- इस गृह की खोज सन् 1846 में जॉन गाले ने की थी।
- वरुण ग्रह के 8 उपग्रह हैं जिनमें से ट्राइटन और नेरिड सबसे प्रमुख हैं।
- अरुण ग्रह सूर्य की परिक्रमा करने में 166 साल का समय लेता है।
इसके वायुमंडल में अमोनिया, हाइड्रोजन, मीथेन, नाइट्रोजन अधिक मात्रा में पाई जाती हैं इसलिए इसका रंग पीला - दिखाई देता है।
वरुण ग्रह (Neptune In Hindi) :
नेप्चून ग्रह को वरुण ग्रह भी कहा जाता है। वरुण ग्रह सौरमंडल का सबसे दूर सूर्य से आठवें नंबर पर स्थित है। खगोल की खोजबीन के पश्चात यह अज्ञात ग्रह 23 सितंबर, 1846 को पहली बार दूरबीन से देखा गया और इसका नाम नॅप्टयून रख दिया गया। नॅप्टयून प्राचीन रोमन धर्म में समुद्र के देवता थे जो स्थान प्राचीन भारत में वरुण देवता का रहा है इसलिए इस ग्रह को हिंदी में वरुण कहा जाता है।
इस ग्रह पर अधिक मात्रा में गैस होने की वजह से यह सौरमंडल के इतिहास में सूर्य में समाहित हो सकता है। व्यास के आधार पर नेपच्यून ग्रह चौथा सबसे बड़ा ग्रह है। वरुण ग्रह का द्रव्यमान पृथ्वी से 17 गुना ज्यादा है और अपने पडोसी ग्रह अरुण से थोडा ज्यादा है।
खगोलीय इकाई के हिसाब से वरुण की कक्षा सूरज से 30.1 ख०ई० की औसत दूरी पर है यानि वरुण पृथ्वी के मुकाबले में सूरज से लगभग 30 गुना ज्यादा दूर है। वरुण को सूरज की एक पूरी परिक्रमा करने में 164.79 साल लगते हैं यानि एक वरुण साल 164.79 पृथ्वी सालों के बराबर है। हमारे सौरमंडल में चार ग्रहों को गैस दानव कहा जाता है क्योंकि इनमें मिट्टी पत्थर की जगह ज्यादातर गैस है और इनका आकार बहुत ही विशाल है वरुण भी इनमें से एक ग्रह है।
वरुण ग्रह की रुपरेखा :
वरुण ग्रह का द्रव्यमान 1,02,410 खरब अरब किलोग्राम है। वरुण ग्रह का भूमध्यरेखीय व्यास 49,528 किलोमीटर है और ध्रुवीय व्यास 48,682 किलोमीटर है। वरुण ग्रह की सूर्य से औसतन दूरी 449 करोड़ 83 लाख 96 हजार 441 किलोमीटर है। वरुण ग्रह का एक साल पृथ्वी के 164.79 साल या 60,190 दिन के बराबर है। वरुण ग्रह का भूमध्यरेखीय घेरा 1,55,600 किलोमीटर है और सतह का औसतन तापमान -201०C है। वरुण ग्रह के ज्ञात उपग्रह 14 और ज्ञात छल्ले 5 हैं।
वरुण ग्रह की खोज और नामकरण :
वरुण पहला ग्रह था जिसकी अस्तित्व की भविष्यवाणी उसे बिना कभी देखे ही गणित के अध्धयन से की गई थी और जिसे फिर उस आधार पर खोजा गया। यह तब हुआ जब अरुण की परिक्रमा में आश्चर्यजनक गडबडी पाई गई जिनका अर्थ सिर्फ यही हो सकता था कि एक अज्ञात पड़ोसी ग्रह उस पर अपना गुरुत्वाकर्षक प्रभाव डाल रहा है।
खगोल में खोजबीन करने के पश्चात यह अज्ञात ग्रह 23 सितंबर, 1846 को पहली बार दूरबीन से देखा गया और इसका नाम नेपच्यून रख दिया गया। नेपच्यून प्राचीन रोमन धर्म में समुद्र के देवता थे जो स्थान प्राचीन भारत में वरुण देवता का रहा है इसलिए इस ग्रह को हिंदी में वरुण कहा जाता है। रोमन धर्म में नेपच्यून के हाथ में त्रिशूल होता था इसलिए वरुण का खगोलशास्त्रिय चिन्ह ♆ है।
वरुण ग्रह का रूप-रंग और मौसम :
