- पृथ्वी सौरमंडल का एकमात्र ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन संभव है।
- पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा दीर्घवृत्ताकार पथ पर 29.72 किलोमीटर प्रति सेकेण्ड की चाल से करती है। पृथ्वी सूर्य की एक परिक्रमा करने में 365 दिन, 5 घंटे, 48 मिनट, 46 सेकेण्ड का समय लेती है।
- पृथ्वी को सूर्य की परिक्रमा करने में जो समय लगता है उसे सौर समय कहा जाता है।
- पृथ्वी का विषुवतीय व्यास लगभग 12756 किलोमीटर है और ध्रुवीय व्यास लगभग 12714 किलोमीटर है।
- पृथ्वी सूर्य से दुरी में तीसरे स्थान पर हैं।
- सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर पहुँचने में 8 मिनट 18 सेकेण्ड का समय लेता है जबकि चन्द्रमा का प्रकाश 1 मिनट 25 सेकेण्ड का समय लेता है।
- पृथ्वी का केवल एक ही उपग्रह है चन्द्रमा।
- पृथ्वी ग्रहों के आकार और द्रव्यमान में पांचवें स्थान पर है।
- पृथ्वी पश्चिम से पूर्व अपने अक्ष पर लगभग 1610 किलोमीटर प्रति घंटा की चाल से 23 घंटे 56 मिनट और 4 सेकेण्ड में एक चक्कर लगती है।
- पृथ्वी चार जुलाई को सूर्य से लगभग 15.21 करोड़ किलोमीटर की अधिक दुरी पर होती है। पृथ्वी और सूर्य की इस अवस्था को अपसौर कहा जाता है।
- पृथ्वी 3 जनवरी को सूर्य के 14.70 करोड़ किलोमीटर की निकट दूरी पर होती है। प्रथ्वी और सूर्य की इस अवस्था को उपसौर कहा जाता है।
- पृथ्वी का सबसे अधिक समीप का तारा सूर्य के बाद प्रॉक्सिमा सेंचुरी है जो कि पृथ्वी से लगभग 4.22 प्रकाश वर्ष की दूरी पर है।
- पृथ्वी अपने अक्ष पर 231/2० झुकी हुई है जिसकी वजह से यहाँ पर ऋतू परिवर्तन होता है।
- पृथ्वी से सूर्य की औसत दुरी लगभग 15 करोड़ किलोमीटर है।
- पृथ्वी के 71% भाग पर जल है और 29% भाग स्थलीय है। जल की अधिक उपस्थिति की वजह से यह अंतरिक्ष से नीली दिखाई देती है इसलिए इसे नीला ग्रह कहा जाता है।
पृथ्वी ग्रह (Earth In Hindi) :
पृथ्वी सूर्य से तीसरा ग्रह और ज्ञात ब्रह्माण्ड में एकमात्र ग्रह है जहाँ जीवन उपस्थित है। यह सौर मंडल में सबसे घना और चार स्थलीय ग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह है। रेडियोधर्मी डेटिंग और साक्ष्य के अन्य स्त्रोतों के अनुसार पृथ्वी की आयु लगभग 4.54 बिलियन साल है। पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण में अन्य पिंड के साथ परस्पर प्रभावित रहती है विशेष रूप से सूर्य और चन्द्रमा से जो पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह है।
सूर्य के चारों ओर परिक्रमण के दौरान पृथ्वी अपनी कक्षा में 365 बार घुमती है। इस तरह से पृथ्वी का एक साल लगभग 365.26 दिन लंबा होता है। पृथ्वी के परिक्रमण के दौरान इसकी धुरी में झुकाव होता है जिसकी वजह से ही ग्रह की सतह पर मौसमी विविधताएँ पाई जाती हैं।
पृथ्वी और चन्द्रमा के मध्य गुरुत्वाकर्षण की वजह से समुद्र में ज्वार-भाटे आते हैं यह पृथ्वी को इसकी अपने अक्ष पर स्थिर करता है तथा इसके परिक्रमण की धीमा कर देता है। पृथ्वी सिर्फ मानव का ही नहीं अपितु अन्य लाखों प्रजातियों का भी घर है और साथ ही ब्रह्मांड में एकमात्र वह स्थान है जहाँ पर जीवन का अस्तित्व पाया जाता है।
इसकी सतह पर जीवन का प्रस्फुटन लगभग एक अरब साल पहले प्रकट हुआ। पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के लिए आदर्श दशाएं न सिर्फ पहले से उपलब्ध थीं बल्कि जीवन की उत्पत्ति के बाद से विकास क्रम में जीवधारियों ने इस ग्रह के वायुमंडल और अन्य अजैवकीय परिस्थितियों को भी बदला है और इसके पर्यावरण को वर्तमान रूप दिया है।
पृथ्वी के वायुमंडल में ऑक्सीजन की वर्तमान प्रचुरता वस्तुतः जीवन की उत्पत्ति का कारण नहीं बल्कि परिणाम भी है। जीवधारी और वायुमंडल दोनों अन्योन्याश्रय के संबंध द्वारा विकसित हुए हैं। पृथ्वी पर श्र्वशनजीवी जीवों के प्रसारण के साथ ओजोन परत का निर्माण हुआ जो पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के साथ हानिकारक विकिरण को रोकने वाली दूसरी परत बनाती है और इस तरह से पृथ्वी पर जीवन की अनुमति देता है।
पृथ्वी का भूपटल कई कठोर खंडों या विवर्तनिक प्लेटों में विभाजित है जो भूगर्भीय इतिहास के दौरान एक स्थान से दुसरे स्थान को विस्थापित हुए हैं। क्षेत्रफल की दृष्टि से धरातल का लगभग 71% नमकीन जल के सागर से आच्छादित है शेष में महाद्वीप और द्वीप तथा मीठे पानी की झीलें आदि अवस्थित हैं। पानी सभी ज्ञात जीवन के लिए आवश्यक है जिसका अन्य किसी ब्रह्मांडीय पिंड के सतह पर अस्तित्व ज्ञात नहीं है।
पृथ्वी की आंतरिक रचना तीन प्रमुख परतों में हुई है भूपटल, भूप्रावार और क्रोड। इसमें से बाह्य क्रोड़ तरल अवस्था में है और एक ठोस लोहे और निकल के आंतरिक कोर के साथ क्रिया करके पृथ्वी में चुंबकीय या चुंबकत्व क्षेत्र को पैदा करता है। पृथ्वी बाह्य अंतरिक्ष में सूर्य और चंद्रमा के साथ अन्य वस्तुओं के साथ क्रिया करता है वर्तमान में पृथ्वी मोटे तौर पर अपनी धुरी का लगभग 366.26 बार चक्कर काटती है इस वक्त की लंबाई एक नाक्षत्र वर्ष है जो 365.26 सौर दिवस के बराबर है पृथ्वी की घूर्णन की धुरी इसके कक्षीय समतल से लंबवत 23.4 की दूरी पर झुका है जो एक उष्णकटिबंधीय वर्ष की अवधि में ग्रह की सतह पर मौसमी विविधता पैदा करता है।
पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा है जिसने इसकी परिक्रमा 4.53 बिलियन साल पूर्व शुरू की। यह अपनी आकर्षण शक्ति द्वारा समुद्री ज्वार पैदा करता है, ध्रुवीय झुकाव को स्थिर रखता है और धीरे-धीरे पृथ्वी के घूर्णन को धीमा करता है। ग्रह के आरंभिक इतिहास के दौरान एक धूमकेतु की बमबारी ने महासागरों के गठन में भूमिका निभाई। बाद में क्षुद्रग्रह के प्रभाव ने सतह के पर्यावरण पर महत्वपूर्ण बदलाव किया।
