प्लूटो ग्रह जिसे यम के नाम से भी जाना जाता है सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा बौना ग्रह है। प्लूटो को कभी सौरमंडल का सबसे बाहरी ग्रह माना जाता था लेकिन अब इसे सौरमंडल के बाहरी काइपर घेरे की सबसे बड़ी खगोलीय वस्तु माना जाता है। काइपर घेरे की अन्य वस्तुओं की तरह प्लूटो का आकार और द्रव्यमान बहुत छोटा है। प्लूटो का आकार पृथ्वी के चंद्रमा से केवल एक तिहाई है।
सूरज के आसपास इसकी परिक्रमा की कक्षा भी थोड़ी बढ़ेगी – यह कभी वरुण की कक्षा के भीतर जाकर सूरज से 30 खगोलीय इकाई दूर होता है तो कभी दूर जाकर सूर्य से 45 खगोलीय इकाई पर पहुंच जाता है। प्लूटो काइपर घेरे की अन्य वस्तुओं की तरह ज्यादातर जमी हुई नाइट्रोजन की बर्फ, पानी की बर्फ, और पत्थरों का बना हुआ है। यम को सूर्य की एक पूरी परिक्रमा करने में 248.09 साल लगते हैं।
छात्र ने किया था प्लूटो का नामकरण :
प्लूटो की खोज सन् 1930 में अमेरिका वैज्ञानिक क्लाइड डब्यू टॉमबॉग ने की थी। पहले इसे ग्रह मान लिया गया था लेकिन साल 2006 में वैज्ञानिकों ने इसे ग्रहों की श्रेणी से बाहर कर दिया। प्लूटो का नाम ऑक्सफोर्ड स्कूल ऑफ लंदन में 11 वीं की छात्रा वेनेशिया बर्ने ने रखा था। वैज्ञानिकों ने लोगों से पूछा था कि इस ग्रह का क्या नाम रखा जाए तो इस बच्ची ने इसका नाम प्लूटो सुझाया था। इस बच्ची ने कहा था कि रोम में अँधेरे के देवता को प्लूटो कहते हैं इस ग्रह पर भी हमेशा अँधेरा रहता है इसलिए इसका नाम प्लूटो रखा जाए। प्लूटो 248 साल में सूर्य का एक चक्कर लगा पाता है।
प्लूटो ग्रह की रुपरेखा :
प्लूटो ग्रह का द्रव्यमान 13050 अरब किलोग्राम है। यम ग्रह का व्यास लगभग 2372 किलोमीटर है। प्लूटो की सूर्य से दूरी 587 करोड़ 40 लाख किलोमीटर है। प्लूटो ग्रह के ज्ञात उपग्रह 5 हैं और प्लूटो का एक साल पृथ्वी के 246.04 साल के बराबर हैं।
प्लूटो ग्रह का रंगरूप :
प्लूटो ग्रह का व्यास लगभग 2300 किलोमीटर है अथार्त पृथ्वी का 18 प्रतिशत है। प्लूटो का रंग काला, नारंगी और सफेद का मिश्रण है। कहा जाता है कि जितना अंतर प्लूटो के रंगों के मध्य होता है उतना सौरमंडल की बहुत ही कम वस्तुओं में देखा जाता है अथार्त उनपर रंग ज्यादातर एक जैसे ही होते हैं। सन् 1994 से लेकर 2003 तक किए गए अध्धयन में देखा गया है कि प्लूटो ग्रह के रंगों में बदलाव आया है। उत्तरी ध्रुव का रंग थोडा उजला हो गया था और दक्षिणी ध्रुव थोडा गाढ़ा। माना जाता है कि यह प्लूटो पर बदलते मौसमों का इशारा है।
प्लूटो ग्रह का वायुमंडल :
प्लूटो ग्रह का वायुमंडल बहुत पतला है जिसमें नाइट्रोजन, मीथेन और कार्बन डाईऑक्साइड है। जब प्लूटो परिक्रमा करते हुए सूर्य से दूर हो जाता है तो उस पर ठंड बढ़ जाती है और इन्हीं गैसों का कुछ भाग जमकर बर्फ की तरह उसकी सतह पर गिर जाता है जिससे उसका वायुमंडल और भी पतला हो जाता है। जब प्लूटो सूर्य के पास आता है तब उसकी सतह पर पड़ी इस बर्फ का कुछ भाग गैस बनकर वायुमंडल में आ जाता है।