जहाँ पर अरुण ग्रह केवल एक गोले का रूप दिखाता है जिसपर कोई निशान या धब्बे नहीं हैं वहां वरुण पर बादल, तूफान और मौसम का बदलाव स्पष्ट दिखाई देता है। माना जाता है कि वरुण ग्रह पर तूफानी हवा सौरमंडल के किसी भी ग्रह से अधिक तेज चलती है और 2100 किलोमीटर प्रति घंटा तक की गतियाँ देखी जा चुकी हैं।
जब सन् 1989 में वॉयेजर द्वितीय यान वरुण के पास से गुजरा तो वरुण ग्रह पर एक बड़ा गाढ़ा धब्बा दिखाई दे रहा था जिसकी तुलना बृहस्पति के बड़े लाल धब्बे से की गई है क्योंकि वरुण सूरज से इतना दूर है इसलिए उसका ऊपरी वायुमंडल बहुत ही ठंडा है और वहां का तापमान -128० सेंटीग्रेड तक गिर सकता है।
इसके बड़े आकार की वजह से इस ग्रह के बड़े केंद्र में इसके गुरुत्वाकर्षण के भयंकर दबाव से तापमान 5000० सेंटीग्रेड तक पहुंच जाता है। वरुण ग्रह के आसपास कुछ छितरे से उपग्रही छल्ले भी हैं जिन्हें वॉयेजर द्वितीय ने देखा था। वरुण ग्रह का हल्का नीला रंग अपने ऊपरी वातावरण में मौजूद मीथेन गैस से आता है।
वरुण ग्रह की परिक्रमा एवं घूर्णन :
वरुण और सूर्य के बीच की औसत दूरी 4.50 अरब किलोमीटर है एवं यह औसतन हर 164.79 ± 0.1 सालों में सूर्य की परिक्रमा पूरी करता है। 11 जुलाई, 2011 को वरुण ने सन् 1846 में इसकी खोज के बाद से अपनी पहली द्रव्यकेंद्रीय परिक्रमा पूरी की हालाँकि यह हमारे आसमान में अपनी सटीक खोज स्थिति में नहीं दिखा था क्योंकि पृथ्वी अपनी 365.25 दिवसीय परिक्रमा में एक भिन्न स्थान में थी।
वरुण ग्रह का स्वप्न और छद्म प्रभाव :
पश्चिमी ज्योतिषियों के अनुसार वरुण ग्रह सपनों और छद्म प्रभावों का ग्रह है। यह भावों, राशियों एवं अन्य ग्रहों को अपना विशिष्ट प्रभाव देता है। राशियों में यह गुरु के साथ मीन राशि का आधिपत्य साझा करता है। इसे भौतिक और आध्यात्मिक दुनिया के मध्य की कड़ी मानते हैं। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह जातक के अवचेतन के संबंधों के विषय में जानकारी देता है।
इस ग्रह की ऊर्जा को धोखे, भ्रम और निराशाजनक लत के रूप में देखा जा सकता है। जातक की कुंडली में वरुण ग्रह जिस स्थान पर होगा उस स्थान से संबंधित चमत्कार पैदा करेगा। बारह भावों और बारह राशियों में वरुण ग्रह के असर को देखा जा सकता है। हर राशि और भाव में वरुण रहस्य, आदर्श, अध्यात्म और कल्पनाओं के तीव्र असर का समावेश कर देगा।
उदाहरण के तौर पर यदि वरुण ग्रह दूसरे भाव में है तो जातक धन कमाने के लिए नए और असामान्य तरीकों को काम में लेगा। वरुण एक राशि में लगभग 14 साल तक रहता है। इसके चलते पूरी एक जनरेशन के स्वभाव में एक जैसा प्रभाव भी देखा जा सकता है। भारतीय परिपेक्ष्य में देखे तो आजादी के पहले के सालों को 14-14 सालों में विभाजित करें तो हर दौर में एक विशिष्ट श्रेणी के लोग अधिक आए।
आजादी के बाद भी पीढ़ियों की विशिष्टता के दौर जारी हैं। कोई राष्ट्रवादी पीढ़ी है तो कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाली। कोई दौर पश्चिमी अंधानुकरण वालों का रहा तो कोई दौर देश के लिए काम करने वाले लोगों का रहा। पश्चिमी देशों को देखा जाए तो मिथुन राशि बौद्धिकता की परिचायक है।
