GST Kya Hai :
वस्तु एवं सेवा कर या जीएसटी भारत सरकार की नई अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था है जो 1 जुलाई, 2017 से लागू हो रही है लेकिन जीएसटी क्या है और वर्तमान टैक्स संरचना को कैसे सुधार देगा? इससे भी महत्वपूर्ण सवाल यह है कि भारत को एक नए टैक्स सिस्टम की आवश्यकता क्यों है?
जीएसटी लागू हुई एक ऐसी महत्वपूर्ण अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था है जिसे सरकार व कई अर्थशास्त्रियों द्वारा स्वतंत्रता के बाद सबसे बड़ा आर्थिक सुधार बताया गया है। इससे केंद्र एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा भिन्न-भिन्न दरों पर लगाए जा रहे विभिन्न करों को हटाकर पूरे देश के लिए एक ही अप्रत्यक्ष कर प्रणाली लागू की जाएगी जिससे भारत को एकीकृत साझा बाजार बनाने में मदद मिलेगी।
भारतीय संविधान में इस कर व्यवस्था को लागू करने के लिए संशोधन किया गया है। 1 जुलाई, 2017 से पूर्व किसी भी सामान पर केंद्र एवं राज्य सरकार के द्वारा कई प्रकार के अलग-अलग कर लगाए गए हैं लेकिन जीएसटी आने से सभी प्रकार के सामानों पर एक जैसा ही कर लगाया जाएगा पूर्व में किसी भी सामान पर 30 से 35% तक कर देना पड़ता था कुछ चीजों पर तो प्रत्यक्ष रूप से लगाया जाने वाला कर 50% से अधिक होता था।
जीएसटी आने के बाद यह कर अधिकतम 28% हो जाएगा जिसमें कोई भी अप्रत्यक्ष कर नहीं होगा। जीएसटी भारत की अर्थव्यवस्था को एक देश एक कर वाली अर्थव्यवस्था बना देगा। अभी भारतवासी 17 भिन्न-भिन्न प्रकार के कर चुकाते हैं जबकि जीएसटी लागू होने के बाद सिर्फ एक ही तरह का कर दिया जाएगा और इसके लागू होते ही एक्साइज ड्यूटी, सर्विस टैक्स, वैट, मनोरंजन कर, लग्जरी कर जैसे बहुत सारे कर खत्म हो जाएँगे।
जीएसटी लागू होने के बाद किसी भी सामान और सेवा पर कर वहां लगेगा जहाँ वह बिकेगा। जीएसटी भिन्न-भिन्न स्तर पर लगने वाले एक्साइज ड्यूटी, एडिशनल एक्साइज ड्यूटी, सेंट्रल सेल्स टैक्स, वैट, लक्जरी टैक्स, सर्विस कर आदि की जगह अब सिर्फ जीएसटी लगेगा। जीएसटी परिषद ने 66 प्रकार के प्रोडक्ट्स पर टैक्स की दरें घटाई हैं। भारत में संचालित जीएसटी टैक्स दर के अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत सहित सिर्फ 5 देशों में चार गैर स्तरीय स्लैब हैं।
जीएसटी :
जीएसटी भारत के कर ढांचे में सुधार का एक बहुत बड़ा कदम है। वस्तु एवं सेवा कर अप्रत्यक्ष कर कानून है। जीएसटी एक एकीकृत कर है जो वस्तुओं और सेवाओं दोनों पर लगेगा। जीएसटी लागू होने से पूरा देश एकीकृत बाजार में बदल जाएगा और अधिकतर अप्रत्यक्ष कर जैसे केंद्रीय उत्पाद शुल्क, सेवा कर, वैट, मनोरंजन, विलासिता, लॉटरी टैक्स इत्यादि जीएसटी में समाहित हो जाएँगे।
इससे पूरे भारत में एक ही तरह का अप्रत्यक्ष कर लगेगा। वस्तु एवं सेवा कर या जीएसटी एक व्यापक, बहु-स्तरीय, गंतव्य पर आधारित कर है जो हर मूल्य में जोड़ पर लगाया जाएगा। जीएसटी को समझने के लिए हमें इसकी परिभाषा के तहत शब्दों को समझना होगा।
बहु-स्तरीय शब्द का अर्थ होता है कोई भी वस्तु निर्माण से लेकर अंतिम उपभोग तक कई चरणों के माध्यम से गुजरती है। पहला चरण है कच्चे माल को खरीदना। दूसरा चरण उत्पादन या निर्माण होता है फिर सामग्रियों के भंडारण या वेर्हाउस में डालने की व्यवस्था है इसके बाद उत्पाद रिटेलर या फुटकर विक्रेता के पास आता है और अंतिम चरण में, रिटेलर आपको या अंतिम उपभोक्ता को अंतिम माल बेचता है।
इन चरणों में जीएसटी लगाया जाएगा और यह एक बहु-स्तरीय टैक्स होगा। इसी प्रकार वैल्यू एडिशन का अर्थ होता है कि निर्माता एक शर्ट बनाना चाहता है इसके लिए उसे धागा खरीदना होगा। यह धागा निर्माण के बाद एक शर्ट बन जाएगी तो इसका अर्थ है जब यह एक शर्ट में बुना जाता है तब धागे का मूल्य बढ़ जाता है।
फिर निर्माता इसे वेयरहाउसिंग एजेंट को बेचता है जो हर शर्ट में लेबल और टैग जोड़ता है। यह मूल्य का एक और संवर्धन हो जाता है इसके बाद वेयरहाउस उस रिलेटर को बेचता है जो हर शर्ट को अलग से पैकेज करता है और शर्ट के विपणन में निवेश करता है इस तरह से निवेश करने से हर शर्ट के मूल्य में बढौती होती है।
इस प्रकार हर चरण में मौद्रिक मूल्य जोड़ दिया जाता है जो मूल रूप से मूल्य संवर्धन होता है। इस मूल्य संवर्धन पर जीएसटी लगाया जाएगा। परिभाषा में एक और शब्द है जिसके बारे में हमें बात करने की जरूरत है गंतव्य आधारित। पूरी विनिर्माण श्रंखला के दौरान होने वाले सभी लेनदेन पर जीएसटी लगाया जाएगा।
