भ्रामरी प्राणायाम क्या है :
भ्रमर का अर्थ ही मधुमक्खी होता है। इस प्राणायाम को करते समय व्यक्ति बिल्कुल मधुमक्खी की तरह ही गुंजन करता है, इसलिए इसे भ्रामरी प्राणायाम कहते है। भ्रामरी संस्कृत शब्द ‘भ्रमर’ से आया है जिसका अर्थ भारतीय काली मधुमक्खी। यह प्राणायाम अंग्रेज़ी में Bee-Breathing Technique के नाम से भी जाना जाता है। इस प्राणायाम में उंगलियो का उपयोग करके आँखे और कान बंद करने पड़ते है। चलिए जानते हैं इससे होने वाले लाभ और इसको कैसे किया जाए :-
भ्रामरी प्राणायाम की विधि :-
1- सबसे पहले एक स्वच्छ और समतल जगह पर चटाई बिछाकर उस पर पद्मासन या सुखासन की अवस्था में बैठ जाएँ।
2- अब अपने दोनों हाथों को ऊपर उठाकर कंधों के समांतर ले जाये।
3- अब अपने दोनों हाथों को कोहनियों से मोड़कर अपने कानो के पास लायें।
4- फिर अपने दोनों हाथों के अंगूठों से अपने दोनों कानो को बंद कर लें।
5- अब दोनों हाथो की तर्जनी उंगली को माथे पर और मध्यमा , अनामिका और कनिष्का उंगली को आँखों के ऊपर रखना हैं।
6- अब अपना मूंह बिल्कुल बंद रखें और अपने नाक के माध्यम से सामान्य गति से सांस अंदर लें। फिर नाक के माध्यम से ही मधु-मक्खी जैसी आवाज़ करते हुए सांस बाहर निकालें।
7- सांस बाहर निकालते हुए “ॐ” का उच्चारण करना चाहिए।
8- शुरुआत में ये प्राणायाम 5-7 मिनिट तक करे और अभ्यास के साथ समय बढ़ाये।
भ्रामरी प्राणायाम करने का समय और अविधि :-
इसका अभ्यास हर रोज़ करेंगे तो आपको अच्छे परिणाम मिलेंगे। सुबह के समय और शाम के समय खाली पेट इस प्राणायाम का अभ्यास करना अधिक फलदायी होता हैं। सांस अंदर लेने का समय करीब 5-7 सेकंड तक का होना चाहिए और बाहर छोड़ने का समय 15-20 सेकंड तक का होना चाहिए। भ्रामरी प्राणायाम को अपने आसन अभ्यास को समाप्त करने के बाद ही करें।
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भ्रामरी प्राणायाम के लाभ :-
1- तनाव से मुक्ति पाने के लिए :- तनाव कम करने और मानसिक तनाव से मुक्ति पाने के लिए भ्रामरी प्राणायाम बहुत ही लाभदायक होता है। चिकित्सा शास्त्र डिप्रेशन का कारण मस्तिष्क में सिरोटोनीन, नार-एड्रीनलीन तथा डोपामिन आदि न्यूरो ट्रांसमीटर की कमी मानता है। तो आप इन सब से छुटकारा पाने के लिए भ्रामरी प्राणायाम को करें। और इसके साथ-साथ इसको करने से व्यक्ति में आत्म विश्वास की भावना बढती है।
2-सकारात्मक सोच बढाने हेतु :- इस प्राणायाम के नियमित अभ्यास से हम अपनी स्मरणशक्ति व् सकारात्मक सोच बढ़ा सकते हैं। जब हमारी सोच सकारात्मक बन जाती है तो उसके परिणाम भी सकारात्मक आने लगते है। और इसके साथ-साथ ही इसके अभ्यास से मन और मस्तिष्क को शांति मिलती हैं।