नाम और व्युत्पत्ति :
पृथ्वी अथवा पृथिवी एक संस्कृत का एक शब्द है जिसका अर्थ निकलता है एक विशाल धरा। एक अलग पौराणिक कथा के अनुसार महाराज पृथु के नाम पर इसका नाम पृथ्वी रखा गया। इसके अन्य नामों में धरा, भूमि, धरित्री, रसा, धरती, रत्नगर्भा आदि शामिल हैं। अन्य भाषाओं में इसे जैसे अंग्रेजी में अर्थ और लातिन भाषा में टेरा कहा जाता है। हालाँकि सभी नामों में इसका अर्थ लगभग सामान ही रहा है।
प्रथ्वी का आकार :
पृथ्वी की आकृति अंडाकार है। घुमाव की वजह से पृथ्वी भौगोलिक अक्ष में चिपटा हुआ और भूमध्य रेखा के आसपास उभर लिया हुआ प्रतीत होता है। भूमध्य रेखा पर पृथ्वी का व्यास, अक्ष-से-अक्ष के व्यास से 43 किलोमीटर अधिक बड़ा है। इस प्रकार पृथ्वी के केंद्र से सतह की सबसे लंबी दूरी, इक्वाडोर के भूमध्यवर्ती चिंबोराजो ज्वालामुखी के शिखर तक ही है।
इस प्रकार पृथ्वी का औसत व्यास 12,742 किलोमीटर है। कई जगहों की स्थलाकृति इस आदर्श पैमाने से अलग नजर आती है हालाँकि वैश्विक पैमाने पर यह पृथ्वी की त्रिज्या की तुलना नजरंदाज ही दिखाई देता है। सबसे अधिकतम विचलन 0.17% का मारियाना गर्त में है जबकि माउंट एवरेस्ट 0.14% का विचलन दर्शाता है।
अगर पृथ्वी एक बिलियर्ड गेंद के आकार में सिकुड़ जाए तो पृथ्वी के कुछ क्षेत्रों जैसे बड़े पर्वत श्रंखलाएं और महासागरीय खाइया, छोटे खामियों के समान महसूस होंगे जबकि ग्रह का ज्यादातर भूभाग जैसे – विशाल हरे मैदान और सूखे पठार आदि चिकने महसूस होंगे।
रासायनिक संरचना :
पृथ्वी की रचना में बहुत से तत्वों ने अपना योगदान दिया है। पृथ्वी की रचना में आयरन 34.6%, ऑक्सीजन 29.5%, सिलिकन 15.2%, मैग्नीशियम 12.7%, निकेल 2.4%, सल्फर 1.9%, टाइटेनियम 0.05% और बाकी शेष बचे हुए तत्व होते हैं। पृथ्वी का घनत्व पूरे सौरमंडल में सबसे अधिक है बाकी चट्टानी ग्रह की संरचना कुछ अंतरो के साथ पृथ्वी के जैसी ही है।
चंद्रमा का केन्द्रक छोटा है, बुध का केंद्र उसके कुल आकार की तुलना में विशाल है, मंगल और चंद्रमा का मेंटल कुछ मोटा है, चंद्रमा और बुध से रासायनिक रूप से भिन्न भूपटल नहीं है केवल पृथ्वी का अंतः और बाह्य मेंटल परत अलग है।
आंतरिक संरचना :
पृथ्वी की आंतरिक संरचना शल्कीय यानि परतों के रूप में है जैसे प्याज के छिलके परतों के रूप में होते हैं। इन परतों की मोटाई का सीमांकन रासायनिक विशेषताओं तथा यांत्रिक विशेषताओं के आधार पर किया जा सकता है। यांत्रिक लक्षणों के आधार पर पृथ्वी, स्थल मंडल, दुर्बलता मंडल, मध्यवर्ती आवरण, बाह्य सत्व और आंतरिक सत्व से बन हुआ है।
रासायनिक संरचना के आधार पर इसे भूपर्पटी, ऊपरी आवरण, निचला आवरण, बाहरी सत्व और आंतरिक सत्व में बांटा गया है। पृथ्वी की ऊपरी परत भूपर्पटी एक ठोस परत है, मध्यवर्ती आवरण बहुत अधिक गाढ़ी परत है और बाह्य सत्व तरल तथा आंतरिक सत्व ठोस अवस्था में है। आंतरिक सत्व की त्रिज्या पृथ्वी की त्रिज्या का लगभग पांचवां हिस्सा है।
पृथ्वी के अंतरतम की यह परतदार संरचना भूकंपीय तरंगों के संचलन और उनके परावर्तन तथा प्रत्यावर्तन पर आधारित है जिनका अध्धयन भूकंपलेखी के आंकड़ों से किया जाता है। भूकंप द्वारा उत्पन्न प्राथमिक एवं द्वितीयक तरंगें पृथ्वी के भीतर स्नेल के नियम के अनुसार प्रत्यावर्तित होकर वक्राकार पथ पर चलती हैं।
जब दो परतों के बीच घनत्व अथवा रासायनिक संरचना का अचानक परिवर्तन होता है तो तरंगों की कुछ ऊर्जा वहाँ से परावर्तित हो जाती है। परतों के मध्य ऐसी जगहों को दरार कहते हैं। परतों की आंतरिक संरचना के विषय में जानकारी के स्त्रोतों को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है।
प्रत्यक्ष स्त्रोत जैसे – ज्वालामुखी से निकले पदार्थों का अध्धयन, वेधन से प्राप्त आंकड़े आदि कम गहराई तक ही जानकारी उपलब्ध करा पाते हैं। दूसरी तरफ अप्रत्यक्ष स्त्रोत के रूप में भूकंपीय तरंगों का अध्धयन ज्यादा गहराई की विशेषताओं के विषय में जानकारी देता है।
पृथ्वी में ऊष्मा :
पृथ्वी की आंतरिक गर्मी, अवशिष्ट गर्मी के संयोजन से आती है ग्रहों में अनुवृद्धि से और रेडियोधर्मी क्षय के माध्यम से ऊष्मा उत्पन्न होती है। पृथ्वी के अंदर प्रमुख ताप उत्पादक समस्थानिक में पोटेशियम-40, युरेनियम-238 और थोरियम-232 शामिल है। पृथ्वी के केंद्र का तापमान 6000 डिग्री सेल्सियस तक हो सकता है और दबाव 360 जीपीए तक पहुंच सकता है।
क्योंकि सबसे अधिक गर्मी रेडियोधर्मी क्षय द्वारा उत्पन्न होती है, वैज्ञानिको का मानना है कि पृथ्वी के इतिहास के आरंभ में कम या आधा जीवन के समस्थानिक के समाप्त होने से पूर्व पृथ्वी का ऊष्मा उत्पादन बहुत अधिक था। धरती से औसतन ऊष्मा का क्षय 87 एमडब्ल्यू एम -2 है वही वैश्विक ऊष्मा का क्षय 4.42×1013 डब्ल्यू हैं।
कोर की थर्मल ऊर्जा का एक हिस्सा मेंटल प्लम्स द्वारा पृष्ठभोग की तरफ ले जाया जाता है इन प्लम्स से प्रबल ऊर्जबिंदु तथा असिताश्म बाढ़ का निर्माण होता है। ऊष्माक्षय का अंतिम प्रमुख माध्यम लिथोस्फियर से प्रवाहकत्त्व के माध्यम से होता है जिसमे से अधिकांश महासागरों के नीचे होता है क्योंकि यहाँ भू-पर्पटी, महाद्वीपों की तुलना में बहुत पतली होती है।
विवर्तनिक प्लेटें :