इससे पहले जब एक उत्पाद का निर्माण किया जाता था तो केंद्र ने विनिर्माण पर उत्पाद शुल्क या एकसाइस ड्यूटी लगती थी। अगले चरण में जब आइटम बेचा जाता है तो राज्य वैट जोड़ता है फिर बिक्री के अगले स्तर पर एक वैट होगा। अब बिक्री के हर स्तर पर जीएसटी लगाया जाएगा।
मान लें कि पूरी निर्माण प्रक्रिया राजस्थान में हो रही है और कर्नाटक में अंतिम बिक्री हो रही है चूँकि जीएसटी खपत के समय लगाया जाता है इसलिए राजस्थान राज्य को उत्पादन और वेयरहाउसिंग के चरणों में राजस्व मिलेगा लेकिन जब उत्पाद राजस्थान से बाहर हो जाता है और कर्नाटक में अंतिम उपभोक्ता तक पहुंच जाता है तो राजस्थान को राजस्व नहीं मिलेगा इसका अर्थ यह है कि कर्नाटक अंतिम बिक्री पर राजस्व अर्जित करेगा क्योंकि यह गंतव्य आधारित कर है।
इसका अर्थ यह है कि कर्नाटक अंतिम बिक्री पर राजस्व अर्जित करेगा क्योंकि यह गंतव्य आधारित कर है और यह राजस्व बिक्री के अंतिम गंतव्य पर एकत्र किया जाएगा जो कि कर्नाटक है।
जीएसटी बिल :
जीएसटी बिल 3 अगस्त, 2016 को हमारे भारत देश में पारित किया गया है। जीएसटी गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स है जिसका अर्थ वस्तु एवं सेवा कर होता है। सरकार ने इसे 1 जुलाई, 2017 से विशेष क्षेत्रों में लागू करने का फैसला लिया है। सरकार के अनुसार इससे टैक्स देने वालों को बहुत सुविधा मिलेगी हालाँकि इस समय टैक्स भरने वालों के लिए यह निर्णय जल्दबाजी के साथ सामने आया है।
जीएसटी के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया :
1. रजिस्ट्रेशन : 25 जून से 30 जून तक जीएसटी रजिस्ट्रेशन एक बार फिर से आरंभ हुआ है। इस बार अनरजिस्टर्ड या नए करोबारी भी अप्लाई कर सकेंगे।
2. रजिस्ट्रेशन का स्थान : देशभर में व्यवसाईयों के लिए कॉमन पोर्टल जीएसटी.गवर्नमेंट.इन है। आप जिस विभाग में रजिस्टर्ड हैं उसके जरिए आपको जीएसटीएन आईडी और पासवर्ड भेजा गया होगा। अनरजिस्टर्ड व्यवसाईयों के लिए 25 जून को पोर्टल ओपन होते ही एक खास लिंक दिया जाएगा जहाँ से वे अपने लिए आईडी-पासवर्ड जेनरेट कर सकते हैं। आईडी वेरिफिकेशन के पश्चात ईमेल आईडी और मोबाइल नंबर डालें। ओटीपी की सहायता से आईडी पासवर्ड बदल लें। अनरजिस्टर्ड ट्रेडर्स को उनके मौजूदा डॉक्युमेंट्स के आधार पर आईडी जेनरेट करने का मौका मिलेगा।
3. रजिस्ट्रेशन करने का तरीका : जीएसटी पोर्टल पर लॉग-इन करें। प्रविजनल आईडी-पासवर्ड एंटर करें।
4. रजिस्ट्रेशन के लिए आवश्यकता की वस्तुएं : आईडी-पासवर्ड एंटर करते ही एनरॉलमेंट एप्लिकेशन पेज पर जाएँगे जहाँ भिन्न-भिन्न आठ टैब पर क्लिक को यह जानकारी दें – बिजनेस डिटेल्स, प्रमोटर या पार्टनर, अथॉराइज्ड सिग्नेटरी, व्यवसाय का मुख्य स्थान, करोबार का अतिरिक्त स्थान, सामान और सेवाएं, बैंक अकाउंट। फिर डिजिटल सिग्नेचर का पेज खुलेगा जिसे सबमिट करने के पंद्रह मिनट के अंदर आपको एप्लिकेशन रेफरेंस नंबर मिल जाएगा।
5. यहाँ मिलेगी सहायता : किसी भी प्रकार की समस्या होने पर [email protected] पर अपनी डिटेल्स भेज सकते हैं या हेल्पलाइन नंबर 1800-1200-232 पर कॉल कर सकते हैं।
6. किसके लिए है रजिस्ट्रेशन : यदि टर्नओवर 20 लाख रूपए के ऊपर है और आप वैट, एक्साइज या सर्विस टैक्स में रजिस्टर्ड हैं तो बिना प्रोविजिनल जीएसटी रजिस्ट्रेशन के जीएसटी के लागू होते ही आप अनरजिस्टर्ड कैटेगरी में आ जाएंगे। नए रजिस्ट्रेशन के लिए 30 दिनों का समय होगा। पिछले इनपुट क्रेडिट और रिफंड के लिए आपको रजिस्टर्ड होकर माइग्रेट करना चाहिए।
7. रजिस्ट्रेशन के लिए खर्च : यदि स्वंय कर रहे हैं तो मुफ्त हो सकता है क्योंकि रजिस्ट्रेशन की कोई फीस नहीं है। सीए या आईटी सोल्यूशन फर्म की सहायता में कर रहे हैं तो एक हजार से तीन हजार रूपए तक खर्च हो सकता है।
8. GS-TIN क्या है : एनरॉलमेंट नंबर मिलने का अर्थ है कि रजिस्ट्रेशन लगभग तय। डिपार्टमेंट सेल्स डिटेल्स के साथ जानकारियां अपलोड करने को कह सकता है। इसके बाद एक प्रोविजिनल जीएसटी रजिस्ट्रेशन नंबर जारी होगा जो जीएसटी लागू होने के बाद स्थायी टिन नंबर होगा।
कर की प्रकृति :
जीएसटी एक मूल्य वर्धित कर है जो विनिर्माता से लेकर उपभोक्ता तक वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति पर एक एकल कर है। हर चरण पर भुगतान किए गए इनपुट करों का लाभ मूल्य संवर्धन के बाद चरण में उपलब्ध होगा जो हर चरण में मूल्य संवर्धन पर जीएसटी को आवश्यक रूप से एक कर बना देता है।