प्लूटो ग्रह का चंद्रमा :
प्लूटो ग्रह के 5 ज्ञात उपग्रह हैं – सन् 1978 में खोजा गया शैरान जो सबसे बड़ा है और जिसका व्यास प्लूटो के व्यास का आधा है, वर्ष 2005 में खोजे गए दो नन्हे चंद्रमा निक्स और हाएड्रा, स्टिक्स और 20 जुलाई, 2011 को घोषित किया गया कर्बेरॉस जो आकार में 30 किलोमीटर चौड़ा है। शैरान सबसे बड़ा है और प्लूटो के बहुत नजदीक भी है।
इनकी कक्षाओं का केंद्र इनके अंदर न होकर कहीं बीच में ही है इसलिए कभी-कभी इन्हें जोड़ा या युग्मक वाले ग्रह भी कहा जाता है जो एक-दूसरे के साथ-साथ चलते हैं। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ ने आज तक युग्मक बौने ग्रहों की कोई भी ठोस परिभाषा नहीं गढ़ी है इसलिए फिलहाल आधिकारिक तौर पर शैरान को प्लूटो का उपग्रह ही माना जाता है।
ग्रह का बौना ग्रह :
सन् 1930 में अमेरिका खगोलशास्त्री क्लाइड टॉमबौ ने प्लूटो को खोज निकाला और इसे सौरमंडल का नौवा ग्रह मान लिया गया। धीरे-धीरे प्लूटो के विषय में कुछ ऐसी बातें पता चली जो अन्य ग्रहों से बिलकुल अलग थीं जैसे- इसकी कक्षा बहुत ही अजीब थी।
अन्य ग्रह के बाहर एक अंडाकार कक्षाओं में सूर्य की परिक्रमा करते हैं लेकिन प्लूटो की कक्षा वरुण की कक्षा की तुलना में कभी सूर्य के अधिक समीप होती थी तो कभी कम। इसकी कक्षा अन्य ग्रहों की कक्षा की तुलना में ढलान पर थी। अन्य ग्रहों की कक्षाएं किसी एक ही चपटे हुए चक्र में हैं जिस तरह जलेबी के लच्छे एक ही चपटे आकार में होते हैं।
प्लूटो की कक्षा इस चपटे चक्र से कोण पर थी। स्मरण रहे कि इस कोण के कारण प्लूटो और वरुण की कभी टक्कर नहीं हो सकती क्योंकि उनकी कक्षाएं एक-दूसरे को कभी नहीं काटती हालाँकि चित्रों में कभी-कभी ऐसा लगता है। इसका आकार बहुत ही छोटा होता था। इससे पहले सबसे छोटा ग्रह बुध था। प्लूटो बुध से आधे से भी छोटा था।
इन बातों से खगोलशास्त्रियों के मन में शंका बन गई थी कि कहीं प्लूटो वरुण का कोई भागा हुआ उपग्रह तो नहीं है हालाँकि इसकी संभावना भी कम थी क्योंकि प्लूटो और वरुण परिक्रमा करते हुए कभी अधिक समीप नहीं आते। सन् 1990 के बाद वैज्ञानिकों को बहुत सी वरुण-पार वस्तुएं मिलने लगीं जिनकी कक्षाएं, रूपरंग और बनावट प्लूटो से मिलती जुलती थी।
आज वैज्ञानिकों ने यह जान लिया है कि सौरमंडल के इस क्षेत्र में एक पूरा घेरा है जिसमें ऐसी ही वस्तुएं पाई जाती है जिनमें से प्लूटो केवल एक है। इसी घेरे का नाम काइपर घेरा रखा गया। साल 2004 से 2005 में इसी काइपर घेरे में हउमेया और माकेमाके मिले जो बहुत बड़े थे। साल 2005 में काइपर घेरे से भी बाहर एरिस मिला जो प्लूटो से बड़ा था।
ये सभी बाकी ग्रहों से अलग और प्लूटो से मिलते-जुलते थे। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ असमंजस में पड़ गया क्योंकि लगने लगा कि ऐसी कितनी ही वस्तुएं आने वाले सालों में मिलेंगी। या तो ये सभी ग्रह थे या फिर प्लूटो को ग्रह बुलाना बंद करके कुछ और बुलाने की आवश्यकता थी। 13 सितंबर, 2006 को इस संघ ने ऐलान किया कि प्लूटो ग्रह नहीं है और उन्होंने एक नई बौना ग्रह श्रेणी स्थापित की। प्लूटो, हउमेया, माकेमाके और ऍरिस अब बौने ग्रह कहलाते हैं।
