1. प्रसन्न रहना बहुत सरल है, लेकिन सरल होना बहुत कठिन है।
2. सिर्फ तर्क करने वाला दिमाग एक ऐसे चाकू की तरह है जिसमें सिर्फ ब्लेड है। यह इसका प्रयोग करने वाले को घायल कर देता है।
3. फूल की पंखुड़ियों को तोड़कर आप उसकी सुंदरता को इकट्ठा नहीं करते।
4. मौत प्रकाश को खत्म करना नहीं है, ये सिर्फ भोर होने पर दीपक बुझाना है।
5. मित्रता की गहराई परिचय की लंबाई पर निर्भर नहीं करती।
6. हर बच्चा यह संदेश लेकर आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है।
7. जो कुछ हमारा है वो हम तक तभी पहुँचता है जब हम उसे ग्रहण करने की क्षमता विकसित करते हैं।
8. आस्था वो पक्षी है जो भोर के अँधेरे में भी उजाले को महसूस करती है।
9. वे लोग जो अच्छाई करने में बहुत ज्यादा व्यस्त होते है, स्वंय अच्छा होने के लिए समय नहीं निकाल पाते।
10. कलाकार प्रकृति का प्रेमी है अतः वह उसका दास भी है और स्वामी भी।
11. मैंने स्वप्न देखा कि जीवन आनंद है। मैं जागा और पाया कि जिवन सेवा है। मैंने सेवा की और पाया कि सेव मे हि आनंद है।
12. अगर आप सभी गलतियों के लिये दरवाजे बंद कर देंगे तो सच बाहर रह जाएगा।
13. कला के माध्यम से व्यक्ति खुद को उजागर करता है अपनी वस्तुओं को नहीं।
14. आइए हम यह प्रार्थना न करें कि हमारे ऊपर खतरे न आएं, बल्कि यह प्रार्थना करें कि हम उनका निडरता से सामना कर सकें।
15. प्रेम अधिकार का दावा नहीं करता, बल्कि स्वतंत्रता प्रदान करता है।
16. प्रेम ही एक मात्र वास्तविकता है, ये महज एक भावना नहीं है अपितु यह एक परम सत्य है जो सृजन के समय से ह्रदय में वास करता है।
17. चंद्रमा अपना प्रकाश संपूर्ण आकाश में फैलाता है परंतु अपना कलंक अपने ही पास रखता है।
18. संगीत दो आत्माओं के बीच के अन्तर को भरता है।
19. जब मैं खुद पर हँसता हूँ तो मेरे ऊपर से मेरा बोझ कम हो जाता है।
20. उच्चतम शिक्षा वो है जो हमें सिर्फ जानकारी ही नहीं देती बल्कि हमारे जीवन को समस्त अस्तित्व के साथ सद्भाव में लाती है।
21. बर्तन में रखा पानी हमेशा चमकता है और समुद्र का पानी हमेशा गहरे रंग का होता है। लघु सत्य के शब्द हमेशा स्पष्ठ होते हैं, महान सत्य मौन रहता है।
22. हम महानता के सबसे करीब तब आते हैं जब हम विनम्रता में महान होते हैं।
23. हम स्वतंत्रता तब हासिल करते हैं जब हम उसकी पूरी कीमत चुका देते हैं।
24. सिर्फ खड़े होकर पानी देखने से आप समंदर पार नहीं कर सकते।
25. तथ्य कई हैं, लेकिन सच एक ही है।
26. फूल एकत्रित करने के लिए ठहर मत जाओ। आगे बढ़े चलो, तुम्हारे पथ में फूल निरंतर खिलते रहेंगे।
27. आयु सोचती है, जवानी करती है।
28. कट्टरता सच को उन हाथों में सुरक्षित रखने की कोशिश करती है जो उसे मारना चाहते हैं।
29. किसी बच्चे की शिक्षा अपने ज्ञान तक सीमित मत रखिये, क्योंकि वह किसी और समय में पैदा हुआ है।
30. मिट्टी के बंधन से मुक्ति पेड़ के लिए आजादी नहीं है।
31. हर एक कठिनाई जिससे आप मुंह मोड़ लेते हैं, एक भूत बन कर आपकी नीद में बाधा डालेगी।
32. तथ्य कई हैं पर सत्य एक है।