अंतिम उपभोक्ताओं को इस तरह आपूर्ति श्रंखला में अंतिम डीलर द्वारा लगाया गया जीएसटी ही वहन करना होगा। इससे पिछले चरणों के सभी मुनाफे समाप्त हो जाएँगे। चुंगी, सेंट्रल सेल्स टैक्स, राज्य स्तर के सेल्स टैक्स या वैट, एंट्री टैक्स, लॉटरी टैक्स, स्टैंप ड्यूटी, टेलीकॉम लाइसेंस फी, टर्नओवर टैक्स, बिजली के इस्तेमाल या बिक्री पर लगने वाले टैक्स, सामान के ट्रांसपोर्टेशन पर लगने वाले टैक्स आदि अनेकों करों के स्थान पर अब यह एक ही कर लागू किया जा रहा है।
वस्तु एवं सेवा कर महत्वपूर्ण :
भारत का वर्तमान कर ढांचा बहुत ही जटिल है। भारतीय संविधान के अनुसार मुख्य रूप से वस्तुओं की बिक्री पर कर लगाने का अधिकार राज्य सरकार और वस्तुओं के उत्पादन व सेवाओं पर कर लगाने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है इस वजह से देश में अलग-अलग प्रकार के कर लागू हैं जिससे देश की वर्तमान कर व्यवस्था बहुत ही जटिल है।
कंपनियों और छोटे व्यवसायों के लिए तरह-तरह के कर कानूनों का पालन करना एक समस्या होती है। यह वर्तमान टैक्स संरचना को और अर्थव्यवस्था को बदलने में इतनी महत्वपूर्ण भूमिका क्यों निभाएगी। वर्तमान समय में भारतीय कर संरचना दो में विभाजित है – प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर।
प्रत्यक्ष कर या डायरेक्ट टैक्स वह हैं जिसमें देनदारी किसी और को नहीं दी जा सकती। इसका एक उदाहरण आयकर है जहाँ आप आय अर्जित करते हैं और सिर्फ आप उस पर कर का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी हैं। अप्रत्यक्ष करों के विषय में टैक्स की देनदारी किसी अन्य व्यक्ति को दी जा सकती है।
इसका अर्थ यह है कि जब दुकानदार अपनी बिक्री पर वैट देता है तो वह अपने ग्राहक को देयता दे सकता है इसलिए ग्राहक आइटम की कीमत और वैट पर भुगतान करता है ताकि दुकानदार सरकार को वैट जमा कर सके। यानि ग्राहक न सिर्फ उत्पाद की कीमत का भुगतान करता है बल्कि उसे कर दायित्व भी देना पड़ता है और इसलिए जब वह किसी आइटम को खरीदता है तो उससे अधिक खर्च होता है।
यह इसलिए होता है क्योंकि दुकानदार ने जब वह आइटम थोक व्यापारी से खरीदा था तब उसे कर का भुगतान करना पड़ा था। वह राशि वसूल करने के साथ-साथ सरकार को भुगतान किए गए वैट की भरपाई के लिए वह अपने ग्राहक को देयता दे देता है जिसे अतिरिक्त राशि का भुगतान करना पड़ता है।
लेनदेन के दौरान दुकानदार के लिए अपनी जेब से जो भी भुगतान करता है उसके लिए रिफंड का दावा करने का कोई अन्य तरीका नहीं है और इसलिए उसके पास ग्राहक की देयता को पारित करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है।
संभावित लाभ :
वित्त मंत्रालय द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार इस व्यवस्था से बहुत से लाभ संभावित हैं।
व्यापर और उद्योग के लिए :
1. आसान अनुपालन, पारदर्शिता : एक मजबूत और व्यापक सुचना प्रौद्योगिकी प्रणाली भारत में जीएसटी व्यवस्था की नींव होगी इसलिए पंजीकरण, रिटर्न, भुगतान इत्यादि जैसी सभी कर भुगतान सेवाएं करदाताओं को ऑनलाइन उपलब्ध होंगी, जिससे इसका अनुपालन बहुत सरल और पारदर्शी हो जाएगा।
2. कर दरों और संरचनाओं की एकरूपता : जीएसटी यह सुनिश्चित करेगा कि अप्रत्यक्ष कर दरें और ढांचे पूरे देश में एकसमान हैं। इससे निश्चिंतता में तो बढ़ोतरी होगी ही व्यापार करना भी आसन हो जाएगा। दुसरे शब्दों में जीएसटी देश में व्यापार के कामकाज को कर तटस्थ बना देगा फिर चाहे व्यापार करने की जगह का चुनाव कहीं भी जाए।
3. करों पर कराधान की समाप्ति : मूल्य श्रंखला और सभी राज्यों की सीमाओं से बाहर टैक्स क्रेडिट की सुचारू प्रणाली से ही यह सुनिश्चित होगा कि करों पर कम-से-कम कराधान हों। इससे व्यापार करने में आने वाली छुपी हुई लागत कम होगी।
4. प्रतिस्पर्धा में सुधार : व्यापार करने में लेन-देन लागत घटने से व्यापार और उद्योग के लिए प्रतिस्पर्धा में सुधार को बढ़ावा मिलेगा।
5. विनिर्माताओं और निर्यातकों को लाभ : जीएसटी में केंद्र और राज्यों के करों के शामिल होने और इनपुट वस्तुएं और सेवाएं पूर्ण और व्यापक रूप से समाहित होने और केंद्रीय बिक्री कर चरणबद्ध रूप से बाहर हो जाने से स्थानीय रूप से निर्मित वस्तुओं और सेवाओं की लागत कम हो जाएगी। इससे भारतीय वस्तुओं और सेवाओं की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में होने वाली प्रतिस्पर्धा में बढ़ोतरी होगी और भारतीय निर्यात को भी बहुत बढ़ावा मिलेगा। पूरे देश में कर दरों और प्रक्रियाओं की एकरूपता से अनुपालन लागत घटाने में लंबा रास्ता तय करना होगा।