न्यू होराइजंस :
न्यू होराइजंस अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान संस्था नासा का एक अंतरिक्ष शोध यान है जो प्लूटो के अध्धयन के लिए छोड़ा गया था। इस यान का प्रक्षेपण 19 जनवरी, 2006 को किया गया था जो नौ साल के बाद 14 जुलाई, 2015 को प्लूटो के सबसे समीप से होकर गुजरा। प्लूटो और इसके उपग्रह शैरान के सबसे निकट से यह यान 14 जुलाई, 2015 को 12:03:50 बजे गुजरा।
इस वक्त इस यान की प्लूटो से दूरी लगभग 12,500 किलोमीटर थी और यह लगभग 14 किलोमीटर प्रति सेकेण्ड के वेग से गुजर रहा था। नासा के अन्तरिक्ष यान न्यू होराइजंस मिलने वाले सिग्नल को लेकर वैज्ञानिकों में चिंता बढ़ रही है। वैज्ञानिक इस बात की पुष्टि का इंतजार कर रहे हैं कि क्या यान का सफर वास्तव में सफल रहा या नहीं।
वैज्ञानिकों को बुधवार सुबह पता चला कि अंतरिक्ष यान ने ठीक से काम किया या नहीं। इससे पहले मंगलवार को अमेरिकी अन्तरिक्ष एजेंसी नासा का अंतरिक्ष यान नौ साल के सफर के बाद प्लूटो के समीप पहुंचा था। न्यू होराइजंस ने प्लूटो का व्यास 2,370 किलोमीटर बताया है जबकि इसका व्यास 2300 किलोमीटर माना जाता था।
इस नई जानकारी के बाद अब इस बात की पुष्टि हो जाती है कि प्लूटो और सौरमंडल की बाहरी सीमा में अब तक का सबसे बड़ा ग्रह है। नासा ने अपना अंतरिक्ष यान एक खास अभियान पर भेजा है जो प्लूटो की नई तस्वीरें और जानकारियां जुटाएगा।
न्यू होराइजंस के साथ उपकरण बर्फीले ग्रह प्लूटो की सतह की विशेषताओं, उसकी बनावट और वायुमंडल का विस्तृत नक्शा तैयार करेगा। संभावना है कि इससे प्लूटो के विषय में नई-नई बातें सामने आ सकती हैं जो सौरमंडल के विषय में हमारी सोच बदल सकती है। इस अभियान के साथ ही अब सोलर सिस्टम के सभी ग्रहों पर एक-एक बार यान पहुंच चुका है। प्रोफेसर स्टीफन हॉकिंग ने इस अभियान के लिए वैज्ञानिकों को बधाई दी है।
प्लूटो को ग्रह की पंक्ति से निकालने का कारण :
साल 2006 में आई०ए०यू० की चेक गणराज्य की राजधानी प्राग में एक मीटिंग हुई जहाँ पर ऑफिशियली सौरमंडल के ग्रह प्लूटो को नौवें स्थान से हटा दिया गया। अब यहाँ पर वैज्ञानिको को जो करना था उन्होंने वो कर दिया प्लूटो को हटाना था हटा दिया लेकिन जब यह खबर अन्य वैज्ञानिकों को मिली तो दुनिया के बहुत से वैज्ञानिकों ने इस फैसले की आलोचना भी की कि बिना किसी वजह के प्लूटो को हटाना सही नहीं है।
वैज्ञानिको के इस विरोध की एक वजह तो यह थी कि आई०ए०यू० में दुनिया भर के करीब 10 हजार वैज्ञानिक शामिल हैं लेकिन चेक रिब्लिक ने जब प्लूटो को सौरमंडल के ग्रह की पंक्ति से हटाया तब केवल 4% वैज्ञानिक ही इस निर्णय के साथ थे।
मतलब लगभग 400 वैज्ञानिक ऐसे थे जो प्लूटो को हटाना चाहते थे और अन्य 9600 वैज्ञानिक ऐसे थे जो इस निर्णय से सहमत नहीं थे फिर भी वैज्ञानिक इतने छोटे से पैनल ने यह निर्णय ले लिया जिसको दुनिया के कई संगठन अवमान्य घोषित कर चुके हैं।