33. मंदिर की गंभीर उदासी से बाहर भागकर बच्चे धूल में बैठते हैं, भगवान उन्हें खेलता देखते हैं और पुजारी को भूल जाते हैं।
34. मैं आशावादी होने का अपना ही संस्करण बन गया हूँ। अगर मैं एक दरवाजे से नहीं जा पाता तो दूसरे से जाऊँगा-या एक नया दरवाजा बनाऊंगा। वर्तमान चाहे जितना भी अंधकारमय हो कुछ शानदार सामने आएगा।
35. जीवन हमें दिया गया है, हम इसे देकर कमाते है।
36. प्रेम अधिकार का दावा नहीं करता, बल्कि स्वतंत्रता देता है।
37. तितली महीने नहीं क्षण गिनती है, और उसके पास पर्याप्त समय होता है।
38. अकेले फूल को कई काँटों से ईर्ष्या करने की जरुरत नहीं होती।
39. जिनके स्वामित्व बहुत होता है उनके पास डरने को बहुत कुछ होता है।
40. मुखर होना आसान है जब आप पूर्ण सत्य बोलने की प्रतीक्षा नहीं करते।
41. पृथ्वी द्वारा स्वर्ग से बोलने का अथक प्रयास हैं ये पेड़।
42. हम महानता के सबसे करीब तब होते हैं जब हम विनम्रता में महान होते हैं।
43. हम तब स्वतंत्र होते हैं जब हम पूरी कीमत चूका देते हैं।
44. हम दुनिया में तब जीते हैं जब हम उसे प्रेम करते हैं। ‘
45. सिर्फ खड़े होकर पानी देखने से आप नदी नहीं पार कर सकते।
46. आपकी मूर्ति का टूटकर धूल में मिल जाना इस बात को साबित करता है कि ईश्वर की धूल आपकी मूर्ति से महान है।
47. मत बोलो यह सुबह है और इसे कल के नाम के साथ खारिज मत करो। इसे एक न्यूबोर्न चाइल्ड की तरह देखो जिसका अभी कोई नाम नहीं है।
48. अगर आप रोते हो क्योंकि सूरज आपके जीवन से बाहर चला गया है और आपके आंसू आपको सितारों को देखने के लिए रोकेंगे।
49. मन का धर्म है मनन करना, मनन में ही उसे आनंद है, मनन में बाधा प्राप्त होने से उसे पीड़ा होती है।
50. जो मन की पीड़ा को स्पष्ट रूप में कह नहीं सकता, उसी को क्रोध अधिक आता है।
51. कुछ-न-कुछ कर बैठने को ही कर्तव्य नहीं कहा जा सकता। कोई समय ऐसा भी होता है, जब कुछ न करना ही सबसे बड़ा कर्तव्य माना जाता है।
52. ईश्वर बड़े-बड़े साम्राज्यों से ऊब उठता है लेकिन छोटे-छोटे पुष्पों से कभी खिन्न नहीं होता।
53. जिस तरह घोंसला सोती हुई चिड़िया को आश्रय देता है उसी तरह मौन तुम्हारी वाणी को आश्रय देता है।
54. विश्वविद्यालय महापुरुषों के निर्माण के कारखाने हैं और अध्यापक उन्हें बनाने वाले कारीगर हैं।
55. समय परिवर्तन का धन है। लेकिन घड़ी उसे केवल परिवर्तन के रूप में दिखाती है, धन के रूप में नहीं।
56. फूल चुनकर एकत्र करने के लिए मत ठहरो। आगे बढे चलो, तुम्हारे पथ में फूल निरंतर खिलते रहेंगे।
57. हमारे अंतर में अगर प्रेम न जाग्रत हो, तो विश्व हमारे लिए कारागार ही है।
58. सौंदर्य सत्य की मुस्कराहट है जब सत्य खुद अपना चेहरा एक उत्तम दर्पण में देखता है।
59. वह मनुष्य बड़ा भग्यवान है जिसकी कीर्ति उसकी सत्यता से अधिक प्रकाशमान नहीं है।
60. जीवन निकुंज में तुम्हारी रागिनी बजती रहे, सदा बजती रहे। ह्रदय कमल में तुम्हारा आसन विराजित रहे, सदा विराजित रहे।
61. उपदेश देना सरल है, पर उपाय बताना कठिन।