केंद्र और राज्य सरकारों के लिए :
1. सरल और आसान प्रशासन : केंद्र और राज्य स्तर पर बहुआयामी अप्रत्यक्ष करों को जीएसटी लागू करके हटाया जा रहा है। मजबूत सूचना प्रौद्योगिकी प्रणाली पर आधारित जीएसटी केंद्र और राज्यों द्वारा अभी तक लगाए गए सभी दूसरे प्रत्यक्ष करों की तुलना में प्रशासनिक नजरिए से बहुत सरल और आसन होगा।
2. कदाचार पर बेहतर नियंत्रण : मजबूत सूचना प्रौद्योगिकी बुनियादी ढांचे की वजह से जीएसटी से बेहतर कर अनुपालन परिणाम प्राप्त होंगे। मूल्य संवर्धन की श्रंखला में एक चरण से दूसरे चरण में इनपुट कर, क्रेडिट कर सुगम हस्तांतरण जीएसटी के स्वरूप में एक अंतःनिर्मित तंत्र है जिससे व्यापारियों को कर अनुपालन में प्रोत्साहन दिया जाएगा।
3. अधिक राजस्व निपुणता : जीएसटी से सरकार के कर राजस्व की वसूली लागत में कमी आने की उम्मीद है इसलिए इससे उच्च राजस्व निपुणता को बढ़ावा मिलेगा।
उपभोक्ताओं के लिए :
1. वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य के अनुपाती एकल एवं पारदर्शी कर : केंद्र और राज्यों द्वारा लगाए गए बहुल अप्रत्यक्ष करों या मूल्य संवर्धन के प्रगामी चरणों में उपलब्ध गैर-इनपुट कर क्रेडिट की वजह से आज देश में अनेक छिपे करों से अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं की लागत पर प्रभाव पड़ता है। जीएसटी के अधीन विनिर्माता से लेकर उपभोक्ताओं तक सिर्फ एक ही कर लगेगा जिससे अंतिम उपभोक्ता पर लगने वाले करों में पारदर्शिता को बढ़ावा मिलेगा।
2. समग्र कर भार में राहत : निपुणता बढ़ने और कदाचार पर रोक लगने की वजह से अधिकांश उपभोक्ता वस्तुओं पर समग्र कर भार कम होगा, जिससे उपभोक्ताओं को लाभ मिलेगा।
समिति :
यह कर वस्तु एवं सेवा कर परिषद द्वारा निर्धारित किया जा रहा है जिसके अध्यक्ष केंद्रीय वित्त मंत्री हैं।
दरें :
जीएसटी काउंसिल ने चार तरह के कर निर्धारित किए गए हैं ये 5, 12, 18 एवं 28% हालाँकि बहुत-सी चीजों को जीएसटी से छूट दी गई है उन वस्तुओं पर कोई भी कर नहीं लगेगा या जीएसटी नहीं लगेगा जबकि लग्जरी एवं महंगे सामान पर जीएसटी के अतिरिक्त सेस भी लगेगा।
सरकार के अनुसार इसमें से 81% चीजें जीएसटी की 18% की श्रेणी तक आएंगी। आदर्श स्थिति में इस व्यवस्था में समस्त कर एक ही दर पर लगाए जाने चाहिएँ लेकिन भारत में राज्य व केंद्र तथा एक ही वस्तु या सेवा पर अलग-अलग राज्यों में अलग दरें आदि होने से शुरू में 4 दरें निर्धारित की गईं ताकि वर्तमान राजस्व में ज्यादा अंतर न पड़े।
ये चार दरें 5%, 12%, 18% तथा 28% हैं। आवश्यक वस्तुओं जैसे – दूध, लस्सी, दही, शहद, फल एवं सब्जियां, आटा, बेसन, ताजा मीट, मछली, चिकन, अंडा, ब्रेड, प्रसाद, नमक, बिंदी, सिंदूर, स्टांप, न्यायिक दस्तावेज, छपी पुस्तकें, समाचार पत्र, चूड़ियाँ और हैंडलूम वस्तुओं पर जीएसटी नहीं लगेगा। 20 लाख से कम की वार्षिक बिक्री वाले व्यापारियों को इस कर व्यवस्था से छूट दी गई है।
जीएसटी का कार्य :
जब जीएसटी लागू किया जाएगा तब 3 प्रकार के कर होंगे – सीजीएसटी, एसजीएसटी और आईजीएसटी। सीजीएसटी जहाँ केंद्र सरकार द्वारा राजस्व एकत्र किया जाएगा, एसजीएसटी राज्य में बिक्री के लिए राज्य सेकारों द्वारा राजस्व एकत्र किया जाएगा और आईजीएसटी जहाँ अंतरराजीय बिक्री के लिए केंद्र सरकार द्वारा राजस्व एकत्र किया जाएगा। उदाहरण के लिए महाराष्ट्र में एक व्यापारी ने 10,000 रूपए में उस राज्य में उपभोक्ता को माल बेच दिया।
जीएसटी की दर 18% है जिसमें सीजीएसटी 9% की दर और 9% एसजीएसटी दर शामिल है। ऐसे मामलों में डीलर 1800 रूपए जमा करता है और इस राशि में 900 रूपए केंद्र सरकार के पास जाएंगे और 900 रूपए महाराष्ट्र सरकार के पास जाएंगे इसलिए अब डीलर को आईजीएसटी के रूप में 1800 रूपए चार्ज करना होगा। अब सीजीएसटी और एसजीएसटी को भुगतान करने की जरूरत नहीं होगी।
जीएसटी किस प्रकार सहायता करेगा :
जीएसटी वह क्रेडिट है जो निर्माता को उत्पाद के निर्माण में इस्तेमाल किये गए इनपुट पर दिए गए कर के लिए प्राप्त होता है इसके बाद शेष राशि सरकार को जमा करनी होगी। एक शर्ट निर्माता कच्चे माल खरीदने के लिए 100 रूपए का भुगतान करता है।
