Mahatma Gandhi Essay In Points
1. महात्मा गाँधी जी सत्य और अहिंसा के अनन्य पुजारी थे और अहिंसा के प्रयोग से उन्होंने सालों से गुलाम भारतवर्ष को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त करवाया था।
2. महात्मा गाँधी जी का जन्म 2 अक्तूबर, 1869 को गुजरात राज्य के काठियावाड़ जिले में स्थित पोरबन्दर नामक स्थान पर हुआ था।
3. गाँधी जी का पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गाँधी इनके पिता का नाम करमचन्द गाँधी था और उनकी माता का नाम पुतलीबाई गाँधी था।
4. गाँधी जी की प्रारम्भिक शिक्षा पोरबन्दर में हुई थी। अपनी कक्षा में वे एक साधारण विद्यार्थी थे।
5. गाँधी जी ने मैट्रिक की परीक्षा अपने स्थानीय विद्यालय से उत्तीर्ण की थी।
6. गाँधी जी की माता उन्हें बचपन से ही धर्म-कर्म की शिक्षा देती थीं जिससे वे विद्यालय में भी एक विनम्र विद्यार्थी थे।
7. गाँधी जी डॉक्टर बनना चाहते थे लेकिन वैष्णव परिवार में चीरफाड़ की इजाजत नहीं थी।
8. गाँधी जी जब 13 साल की उम्र के थे और स्कूल में पढ़ते थे तब उनका विवाह पोरबंदर के एक व्यापारी की पुत्री कस्तूरबा देवी जी से हुआ था।
9. गाँधी जी की शिक्षा अभी जारी थी कि उनके पिता का स्वर्गवास हो गया। जब गाँधी जी क़ानूनी शिक्षा ग्रहण करने के लिए विदेश गये थे तब वे एक बेटे के पिता बन चुके थे।
10. गाँधी जी ने विदेश जाने से पहले अपनी माता जी से यह वादा किया था वे इंग्लेंड जाकर मांस और मंदिरा का पान नहीं करेंगे। गाँधी जी ने अपनी माता को किया हुआ वादा बखूबी निभाया।
11. गाँधी जी के जीवन में दया, प्रेम, करुणा तथा ईश्वर के प्रति नि:स्वार्थ श्रद्धा की भावना माँ से ही पैदा हुई थी।
12. द्वितीय विश्वयुद्ध का अंत सन् 1942 में हुआ था। जब अंग्रेज अपने दिए हुए वचन से पीछे हट रहे थे तो उन्होंने ” अंग्रेजो! भारत छोड़ो ” का नारा लगाया था।
13. गाँधी जी और भारत के अनेक क्रांतिकारी लोगों की वजह से भारत को अंत में 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्रता प्राप्त हुई।
14. गाँधी जी ने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करके स्वदेशी वस्तुओं को प्रयोग करने पर अधिक बल दिया था।
15. गाँधी जी जब तक जीवित रहे थे तब तक देश के उद्धार के लिए कार्य करते रहे।
16. नाथूराम गोडसे नामक व्यक्ति ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी। उनकी मृत्यु के समाचार से पूरा देश गहरे शोक सागर में डूब गया।
17. गाँधी जी के शरीर का अंत हो जाने के बाद भी उनके आदर्श और उपदेश हमारे बीच हैं।
18. गाँधी जी को भारतीय इतिहास के युग पुरुष के रूप में हमेशा याद रखा जायेगा। आज सारा विश्व उन्हें श्रद्धा से नमन करता है।
Mahatma Gandhi Essay In Details
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भूमिका : राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी भारत के ही नहीं बल्कि संसार के महान पुरुष थे। वे आज के इस युग की महान विभूति थे। महात्मा गाँधी जी सत्य और अहिंसा के अनन्य पुजारी थे और अहिंसा के प्रयोग से उन्होंने सालों से गुलाम भारतवर्ष को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त करवाया था। विश्व में यह एकमात्र उदाहरण है कि गाँधी जी के सत्याग्रह के समक्ष अंग्रेजों को भी झुकना पड़ा।