पृथ्वी का कठोर भूपटल कुछ ठोस प्लेटो में विभाजित है जो निचले द्रव मैंटल पर स्वतंत्र रूप से बहते रहते है जिन्हें विवर्तनिक प्लेटें कहते है। ये प्लेटें एक कठोर खंड के समान है जो परस्पर तीन प्रकार की सीमाओं से एक दूसरे की ओर बढ़ते हैं – अभिसरण सीमाएं, जिस पर दो प्लेटें एक साथ आती हैं, भिन्न सीमाएं जिस पर दो प्लेटें अलग हो जाती हैं और सीमाओं को बदलना जिसमें दो प्लेटें एक दूसरे के उपर-नीचे स्लाइड करती हैं।
इन प्लेट सीमाओं पर भूकंप, ज्वालामुखीय गतिविधि, पहाड़ निर्माण और समुदी खाई का निर्माण हो सकता है। जैसे ही विवर्तनिक प्लेटों स्थानांतरित होती हैं, अभिसरण सीमाओं पर महासागर की परत किनारों के नीचे घटती जाती है। उसी वक्त भिन्न सीमाओं से ऊपर आने का प्रयास करते मेंटल पदार्थ, मध्य-समुद्र में उभार बना देते है।
इन प्रक्रियाओं के संयोजन से समुद्र की परत फिर से मेंटल में पुनर्नवीनीकरण हो जाती है। इन्हीं पुनर्नवीनीकरण की वजह से अधिकांश समुद्र की परत की उम्र 100 मेगा साल से भी कम हैं। सबसे पुरानी समुद्री परत पश्चिमी प्रशांत सागर में स्थित है जिसकी अनुमानित उम्र 200 मेगा साल है।
वर्तमान में 8 प्रमुख प्लेटें :
1. उत्तर अमेरिकी प्लेट – उत्तरी अमेरिकी, पश्चिमी उत्तर अटलांटिक और ग्रीनलैंड
2. दक्षिण अमेरिकी प्लेट – दक्षिण अमेरिका और पश्चिमी दक्षिण अटलांटिक
3. अंटार्कटिक प्लेट – अंटार्कटिका और दक्षिणी महासागर
4. यूरेशियाई प्लेट – पूर्वी उत्तर अटलांटिक, यूरोप और भारत के अलावा एशिया
5. अफ्रीकी प्लेट – अफ्रीका, पूर्वी दक्षिण अटलांटिक और पश्चिमी हिंद महासागर
6. भारतीय-ऑस्ट्रेलियाई प्लेट – भारत, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और हिंद महासागर के अधिकांश
7. नाज्का प्लेट – पूर्वी प्रशांत महासागर से सटे दक्षिण अमेरिका
8. प्रशांत प्लेट – प्रशांत महासागर के सबसे अधिक
50 से 55 मिलियन साल पूर्व ऑस्ट्रेलिया प्लेट, भारतीय प्लेट के साथ जुड़ गई। सबसे तेजी से बढ़ते प्लेटों में महासागर की प्लेटें हैं जिसमें कोकोस प्लेट 75 मिमी/वर्ष की दर से बढ़ रही है और वही प्रशांत प्लेट 52 से 69 मिमी/वर्ष की दर से आगे बढ़ रही है। वहीं दूसरी तरफ सबसे धीमी गति से चलती प्लेट यूरेशियन प्लेट है जो 21 मिमी/वर्ष की एक विशिष्ट दर से बढ़ रही है।
पृथ्वी की सतह :
पृथ्वी का कुल सतह क्षेत्र लगभग 510 मिलियन किमी2 है जिसमें से 70.8% या 361.13 मिलियन किमी2 क्षेत्र समुद्र तल से नीचे है और जल से भरा हुआ है। महासागर की सतह के नीचे महाद्वीपीय शेल्फ का ज्यादा हिस्सा है, महासागर की सतह, महाद्वीपीय शेल्फ, पर्वत, ज्वालामुखी, समुद्री खंदक, समुद्री तल दर्रे, महासागरीय पठार, अथाह मैदानी इलाके और मध्य महासागर रिड्ज प्रणाली से भरी पड़ी हैं।
शेष 29.2% जो पानी से ढका हुआ नहीं है, जगह-जगह पर बहुत भिन्न है और पहाड़ों, रेगिस्तान, मैदानी, पठारों और अन्य भू-प्राकृतिक रूप में बटा हुआ है। भूगर्भीय समय पर पृथ्वी की सतह को लगातार नई आकृति प्रदान करने वाली प्रक्रियाओं में विवर्तनिकी और क्षरण, ज्वालामुखी विस्फोट, बाढ़, अपक्षय, हिमाच्छेद, प्रवाल भित्तियों का विकास और उल्कात्मक प्रभाव इत्यादि शामिल हैं।
महाद्वीपीय परत कम घनत्व वाली सामग्री जैसे अग्निमय चट्टानों ग्रेनाइट और एंडसाइट के बने होते हैं। वही बेसाल्ट प्राय: काम पाए जाने वाला एक सघन ज्वालामुखीय चट्टान है जो समुद्र के तल का मुख्य घटक है। अवसादी शैल तलछट के संचय से बनती है जो एक साथ दफन और समेकित हो जाती है।
महाद्वीपीय सतहों का लगभग 75% भाग अवसादी शैल से ढका हुआ है हालाँकि यह संपूर्ण भी पटल का लगभग 5% हिस्सा ही है। पृथ्वी पर पाए जाने वाले चट्टानों का तीसरा रूप कायांतरित शैल है जो पूर्व मौजूदा शैल के उच्च दबावों, उच्च तापमान या दोनों के कारण से परिवर्तित होकर बनता है।
पृथ्वी की सतह पर प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले सिलिकेट खनिजों में स्फटिक, स्फतीय, एम्फिबोले, अभ्रक, प्योरॉक्सिन और ओलिवीइन शामिल हैं। आम कार्बोनेट खनिजों में कैल्साईट और डोलोमाइट शामिल हैं। भूमि की सतह की ऊँचाई, मृत सागर में सबसे कम -418 मीटर और माउंट एवरेस्ट के शीर्ष पर सबसे ज्यादा 8848 मीटर है।
समुद्र तल से भूमि की सतह की औसत ऊँचाई 840 मीटर है। पेड़ोस्फीयर पृथ्वी की महाद्वीपीय सतह की सबसे बाहरी परत है और यह मिट्टी से बना हुआ है तथा मिट्टी के गठन की प्रक्रियाओं के अधीन कुल कृषि योग्य भूमि, भूमि की सतह का 10.9% हिस्सा है जिसके 1.3% हिस्से पर स्थाई रूप से फसलें ली जाती हैं। धरती की 40% भूमि की सतह का उपयोग चरागाह और कृषि के लिए किया जाता है।
जल मंडल :
पृथ्वी की सतह पर पानी की बहुतायत एक अनोखी विशेषता है जो सौर मंडल के अन्य ग्रहों से इस नीले ग्रह को अलग करती है। पृथ्वी के जलमंडल में मुख्यतः महासागर हैं लेकिन तकनीकी रूप से दुनिया में उपस्थित अन्य जल के स्त्रोत जैसे – अंतर्देशीय समुद्र, झीलों, नदियों और 2000 मीटर की गहराई तक भूमिगत जल के साथ इसमें शामिल हैं।
पानी के नीचे की सबसे गहरी जगह 10,911.4 मीटर की गहराई के साथ प्रशांत महासागर में मरियाना ट्रेंच की चैलेंजर डीप है। महासागरों का द्रव्यमान लगभग 1.35×1018 मीट्रिक टन या पृथ्वी के कुल द्रव्यमान का 1/4400 हिस्सा है। महासागर औसतन 3682 मीटर की गहराई के साथ 3.618×108 किमी2 का क्षेत्रफल में फैला हुआ है जिसकी अनुमानित मात्रा 1.332 ×109 किमी3 हो सकती है।
अगर सभी पृथ्वी की उबड-खाबड़ सतह यदि एक समान चिकने क्षेत्र के रूप में हो तो महासागर की गहराई 2.7 से 2.8 किलोमीटर होगी। लगभग 97.5% पानी खारा है शेष 2.5% ताजा पानी है ज्यादातर ताजा पानी लगभग 68.7% बर्फ के पहाड़ों और ग्लेशियरों के बर्फ के रूप में मौजूद है।