अगर करों की दर 10% पर निर्धारित है और इसमें कोई लाभ या नुकसान नहीं है तो उसे कर के रूप में 10 रूपए का भुगतान करना होगा तो शर्ट की अंतिम लागत अब 100 रूपए हो जाती है। अगले चरण में थोक व्यापारी 110 रुपयों में निर्माता से शर्ट खरीदता है और उस पर लेबल जोड़ता है।
जब वह लेबल जोड़ रहा है वह मूल्य जोड़ रहा है इसलिए उसकी लागत 40 रूपए से बढ़ जाती है इसके ऊपर उसे 10% कर का भुगतान करना पड़ता है और अंतिम लागत 165 रूपए हो जाती है। अब फुटकर विक्रेता या रिटेलर थोक व्यापारी से शर्ट खरीदने के लिए 165 रूपए का भुगतान करता है क्योंकि कर दायित्व उसके पास आया था।
उसे शर्ट पैकेज करना पड़ता है और जब वह ऐसा करता है तो वह फिर से मूल्य जोड़ रहा है। इस बार मान लें कि उनका मूल्य अतिरिक्त 30 रूपए है। अब जब वह शर्ट बेचता है तो वह इस मूल्य को अंतिम लागत में जोड़ता है इसके साथ ही उसे सरकार को देय वैट देना होगा तो शर्ट की लागत 214.5 रूपए हो जाती है।
इसलिए ग्राहक एक शर्ट के लिए 214.5 रूपए का भुगतान करता है जिसकी कीमत मूल रूप से सिर्फ 170 रूपए थी। ऐसा होने के लिए कर दायित्व प्रत्येक बिक्री पर पारित किया गया था और अंतिम दायित्व ग्राहक के पास आ गया। इसे करों का व्यापक प्रभाव कहा जाता है जहाँ टैक्स के ऊपर टैक्स का भुगतान किया जाता है और आइटम का मूल्य हर बार बढ़ता रहता है।
जीएसटी में इनपुट प्राप्त करने में भुगतान किए गए कर के लिए क्रेडिट का दावा करने का एक तरीका है। इसमें वह व्यक्ति जिसने कर चुकाया है वह अपने करों को जमा करते समय इस कर के लिए क्रेडिट का दावा कर सकता है। जब थोक व्यापारी निर्माता से खरीदता है तो वह अपनी लागत मूल्य पर 10% कर देता है क्योंकि उसके पास देयता दे दी गई है।
फिर वह 100 रुपयों की लागत कीमत पर 40 रूपए का मूल्य जोड़ा और इससे उसकी लागत 140 रूपए हो गई। अब उसे इस कीमत का 10% सरकार को कर के रूप में देना होगा लेकिन उन्होंने पहले ही निर्माता को एक कर का भुगतान किया है।
इसलिए इस बार वह क्या करता है सरकार को टैक्स के रूप में 14 रूपए का भुगतान करने की बजाय वह पहले से भुगतान की गई राशि को घटा देता है इसलिए उसकी 14 रूपए की नई देनदारी से वह 10 रूपए कटौती करता है और सरकार को सिर्फ 4 रूपए का भुगतान करता है तो 10 रूपए उसका इनपुट क्रेडिट हो जाता है।
जब वह सरकार को 4 रूपए का भुगतान करता है तो वह रिटेलर को अपनी देयता दे सकता है। इसके बाद फुटकर विक्रेता उसे शर्ट खरीदने के लिए 154 रूपए का भुगतान करेगा। अलगे चरण में रिटेलर ने 30 रूपए का मूल्य उसकी लागत कीमत में जोड़ दिया और सरकार को उस पर 10% कर का भुगतान किया।
जब वह मूल्य जोड़ता है तो उसकी कीमत 170 रूपए हो जाती है। अब अगर उसे उस पर 10% कर देना पड़ता है तो वह ग्राहक के दायित्व को पारित कर देता लेकिन उसके पास इनपुट क्रेडिट है क्योंकि उसने थोक व्यापारी को टैक्स के रूप में 14 रूपए का भुगतान किया है।
इसलिए अब वह अपना कर दायित्व 17 रूपए से 14 रूपए कम कर देता है और उसे सरकार को सिर्फ 3 रूपए का भुगतान करना पड़ता है और इसलिए वह अब ग्राहक को यह शर्ट 187 रूपए में बेच सकता है। हर बार जब कोई व्यक्ति इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा करने में सक्षम होता है तो उसके लिए बिक्री मूल्य कम हो जाता है और उसके उत्पाद पर कम कर दायित्व की वजह से मूल्य भी कम हो जाता है।
शर्ट का अंतिम मूल्य भी 214.5 रूपए से 187 रूपए कम हो गया इस तरह अंतिम ग्राहक पर कर का बोझ कम हो गया। इसलिए जरूरी है कि माल और सेवा कर में दो तरफा लाभ होने वाला है। पहला, यह करों के व्यापक प्रभाव को कम करेगा और दूसरा इनपुट कर क्रेडिट की अनुमति के द्वारा यह कर के बोझ को कम करेगा और यह आशा है कि कीमतें भी कम हो जाएंगी।
जीएसटी पंजीकरण की आवश्यकता :
जीएसटी सभी व्यवसायों पर लागू :
व्यापार, वाणिज्य, निर्माण, पेशे, व्यवसाय या किसी अन्य सामान कार्यवाही, इसकी पसर या प्रायिकता के बाद भी इसमें व्यवसाय शुरू करने या बंद करने के लिए माल या सेवाओं की आपूर्ति भी शामिल है। सेवाओं का अर्थ वस्तु के अतिरिक्त कुछ भी है। यह संभावना है कि सेवाएं और सामान पर एक अलग जीएसटी दर होगी।
जीएसटी सभी व्यक्तियों पर लागू :
व्यक्तियों, एचयूएफ, कंपनी, फर्म, एलएलपी, एओपी, सहकारी सोसायटी, सोसाइटी, ट्रस्ट आदि शामिल हैं हालाँकि जीएसटी कृषक विशेषज्ञों पर लागू नहीं होगी। कृषि में फूलों की खेती, बागवानी, रेशम उत्पादन, फसलों, घास या बगीचे के उत्पादन शामिल हैं लेकिन डेयरी फार्मिंग, मुर्गी पालन, स्टॉक प्रजनन, फल या समंदर अथवा पौधों के पालन में शामिल नहीं है।