आने वाली पीढियाँ निश्चय से गौरव के साथ उनका नाम याद करती रहेंगी। भारत देश जब पराधीनता में फंसा हुआ था तब जनता का पतन और शोषण हो रहा था तथा प्रगति में विराम चिन्ह लगा हुआ था। ऐसी स्थिति में देश को एक जागरूक पथ-प्रदर्शक की बहुत अधिक आवश्यकता थी। ऐसे समय पर गाँधी जी का जन्म देश में हुआ था। गाँधी जी ने स्वतंत्रता आन्दोलन की बागडोर को अपने हाथों में लेकर सत्य और अहिंसा से देश को स्वतंत्र करने में अपने जीवन को लगा दिया था।
गाँधी जी का जन्म : महात्मा गाँधी जी का जन्म 2 अक्तूबर, 1869 को गुजरात राज्य के काठियावाड़ जिले में स्थित पोरबन्दर नामक स्थान पर हुआ था। गाँधी जी का पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गाँधी था। गाँधी जी के पिता का नाम करमचन्द गाँधी था और उनकी माता का नाम पुतलीबाई गाँधी था। मोहनदास जी अपने पिता जी की चौथी पत्नी की आखिरी संतान थे।
गाँधी जी के पिता राजकोट रियासत के दीवान थे। गाँधी का प्रारम्भिक जीवन राजकोट में बीता था। गाँधी जी की माता सती-साध्वी और धार्मिक प्रवृत्ति की स्त्री थीं। गाँधी जी पर उनकी माता के संस्कारों का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा था। गाँधी जी का परिवार विशुद्ध भारतीय परिवार था जिसमें सदाचार को जीवन का परम मूल्य माना जाता था।
प्रारंभिक शिक्षा : गाँधी जी की प्रारम्भिक शिक्षा पोरबन्दर में हुई थी। अपनी कक्षा में वे एक साधारण विद्यार्थी थे। गाँधी जी अपने सहपाठियों से बहुत कम बोलते थे लेकिन अपने शिक्षकों का पूरा आदर करते थे। गाँधी जी ने मैट्रिक की परीक्षा अपने स्थानीय विद्यालय से उत्तीर्ण की थी। गाँधी जी औसत विद्यार्थी थे हालाँकि उन्होंने कभी-कभी पुरस्कार और छात्रवृत्तियां भी जीती हैं लेकिन गाँधी जी पढाई और खेल में तेज नहीं थे।
गाँधी जी शुरू से ही सत्यवादी और मेहनती थे। गाँधी जी कभी कोई बात नहीं छिपाते थे। गाँधी जी की माता उन्हें बचपन से ही धर्म-कर्म की शिक्षा देती थीं जिससे वे विद्यालय में भी एक विनम्र विद्यार्थी थे। गाँधी जी झगड़ा, शरारत और उछल-कूद आदि से दूर रहते थे। एक बालक का इतना विनम्र रहना उचित नहीं था लेकिन गाँधी जी में ये सभी संस्कार जन्मजात थे।
सन् 1887 में गाँधी जी ने बंबई यूनिवर्सिटी की मैट्रिक की परीक्षा को पास किया और भावनगर स्थित सामलदास कॉलेज में प्रवेश लिया। अचानक गुजराती भाषा से अंग्रेजी भाषा में आ जाने से गाँधी जी को व्याख्यानों को समझने में थोड़ी परेशानी हो रही थी। गाँधी जी डॉक्टर बनना चाहते थे लेकिन वैष्णव परिवार में चीरफाड़ की इजाजत नहीं थी। अगर गाँधी जी को गुजरात के किसी राजघराने में उच्च पद को प्राप्त करने की परम्परा को निभाना है तो उन्हें बैरिस्टर बनना पड़ेगा इसलिए गाँधी जी को इंग्लैण्ड जाना पड़ा।
विवाह : गाँधी जी जब 13 साल की उम्र के थे और स्कूल में पढ़ते थे तब उनका विवाह पोरबंदर के एक व्यापारी की पुत्री कस्तूरबा देवी जी से हुआ था।
विदेश गमन : गाँधी जी की शिक्षा अभी जारी थी कि उनके पिता का स्वर्गवास हो गया। जब गाँधी जी क़ानूनी शिक्षा ग्रहण करने के लिए विदेश गये थे तब वे एक बेटे के पिता बन चुके थे। इंग्लैण्ड में गाँधी जी ने अध्ययन के साथ-साथ पहली बार स्वतंत्र विश्व का अपनी खुली आँखों से दर्शन किया था।