3- Sinusitis के रोगियों के लिए :- Sinusitis के रोगियों को इससे राहत मिलती हैं। सर्दी के मौसम में नाक बंद होना, सिर में दर्द होना, आधे सिर में बहुत तेज दर्द होना, नाक से पानी गिरना इन सभी रोगों से छुटकारा पाने के लिए भ्रामरी प्राणायाम सबसे बेहतर प्राणायाम है इसके नियमित अभ्यास से हम इन सभी बीमारियों से छुटकारा पा सकते हैं।
4- उच्च रक्तचाप में फायदेमंद :- उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिए भ्रामरी प्राणायाम बहुत ही उपयोगी हैं। हाइपरटेंशन या उच्च रक्तचाप, जिसे कभी कभी धमनी उच्च रक्तचाप भी कहते हैं, एक पुरानी चिकित्सीय स्थिति है जिसमें धमनियों में रक्त का दबाव बढ़ जाता है।
5- कुंडलिनी शक्ति जागने हेतु :- इसके नियमित अभ्यास से हम अपनी कुंडलिनी शक्ति जागृत कर सकते हैं। कुंडलिनी योग के अनुसार, ईश्वर की शक्ति जो ब्रह्मांड को चलाती है उसे चैतन्य कहते है। एक व्यक्ति के विषय में, चैतन्य को चेतना कहते हैं और यह ईश्वरीय शक्ति का वह अंश है जो मनुष्य की क्रियाओं के लिए चाहिए होती है।
6- मधुर आवज के लिए :- भ्रामरी प्राणायाम लंबे समय तक अभ्यास करते रहने से व्यक्ति की आवाज़ मधुर हो जाती है।आपकी आवाज आपके व्यक्तित्व की पहचान होती है। सुरीली आवाज हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है।
7- थायरोइड समस्या से पीड़ित व्यक्ति के लिए :– थायरोइड समस्या से पीड़ित व्यक्ति को लाभ मिलता है। हाइपोथायराइडिज्म (Hypothyroidism) ऐसी मेडिकल कंडीशन है जिसमें थायराइड ग्रंथि में थायराइड हार्मोन कम मात्रा में बनने लगता है. भारत में करोडों लोग हाइपोथायराइडिज्म से ग्रस्त हैं।
8- रक्त दोषों से मुक्ति पाने के लिए :- इस प्राणायाम के नियमित अभ्यास करने से हर प्रकार के रक्त दोषों से मुक्ति पायी जा सकती है। खून के अशुद्ध होने पर खून में मौजूद हीमोग्लोबिन की मात्रा कम हो जाती है। ये घातक समस्या उत्पन्न कर सकता है और इसे ही रक्त दोष कहते है।
9- माइग्रेन के रोगियों के लिए :- माइग्रेन के रोगियों के लिए यह प्राणायाम लाभदायक है। बेवजह सिरदर्द के शिकार हो गए हों। सिरदर्द का एक गंभीर रूप जो बार-बार या लगातार होता है, उसे माइग्रेन कहते हैं। इस प्राणायाम का अभ्यास करके हम इस बिमारी से छुटकारा पा सकते हैं।
भ्रामरी प्राणायाम करते समय सावधानी बरतें :-
कान में दर्द होने पर यह प्राणायाम नहीं करना चाहिए। प्राणायाम करने का समय और चक्र धीरे-धीरे बढ़ाये । भ्रामरी प्राणायाम करते समय चक्कर आना, घबराहट होना, खांसी आना, सिरदर्द या अन्य कोई परेशानी होने पर प्राणायाम रोककर अपने डॉक्टर या योग विशेषज्ञ की सलाह लेना चाहिए। अगर आप भ्रामरी प्राणायाम शाम के वक्त कर रहे हैं तो प्राणायाम करने और शाम का भोजन लेने के समय के बीच कम से कम दो से तीन घंटे का अंतर ज़रूर रखे। भ्रामरी प्राणायाम करते वक्त दोनों कान के पर्ण की सहायता से कान ढकने होते हैं, अपनी उँगलियों को कान के अंदर नहीं डालना है।
Engliah में यहाँ से जाने – Bhramari Pranayama or Humming Bee Breathing