जीएसटी पंजीकरण की जरूरत का समय :
जीएसटी पंजीकरण प्राप्त करने के लिए पैन अनिवार्य है हालाँकि अनिवासी व्यक्ति सरकार द्वारा अनिवार्य दूसरे दस्तावेजों के आधार पर जीएसटी पंजीकरण प्राप्त कर सकता है। एक पंजीकरण हर राज्य के लिए जरूरी होगा। करदाता राज्य में अपने भिन्न-भिन्न बिजनेस वर्टिकल के लिए भिन्न-भिन्न पंजीयन प्राप्त कर सकते हैं।
जीएसटी पंजीकरण अनिवार्य कारोबारी आधार मामले :
आने वाले सालों में आपके कारोबार की सीमा 20 लाख रूपए से ज्यादा होने पर जीएसटी एकत्र करना और भुगतान करना होगा। यह सीमा जीएसटी के भुगतान के लिए लागू होती है। कुल कारोबार का अर्थ सभी कर योग्य आपूर्ति, मुक्ति की आपूर्ति, वस्तुओं के निर्यात और सेवाओं या एक समान पैन वाले व्यक्ति की अंतर-राज्य की आपूर्ति को सभी भारत के आधार पर गणना करने और करों को शामिल करने के लिए सीजीएसटी अधिनियम, एसजीएसटी अधिनियम और आईजीएसटी अधिनियम के तहत देय होगा।
जीएसटी पंजीकरण अनिवार्य मामले :
माल या सेवाओं की अंतर-राज्य आपूर्ति करने वाले, कोई भी व्यक्ति को एक कर योग्य क्षेत्र में माल या सेवाओं की आपूर्ति करता है और इसमें व्यवसाय का कोई निश्चित स्थान नहीं है जिसे आकस्मिक कर योग्य व्यक्तियों के रूप में संदर्भित किया जाता है। ऐसे व्यक्ति को जारी किए गए पंजीकरण 90 दिनों की अवधि के लिए वैध है।
कोई भी व्यक्ति जो माल या सेवाओं की आपूर्ति करता है और भारत में व्यापार का कोई निश्चित स्थान नहीं है जिसे अनिवासी कर योग्य व्यक्ति कहा जाता है। ऐसे व्यक्ति के लिए जारी किए गए पंजीकरण 90 दिनों की अवधि के लिए वैध है। रिवर्स प्रभारी तंत्र के तहत कर का भुगतान करने वाले व्यक्ति को रिवर्स चार्ज तंत्र का अर्थ यह है कि जहाँ सामान या सेवाओं को प्राप्त करने वाले व्यक्ति को आपूर्तिकर्ता की जगह कर का भुगतान करना पड़ता है।
एजेंट या किसी दूसरे व्यक्ति जो अन्य पंजीकृत कर योग्य व्यक्तियों की तरफ से आपूर्ति करता है। वितरक या इनपुट सेवा वितरक। इस व्यक्ति के पास आपूर्तिकर्ता के कार्यालय के रूप में एक ही पैन है। यह व्यक्ति आपूर्तिकर्ता का एक अधिकारी है, वह सीजीएसटी, एसजीएसटी, आईजीएसटी के ऋण को वितरित करने के लिए आपूर्ति और टैक्स चालान को प्राप्त करता है।
ई-कॉमर्स ऑपरेटर मामले और ई-कॉमर्स ऑपरेटर के माध्यम से आपूर्ति करने वाले व्यक्ति मामले में शामिल है। एग्रीगेटर जो अपने ब्रांड नाम के तहत सेवाएं प्रदान करता है और भारत में एक व्यक्ति को भारत से बाहर एक जगह से ऑनलाइन सूचना और डेटाबेस पहुंच या पुनर्प्राप्ति सेवाओं की आपूर्ति करने वाले व्यक्ति भी शामिल है।
जीएसटी के लिए पंजीकरण कैसे करें :
जीएसटी पंजीकरण करने के लिए जरूरी दस्तावेज हैं – फोटो, करदाता का संविधान, व्यापार स्थान के सबूत, बैंक खाता विवरण, प्राधिकरण फार्म आदि।
जीएसटी के तहत पंजीकृत नहीं होने के लिए दंड :
कोई भी अपराधी जो टैक्स का भुगतान नहीं कर रहा है या कम भुगतान करता है उसे देय कर राशि का 10% जुर्माना देना होगा। जहाँ एक संकल्पित करवंचन देखा गया वहां अपराधी को देय कर राशि का 100% जुर्माना देना होगा। हालाँकि अन्य वास्तविक त्रुटियों के लिए जुर्माना कर का 10% है।
टैक्स पर टैक्स की व्यवस्था समाप्त होगी :
अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था में कर-भार अंतिम उपभोक्ता को वहन करना पड़ता है लेकिन कर का संग्रहण व्यवसाईयों द्वारा किया जाता है। व्यवसाई को खरीदे गए माल पर चुकाए गए कर की क्रेडिट मिलती है जिसका उपयोग वह अपने कर के भुगतान में कर सकता है। इस व्यवस्था से कर सिर्फ मूल्य संवर्धन या वैल्यू एडिशन पर ही लगता है।
व्यवसायी उपभोक्ता से कर संग्रहित करता है और उसमें से अपनी इनपुट क्रेडिट को घटाकर बाकी कर सरकार को जमा करवाते हैं। लेकिन वर्तमान व्यवस्था में भारत में केंद्र सरकार द्वारा उत्पाद शुल्क या सेवा कर और राज्य सरकार द्वारा बिक्री कर लगाया जाता है।
इस वजह से व्यवसायी को उत्पाद शुल्क और सेवा कर के भुगतान में बिक्री कर की इनपुट क्रेडिट का उपयोग नहीं कर सकता और बिक्री कर के भुगतान में सेवा कर और उत्पाद शुल्क की क्रेडिट का उपयोग नहीं कर सकता। इस वजह से वर्तमान व्यवस्था में टैक्स पर टैक्स लग जाता है जिससे वस्तुओं और सेवाओं की कीमत बढ़ जाती है।