62. स्वास की क्रिया के समान हमारे चरित्र में एक ऐसी सहज क्षमता होनी चाहिए जिसके बल पर जो कुछ प्राप्य है वह अनायास ग्रहण कर लें और जो त्याज्य है वह बिना क्षोभ के त्याग सकें।
63. कलाकार प्रकृति का प्रेमी है अतः वह उसका दास भी है और स्वामी भी।
64. आलसी और अधर्मी जीवन से मृत्यु बेहतर है।
65. बेड़ियाँ बड़ी कड़ी है, किंतु मेरे ह्रदय को बड़ी व्यथा होती है, जब मैं उनको तोड़ने का यत्न करता हूँ।
66. मैंने जिस चादर को ओढा है, वह मिटटी और मृत्यु की चादर है। मैं उसे घृणा करता हूँ तथापि प्रेम से उसे गले लगाता हूँ।
67. हमेशा आशा भरी है, मेरी सफलता बड़ी है, मेरी लज्जा गुप्त है और ह्रदय को दबाए देती है। तथापि जब मैं अपने कल्याण के लिए याचना करने आता हूँ, तब मैं भय से कांप उठता हूँ कि कहीं मेरी प्रार्थना स्वीकार न हो जाए।
68. बंदी! मुझे यह बता कि तुझे किसने बांधा है।
69. रात्रि जैसे प्रकाश के लिए की गई प्रार्थना को अपने अंधकार में छुपा के रखती है, वैसे ही मेरी अचेतन आस्था में भी मेरे अंतःकरण में यह पुकार उठती है। हे प्रभु! तेरी चाह है, मुझे सिर्फ तेरी चाह है।
70. जब मेरा दिल कठोर और शुष हो जाए, तो मेरे ऊपर करुणा की मणि बरसाईए।
71. पिता के क्रोध करने पर माता संतान की ओर सजल नैनों से देखती है, वैसे ही करुना रूपी मेघों को ऊपर से मुझ पर बरसने दो।
72. मैंने तुझसे कुछ नहीं माँगा, मैंने अपना नाम तुझे नहीं बताया। जब तू विदा हुआ तो मैं चुपचाप खड़ा रह।
73. सावन का मेघ बिना बरसे हुए पानी के भर से नीचे झुक जाता है, वैसे ही मेरा सारा मन एक ही प्रणाम के करने में तेरे द्वार पर झुक जाता है।
74. जहाँ अनंत आकाश आत्मा की उड़ान के लिए फैला हुआ है, निर्मल उज्जवल मास का राज्य है। वहां न दिन है, न रात है, न रूप है और न रंग है, नहीं, वहां एक शब्द भी नहीं है।
75. अब जब खेल का समय बीत गया है तो सहसा एक विचित्र दृश्य सामने आता है। यह विश्व अपने सफल नीरव तारंदल के साथ तेरे-कमलो में अपने नयन झुकाए चकित और निस्तब्ध खड़ा है।
76. जब मैं यहाँ से विदा होऊं, तब मेरे अंतिम वचन ये हो कि, मैंने जो कुछ देखा है, उससे बढ़कर और कुछ नहीं हो।
77. मैं जानता हूँ कि वह दिन आएगा जब मुझे यह संसार देखने को नहीं मिलेगा और मैं चुपचाप यहाँ से छुट्टी लूँगा और मेरे नेत्रों पर अंतिम पर्दा पड़ जाएगा। तो भी रात्रि को तारे जगमगाएंगे, प्रभात का उदय होगा और घड़ियाँ सागर-तरंगों की भांति सुख-दुःख को उत्पन्न करती हुई बीतती जाएंगी।
78. जो वृक्ष पत्तों से लड़ा होता है, प्राय फल से वंचित रहता है।
79. सिर्फ जीर्ण मंदिर का देवता, लगातार उपेक्षा के कारण पूजा से वंचित रहता है।
80. इंसानों की सेवा ही ईश्वर की सेवा है।
81. कर्म किये जाओ। फल की कामना मत करो। तुम्हारा परिश्रम कभी अकारथ नहीं जाएगा।
82. स्त्री अपने सौंदर्य के बल पर पुरुष का प्रेम और आज्ञाकारिता प्राप्त करना चाहती है, लेकिन जो पति खुद ही उनके सौंदर्य के सामने झुक जाए, वह वास्तव में दुर्भाग्यशाली होता है और उससे अधिक उसकी पत्नी।
83. वाही तो अंतरात्मा है जो मेरे जीवात्मा को अपने गंभीर अदृश्य स्पर्शों से जाग्रत करता है।