पृथ्वी के महासागरों की औसत लवणता लगभग 35 ग्राम नमक प्रति किलोग्राम समुद्री जल होती है। ये अधिकांशतः ज्वालामुखीय गतिविधि से निकालकर या शांत अग्निमय चट्टानों से निकलकर सागर में मिलते हैं। महासागर विघटित वायुमंडलीय गैसों के लिए एक भंडार की तरह भी है जो कई जलीय जीवन के बदलाव, मौसम बदलाव में गडबडी की वजह हो सकती है जैसे – एल नीनो।
पृथ्वी पर वायुमंडल :
पृथ्वी के वातावरण में 77% नाईट्रोजन, 21% ऑक्सीजन और कुछ मात्रा में आर्गन, कार्बन-डाई-ऑक्साइड और जल वाष्प है। पृथ्वी पर निर्माण के वक्त कार्बन-डाई-ऑक्साइड की मात्रा अधिक रही होगी जो चट्टानों में कार्बोनेट के रूप में जम गई, कुछ मात्रा सागर द्वारा अवशोषित कर ली गई, शेष कुछ मात्रा जीवित प्राणियों द्वारा प्रयोग में आ गई होगी।
प्लेट टेकटानिक और जैविक गतिविधि कार्बन-डाई-ऑक्साइड का थोड़ी मात्रा का उत्सर्जन और अवशोषण करते रहते है। कार्बन-डाई-ऑक्साइड पृथ्वी की सतह के तापमान को ग्रीन हॉउस प्रभाव द्वारा नियंत्रण करती है। ग्रीन हॉउस प्रभाव द्वारा सतह का तापमान 35 डिग्री सेल्सियस होता है नहीं तो वह -21 डिग्री सेल्सियस से 14 डिग्री सेल्सियस रहा है इसके न रहने पर समुद्र जम जाते और जीवन असंभव हो जाता।
जल वाष्प भी एक आवश्यक ग्रीन हॉउस गैस है। रासायनिक दृष्टि से मुक्त ऑक्सीजन भी जरूरी है। सामान्य परिस्थिति में ऑक्सीजन विभिन्न तत्वों से क्रिया कर विभिन्न यौगिक बनाती है। पृथ्वी के वातावरण में ऑक्सीजन का निर्माण और नियंत्रण विभिन्न जैविक प्रक्रियाओ से होता है। जीवन के बिना मुक्त ऑक्सीजन संभव नहीं है।
मौसम और जलवायु :
पृथ्वी के वायुमंडल की कोई निश्चित सीमा नहीं है, यह आकाश की ओर धीरे-धीरे पतला होता जाता है और बाह्य अंतरिक्ष में लुप्त हो जाता है। वायुमंडल के द्रव्यमान का तीन-चौथाई हिस्सा सतह से 11 किलोमीटर के अंदर ही निहित है। सबसे निचली परत को ट्रोफोस्फीयर कहा जाता है। सूर्य की ऊर्जा से यह परत और इसके नीचे तपती है जिसकी वजह से हवा का विस्तार होता है।
यह कम घनत्व वाली वायु ऊपर की तरफ जाती है और ठंडे, उच्च घनत्व वायु में प्रतिस्थापित हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप ही वायुमंडलीय परिसंचरण बनता है जो तापीय ऊर्जा के पुनर्वितरण के माध्यम से मौसम और जलवायु को चलाता है। प्राथमिक वायुमंडलीय परिसंचरण पट्टी 30० अक्षांश से नीचे के भूमध्य रेखा क्षेत्र में और 30० तथा 60० के बीच मध्य अक्षांशों में पश्चमी हवा की व्यापारिक पवन से मिलकर बने होते हैं।
जलवायु को निर्धारण करने में महासागरीय धाराएँ भी एक महत्वपूर्ण कारक हैं विशेष रूप से थर्मोहेलिन परिसंचरण जो भूमध्यवर्ती महासागरों से ध्रुवीय क्षेत्रों तक थर्मल ऊर्जा वितरित करती है। सतही वाष्पीकरण से उत्पन्न जल वाष्प परिसंचरण तरीकों द्वारा वातावरण में पहुंचाया जाता है।
जब वायुमंडलीय स्थितियों की वजह से गर्म और आर्द्र हवा ऊपर की तरफ जाती है तो यह वाष्प सघन हो वर्षा के रूप में दुबारा सतह पर आ जाती हैं। तब अधिकांश पानी नदी प्रणालियों द्वारा नीचे की तरफ ले जाया जाता है और आमतौर पर महासागरों या झीलों में जमा हो जाती है। यह जल चक्र भूमि पर जीवन हेतु एक महत्वपूर्ण तंत्र है और कालांतर में सतही क्षरण का एक प्राथमिक कारक है।
वर्षा का वितरण व्यापक रूप से भिन्न हैं, कहीं पर कई मीटर पानी प्रति वर्षा तो कहीं पर एक मिलीलीटर से भी कम वर्षा होती है। वायुमंडलीय परिसंचरण, स्थलाकृतिक विशेषताएं और तापमान में अंतर, हर क्षेत्र में औसत वर्षा का निर्धारण करती है। बढ़ते अक्षांश के साथ पृथ्वी की सतह तक पहुंचने वाली सौर ऊर्जा की मात्रा कम होती जाती है।
उच्च अक्षांशों पर सूरज की रोशनी निम्न कोण से सतह तक पहुंचती है और इसे वातावरण के मोटे कतार के माध्यम से गुजरना होता है। परिणामस्वरूप समुद्री स्तर पर औसत वार्षिक हवा का तापमान, भूमध्य रेखा की तुलना में अक्षांशों में लगभग 0.4 डिग्री सेल्सियस प्रति डिग्री कम होता है।
पृथ्वी की सतह को विशिष्ट अक्षांशु पट्टी में लगभग समरूप जलवायु से विभाजित किया जा सकता है। भूमध्य रेखा से लेकर ध्रुवीय क्षेत्रों तक ये उष्णकटिबंधीय, उपोष्णकटिबंधीय, शीतोष्ण और ध्रुवीय जलवायु में बता हुआ है। महासागरों की निकटता जलवायु को नियंत्रित करती है। उदाहरण के लिए स्कैंडिनेवियाई प्रायद्वीप में उत्तरी कनाडा के समान उत्तरी अक्षांशों की तुलना में आशिक उदार जलवायु है।
चुंबकीय क्षेत्र :
पृथ्वी का अपना एक चुंबकीय क्षेत्र है जो बाह्य केंद्रक के विद्युत प्रवाह से निर्मित होता है। सौर वायु पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र और ऊपरी वातावरण मिलकर औरोरा बनाते है। इन सभी कारकों में आई अनियमितताओं से पृथ्वी के चुंबकीय ध्रुव गतिमान रहते है और कभी-कभी विपरीत भी हो जाते हैं।
पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र और सौर वायु मिलकर वान एंडरसन विकिरण पट्टा बनाते है जो प्लाज्मा से बनी हुई डोनेट आकार के छल्लों की जोड़ी होती है और जो पृथ्वी के चारों की वलयाकार में है। बाह्य पट्टा 19,000 किलोमीटर से 41,000 किलोमीटर तक है जबकि अत: पट्टा 13,000 किलोमीटर से 7600 किलोमीटर तक है।
प्रथ्वी का परिक्रमण :