जीएसटी के लागू होने से पूरे देश में एक ही तरह का अप्रत्यक्ष कर होगा जिससे व्यवसाईयों को खरीदी गई वस्तुओं और सेवाओं पर चुकाए गए जीएसटी की पूरी क्रेडिट मिल जाएगी जिसका उपयोग वह बेचीं गई वस्तुओं और सेवाओं पर लगे जीएसटी के भुगतान में कर सकेगा। इससे टैक्स सिर्फ मूल्य संवर्धन पर ही लगेगा और टैक्स पर टैक्स लगाने की व्यवस्था समाप्त होगी जिससे लागत में कमी आएगी।
जीएसटी की विशेष बातें :
GST सिर्फ अप्रत्यक्ष करों को एकीकृत करेगा और प्रत्यक्ष कर जैसे आयकर आदि वर्तमान व्यवस्था के अनुसार ही लगेंगे। जीएसटी के लागू हिने से पूरे भारत में एक ही तरह का अप्रत्यक्ष कर लगेगा जिससे वस्तुओं और सेवाओं की लागत में स्थिरता आएगी।
संघीय ढांचे को बनाए रखने के लिए जीएसटी दो स्तर पर लगेगा जैसे- सीजीएसटी और एसजीएसटी। सीजीएसटी का हिस्सा केंद्र को और एसजीएसटी का हिस्सा राज्य सरकार को प्राप्त होगा। एक राज्य से दूसरे राज्य में वस्तुओं और सेवाओं की बिक्री की स्थिति में आईजीएसटी लगेगा।
आईजीएसटी का एक हिस्सा केंद्रसरकार और दूसरा हिस्सा वस्तु या सेवा का उपभोग करने वाले राज्य को प्राप्त होगा। व्यवसायी खरीदी गई वस्तुओं और सेवाओं पर लगने वाले जीएसटी की इनपुट क्रेडिट ले सकेंगे जिनका उपयोग वे बेची गई वस्तुओं और सेवाओं पर लगने वाले जीएसटी के भुगतान में कर सकेंगे।
सीजीएसटी की इनपुट क्रेडिट का उपयोग आईजीएसटी और सीजीएसटी के आउटपुट टैक्स के भुगतान, एसजीएसटी की क्रेडिट का उपयोग एसजीएसटी की क्रेडिट का उपयोग एसजीएसटी और आईजीएसटी के आउटपुट टैक्स के भुगतान और आईजीएसटी की क्रेडिट का उपयोग आईजीएसटी, सीजीएसटी व एसजीएसटी के आउटपुट टैक्स के भुगतान में किया जा सकेगा।
जीएसटी के तहत उन सभी व्यवसायी, उत्पादक या सेवा प्रदाता को रजिस्टर्ड होना होगा जिन की वर्षभर में कुल बिक्री का मूल्य एक निश्चित मूल्य से ज्यादा है। प्रस्तावित जीएसटी में व्यवसाईयों को मुख्य रूप से तीन तरह-तरह के टैक्स रिटर्न भरने होंगे जिसमें इनपुट टैक्स, आउटपुट टैक्स और एकीकृत रिटर्न शामिल है।
जीएसटी का आम लोगों पर प्रभाव :
अप्रत्यक्ष करों का भार अंतिम उपभोक्ता को ही वहन करना पड़ता है। वर्तमान में एक ही वस्तुओं पर विभिन्न तरह के भिन्न-भिन्न टैक्स लगते हैं लेकिन जीएसटी आने से सभी वस्तुओं और सेवाओं पर एक ही तरह का टैक्स लगेगा जिससे वस्तुओं की लागत में कमी आएगी हालाँकि इससे सेवाओं की लागत बढ़ जाएगी।
दूसरा सबसे महत्वपूर्ण लाभ यह होगा कि पूरे भारत में एक ही रेट से टैक्स लगेगा जिससे सभी राज्यों में वस्तुओं और सेवाओं की कीमत एक जैसी होगी। जीएसटी के लागु होने से केंद्रीय सेल्स टैक्स, जीएसटी में समाहित हो जाएगा जिससे वस्तुओं की कीमतों में कमी आएगी।
जीएसटी का व्यवसायों पर प्रभाव :
20 लाख रूपए से कम के सालाना टर्नओवर वाले व्यवसाईयों को जीएसटी की व्यवस्था से छूट दी गई है। आज तक यह छूट 10 लाख तक ही सीमित थी। 75 लाख रूपए से ज्यादा के सालाना टर्नओवर वाले ट्रेडर्स, मैन्युफैक्चरर्स और रेस्टोरेंट कंपोजिशन स्कीम के तहत 1, 2 और 5% ऐडा कर सकते हैं हालाँकि इन बिजनस को इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिल सकेगा।
दूसरे व्यवसाईयों को हर महीने 3 रिटर्न भरने होंगे। इनमें से दो ऑटोमेटिक होंगे। 1 जुलाई के पश्चात आने वाले किसी भी माल पर जीएसटी लगेगा हालाँकि 30 जून से पहले आने वाले स्टॉक की बिक्री पर व्यवसाईयों को कौम्पेंसेशन भी मिलेगा।
वर्तमान में व्यवसायों को भिन्न-भिन्न प्रकार के अप्रत्यक्ष करों का भुगतान करना पड़ता है जैसे वस्तुओं के उत्पादन करने पर उत्पाद शुल्क, ट्रेडिंग करने पर सेल्स टैक्स, सेवा प्रदान करने पर सर्विस टैक्स आदि। इससे व्यवसायों को विभिन्न प्रकार के कर कानूनों की पालना करनी पड़ती है जो बहुत ही मुश्किल और जटिल काम है लेकिन जीएसटी के लागू होने से उन्हें सिर्फ एक ही तरह अप्रत्यक्ष कानूनों का पालन करना होगा जिससे भारत में व्यवसाय में सरलता आएगी।
वर्तमान समय में व्यवसाई, उत्पाद शुल्क व सेवा कर के भुगतान में बिक्री कर की इनपुट क्रेडिट का उपयोग नहीं कर सकता और बिक्री कर के भुगतान में सेवा कर और उत्पाद शुल्क की क्रेडिट का उपयोग नहीं कर सकता। इस वजह से वस्तुओं और सेवाओं की लागत बढ़ जाएगी लेकिन जीएसटी के लागू होने से व्यवसाईयों को सभ तरह की खरीदी गई वस्तुओं और सेवाओं पर चुकाए गए जीएसटी की पूरी क्रेडिट मिल जाएगी जिसका उपयोग वह बेची गई वस्तुओं और सेवाओं पर लगे जीएसटी के भुगतान में कर सकेगा इससे बी लागत में कमी आएगी।