सन् 1887 से 1901 के मध्य रचनात्मक जीनियस लोगों की भरमार रही। इसी प्रकार वर्तमान दौर में वरुण ग्रह कुभ राशि में है। यह राशि मानवतावाद और मौलिक चिंतन वाली है। इस दौर के लोग परंपरागत सोच से हटकर काम करने वाले और मानवता की सहायता करने वाले काम करने वाले सिद्ध हो सकते हैं।
वरुण ग्रह के गोचर :
इस ग्रह को एक राशि चक्र पूरा करने में 164 साल का समय लगता है। ऐसा माना जाता है कि वरुण ग्रह का प्रभाव इस पर निर्भर करता है कि हम इसके प्रभाव से पैदा हुई स्थितियों के साथ जीने की कोशिश कर रहे हैं अथवा इसका विरोध कर रहे हैं। यह ग्रह अपने गोचर के पहले चरण में भ्रम उत्पन्न करता है और बाद में स्थितियों को चमत्कारिक रूप से साफ दिखाता है।
असल में यह अमूर्त से हमारे तीसरी शक्ति से संपर्क का माध्यम बनता है और अपने गोचर के अंत में फिर से भौतिक जगत में ले आता है। इस ग्रह का प्रभाव कहाँ कितना होगा और किस प्रकार कार्य करेगा इस विषय में भी बताना कुछ मुश्किल है लेकिन संकेत निकाले जा सकते हैं पर ठीक-ठीक क्रियाविधि बताना टेढ़ा काम है।
वरुण ग्रह को एक राशि चक्र पूरा करने में लगभग 164 साल का समय लगता है। एक सामान्य व्यक्ति को इतनी लंबी अवधि तक जिंदा नहीं रहता है। दूसरी बात यह भी है कि कोई एक ज्योतिषी वरुण के प्रभावों का अध्धयन करने जितना भी नहीं जी सकता। ऐसे में प्राचीन घटनाओं, महापुरुषों की जीवनियों और इतिहास के साक्ष्यों को वरुण ग्रह के गोचर के साथ मिलाकर अध्धयन करके कुछ निष्कर्ष निकाले गए हैं।
रहस्य के मालिक इस ग्रह के विभिन्न भावों में प्रभावों के बारे में कई जगह बताया गया है। वरुण ग्रह के अधिकार की राशि गुरु की दूसरी और भचक्र की आखिरी राशि मीन दी गई है। इसी के साथ बारहवां भाव भी वरुण का प्रिय भाव बताया गया है।
1. पहले भाव में गोचर : यह दिमाग, शरीर और आत्मा को प्रभावित करता है। इन्हें ज्यादा ऊर्जा क्षेत्र में ले जाता है। जातक आसपास के लोगों की भावनाओं को ज्यादा दक्षता से समझने लगते हैं। जातक जब दूसरे लोगों से संपर्क करेंगे तो एक छद्म वातावरण का निर्माण करेगा। ऐसे लोग प्रेक्टिकल होने की जगह पर आदर्शवादी, स्वप्नवादी अथवा संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाएंगे। कुछ जातकों का आत्मविश्वास घट भी सकता है। इनके जीवन की राह अनिश्चित होती है।
2. दुसरे भाव में गोचर : यह नैतिक एवं अन्य प्रकार के मूल्यों में तेजी से बदलाव करता है। दूसरे भाव में वरुण के पहुंचने पर जातक धन को लेकर लापरवाह भी हो जाते हैं। इससे लंबे समय में वित्तीय असुरक्षा का वातावरण बनता है। ऐसे समय में घोटाले और सट्टेबाजी का दौर तेज हो जाता है।
