना चाहिए जो ह्रदय में है।
48. अपने सामने रखने या याद करने के लिए लोगों की तस्वीरें या अन्य तरह की पिक्चर लेना ठीक है। लेकिन भगवान की तस्वीरें और छवियाँ बनाना गलत है।
49. वह अच्छा और बुद्धिमान है जो हमेशा सच बोलता है, धर्म के अनुसार काम करता है और दूसरों को उत्तम और प्रसन्न बनाने का प्रयास करता है।
50. नुकसान से निपटने में सबसे जरुरी चीज है उससे मिलने वाले सबक को न भूलना। वो आपको सही मायने में विजेता बनाता है।
51. इंसान को दिया गया सबसे बड़ा संगीत यंत्र आवाज है।
52. कोई मूल्य तब मूल्यवान है जब मूल्य का मूल्य खुद के लिए मूल्यवान हो।
53. प्रबुद्ध होना-ये कोई घटना नहीं हो सकती। जो कुछ भी यहाँ है वह अद्वैत है। ये कैसे हो सकता है? यह स्पष्टता है।
54. हमें पता होना चाहिए कि भाग्य भी कमाया जाता है और थोपा नहीं जाता। ऐसी कोई कृपा नहीं है जो कमाई ना गयी हो।
55. मुझे सत्य का पालन करना पसंद है, बल्कि, मैंने औरों को उनके अपने भले के लिए सत्य से प्रेम करने और मिथ्या को त्यागने के लिए राजी करने को अपना कर्त्तव्य बना लिया है। अतः अधर्म का अंत मेरे जीवन का उदेश्य है।
56. कोई भी मानव हृदय सहानुभूति से वंचित नहीं है। कोई धर्म उसे सिखा-पढ़ा कर नष्ट नहीं कर सकता। कोई संस्कृति, कोई राष्ट्र कोई राष्ट्रवाद-कोई भी उसे छू नहीं सकता क्योंकि ये सहानुभूति है।
57. छात्र की योग्यता ज्ञान अर्जित करने के प्रति उसके प्रेम, निर्देश पाने की उसकी इच्छा, ज्ञानी और अच्छे व्यक्तियों के प्रति सम्मान, गुरु की सेवा और उनके आदेशों का पालन करने में दिखती है।
58. क्योंकि मनुष्यों के भीतर संवेदना है, इसलिए अगर वो उन तक नहीं पहुँचता जिन्हें देखभाल की जरुरत है तो वो प्राकृतिक व्यवस्था का उल्लंघन करता है।
59. हालांकि संगीत भाषा, संस्कृति और समय से परे है, और नोट समान होते हुए भी भारतीय संगीत अद्वितीय है क्योंकि यह विकसित है, परिष्कृत है और इसमें धुन को परिभाषित किया गया है।
60. ईश्वर पूर्ण रूप से पवित्र और बुद्धिमान है। उसकी प्रकृति, गुण, और शक्तियां सभी पवित्र हैं। वह सर्वव्यापी, निराकार, अजन्मा, अपार, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिशाली, दयालु और न्याययुक्त है। वह दुनिया का रचनाकार, रक्षक, और संघारक है।
61. वह अच्छा और बुद्धिमान है जो हमेशा सच बोलता है, धर्म के अनुसार काम करता है और दूसरों को उत्तम और प्रसन्न बनाने का प्रयास करता है।
62. जीवन में मृत्यु को टाला नहीं जा सकता। हर कोई ये जानता है, फिर भी अधिकतर लोग अन्दर से इसे नहीं मानते-ये मेरे साथ नहीं होगा। इसी कारण से मृत्यु सबसे कठिन चुनौती है जिसका मनुष्य को सामना करना पड़ता है।
63. वर्तमान जीवन का कार्य अन्धविश्वास पर पूर्ण भरोसे से अधिक महत्त्वपूर्ण है।
64. मोक्ष पीड़ा सहने और जन्म-मृत्यु की अधीनता से मुक्ति है, और यह भगवान की अपारता में स्वतंत्रता और प्रसन्नता का जीवन है।
65. उपकार बुराई का अंत करता है, सदाचार की प्रथा का आरम्भ करता है, और लोक-कल्याण तथा सभ्यता में योगदान देता है।
66. राष्ट्रवाद-कोई भी उसे छू नहीं सकता क्योंकि ये सहानुभूति है।
67. काम मनुष्य के विवेक को भरमा कर उसे पतन के मार्ग पर ले जाता है।
68. लोभ कभी समाप्त न होने वाला रोग है।
69. जिसने गर्व किया उसका पतन अवश्य हुआ है।
70. जो मनुष्य दूसरों का मांस खाकर अपना मांस बढ़ाना चाहता है, उससे बढ़कर नीच और कौन होगा।
71. कोई कितना ही करे परन्तु जो स्वदेशी राज्य होता है, वह सर्वोपरि उत्तम होता है।
72. पाप करना नही विश्व का कल्याण करना है।
73. विद्या को बढ़ाना चाहिए। अविद्या का नाश करना चाहिए।
74. आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य संसार का उपकार करना है।
75. सभी मनुष्यों को सामाजिक सर्वहितकारी नियम पालने में परतंत्र रहना चाहिए और प्रत्येक हितकारी को नियम से सभी के स्वतंत्र रहने कि कामना करनी चाहिए।
76. जो बलवान होकर निर्बलो की रक्षा करता है। वही सच्चा मानव कहलाता है। बल के अहंकार में निर्बल का उत्पीडन करने वाला तो पशु होता है।
77. ईश्वर सच्चिदानंद रूप, निराकार, अजन्मा, अनंत, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, अजर, अमर, नित्य, अभय, पवित्र, और सृष्टिकर्ता है। ऐसे ईश्वर कि उपासना करनी चाहिए।
78. भारतवर्ष का धर्म उसके पुत्रो से नही, सुपुत्रियो से प्रताप से स्थित है। भारतीय देवियों ने अगर अपना धर्म छोड़ दिया होता तो देश कब का नष्ट हो चूका होता।
79. यह विशाल विश्व ब्रम्हा का पवित्र मंदिर है शुद्द चित्त ही पूण्य क्षेत्र है। सत्य ही शाश्वत धर्मशास्त्र है। श्रध्दा ही धर्म का मूल है। प्रेम ही परम साधन है स्वार्थ नाश ही वैराग्य है
80. वेद सभी सत्य विध्याओ कि किताब है। वेदों को पढना-पढाना, सुनना-सुनाना सभी आर्यों का परम धर्म है।
81. सभी लोंगो से प्रेमपूर्वक धर्म के अनुसार यथायोग्य बर्ताव करना चाहिए।