ऐसा कहा जा रहा है कि जीएसटी के आने से व्यवसाय करना आसान हो जाएगा लेकिन शुरूआती सालों में व्यवसायों को कठिनाईयों का सामना करना पड़ सकता है। उदाहरण के लिए जीएसटी में हर महीने में तीन भिन्न-भिन्न प्रकार के रिटर्न फाइल करने पड़ेंगे। वर्तमान समय में विभिन्न प्रकार के अप्रत्यक्ष करों में थ्रेसहोल्ड लिमिट भिन्न-भिन्न है।
मुख्य रूप से सेल्स टैक्स में थ्रेसहोल्ड लिमिट 5 लाख सर्विस टैक्स में 10 लाख और उत्पाद शुल्क में 1.5 करोड़ है। जीएसटी आने से सभी तरह के व्यवसायों के लिए एक ही तरह की थ्रेसहोल्ड लिमिट रखने का प्रस्ताव है। यह थ्रेसहोल्ड लिमिट इन तीनों कानूनों की वर्तमान लिमिट को ध्यान में रखकर बनाई जाएगी जिसका मुख्य प्रभाव यह होगा कि छूट सीमा 50 लाख से कम ही रखी जाएगी जिससे छोटे उत्पादक जो वर्तमान समय में 1.5 करोड़ तक छूट सीमा का फायदा उठा रहे हैं वे भी जीएसटी के दायरे में आ जाएंगे।
वर्तमान समय में एक राज्य से दूसरे राज्य में माल बेचने पर 2% की दर से केंद्रीय सेल्स टैक्स लगता है जिसकी इनपुट क्रेडिट नहीं मिलती। जीएसटी के लागू होने के बाद से केंद्रीय सेल्स टैक्स नहीं लगेगा जिससे वस्तुओं की लागत में कमी आएगी।
जीएसटी से महंगी होने वाली वस्तुएं :
जीएसटी से बैंकिंग और टेलीकॉम जैसी सेवाएं महंगी हो जाएंगी। इसके अतिरिक्त फ्लैट्स, रेडीमेड गारमेंट्स, महीने का मोबाइल बिल और ट्यूशन फीस पर भी टैक्स बढ़ जाएगा। 1 जुलाई से जब आप एसी रेस्टोरेंट में जाएँ तो 18% टैक्स के लिए तैयार रहें। अगर आप गैर एसी रेस्टोरेंट में जाते हैं तो 6% की बचत करते हुए केवल 12% ही चुकाना होगा। मोबाइल बिल, ट्यूशन फीस और सलून पर भी आपको 18% टैक्स देना होगा।
अब तक इन पर 15 फीसदी टैक्स ही रहा है। एक हजार रूपए से भी ज्यादा की कीमत के कपड़ों की खरीद पर भी अब आपको 12% टैक्स देना होगा। अब तक इस पर 6 फीसदी स्टेट वैट ही लगता था। गोर की बात है कि एक हजार से कम के परिधानों पर 5% की दर से ही टैक्स लगेगा। जीएसटी की व्यवस्था में दुकान या फ्लैट खरीदने पर 12 फीसदी टैक्स देना होगा। अभी यह लगभग 6% है।
जीएसटी से सस्ती होने वाली वस्तुएं :
81% आइटम्स 18 फीसदी से कम के स्लैब में होंगे। खासतौर पर वेइंग मशीनरी, स्टैटिक कन्वर्टर्स, इलेक्ट्रिक ट्रांसफार्मर्स, वाइंडिंग वायर्स, ट्रांसफॉर्मस इंडस्ट्रियल इलेक्ट्रॉनिक्स और डिफेंस, पुलिस और पैरामिलिट्री फोर्सेज द्वारा उपयोग किये जाने वाले टू-वे रेडियो सस्ते हो जाएँगे। पोस्टेज और रेवेन्यू स्टांप भी सस्ते हो जाएँगे।
इन पर 5% ही टैक्स लगेगा। कटलरी, केचअप, सॉसेज और आचार भी सस्ते होंगे। इन्हें 12% के स्लैब में रखा जाएगा। सॉल्ट, चिल्ड्रंस पिक्चर, ड्राइंग और कलर बुक्स को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है। प्लेइंग कार्ड्स, चेस बोर्ड, कैरम बोर्ड और अन्य बोर्ड गेम्स को घटाकर 12% के स्लैब में रखा गया है।
जीएसटी से टैक्स लगने वाली वस्तुएं :
फ्रेश मीट, फिश चिकन, अंडा, दूध, बटर मिल्क, दही, शहद, फल सब्जियां, आटा, बेसन, ब्रेड, प्रसाद, नमक, बिंदी, सिंदूर, स्टांप, न्यायिक दस्तावेज, प्रिंटेड बुक्स,अखबार, चूड़ियाँ, हैंडलूम जैसे तमाम रोजमर्रा की जरूरतों के आइटम्स को जीएसटी के दायरे से ही बाहर रखा गया है।
फिश फिलेट, क्रीम, स्किम्ड मिल्ड पाउडर, बैंडेड पनीर, फ्रोजन सब्जियां, कॉफी, चाय, मसाले, पिज्जा ब्रेड, रस, साबूदाना, केरोसिन, कोयला, दवाएं, स्टेंट और लाइफबोट्स जैसे आइटम्स को टैक्स की सबसे निचली 5% की दर में रखा गया है।
फ्रोजन मीट प्रॉडक्ट्स, बटर, पैकेज्ड ड्राई फ्रूट्स, ऐनिमल फैट, सॉस, फ्रूट जूस, भुजिया, नमकीन, आयुर्वेदिक दवाएं, टूथ पाउडर, अगरबत्ती, कलर बुक्स, पिक्चर बुक्स, छाता, सिलाई मशीन और सेल फोन जैसी जरूरी आइटम्स को 12% के स्लैब में रखा गया है।
फ्लेवर्ड रिफाइंड शुगर, पास्ता, कॉर्नफ्लेक्स, पेस्ट्रीज और केक, प्रिजर्व्ड वेजिटेबल्स, जैम, सॉस, आइसक्रीम, इंस्टैट फूड मिक्सेज, मिनरल वॉटर, टिशु, लिफाफे, नोट बुक्स, स्टील प्रॉडक्ट्स, प्रिंटेड सर्किट्स, कैमरा, स्पीकर और मॉनीटर्स पर 18% जीएसटी लगाने का निर्णय लिया गया है।
चुइंग गम, गुड, कोकोआ रहित चॉकलेट, पान मसाला, वातित जल, पेंट, डीओड़रंट, शेविंग क्रीम, हेयर शैम्पू, ड़ाइ, सनस्क्रीन, वॉलपेपर, सेरेमिक टाइल्स, वॉटर हीटर, डिशवॉशर, सिलाई मशीन, वॉशिंग मशीन, एटीएम, वेंडिंग मशीन, वैक्यूम क्लीनर, शेवर्स, हेयर क्लिपर्स, ऑटोमोबाइल्स, निजी उपयोग के लिए एयरक्राफ्ट और नौकाविहार को लग्जरी मानते हुए जीएसटी काउंसिल ने 28% का टैक्स लगाने का निर्णय लिया है।