सूर्य के सापेक्ष पृथ्वी की परिक्रमण अवधि 86,400 सेकेण्ड की होती है। अभी पृथ्वी में सौर दिन 19 वीं शताब्दि की अपेक्षा प्रत्येक दिन 0 और 2 एसआई एमएस ज्यादा लंबा होता है जिसकी वजह से ज्वारीय मंदी का होना जाता है। स्थित तारों के सापेक्ष पृथ्वी की परिक्रमण अवधि जिसे अंतर्राष्ट्रीय पृथ्वी परिक्रमण और संदर्भ सिस्टम सेवा द्वारा एक तारकीय दिन भी कहा जाता है औसत सौर समय 86,164.0989091 सेकेण्ड या 23 घंटे 56 मिनट और 4.098909191986 सेकेण्ड का होता है। वातावरण और निचली कक्षाओं के उपग्रहों के अंदर उल्काओं के अतिरिक्त पृथ्वी के आकाश में आकाशीय निकायों की मुख्य गति पश्चिम की तरफ 15 डिग्री/घंटे = 15’/ मिनट की दर से होती है।
प्राकृतिक संसाधन और भूमि उपयोग :
पृथ्वी में ऐसे कई संसाधन हैं जिसका मनुष्यों द्वारा शोषण किया गया है अनवीकरणीय संसाधन जैसे – जीवाश्म ईंधन, सिर्फ भूवैज्ञानिक समयकालों पर नवीनीकृत होते हैं। कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस आदि जीवाश्म ईंधन के बड़े भंडार पृथ्वी की सतह के अंदर से प्राप्त होते हैं।
मनुष्यों द्वारा इन संसाधनों का उपयोग उर्जा उत्पादन तथा फीडस्टॉक के तौर पर रासायनिक उत्पादन के लिए किया जाता है। अयस्क उत्पत्ति की प्रक्रिया के माध्यम से खनिज अयस्क निकायों का भी निर्माण यही होता है। पृथ्वी में मनुष्य के लिए कई उपयोगी कई जैविक उत्पादों जैसे – भोजन, लकड़ी, औषधि, ऑक्सीजन और कई जैविक अपशिष्टों के पुनर्चक्रण सहित का उत्पादन होता है।
भूमि आधारित पारिस्थितिकी तंत्र, ऊपरी मिट्टी और ताजे पानी पर निर्भर करता है और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र जमीन से बहकर आए पोषक तत्वों पर निर्भर करता है। सन् 1980 में पृथ्वी की जमीन की सतह के 5,053 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्र पर जंगल थे, 6,788 मिलियन हैक्टेयर पर घास के मैदान और चरागाह थे और 1501 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्र पर फसल उगाई जाती थी। सन् 1993 में सिंचित भूमि का अनुमानित क्षेत्र 2,481,250 वर्ग किलोमीटर था। भवन निर्माण करके मनुष्य भी भूमि पर ही रहते हैं।
प्राकृतिक और पर्यावर्णीय खतरे :
पृथ्वी की सतह का एक सबसे बड़ा क्षेत्र, चरम मौसम जैसे – उष्णकटिबंधीय चक्रवात, तूफान या आंधी के अधीन हैं जो उन क्षेत्रों में जीवन को प्रभावित करते है। सन् 1980 से 2000 के मध्य इन घटनाओं की वजह से औसत प्रति साल 11,800 मानव मारे गए हैं।
कई स्थान भूकंप, भूस्खलन, सुनामी, ज्वालामुखी विस्फोट, बवंडर, सिंकहोल, बर्फानी तूफान, बाढ़, सूखा, जंगली आग और अन्य आपदाओं की अधीन हैं। कई स्थानीय क्षेत्रों में वायु एवं जल प्रदुषण, अम्ल वर्षा और जहरीले पदार्थ, फसल का नुकसान, वन्यजीवों की हानि, प्रजातियाँ विलुप्त होने, मिट्टी की क्षमता में गिरावट, मृदा अपरदन और क्षरण आदि सभी मानव निर्मित हैं।
एक वैज्ञानिक सहमति है कि भूमंडलीय तापक्रम वृद्धि के लिए मानव गतिविधियाँ ही जिम्मेदार हैं जैसे – औद्योगिक कार्बन-डाई-ऑक्साइड उत्सर्जन। जिसकी वजह से ग्लेशियरों और बर्फ की चादरों के पिघलने जैसे परिवर्तनों की भविष्यवाणी की गई है, अधिक चरम तापमान पर पर्वतमाला के बर्फों का पिघलना, मौसम में महत्वपूर्ण बदलाव और औसत समुद्री स्तरों में वैश्विक वृद्धि आदि सम्मिलित हैं।
पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह :
चंद्रमा पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह है। यह सौरमंडल का पांचवां सबसे विशाल प्राकृतिक उपग्रह है जिसका व्यास पृथ्वी का एक चौथाई तथा द्रव्यमान 1/81 है। वृहस्पति के उपग्रह लो के बाद चंद्रमा दूसरा सबसे ज्यादा घनत्व वाला उपग्रह है। सूर्य के बाद आसमान में सबसे ज्यादा चमकदार निकाय चंद्रमा है।
समुद्री ज्वार और भाटा चंद्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति की वजह से आते हैं। चंद्रमा की तात्कालिक कक्षीय दूरी, पृथ्वी के व्यास का 30 गुना है इसलिए आसमान में सूर्य और चंद्रमा का आकार हमेशा एक जैसा नजर आता है। पृथ्वी के मध्य से चंद्रमा के मध्य तक कि दूरी 384,803 किलोमीटर है।
यह दूरी पृथ्वी की परिधि के 30 गुना है। चंद्रमा पर गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी से 1/6 है। यह पृथ्वी की परिक्रमा 27.3 दिन में पूरा करता है और अपने अक्ष के चारो ओर एक पूरा चक्कर भी 27.3 दिन में लगाता है। यही वजह है कि हम हमेशा चंद्रमा का एक ही पहलू पृथ्वी से देखते हैं।
अगर चंद्रमा पर खड़े होकर पृथ्वी को देखे तो पृथ्वी साफ-साफ अपने अक्ष पर घूर्णन करती हुई नजर आएगी लेकिन आसमान में उसकी स्थिति हमेशा स्थिर बनी रहेगी यानि पृथ्वी को कई सालों तक निहारते रहे वह अपनी जगह से टस-से-मस नहीं होगी। पृथ्वी-चंद्रमा-सूर्य ज्यामिति की वजह से चंद्र दशा प्रत्येक 29.5 दिनों में बदलती है।
क्षुद्रग्रह और कृत्रिम उपग्रह :
3753 क्रुथने और 2002 एए29 के साथ पृथ्वी में कम-से-कम पांच सह-कक्षीय क्षुद्रग्रह हैं। एक ट्रोजन क्षुद्रग्रह 2010 टिके7, अग्रणी लैग्रेज त्रिकोणीय बिंदु एल4 के आसपास पृथ्वी की कक्षा में सूर्य के चारों ओर भ्रमण करता रहता है। पृथ्वी के समीप एक छोटा क्षुद्रग्रह हर बीस साल में पृथ्वी चंद्रमा प्रणाली के लगभग समीप पहुंच जाता है।
इस दौरान यह संक्षिप्त अवधि के लिए पृथ्वी की परिक्रमा करने लगता है। जून 2016 तक 1419 मानव निर्मित उपग्रह पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे हैं। वर्तमान समय में कक्षा में सबसे पुराना और निष्क्रिय उपग्रह वैनगार्ड 1 और 16,000 से भी ज्यादा अंतरिक्ष मलबे के टुकड़े भी घूम रहे हैं। पृथ्वी का सबसे बड़ा कृत्रिम उपग्रह, अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन है।
पृथ्वी जैसा दूसरा ग्रह :