3. तीसरे भाव में गोचर : तीसरे भाव में विचरण के दौरान जातक अंतर्ज्ञान के विषय में जानना और समझना शुरू करता है। ऐसे जातकों को दुनियादारी की सामान्य बातें समझने में मुश्किल हो सकती है जैसे – सरकारी अथवा अन्य स्त्रोतों से मिले आंकड़े। ऐसे समय में जातक दिए गए समय पर पहुंचने में चूक करने लगता है यहाँ तक कि उसे तारीख और वार भी ध्यान नहीं रहते। संगीत, कविता और अन्य कला क्षेत्रों में ऐसे जातक तेजी से अपनी जगह बनाने लगते हैं। ये जातक ज्यादा कल्पनाशील हो जाते हैं और जीवन के लिए नए रास्ते अपनी कल्पनाओं के आधार पर तय करने लगते हैं। इन जातकों की कवित्व शक्ति न सिर्फ कविताएँ गढने के काम आती हैं बल्कि कई बार प्रेरणादायक भी बन जाती हैं।
4. चौथे भाव में गोचर : गोचर के चौथे भाव में आया वरुण आपके परिवार, भूतकाल या पारिवारिक जीवन में उलझने अथवा विभ्रम की स्थिति उत्पन्न करता है। रिश्तों के प्रति आप व्यवहारिक की जगह पर आदर्शत्मक सोच रखने लगते हैं। यदि आप सचेत नहीं होते हैं तो वरुण ग्रह की यह स्थिति कई प्रकार की नई परेशानियाँ भी खड़ी कर देता है। परिवार के प्रति आपका कोई कमिटमेंट न होना परिवार के सदस्यों के लिए अवसाद तथा दुःख का कारण बनने लगता है। जब आपके परिवार को आपके त्याग की आवश्यकता होती है तब आप उसके लिए उपलब्ध नहीं होते हैं। इस गोचर के दौरान आप सामान्य से ज्यादा नींद लेने लगते हैं जिसका एक कारण आपका जल्दी थक जाना भी हो सकता है।
5. पांचवें भाव में गोचर : वरुण के इस गोचर के दौरान आपके जीवन में रोमांस को ज्यादा शिद्दत से महसूस करने लगते हैं। इसी दौरान एक गडबड होती है कि आप अपने प्रेमी अथवा जीवनसाथी से प्रेम अथवा व्यवहार के संबंध में कई प्रकार की उम्मीदें बांधना शुरू कर देते हैं भले ही वह यर्थार्थ से दूर ही क्यों न हो। ऐसे में संबंधों में तनाव की स्थिति बनने लगती है इसी के साथ आपकी संतान के संबंध में कई प्रकार की उलझने सामने आने लगती हैं। अगर रचनाशीलता के कोण से देखें तो यह आपके जीवन का सर्वश्रेष्ठ समय भी हो सकता है।
6. छठे भाव में गोचर : गोचर में छठे भाव के अनुसार आपकी रूचि दवाओं या रसायनों के प्रति बढने लगती है। ऐसे में गौर देने वाली बात यह है कि तनाव इस लंबे कालखंड में आपको शारीरिक तौर पर तोडकर रख सकता है। इस दौरान आपका पेशा मदद संबंधी सेवाओं में हो सकता है और इसमें दान और अन्य सहायता सेवाएं भी शामिल हो सकती हैं। इस भाव में वरुण ग्रह की स्थिति आपकी दैनिकचर्या और जीवनचर्या को प्रभावित करने वाली भी सिद्ध हो सकती है।
7. सातवें भाव में गोचर : नजदीकी साझेदारों से दो प्रकार का व्यवहार देखने को मिल सकता है। साझेदारी में अनिश्चितता की अथिति आपको परेशान करने लगती है इसके साथ ही स्वंय आपके व्यवहार में अपने साझेदार अथवा पत्नी या पति के प्रति खराबी आने लगती है। साझा टूटने की समस्या भी आप खुद बढ़ाने लगते हैं। दूसरों को आकर्षित करने की प्रवृत्ति बढने के साथ ही आपमें एक स्वाभाविक असुरक्षा की भावना भी बढने लगती है इससे आपके इर्द-गिर्द के लोग परेशान होने लगते हैं।
8. आठवें भाव में गोचर : वरुण के इस गोचर के दौरान आपके सामने साझा किए गए धन और संपत्ति के संबंध में समस्याएं बढने लगती हैं वहीं दूसरी तरफ ऋण और अन्य वित्तीय सहायताएं भी उम्मीद से बेहतर अंदाज में मिलने लगती हैं। निजी संबंधों में प्रगाढ़ता आती है। इस दौरान यह मेरा है वह तुम्हारा है वाली भावनाएं भी अपेक्षाकृत कम हो जाती हैं। आपके साझेदार की वित्तीय स्थिति खराब होने से व्यापार या व्यवसाय का आपका हिस्सा भी खराब होने लगता है। इस दौर में धोखे से सावधान रहने की बहुत अधिक आवश्यकता होती है।