हमारे सौरमंडल में ग्रहों के होने की और उसकी पहचान के लिए भी कुछ सिद्धांत तय किए गए हैं। जिनको आधार मानकर हम यह तय कर सकते हैं कि वह ग्रह है या उपग्रह है या कोई उल्कापिंड है लेकिन प्लूटो के एक ग्रह होने के लिए उसके पास बहुत प्रमाण थे फिर भी ग्रहों की पंक्ति से हटा दिया गया।
प्लूटो ग्रह के विषय में रोचक तथ्य :
प्लूटो सौरमंडल के ग्रहों के सात उपग्रहों से छोटा है जिनमें पृथ्वी का चंद्रमा भी शामिल है। प्लूटो पृथ्वी के चाँद के व्यास का 65% और द्रव्यमान का केवल 18% है। प्लूटो की कक्षा बहुत अधिक अंडाकार है जिसकी वजह से प्लूटो के लगभग 20 साल वरुण के मुकाबले सूर्य के अधिक समीप रहता है।
हाल ही में यह जनवरी 1979 से फरवरी 1999 तक वरुण के मुकाबले सूर्य के ज्यादा समीप रहा। प्लूटो का एक तिहाई भाग जल बर्फ से बना है जो पृथ्वी पर उपस्थित पानी से तीन गुना अधिक है। इसका बाकी का दो तिहाई भाग चट्टानों से बना हुआ है। इसके चमकदार क्षेत्र नाइट्रोजन की बर्फ के साथ कुछ मात्रा में मीथेन, इथेन, कार्बन मोनो ऑक्साइड की बर्फ से ढके है।
प्लूटो का वायुमंडल निश्चित नहीं है। जब यह सूर्य के समीप होता है तो इस पर जमी हुई नाइट्रोजन, मीथेन और कार्बन मोनो ऑक्साइड गैसों में बदल जाती है लेकिन सूर्य से दूर होने पर यह फिर से जम जाती है और इसका कोई वायुमंडल नहीं रहता। वैज्ञानिक चाहते है कि इस ग्रह पर यान तब भेजा जाए जब इसका वायुमंडल न हो।
प्लूटो के पास आज तक एक ही अंतरिक्ष यान पहुंच पाया है और वह है न्यू होराइजंस। यह यान 19 जनवरी, 2006 को लांच किया गया था और 14 जुलाई, 2015 को कुछ ही घंटे के लिए प्लूटो के पास से गुजरा। इस यान ने इतने से समय में ही इस ग्रह की बहुत सी तस्वीरें लीं और कई गणनाएं भी की।
इन तस्वीरों में साफ-साफ दिखाई दे रहा था कि प्लूटो पर कई बर्फीली पर्वत श्रंखलाएं हैं। इसके अलावा यह भी पता चला कि प्लूटो का आकार अनुमान से बड़ा है। प्लूटो की खोज अरुण और वरुण की गति के आधार पर की गई गणना में गलती की वजह से हुई। इस गलती के अनुसार अरुण-वरुण की कक्षा पर अन्य कोई पिंड प्रभाव डालता है।
वैज्ञानिक क्लाइड टामबाग इस गलती से अनजान थे और उन्होंने सारे आकाश का सावधानीपूर्वक निरिक्षण करके प्लूटो को खोज निकाला। लेकिन प्लूटो की खोज के बाद यह पता चला कि यह ग्रह इतना छोटा है कि किसी दूसरे ग्रह की कक्षा पर प्रभाव नहीं डाल सकता।
वैज्ञानिकों को इस गणना की गलती का पता चला तब तक नहीं चला जब तक वायेजर द्वितीय से प्राप्त आंकड़ों से यह स्पष्ट नहीं हो गया की अरुण और वरुण की कक्षाएं न्यूटन के नियमों का पालन करती है और उन पर कोई अन्य X ग्रह प्रभाव नहीं डालता। वैज्ञानिक इस X ग्रह को प्लूटो की खोज के बाद भी वायेजर द्वितीय से लिए गए आंकड़ों से प्राप्त होने तक खोजते रहे लेकिन यह X ग्रह मिलना ही असंभव था क्योंकि कोई X ग्रह नहीं था।