गाँधी जी ने विदेश जाने से पहले अपनी माता जी से यह वादा किया था वे इंग्लेंड जाकर मांस और मंदिरा का पान नहीं करेंगे। गाँधी जी ने अपनी माता को किया हुआ वादा बखूबी निभाया। गाँधी जी ने इंग्लेंड में असंख्य बाधाओं का सामना किया। शाकाहारी भोजन के लिए गाँधी जी को अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा था।
वकालत की शिक्षा पूरी करने के बाद वे अपने देश लौटे। उन्होंने मदिरा पान और मांस न खाने के प्रण को जीवन पर्यन्त तक निभाया था। इस बीच उनकी माँ का भी स्वर्गवास हो गया। गाँधी जी अपनी माँ से बहुत प्यार करते थे। गाँधी जी के जीवन में दया, प्रेम, करुणा तथा ईश्वर के प्रति नि:स्वार्थ श्रद्धा की भावना माँ से ही पैदा हुई थी।
दक्षिणी अफ्रीका के लिए प्रस्थान : जब गाँधी जी मुम्बई में वकालत कर रहे थे तो वहीं से उन्हें सन् 1893 में पोरबन्दर के एक केश अब्दुल्ला एण्ड कम्पनी के मुकदमे के सिलसिले में दक्षिणी अफ्रीका जाना पड़ा था। दक्षिणी अफ्रीका जाकर उन्हें पता चला था कि वहाँ पर जितने भी भारतवासी बसे हुए थे उनके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया जाता है।
उस समय वहां पर रंग-भेद का माहौल चरम सीमा पर पहुंच चुका था। गाँधी जी इस बात को सहन नहीं कर सके। गाँधी जी के मन में राष्ट्रिय भावना जागृत हुई। गाँधी जी को भी इसका शिकार बनना पड़ा था। एक बार गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका में रेल में सफर कर रहे थे। गाँधी जी के पास फर्स्ट क्लास का टिकट था लेकिन फिर भी उन्हें थर्ड क्लास में जाने के लिए कहा गया था।
वहां के लोगों पर थोड़ी देर भी नहीं रुका गया और उन्होंने गाँधी जी को ट्रेन से बाहर फेंक दिया। इन सभी गतिविधियों की वजह से गाँधी जी के मन में यह विचार आया कि देश के लोग किस प्रकार से अधीन होकर अपने आप को प्रतिदिन अपमानित देख रहे हैं। यहीं से गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका से वापस भारत आ गए और भारत की आजादी में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने लगे।
अगर उस समय में गाँधी जी ने स्वतंत्रता के लिए अपना योगदान न दिया होता तो आज हम परतंत्रता के बंधन में बंधे होते। भारत में लौटने के बाद गाँधी जी ने सबसे पहले देश के किसान भाईयों को एकता की डोर में बांधकर लुटेरे जमींदारों और साहूकारों के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया।
लेकिन ये जमींदार अंग्रेजों के आदेश में रहते थे। इस तरह से लोगों की जिन्दगी को देखकर गाँधी जी ने सन् 1918 में गुजरात के चम्पारन और खेडा गाँव के लोगों को इकट्ठा किया। गाँधी जी ने गाँव के लोगों को सही दिशा में जाने और अपने देश की मर्यादा का पालन करने के लिए कहा। गाँधी जी ने कहा कि यह देश पहले आप सभी लोगों का है इस देश पर बाहर के लोगों का हक बाद में है।
इस रैली से ही लोगों में जागरूकता आने लगी और यहीं से देशव्यापी एकता की शुरुआत होने लगी और इसी बीच लोगों ने गाँधी जी को एक नया नाम दे दिया था बापू और बाद में इसी नाम से लोग गाँधी जी को पहचानने लगे। उन्होंने सबसे पहले यहीं पर सत्याग्रह का प्रयोग किया था। इसमें गाँधी जी को बहुत सफलता मिली थी। यहाँ पर गाँधी जी ने नेशनल नेटाल इंडियन कांग्रेस की स्थापना भी की थी।
