सीत्कारी प्राणायाम क्या है :-
सीत्कारी’ का अर्थ होता हैं ठंडक मतलब एसी चीज जो हमारे शरीर और मन को ठंडक पहुचती हैं इस प्राणायाम को करते समय मुंह से ‘सीत्’ शब्द की आवाज निकालनी होती हैं। और इसी कारण से इस प्राणायाम का नाम सीत्कारी प्राणायाम पड़ा। यह प्राणायाम भी बेहद सरल और उपयोगी प्राणायाम हैं। यह अभ्यास कूलिंग प्राणायाम के अंतर्गत आता है। इन अभ्यासों को गर्मी के मौसम में ही करना चाहिए। चलिए जानते हैं इसके फायदे और इस प्राणायाम को कैसे किया जाता है।
सीत्कारी प्राणायाम करने की विधि :-
1- सबसे पहले किसी स्वच्छ व् समतल जमीन पर दरी बिछा कर उस पर सिद्धासन की मुद्रा में बैठ जाये।
2- अब अपने मेरुदंड व् सिर को सीधा रखें।
3- अब अपने नीचे के जबड़े के दांतों को ऊपर के जबड़े के दांतों पर रखें।
4- अब अपने दांतों के पीछे अपनी जीभ को लगाये और अपने मुंह को थोडा सा खुला रखें ताकि श्वास अंदर आ सके।
5- अब अपनी जीभ को पीछे की ओर मोड़कर तालू से जीभ के अग्र भाग को लगा लें।
6- अब अपने दातों के बिच की जगह से श्वास धीरे-धीरे अन्दर लें।
7- श्वास ऐसा लें की सी की आवज हो।
8- अब अपनी श्वास को कुछ क्षणों तक रोक कर रखे फिर बाद में नाक से निकाल दें।
9- यही प्रिक्रिया 10-15 बार दोहरायें।
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सीत्कारी प्राणायाम करने की अविधि :
इसका अभ्यास हर रोज़ करेंगे तो आपको अच्छे परिणाम मिलेंगे। सुबह के समय और शाम के समय खाली पेट इस प्राणायाम का अभ्यास करना अधिक फलदायी होता हैं। इस क्रिया को अपनी क्षमता के अनुसार दस से पन्द्रह बार तक करने का प्रयास करें।
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सीत्कारी प्राणायाम के लाभ :
1- आक्सीजन की मात्रा को रखे बरकरार :- सीत्कारी प्राणायाम के नियमित अभ्यास करने से शरीर में आक्सीजन की मात्रा कम नहीं होती।
2-रक्त संचार प्रक्रिया के लिए :- इसके नियमित अभ्यास से शरीर में रक्त संचार प्रक्रिया में सुधार आता है। अगर हमारा रक्त संचार सामान्य रहे तो दिल की बीमारियां न हों और न ही दूसरी बीमारियां।
3-शरीर में फुर्ती लाता है :- इसको करने से शरीर की थकान दूर होकर शरीर में फुर्ती आती है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार थकान, रुचि और इच्छा कम होने की अवस्था है। शारीरिक थकान का सामान्य अर्थ मन अथवा शरीर की सामथ्र्य के घट जाने से लिया जाता है। ऐसी हालत में आदमी से काम नहीं होता या बहुत कम होता है। थका हुआ व्यक्ति निष्क्रिय पड़ा रहता है।इसके सुबह–सुबह अभ्यास से पुरे दिन शरीर में स्फूर्ति बनी रहती है।
4-नीद से निजात पायें :- अच्छी नींद आना आवश्यक होता है क्योंकि इससे थकान दूर होकर शरीर ऊर्जा , शक्ति और ताकत से भर जाता है। अगर आपकी नींद ही अच्छी तरह से पूरी नही होगी तो आपके लिए ये घातक सिद्ध हो सकता हैं | अगर आपको नींद की समस्या है तो आप इस प्राणायम के अभ्यास से नींद न आने की समस्या से निजात पा सकते हैं।