दूसरी दुनिया की खोज में लगे वैज्ञानिकों को एक बहुत ही महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त हुई है। वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के समान दिखने वाले एक नए ग्रह की खोज की है। यह ग्रह G2 नामक तारे की परिक्रमा कर रहा है और इन दिनों के मध्य भी उतनी ही दुरी है जितनी की सूर्य और पृथ्वी के मध्य। G2 सूर्य के समान ही एक सितारा है।
नासा ने एक बयाँ को जारी करके बताया है कि यह ग्रह न ही तो अधिक ठंडा है और न ही अधिक गर्म इसलिए इस ग्रह पर जीवन की संभवनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता। इस ग्रह की खोज केपलर टेलिस्कोप की सहायता से की गई है जो वर्ष 2009 में दूसरी दुनिया की खोज में लगा हुआ है।
वैज्ञानिकों के अनुसार यह नया ग्रह हमारी प्रथ्वी से 1400 प्रकाश वर्ष की दुरी पर स्थित है। नासा वालों ने बताया है कि इस नए ग्रह पर जीवन के लिए पर्याप्त परिस्थितियाँ हैं। इस ग्रह पर समुद्र और ज्वालामुखी भी हैं और इसका गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी से दुगना है। यह ग्रह अपने सूर्य का एक चक्कर 385 दिनों में पूरा करता है।
वैज्ञानिकों ने पाया है कि इस ग्रह के कई स्वभाव पृथ्वी के स्वभाव से मेल खाते हैं। इस ग्रह को पृथ्वी का बड़ा भाई और G2 को सूर्य का भाई करार दिया गया है। वर्ष 2009 में आरंभ किए गए केपलर मिशन का उद्देश्य पृथ्वी की तरह के दूसरे ग्रह को खोजना था। इस खोज के दौरान वैज्ञानिकों को कई नए ग्रह और खगोलीय घटनाएँ देखने को मिलीं।
इस पुरे मिशन में अब तक नासा लगभग 600 मिलियन डॉलर मतलब लगभग 3,836 करोड़ रूपए खर्च कर चुकी है। जेनेवाः खगोलविदों ने सिर्फ 11 प्रकाश वर्ष की दुरी पर अनुकूल जलवायु वाले पृथ्वी के आकार के ग्रह की खोज की है जिसका जंक एक शांत तारा है और संभवतः यह जीवन की संभावना वाला सबसे निकटम ज्ञात स्थान भी हो सकता है।
चिली के ला सिला ऑब्जर्वेटरी में हाई एक्यूरेसी रेडियल वेलॉसिटी प्लानेट सर्चर के साथ कार्य करने वाले एक दल ने देखा कि कम द्रव्यमान वाला ग्रह प्रत्येक 9 वें दिन लाल बौने तारे रॉस 128बी की कक्षा में घूर्णन करता है। माना जाता है कि पृथ्वी की तरह का यह ग्रह संयमित होगा और इसकी सतह भी पृथ्वी की सतह की तरह ही सकती है।
रॉस 128बी सबसे शांत निकटम तारा है। स्विट्जरलैंड लैंड में यूनिवर्सिटी ऑफ जेनेवा से निकोला एस्टूडिल्लो-डेफ्रु ने बताया है कि यह खोज एचएआरपीएस की एक दशक से भी ज्यादा समय की गहरी निगरानी पर आधारित है जिसके लिए आधुनिक आंकड़ा संग्रह एवं विश्लेषण तकनीक का प्रयोग किया गया है।
लाल बौने ब्रह्मांड के सबसे शीतल, धुंधले तारों में से एक हैं। यही गुण उन्हें खगोलविदों के लिए खोज का सबसे अच्छा लक्ष्य बनाता है। फ्रांस में यूनिवर्सिटी ऑफ ग्रेनोबल से जेवियर बोनाफिल्स ने कहा कि सूर्य की तरह मिलते-जुलते तारों की तुलना में इन तारों के इर्दगिर्द धरती की तरह छोटे शीतल ग्रहों की पहचान करना आसान होता है। जेवियर एस्ट्रोफिजिक्स पत्रिका में प्रकाशित अनुसंधान के मुख्य लेखक हैं।
पृथ्वी के समीप आएगा वरुण ग्रह :
खगोलीय घटनाओं के अंतर्गत सौरमंडल का आखिरी और तीसरा सबसे बड़ा ग्रह वरुण आज शाम पृथ्वी के सबसे करीब होगा। आठवे स्थान के सूर्य से 4 अरब 50 करोड़ किलोमीटर की दूर वरुण को आमतौर पर बड़ी दूरबीन से देख पाना बहुत ही मुश्किल होता है परन्तु 20 अगस्त की रात को वरुण ग्रह पर वैज्ञानिक अवलोकन करना संभव हो सकेगा।
वराह मिहिर वैज्ञानिक धरोहर और शोध संस्थान के खगोल वैज्ञानिक संजय केथवास ने बताया कि वरुण ग्रह को सौरमंडल में राजा सूर्य की परिक्रमा पूरी करने में 165 साल लगते हैं जबकि पृथ्वी तेजी से सूर्य की परिक्रमा लगाते हुए हर साल अगस्त और सितंबर के महीने में वरुण ग्रह के करीब से होकर गुजरती है।
सौरमंडल परिवार का सबसे बड़ा ग्रह वरुण ग्रह इस महीने होने वाली दूसरी खगोलीय घटना के तहत आज पृथ्वी के सबसे नजदीक दिखाई देगा। खगोल वैज्ञानिकों के अनुसार सौरमंडल परिवार के 8 ग्रहों में से आठवां ग्रह हर साल पृथ्वी के पास से होकर गुजरता है। वरुण ग्रह आमतौर पर साल में एक बार कुछ दिनों तक ही दिखाई देता है।
आज वह नीले रंग की छोटी गेंद की तरह दिखाई देगा पर इसे दूरबीन के माध्यम से ही देखा जा सकता है। केथवास ने बताया है कि वरुण ग्रह जब सूर्य के दूसरी तरफ होता है तब उसकी पृथ्वी से अधिकतम दुरी 4 अरब 65 किलोमीटर होती है और आज वरुण की सूर्य से दूरी 30 करोड़ किलोमीटर हो जाएगी। इस दौरान सूर्य के एक ओर वरुण ग्रह और दूसरी ओर पृथ्वी रहेगी।
वरुण ग्रह तरल हाईड्रोजन गैस का गोला है और शनि ग्रह के समान इसका भी वलय होता है। इस ग्रह की पतली रिंग होती है परन्तु वह दूरबीन के द्वारा देखी नहीं जा सकती है। वरुण ग्रह पर आंकड़े जुटाने के लिए वैज्ञानिक सालभर इस वक्त का इंतजार करते हैं।
नीले रंग का बहुत सुंदर वरुण ग्रह 20 अगस्त को पृथ्वी के इतने समीप होने के बाद भी अन्तरिक्ष में इतना दूर है कि उसे केवल शक्तिशाली दूरबीन से ही देखा जा सकता है। वरुण ग्रह सूर्यास्त के बाद पूर्व दिशा में उदित होगा और रात भर गहरे अन्तरिक्ष में अपनी चमक को बिखेरता रहेगा लेकिन हम उसे कोरी आँखों से नहीं देख सकेंगे। इसके लिए टेलिस्कोप का होना बहुत जरूरी है और साथ ही मौसम साफ होना भी बहुत जरूरी है।
पृथ्वी की मुख्य विशेषताएं :
