मूलाधार चक्र क्या है
मूलाधार दो शब्दों से मिलकर बना है मूल + आधार। जहाँ पर मूल का अर्थ होता है जड़ और आधार का अर्थ होता है नीवं। मनुष्य शरीर का निर्माण उसकी माँ के गर्भ से होता है तो उसकी जड़ें वहीँ से होती है और उसका आधार भी वही है। आपको पता ही होगा कि शिशु के मनुष्य रूप में आकार लेने से पहले वो मात्र एक मांस का गोला होता है। धीरे धीरे वो मनुष्य शरीर धारण करता है। ये मनुष्य के रीढ़ की हड्डी के बिलकुल नीचे स्थित होता है। जिसके कारण इसे जड़ चक्र के नाम से भी जाना जाता है। यह मानव चक्रों में सबसे पहला चक्र है और इसका भौतिक शरीर के साथ एक अभिन्न संबंध है।
जैसे किसी इमारत की बुनियाद सबसे महत्वपूर्ण होता है, उसी तरह मूलाधार सबसे महत्वपूर्ण चक्र होता है। अगर आपका मूलाधार मजबूत हो, तो जीवन हो या मृत्यु, आप स्थिर रहेंगे क्योंकि आपकी नींव मजबूत है और बाकी चीजों को हम बाद में ठीक कर सकते हैं।
इस चक्र की 2 संभावनाएं हैं। इसकी पहली प्राकृतिक संभावना है सेक्स की और दूसरी संभावना है ब्रम्हचर्य की, जो ध्यान से प्राप्य है। सेक्स प्राकृतिक संभावना है और ब्रह्मचर्य इसका परिवर्तन है।
अब इसका मतलब है कि हम दो तरह से प्रकृति द्वारा दी गई स्थिति का उपयोग कर सकते हैं। हम ऐसी स्थिति में रह सकते हैं जैसे प्रकृति ने हमें अंदर रखा है – लेकिन फिर आध्यात्मिक विकास की प्रक्रिया शुरू नहीं हो सकती है – या हम इस अवस्था को बदल सकते हैं।
दमन ध्यान के पथ पर एक बाधा है। दमन होने पर परिवर्तन नहीं आ सकता है।
यदि दमन एक बाधा है, तो समाधान क्या है?
समझने से इस मामले का हल होगा। जैसे-जैसे आप सेक्स को समझना शुरू करते हैं, वैसे-वैसे परिवर्तन होते हैं। इस के लिए एक कारण है।
प्रकृति के सभी तत्व हमारे भीतर अंधे और बेहोश होते हैं। अगर हम उनके बारे में जागरूक हो जाते हैं, तो परिवर्तन शुरू होता है। जागरूकता क्रिया है; जागरूकता उन्हें बदलना, उन्हें बदलने की क्रिया है। यदि कोई व्यक्ति अपनी यौन इच्छाओं को अपने सभी भावनात्मक और बौद्धिक संकायों के साथ जागृत करता है, तो उसके भीतर यौन संबंध के स्थान पर ब्रह्मचर्य उत्पन्न होगा।
मूलाधार चक्र का मंत्र :-
इस चक्र का मन्त्र होता है – लं। मूलाधार चक्र को जाग्रत करने के लिए आपको लं मंत्र का जाप करते हुए ध्यान लगाना होता है।
मूलाधार चक्र का स्थान :-
यह चक्र मेरुदंड की अंतिम हड्डी या गुदाद्वार के मुख्य के पास स्थित होता है।
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मूलाधार चक्र जागृत करने की विधि :-
यह मानव चक्रों में सबसे पहला है। मूलाधार चक्र में 4 पंखुडियां होती है अथार्त इस पर स्थित 4 नाड़ियाँ आपस में मिलकर इसके आकर की रचना करती हैं। इसके सबसे नीचे स्थित होने के कारण ही इसे आधार चक्र कहा जाता है। मनुष्य तब तक पशुवत है, जब तक कि वह इस चक्र में जी रहा है इसीलिए भोग, निद्रा और संभोग पर संयम रखते हुए इस चक्र पर लगातार ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। इसको जाग्रत करने का दूसरा नियम है यम और नियम का पालन करते हुए साक्षी भाव में रहना।
मूलाधार चक्र के जागरण नियम :-
मूलाधार चक्र को जागृत करने के लिए आपको कुछ नियमों का पालन करना होगा इनका पालन करके ही आप मूलाधार चक्र को जागृत करने में समक्ष बन सकते हैं |वो नियम हैं जैसे कुछ दुष्कर्मों जैसे संभोग, भोग और नशा से दूर रहना होगा | जब तक कोई व्यक्ति अपने पहले शरीर में ब्रह्मचर्य तक नहीं पहुंचता, फिर अन्य केंद्रों (चक्र) की संभावना पर काम करना मुश्किल होता है।
मूलाधार चक्र जागरण के प्रभाव :-
जब मनुष्य के अन्दर मूलाधार चक्र जागृत हो जाता है अपने आप ही उसके स्वभाव में परिवर्तन आने लगता है | व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। और दुसरे शब्दों में हम कह सकते हैं की सिद्धियां प्राप्त करने के लिए वीरता, निर्भीकता और जागरूकता का होना जरूरी है। इस चक्र के जागृत होने से मन में आनंद का भाव भी उत्पन्न हो जाता है | ध्यान रहे की सबसे पहले मूलाधार चक्र को ही जागृत करना पड़ता है | जब व्यक्ति अपनी कुंदिलिनी शक्ति को जाग्रत करना चाहता है तो उसकी शुरुआत भी उसे मूलाधार चक्र से ही करनी पड़ती है