5-पसीना नही आता :- इससे पूरे शरीर में शीतलता आती है और पसीना नहीं आता। पसीना आना हमारे शरीर का स्वाभाविक काम है। जिससे शरीर का तापमान नियंत्रण में रहता है। पसीना त्वचा पर अलग होता है और भाप बनकर निकलता है जिससे शरीर ठंडा होने लगता है। यह सिर्फ तब होता है जब जरूरत होती है, यानी तब, जब शरीर का तापमान एक सीमा से पार हो जाए।
6-भूक को बढाता है :- भूख-प्यास ना लगने की समस्या दूर होती है। भूख न लगने को मेडिकल भाषा में एनोरेक्सिया (Anorexia) या अरुचि रोग कहते हैं। एनोरेक्सिया (Anorexia) या अरुचि रोग में रोगी को भूख नहीं लगती, यदि जबरदस्ती भोजन किया भी जाए तो वह अरुचिकर लगता है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति 1 या 2 ग्रास से ज्यादा नहीं खा पाता और उसे बिना कुछ खाये -पिये ही खट्टी डकारें आने लगती हैं।
7-शारीरिक आभा को बढाए :- इस प्राणायाम के नियमित सुबह-सुबह अभ्यास से शारीरिक आभा को बढ़ाया जा सकता है।
8- इन सभी बीमारियों को ठीक करता है :- इसको करने से कई तरह के रोग जैसे दंत रोग, पायरिया, गले और मुंह के रोग, नाक और जीभ के रोगो से लाभ मिलता है।
9- पेट की जलन से निजात :- इस प्राणायाम का अभ्यास पेट में जलन की समस्या को दूर करता हैं। हम जो खाना खाते हैं, उसका सही तरह से पचना बहुत ज़रूरी होता है। पाचन की प्रक्रिया में हमारा पेट एक ऐसे एसिड को स्रावित करता है जो पाचन के लिए बहुत ही ज़रूरी होता है।
10-शरीर के तापमान को रखे संतुलित :- इसके नियमित अभ्यास से शरीर का तापमान संतुलित रहता है।जब शरीर का ताप सामान्य से अधिक हो जाये तो उस दशा को ज्वर या बुख़ार (फीवर) कहते है। यह रोग नहीं बल्कि एक लक्षण (सिम्टम्) है जो बताता है कि शरीर का ताप नियंत्रित करने वाली प्रणाली ने शरीर का वांछित ताप (सेट-प्वाइंट) १-२ डिग्री सल्सियस बढा दिया है।
11-चेहरे पर चमक बने :- इस प्राणायाम के अभ्यास से हम अपने चेहरे पर प्राक्रतिक चमक ला सकते हैं। क्योंकि यह ब्लड को सुद्ध करता है अगर हमारा ब्लड साफ़ हो जाता है तो अपने आप ही चेहरे पर प्रक्रतिक चमक बढ़ जाती है।
12- भीतरी अंगो की करे सफाई :- यह प्राणायाम शरीर की भीतरी अंगों की भी सफाई करता है। भीतरी गन्दगी आँखों से दिखाई नहीं देती उसे केवल अनुभव से या लक्षणों से जाना जाता है। इसलिए अनेक लोगों का ध्यान उस तरफ नहीं जाता। पर कुछ भी हो वह गन्दगी अधिक हानि पहुँचाने वाली होती है और धीरे−धीरे हमारे समस्त शरीर को मल से भर देती है।
सीत्कारी प्राणायाम करने में सावधानी :-
इस प्रणायाम को हमेशा खाली पेट ही करना चाहिए। मुह में कफ व टॉन्सिल के रोगियों को यह प्राणायाम बिलकुल नहीं करना चाहिए। सर्दियों के मौसम में इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए। खुली साफ जगह पर ही इसका अभ्यास करें धूल वाले स्थान से बचें। अस्थमा, सर्दी और खांसी की बीमारी में इस प्राणायाम को न करें। मुंह में कफ व टॉन्सिल के रोगियों को सीत्कारी प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
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