84. यह वाही जीवन है, जो जीवन-मृत्यु रूपी समुद्र के ज्वार भाटे के पालने में हिलोरे मारता है।
85. सृष्टि के शुरू से ही नारी जाति अपने जंगली और कठोर स्वभाव से पुरुओं को जीतने के लिए विशेष ढंग सीखते चली आ रही है।
86. यह तो आप अवश्य मानेंगे कि कोई भी व्यक्ति उस समय तक वास्तविक प्रसन्नता प्राप्त नहीं कर सकता। जब तक कि उसे अपने जन्मजात विचार और स्वभाविक योग्यताओं के प्रकट करने के लिए एक विस्तृत क्षेत्र न हो। हिरन को आपने देखा है, वह अपने सींगों को वृक्ष से रगड़ कर आनंद प्राप्त करता है, नर्म और नाजुक केले के खंभे से नहीं।
87. तर्कों की झड़ी, तर्कों की धूलि और अंधबुद्धि ये सब आकुल व्याकुल होकर लौट जाती है, किन्तु विश्वास तो अपने अंदर ही निवास करता है, उसे किसी प्रकार का भय नहीं है।
88. साधारण दिखने वाले लोग ही दुनिया के सबसे अच्छे लोग होते हैं यही वजह है की भगवान ऐसे बहुत से लोगों का निर्माण करते हैं।
89. स्वर्ण कहता है-मुझे न तो आग से तपाने का दुःख है, न काटने पीसने से और न कसौटी पर कसने से, मेरे लिए तो जो महान दुःख का कारण है, वह है घुंघची के साथ मुझे तोलना।
90. मनुष्य महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में रह बना लेती है।
91. देश का जो आत्माभिमान हमारी शक्ति को आगे बढ़ाता है, वह प्रशंसनीय है, पर जो आत्माभिमान हमें पीछे खींचता है, वह सिर्फ खूंटे से बांधता है, यह धिक्कारनीय है।
92. सच्ची आध्यात्मिकता, जिसकी शिक्षा हमारे पवित्र ग्रंथों में दी हुई है, वह शक्ति है, जो अंदर और बाहर के पारस्परिक शांतिपूर्ण संतुलन से निर्मित होती है।
93. जो आत्मा शरीर में रहती है, वही ईश्वर है और चेतना रूप में विवेक के द्वारा शरीर के सबी अंगों से काम करवाती है। लोग उस अंतर्देव को भूल जाते हैं और दौड़-दौड़ कर तीर्थों में जाते हैं।
94. हमारा मन पोथियों के ढेर में और शरीर असबाब से दब गया है, जिससे हमें आत्मा के दरवाजे-जंगले दिखाई नहीं देते।
95. मैं तुझसे आकाश, प्रकाश, मन, प्राण किसी भी भिक्षा नहीं मांगता। सिर्फ यही चाहता हूँ कि मुझे रोज लालसाओं से बचने योग्य बना दे, यही मेरे लिए तेरा महादान होगा।
96. बीज के ह्रदय में प्रतीक्षा करता हुआ विश्वास जीवन में एक महँ आश्चर्य का वादा करता है, जिसे वह उसी समय सिद्ध नहीं कर सकता।
97. मन जहाँ डर से परे है और सिर जहाँ ऊँचा है, ग्ज्ञान जहाँ मुक्त है और जहाँ दुनिया को संकीर्ण घरेलू दीवारों से छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटा नहीं गया है, जहाँ शब्द सच की गहराइयों से निकलते हैं, जहाँ थकी हुई प्रयासरत बाहें त्रुटीहीनता की तलाश में हैं, जहाँ कारण की स्पष्ट धरा है, जो सुनसान रेतीले मृत आदत के वीराने में अपना रास्ता खो नहीं चुकी है, जहाँ मन हमेशा व्यापक होते विचार और सक्रियता में तुम्हारे जरिए आगे चलता है और आजादी के स्वर्ग में पहुँच जाता है। ओ पिता! मेरे देश को जागृत बनाओ।
98. धूल स्वंय अपमान सह लेती है और बदले में फूलों का उपहार देती है।