सहस्रार-चक्र क्या है :-
यह चक्र सूर्य की भांति प्रकाश का विकिरण करता है इसलिए इसे हजार पंखुडिय़ों वाले कमल, ब्रह्म रन्ध्र या लक्ष किरणों का केन्द्र कहा जाता है। सहस्रार चक्र में एक शक्ति पायी जाती है जिसको मेधा शक्ति के नाम से जाना जाता है। यह शक्ति स्मरण शक्ति, एकाग्रता और बुद्धि को प्रभावित करती है।
सहस्रार चक्र में हजारों पंखुडिय़ों वाले कमल का खिलना संपूर्ण, विस्तृत चेतना का प्रतीक है। सहस्रार चक्र का कोई विशेष रंग या गुण नहीं है।
तो जानने और समझने के लिए आगे बढ़ो; खोज के लिए आगे बढ़ो आप केवल एक ही नहीं खोज रहे हैं; कई अन्य भी हैं। कई लोगों ने खोजा है, बहुत-से लोगों ने ज्ञान प्राप्त किया है जानने की कोशिश करो, समझो, ऐसे लोगों के साथ क्या हुआ है और जो कुछ भी नहीं हुआ है; कोशिश करो और ये सब समझो। लेकिन यह समझते समय, अपने स्वयं को समझने की कोशिश करना बंद मत करो।
ऐसा मत समझो कि दूसरों को समझने से आप स्वयं-प्राप्ति हो गए हैं। अपने अनुभवों में विश्वास करो; उन पर अंधविश्वास मत मानो।
इसलिए, आद्वैत की तलाश, गैर-दोहरी, पांचवें शरीर से शुरू होती है। विपरीत के लिए सभी खोज, चौथा शरीर के साथ समाप्त होता है सभी बाधाएं हमारे भीतर हैं, और वे उपयोगी हैं क्योंकि ये बहुत ही बाधाएं, जब बदल जाती हैं, प्रगति के लिए हमारे वाहन बन जाते हैं।
यदि हम क्रोध से लड़ते हैं, तो हम खुद पर गुस्सा हो जाते हैं – लगातार गुस्से में। हमारा पूरा व्यक्तित्व जल्द ही क्रोध से भरा होगा और हमारे शरीर के प्रत्येक फाइबर इन अवरुद्ध क्रोध के साथ कंपन करेंगे।
तो साधक को लड़ने की प्रवृत्ति से सावधान रहना होगा उन्हें समझने की पूरी कोशिश करनी चाहिए और समझने का प्रयास करना समझने का मतलब है कि सावधान जागरूकता के साथ निरीक्षण करना, निरीक्षण करना और समझना जो कि पहले अंधेरा था और हमारे जीवन के इन क्षेत्रों को प्रकाश में लाते थे।
समझने के उद्देश्य के लिए सभी अस्तित्व मौजूद हैं।
किसी से सीखें, सबको सुनो, और अंत में, अपने भीतर स्वयं को समझें।
सहस्रार चक्र का मंत्र :-
इस चक्र का मन्त्र होता है – ॐ। इस चक्र को जाग्रत करने के लिए आपको ॐ मंत्र का जाप करते हुए ध्यान लगाना होता है। आज्ञा चक्र वाला ही मंत्र इस चक्र में भी होता है।
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सहस्रार-चक्र का स्थान :-
चक्र हमारी खोपड़ी के उपरी भाग में स्थित होता है। अथार्त जहाँ ललाट, पार्श्विका, लौकिक ये तीनो अस्थियाँ एक दुसरे को काटती है।
सहस्रार-चक्र जाग्रत करने की विधि :-
मूलाधार से होते हुए ही सहस्रार तक पहुंचा जा सकता है। लगातार ध्यान करते रहने से यह चक्र जाग्रत हो जाता है और व्यक्ति परमहंस के पद को प्राप्त कर लेता है।
सहस्रार-चक्र के प्रभाव :-
जब व्यक्ति का सहस्रार-चक्र भी जाग्रत हो जाता है तो व्यक्ति मोक्ष द्वार पर पहुच जाता है। शरीर संरचना में इस स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण विद्युतीय और जैवीय विद्युत का संग्रह है। यह चक्र योग के उद्देश्य का प्रतिनिधित्व करता है- आत्म अनुभूति और ईश्वर की अनुभूति, जहां व्यक्ति की आत्मा ब्रह्मांड की चेतना से जुड़ जाती है। व्यक्ति अपने सभी कर्मों से मुक्त हो जाता है। और मोक्ष प्राप्त कर लेता है। ध्यान में योगी निर्विकल्प समाधि (समाधि का उच्चतम स्तर) सहस्रार चक्र पर पहुंचता है, यहां मन पूरी तरह निश्चल हो जाता है और ज्ञान, ज्ञाता और ज्ञेय एक में ही समाविष्ट होकर पूर्णता को प्राप्त होते हैं।