पृथ्वी के वातावरण में 77% नाईट्रोजन, 21%ऑक्सीजन और कुछ मात्रा में आर्गन, कार्बन-डाई-ऑक्साइड और जलवाष्प है। पृथ्वी सूर्य का तीसरा निकटतम ग्रह है। पृथ्वी की सूर्य से औसत दूरी 14,95,97,900 किलोमीटर है। पृथ्वी के सबसे निकटतम ग्रह शुक्र ग्रह है। पृथ्वी का औसत वेग 29.79 किलोमीटर/सेकेण्ड है।
पृथ्वी से वृहस्पति 11 गुना बड़ा है। पृथ्वी शुक्र ग्रह और मंगल ग्रह के बीच में है। पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के खिलाफ जाने के लिए रोकेट के लिए जरूरी वेग 8 किलोमीटर/सेकेण्ड है। पृथ्वी का उपग्रह चंद्रमा है। पृथ्वी को जल की उपस्थिति की वजह से नीला ग्रह भी कहा जाता है।
पृथ्वी की परिक्रमा अवधि 365 दिन 5 घंटे 48 मिनट 45.5 सेकेण्ड है। पृथ्वी द्वारा सूर्य का चक्कर लगाने को वर्षिकी गति कहते हैं। पृथ्वी एक मात्र एक ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन संभव है। पृथ्वी आकार में बुध से 3 गुना और यम से 2 गुना बड़ी है। पृथ्वी अपने अक्ष पर 231/2 डिग्री झुकी हुई है।
पृथ्वी से जुड़े रोचक तथ्य :
हम सभी मनुष्य अलग-अलग घरों में रहते हैं लेकिन एक घर ऐसा भी है जिसे हम सभी मनुष्य एक साथ साझा करते हैं वह हमारी पृथ्वी है जो इस सौरमंडल में एकमात्र और ब्रह्मांड में अब तक का ज्ञात ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन संभव है। पृथ्वी पर कुल 500 सक्रिय ज्वालामुखी ऐसे है जिन्होंने पृथ्वी की सतह के निचले और उतले भाग का 80% हिस्सा अपनी ज्वालामुखी राख से बनाया है।
आज से लगभग 450 करोड़ वर्ष पूर्व सूर्य मंडल में मंगल के आकार का एक ग्रह था जो पृथ्वी के साथ एक ही ग्रहपथ पर सूर्य की परिक्रमा करता था। परन्तु यह ग्रह किसी वजह से धरती से टकराया और एक तो पृथ्वी मुड़ गई और दूसरा इस टक्कर के फलस्वरूप जो पृथ्वी का हिस्सा अलग हुआ था उससे चाँद बन गया।
पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण की वजह से पर्वतों का 15,000 मीटर से ऊँचा संभव नहीं है। पृथ्वी के सभी महाद्वीप पहले 2.5 करोड़ साल से गति कर रहे है। यह गति टैकटोनिक प्लेटों की लगातार गति के कारण है। प्रत्येक महाद्वीप दूसरे महाद्वीप से अलग चाल से गति कर रहा है जैसे प्रशांत प्लेट 4 सेंटीमीटर प्रति साल जबकि उत्तरी 1 सेंटीमीटर प्रति साल गति करती है।
पृथ्वी पर उपस्थित प्रत्येक प्राणी में कार्बन जरुर है। पृथ्वी के सभी मनुष्य 1 वर्ग किलोमीटर के घन में समा सकते है। अगर हम एक वर्ग मीटर में एक व्यक्ति को खड़ा करे तो एक वर्ग किलोमीटर में दस लाख व्यक्ति खड़े हो सकते हैं। पृथ्वी पर ताप का स्त्रोत सिर्फ सूर्य नहीं है बल्कि पृथ्वी का अंदरूनी भाग पिघले हुए पदार्थों से बना है जो निरंतर पृथ्वी के अंदरूनी ताप स्थिर रखता है।
एक अनुमान के अनुसार इस अंदरूनी भाग का तापमान 5000 से 7000 डिग्री सेल्सियस है जो सूर्य की सतह के तापमान के बराबर है। क्या आप जानते है कि पृथ्वी के सभी महाद्वीप आज से 6.5 करोड़ साल पूर्व एक दूसरे से जुड़े हुए थे। वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी पर कोई उल्का पिंड गिरने जा फिर लगातार ज्वालामुखीयों ओत शक्तिशाली भूकंपों की वजह से ये महाद्वीप एक-दूसरे से अलग होने लगे इसी वजह से पृथ्वी से डायनासोरो का अंत हुआ था।
पृथ्वी पर प्रतिदिन 4500 बादल गरजते है। पृथ्वी पर आकाश गंगा का एकमात्र ऐसा ग्रह है जिसमें टैकटोनिक प्लेटों की व्यवस्था है। लगभग प्रत्येक वर्ष 30,000 बाहरी अंतरिक्ष के पिंड पृथ्वी के वायुमंडल में दाखिल होते है लेकिन इनमें से अधिकतर पृथ्वी के वायुमंडल के अंदर पहुंचने पर घर्षण की वजह से जलने लगते है जिन्हें हम आमतौर पर टूटता तारा भी कहते है।
आमतौर पर माना जाता है कि शुक्र, सौर मंडल का सबसे चमकीला ग्रह है पर ऐसा नहीं है। अगर एक खास दूरी से सौर मंडल के सभी ग्रहों को देखा जाए तो पृथ्वी सबसे अधिक चमकीली नजर आती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि पृथ्वी का पानी सूर्य के प्रकाश को परिवर्तित कर देता है जिससे वह एक खास दूरी से सबसे चमकीली नजर आती है।
मनुष्य के द्वारा सबसे अधिक गहराई तक खोदा जाने वाला गड्ढा सन् 1989 में रूस में खोदा गया था जिसकी गहराई 12.262 किलोमीटर थी। पृथ्वी की सतह पर केवल 11% हिस्सा ही भोजन उत्पादित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। पृथ्वी पूरी तरह से गोल नहीं है बल्कि इसके भूमध्य रेखीय और ध्रुवीय व्यासों में 41 किलोमीटर का अंतर है।
पृथ्वी ध्रुवों से थोड़ी सी चपटी है जबकि भूमध्य रेखा से थोड़ी सी बाहर की ओर उभरी हुई है। चाँद के साथ कई ग्रह और उपग्रह ऐसे भी हैं जिन पर पानी उपस्थित है लेकिन पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा पिंड है जहाँ पानी तीनों अवस्थाओं में पाया जाता है मतलब ठोस, द्रव और गैस।
आज से 25 करोड़ वर्ष बाद पृथ्वी अपने अक्ष पर अब से धीमी गति करने लगेगी जिसके फलस्वरूप जो दिन वर्तमान समय में लगभग 24 घंटों का होता है वह 25 करोड़ वर्ष बाद 25.5 घंटों का होगा। पृथ्वी अपनी धुरी पर 1600 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से घूम रही है जबकि सूर्य के आसपास यह 29 किलोमीटर प्रति सेकेण्ड की रफ्तार से चक्कर लगा रही है।
सारी पृथ्वी के प्रत्येक स्थान पर गुरुत्वाकर्षण एक जैसा नहीं है बल्कि पृथ्वी के प्रत्येक स्थान पर यह अलग-अलग है। इसकी वजह से है सभी स्थानों की पृथ्वी के केंद्र से दूरू भिन्न-भिन्न है। इसी वजह से भूमध्य रेखा पर आपका वजन ध्रुवों से थोडा अधिक होगा। पृथ्वी की तीन चौथाई सतह पर पानी है लेकिन इसकी गहराई पृथ्वी की त्रिज्या की तुलना में कुछ भी नहीं है।