9. नौवें भाव में गोचर : आपके जीवन से जुडी चीजों में बढ़ोतरी होने के संकेत मिलने लगते हैं चाहे वह परिवार हो या सम्माज, धन हो या सफलता यहाँ तक कि आध्यात्मिक क्षेत्र में भी उन्नति के मौके मिलते हैं। आपके व्यक्तित्व में भी कुछ ज्यादा आकर्षण बढ़ता है। आपके स्वभाव में कुछ रहस्यमयी भावों के साथ दूसरों के प्रति नाजुकता का भाव आता है इससे समाज और सर्किल में आपकी पकड़ तेजी से बढती है। भावों से जुड़े कला क्षेत्रों में आपका रुझान भी तेजी से बढ़ता है। यात्रा, कानूनी मामलों और उच्च शिक्षा के प्रति उलझनें बढने की समस्या रहती है।
10. दसवें भाव में गोचर : आपकी नजर पर एक धुंधलापन आने लगता है इससे अच्छे भले चल रहे जीवन में भूचाल की आशंका परेशान करने लगती है। यदि आपने अपने जीवन का एक उद्देश्य बना रखा है तो वरुण के इस भाव में गोचर के दौरान आपको इसकी उपदेयता पर शक होने लगता है। आपके करियर और साख के साथ बहुत सी अनपेक्षित घटनाएँ, संयोग, निजता और रहस्य खेलने लगते हैं। भले ही दूसरे लोगों को लगता रहे कि आप जैसे पहले थे वैसे सब भी हैं लेकिन आप अंदर से परेशान होते हैं। अपने इस व्यवहार को काबू करके आप सफलता से इस दौर को पार कर सकते हैं।
11. ग्यारहवें भाव में गोचर : वरुण का यहाँ पर यह प्रभाव होता है कि आपकी सामाजिक प्रतिष्ठा में तेजी से बढ़ोतरी होती है। इस राशि भ्रमण के दौरान यह ग्रह आपको खुद से अलग लगभग हर चीज से एक सुरक्षित दूरी बनाने के लिए बाध्य करता है। इससे हो सकता है कि आपके मित्र समूह या संगठन में आपकी साख को बट्टा लग रहा हो लेकिन आप सुरक्षित रहने में ही भलाई समझने लगते हैं। यह दौर आपको सिखाता है कि कौन मित्र है और किनसे दूरी रखनी है।
12. बाहरवें भाव में गोचर : वरुण ग्रह का यह सबसे प्रिय भाव है। यहाँ गोचर कर रहा ग्रह आपको अकेले में बैठकर आनन्द लेने योग्य बनाता है। इस समय आपको किसी की भी आवश्यकता नहीं रहती। इस समय आप बेहतरीन सपने लेते हैं। प्रकृति में हो रहे परिवर्तनों को आप ज्यादा शिद्दत से महसूस करने लगते हैं। तीसरी शक्ति के प्रति आस्था भी वरुण के इस गोचर के दौरान तेजी से बढती है।
वरुण ग्रह के विषय में रोचक तथ्य :
वरुण ग्रह का नाम सागर के रोमन देवता के नाम पर रखा गया है। वरुण ग्रह अरुण ग्रह से मिलता जुलता है इसे अरुण ग्रह का सहोदर अथवा जुड़वाँ भाई कहते है। वरुण ग्रह सूर्य से दूरस्थ आठवां ग्रह है। वरुण ग्रह की खोज 1946 जॉन गेले ने की थी। वरुण ग्रह के वायुमंडल में मुख्य रूप से हाइड्रोजन गैस पाई जाती है इसके साथ ही कुछ मात्रा में मीथेन गैस भी पाई जाती है इसी वजह से ही यह ग्रह हरे रंग का दिखाई देता है।
