स्वाधिष्ठान-चक्र क्या है :
स्व + स्थान से मिलकर यह शब्द बना है जहाँ पर स्व का अर्थ होता है आत्मा , और स्थान का अर्थ होता है जगह। यह अवचेतन मन का वह स्थान है जहां हमारे अस्तित्व के प्रारंभ में गर्भ से सभी जीवन अनुभव और परछाइयां संग्रहीत रहती हैं। यह वह चक्र है, जो लिंग मूल से चार अंगुल ऊपर स्थित है जिसकी छ: पंखुरियां हैं। यह मानवी शरीर का दूसरा प्राथमिक चक्र है। इसका दूसरा नाम धार्मिक चक्र अथवा उदर चक्र है। यह चक्र कमल के साथ छह पंखुड़ियाँ से प्रतीकात्मक रूप से दर्शाया जाता है जिसमें हर पंखुड़ी छह नकारात्मक विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करती है। स्वाधिष्ठान चक्र का तत्व जल है और इसका रंग नारंगी है।
स्वाधिष्ठान चक्र का मंत्र :-
इस चक्र का मन्त्र होता है – वं। इस चक्र को जाग्रत करने के लिए आपको वं मंत्र का जाप करते हुए ध्यान लगाना होता है।
स्वाधिष्ठान चक्र जागृत करने की विधि :-
यह मानवी शरीर का दूसरा प्राथमिक चक्र है। स्वाधिष्ठान चक्र की जाग्रति स्पष्टता और व्यक्तित्व में विकास लाती है। किन्तु ऐसा हो, इससे पहले हमें अपनी चेतना को नकारात्मक गुणों से शुद्ध कर लेना चाहिए। स्वाधिष्ठान चक्र के प्रतीकात्मक चित्र ६ पंखुडिय़ों वाला एक कमल है। ये हमारे उन नकारात्मक गुणों को प्रकट करते हैं, जिन पर विजय प्राप्त करनी है – क्रोध, घृणा, वैमनस्य, क्रूरता, अभिलाषा और गर्व। अन्य प्रमुख गुण जो हमारे विकास को रोकते हैं, वे हैं आलस्य, भय, संदेह, बदला, ईर्ष्या और लोभ। नाभि क्षेत्र के आसपास ध्यान केंद्रित करके और ध्यान करते समय नारंगी रंग की कल्पना करने से भी लाभदायक होता है ।
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स्वाधिष्ठान चक्र का स्थान :-
यह चक्र मूलाधार चक्र से लगभग 3 c.m ऊपर स्थित होता है अथार्त जहाँ जननेन्द्रियों के केश शुरू होते हैं उसके नीचे 1 इंच पर स्थित होता है।
स्वाधिष्ठान चक्र जागरण के प्रभाव :-
जब मनुष्य के अन्दर यह चक्र जागृत हो जाता है तो मनुष्य की दशा बदल जाती है। मनुष्य के अन्दर क्रूरता, गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश हो जाता है। इस चक्र में प्रसन्नता, निष्ठा, आत्मविश्वास और ऊर्जा जैसे गुण पैदा होते हैं। संतुलित दूसरे चक्र वाले लोग रचनात्मक तथा भाववाहक और खुशी को अपने जीवन में लाने में निश्चित होते हैं ।