पृथ्वी के पूरे पानी से बनी गेंद की त्रिज्या लगभग 700 किलोमीटर होगी जो चंद्रमा की त्रिज्या के आधे से भी कम है। यह मात्रा शनि के चंद्रमा रीआ से थोड़ी अधिक है, रीआ पानी की बर्फ से बना है। युरोपा में पानी की मात्रा पृथ्वी पर पानी की मात्रा से भी ज्यादा है। युरोपा पर पानी उसकी सतह के नीचे लगभग 80 से 100 किलोमीटर की गहराई तक है।
युरोपा के पानी से बनी गेंद का व्यास 877 किलोमीटर होगा इसलिए वैज्ञानिक आजकल युरोपा में जीवन की संभावना देख रहे हैं। पृथ्वी पर हर साल लगभग 1000 टन अंतरिक्ष धूल-कण पृथ्वी में दाखिल होते है। पृथ्वी के अपने अक्ष के सापेक्ष घूमने की वजह से ही यह एक चुंबक की तरह व्यवहार करता है।
पृथ्वी का उत्तरी ध्रुव इसके चुंबकीय क्षेत्र का दक्षिणी पासा है जबकि दक्षिणी ध्रुव इसके चुंबकीय क्षेत्र का उत्तरी पासा। पृथ्वी का वजन लगभग 5.974.000.000.000.000.000.000.000 किलोग्राम है जो ब्लू व्हेल के वजन 54,807,399,449,541,284,403 के लगभग एक समान है। ब्लू व्हेल पृथ्वी का सबसे भारी प्राणी है। आम धारणा के अनुसार पृथ्वी 24 घंटों में एक चक्कर पूरा करती है लेकिन वास्तव में पृथ्वी एक चक्कर पूरा करने में 23 घंटे, 56 मिनट और 4 सेकेण्ड का समय लेती है और खगोलविद इसे एक नक्षत्र दिन कहते हैं।
पृथ्वी का एक साल 365 दिनों का नहीं होकर 365.2564 दिनों का होता है जिसे प्रत्येक वर्ष फरवरी के अंत में जोड़ा जाता है इसलिए हर 4 सालों में एक दिन अलग जोड़ा जाता है। पृथ्वी पर उपस्थित 70% पानी का 97% पानी खारा है इसका मतलब ये है कि केवल 3% पानी ही पीने के योग्य है। इस 3% पानी का 2% से भी ज्यादा बर्फ की परतों तथा ग्लेशियरों में रहता है जिसका अर्थ है 1%से भी कम पानी झीलों और नदियों में है।
पृथ्वी के ज्यादातर भूभाग पर पानी होने की वजह से सूर्य की किरणों को प्रतिबिंबित करता है इसी वजह से दूर से देखने पर पृथ्वी प्रतिभाशाली दिखाई देती है। पृथ्वी तीन अलग-अलग परतों से मिलकर बनी है जो पपड़ी, मेंटल और कोर। ये तीनों परतें विभिन्न तत्वों से मिलकर बने हुए हैं।
पपड़ी में 32% लोहा, 30%ऑक्सीजन, 15% सिलिकोन, 14% मैग्नीशियम, 3% सल्फर, 2% निकल और बाकी शेष बचा हुआ 4% में कैल्शियम, एल्युमिनियम और अन्य विवध तत्वों की मात्रा से बने हुए होते हैं। मेंटल पृथ्वी की सबसे बड़ी परत है और यह लगभग 2970 किलोमीटर मोटी है। यह पृथ्वी की कुल मात्रा की 84% है।
पृथ्वी की कोर दो परतों से मिलकर बनी हुई है एक बाहरी परत और दूसरी भीतरी परत। दोनों परतें मुख्य रूप से लोहे और निकल से मिलकर बनी हुई है। पृथ्वी के केंद्र की बाहरी परत तरल और भीतरी परत सूर्य की तरह गर्म और ठोस मानी जाती है। पृथ्वी हमारे सौरमंडल का एक मात्र ऐसा ग्रह है जिसका नाम यूनानी और रोमन देवता के नाम पर नहीं रखा गया है पृथ्वी का पूरा नाम Goddess Terra Mater जो पृथ्वी पर पहली देवी और युरेनस की माँ थी के साथ जुड़ा हुआ है।
पृथ्वी की सतह का एक तिहाई या आंशिक रूप से या पूरी तरह से रेगिस्तान है। पृथ्वी पर प्रत्येक सेकेण्ड 100 बार बिजली गिरती है मतलब एक दिन में 8.6 लाख बार। ब्रिटेन की रानी पृथ्वी की भूमि की सतह के छठे भाग का कानूनी मालिक है। हमारे पूरे सौरमंडल में सूर्यग्रहण केवल पृथ्वी पर ही हो सकता है किसी दूसरे ग्रह पर नहीं।
पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व 150 से 200 मिलियन साल से है जबकि पृथ्वी 5 अरब साल पुरानी है। पृथ्वी मोटे तौर पर 66 डिग्री पर झुक जाती है। अगर आप एक सुरंग पृथ्वी के आर-पार बना कर उसमें कूदे तो आपको इस पार से उस पार तक जाने में 42 मिनट का समय लगता है। हमारे सौरमंडल में सभी ग्रहों में से पृथ्वी सबसे अधिक घनत्व 5.52 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर के साथ सबसे घना है।
हमारे सौरमंडल में दूसरा सबसे ज्यादा घनत्व वाला ग्रह 5.427 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर के एक घनत्व के साथ बुध है। पृथ्वी का सबसे ऊँचा स्थान है माउन्ट एवरेस्ट जिसके बारे में मैं अभी तक बता चुका हूँ और पृथ्वी पर सबसे गहरा स्थान है मरिअनस ट्रेंच। यह समुद्र के सबसे समीप 11 किलोमीटर गहरा है।
2017 के हिसाब की किताब के अनुसार पृथ्वी की जनसंख्या लगभग 740 करोड़ है लेकिन जिस तरह से पृथ्वी की जनसंख्या दिन-प्रतिदिन बढती जा रही है उस हिसाब से पृथ्वी की जनसंख्या 2050 तक 920 करोड़ तक पहुंच जाएगी। अटलांटिक महासागर में जीता पानी है उतना ही पानी अंटार्कटिका के बर्फ के रूप में मौजूद है।
द ग्रेट वाल ऑफ चाइना इंसानों द्वारा बनाई गई एक ऐसी दीवार है जिसे अंतरिक्ष से भी देखा जा सकता है। हमारी पृथ्वी पर इतना सोना है जिससे पूरी पृथ्वी की सतह को 1.5 फीट की गहराई तक ढका जा सकता है। पृथ्वी पर एक बार सबसे विशाल उल्कापिंड गिरा था इसका नाम होबा मिटिऑराइट रखा गया था।
वैसे तो पृथ्वी पर प्रत्येक साल लगभग लाखों भूकंप आते है लेकिन इनमे से केवल 1 लाख भूकंप ही महसूस किए जाते है और सिर्फ 100 भूकंप ही विनाशकारी होते हैं। पृथ्वी पर सबसे पहले जीवन की शुरुआत पानी से ही हुई थी इसीलिए कहा जाता है जल ही जीवन है। पृथ्वी पर उपस्थित प्रत्येक प्राणी में कार्बन जरुर है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि अंतरिक्ष में मौजूद कचरे का एक टुकड़ा पृथ्वी पर गिरता है। पृथ्वी की सतह पर केवल 11% हिस्सा ही कृषि कार्य के लिए उपयोगी है। पृथ्वी पर सबसे पहले चीनी को शुद्ध करने का तरीका ढूंढने वाला देश भारत है। पृथ्वी पर रोज लगभग 2,00,000 लोग जन्म लेते हैं। पृथ्वी पर हर साल लाख लोगों का बोझ बढ़ जाता है।