वरुण ग्रह 166 सालों में सूर्य की परिक्रमा करता है और 12.7 घंटे में अपनी दैनिक गति पूरी करता है। वरुण ग्रह पृथ्वी के मुकाबले में सूरज से लगभग 30 गुना ज्यादा दूर है। वरुण ग्रह पूर्वजों के लिए नहीं जाना जाता था क्योंकि इस ग्रह का कोई पूर्वज ग्रह नहीं है। वरुण ग्रह बहुत तेजी से अपनी धुरी पर घूमता है। वरुण ग्रह बर्फ दिग्गजों में सबसे छोटा है।
वरुण ग्रह पर एक बहुत ही सक्रिय जलवायु है। वरुण ग्रह की रिंग बहुत ही पतली है। वरुण ग्रह के पास 14 चंद्रमा है। आज तक सिर्फ एक ही अंतरिक्ष यान वरुण ग्रह पर भेजा गया है। वरुण ग्रह का सबसे बड़ा चंद्रमा ट्राईटन है इसे ब्रिटिश खगोल विज्ञानी विलियम लास्सेल्ल द्वारा सन् 1846 में खोजा गया था। वरुण ग्रह पर हर दिन लगभग 16 घंटे 6.5 मिनट का रहता है।
वरुण ग्रह सूर्य की परिक्रमा 164.79 सालों में पूरी करता है और अपनी धुरी पर एक चक्कर पूरा करने के लिए 16 घंटे 7 मिनट का समय लेता है। वरुण ग्रह की बनावट बिलकुल युरेनस ग्रह की तरह की है। युरेनस की तरह वरुण ग्रह भी चट्टानों और बर्फ से बना है लेकिन वरुण ग्रह का रंग युरेनस से ज्यादा नीला है।
वरुण ग्रह के लगभग चार छल्ले हैं पृथ्वी पर इन छल्लों को दूरबीन से देखने पर यह छल्ले टूटे हुए दिखाई देते है। वरुण ग्रह की पृथ्वी से दूरी बहुत अधिक होने की वजह से यह एक टिमटिमाते तारे के समान दिखाई देता है। वरुण ग्रह की सतह का तापमान -220 डिग्री सेंटीग्रेड है।
वरुण ग्रह का अक्ष इसकी परिक्रमा पथ से 30 डिग्री तक झुका हुआ है इस ग्रह पर 41 सालों तक एक जैसा ही मौसम रहता है। वरुण पहला ग्रह है जिसके होने का अनुमान गणितीय आधार पर लगाया गया था। जब वैज्ञानिको ने युरेनस की कक्षा का अध्धयन किया तो उन्होंने पाया कि युरेनस की कक्षा न्यूटन के सिद्धांतों का पालन नहीं करती।
इससे अनुमान लगाया गया कि कोई अन्य ग्रह युरेनस की कक्षा को प्रभावित करता है। फ्रांस के ले वेरीएर और इंग्लैण्ड के एडम्स ने स्वतंत्र रूप से बृहस्पति, शनि और युरेनस की स्थिति के आधार पर वरुण के स्थान की गणना की। 23 सितंबर, 1846 को इस ग्रह को गणना किए गए स्थान के पास खोज लिया गया था।
वरुण ग्रह की खोज के बाद इस ग्रह की खोज के श्रेय के लिए एडम्स और ले वेरीयर के बीच विवाद पैदा हो गया। इसके बाद वरुण ग्रह की खोज का श्रेय इन दोनों वैज्ञानिकों को दिया गया लेकिन बाद में किए गए अध्ध्यनों से पता लगा कि इन दोनों वैज्ञानिकों द्वारा लगाए गए वरुण ग्रह के स्थान से वह विचलित हो जाता है और उन के द्वारा की गई गणना के स्थान पर वरुण का मिलना एक संयोग मात्र था।
इससे पूर्व भी जब गैलिलियो बृहस्पति का अध्धयन कर रहे थे तब उन्होंने वरुण ग्रह को बृहस्पति के पास देखा गया था जिसे उन्होंने अपने द्वारा बनाए गए चित्रों में अंकित किया। उन्होंने दो रातों तक वरुण को एक तारे के संदर्भ में अपना स्थान बदलते हुए देखा लेकिन बाद की रातों में वरुण गैलिलियो की दूरबीन के दृश्यपटल से दूर चला गया।
आकाश में सिर्फ तारे गति करते नजर नहीं आते हैं सिर्फ ग्रह, उपग्रह और उल्का आदि ही गति करते हुए नजर आते है अगर गैलिलियो ने पहले की कुछ रातों में वरुण को देखा होता तो उन्हें इसकी गति दिखाई देती और इस ग्रह की खोज का श्रेय गैलिलियो को मिलता है।