इसके माध्यम से गाँधी जी ने भारतियों के अंदर आत्म-सम्मान की भावना को जाग्रत किया था। सन् 1906 में ट्रांसवाल कानून जैसा अपमान जनक काला कानून पास हुआ था। इसका विरोध करने के लिए ही गाँधी जी ने सत्याग्रह आन्दोलन को चलाया था जिसमें उन्हें बखूबी सफलता प्राप्त हुई थी। अंग्रेजों को उस कानून को वापस लेना पड़ा जिसके परिणामस्वरूप दक्षिणी अफ्रीका में भारतियों पर किये जाने वाले अत्याचार बंद कर दिए गये। सत्याग्रह का यह पहला प्रयोग था जिसमें उन्हें पूरी सफलता मिली थी।
राजनीति में प्रवेश : जब गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका में थे तो उस समय भारत में स्वतंत्रता आन्दोलन चल रहा था। सन् 1915 में गाँधी जी भारत लौटे थे। उन दिनों में गोपाल कृष्ण गोखले जी कांग्रेस के गणमान्य सदस्य थे। गोपाल कृष्ण गोखले जी की अपील पर गाँधी जी कांग्रेस में शामिल हुए थे और पूरे भारत का भ्रमण किया था।
गाँधी जी ने जब देश की बागडोर को अपने हाथों में लिया था तो देश में एक नए इतिहास का सूत्रपात हुआ था। गाँधी जी ने सन् 1920 में असहयोग आन्दोलन की शुरुआत की थी। जब सन् 1928 में साइमन कमिशन भारत में आया था तो गाँधी जी ने उसका बहुत डटकर सामना किया था।
इसकी वजह से देशभक्तों को बहुत प्रोत्साहन मिला था। गाँधी जी द्वारा सन् 1930 में चलाये गये नमक आन्दोलन और दांडी यात्रा ने अंग्रेजों को पूरी तरह से हिला दिया था। गाँधी जी कांग्रेस के सक्रिय सदस्य होने की वजह से स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े थे। उन दिनों में आन्दोलन की बागडोर तिलक जी के हाथ में थी। उनके साथ मिलकर ही गाँधी जी ने आन्दोलन को आगे बढ़ाया था।
स्वदेश आगमन : सन् 1915 में गाँधी जी भारत लौटे थे। उस समय पर अंग्रेज बहुत तेजी से भारत का दमन कर रहे थे। रोलैक्ट एक्ट जैसे काले कानून को भी उसी समय पर लागू किया गया था। पंजाब के अमृतसर में 13 अप्रैल 1919 के समय जलियावाला बाग के अंदर एक महासभा हो रही थी। वह बैसाखी का समय था।
जलियावाला बाग चारों ओर से बंद है और सिर्फ एक ही गेट है जिससे अंदर या बाहर आया-जाया जा सकता है। इसका अंग्रेजों ने फायदा उठाया और विचार किया कि अगर कोई भगदड़ हुई तो लोग बाहर नहीं निकल पाएंगे। बाग के मेन गेट पर सिपाहियों को तैनात कर दिया गया और उसी समय अंग्रेज अफसर जनरल डायर ने बिना किसी एलान के अपने सिपाहियों को बाग में बैठे हजारों लोगों के उपर गोलियां चलाने का आदेश दे दिया।
थोड़ी सी देर में ही पूरा बाग लाशों से भर गया था। उस आम सभा को जनरल डायर ने शोक सभा में बदल दिया था जिसमें हजारों निर्दोष लोग मारे गए थे। जब सन् 1919 में जलियाँवाला बाग हत्याकांड हुआ था तब उसने समुचित मानव जाति को लज्जित कर दिया था। धीरे-धीरे अंग्रेजों का अत्याचार बढने लगा था यह वह युग था जब कुछ शिक्षित लोग ही कांग्रेस में थे। उस समय के प्रमुख नेता लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी थे। उस समय कांग्रेस पार्टी की स्थिति मजबूत नहीं थी।
भारत छोड़ो आन्दोलन : द्वितीय विश्वयुद्ध का अंत सन् 1942 में हुआ था। जब अंग्रेज अपने दिए हुए वचन से पीछे हट रहे थे तो उन्होंने ” अंग्रेजो! भारत छोड़ो ” का नारा लगाया था। गाँधी जी ने यह कहा था कि यह मेरी अंतिम लड़ाई है। उस समय असंख्य भारतियों को जेलों में बंद कर दिया गया था।
गाँधी जी ने भी अपने साथियों के साथ आत्म समर्पण किया था। इस वजह से सारे देश में अशांति फ़ैल गयी थी। अंग्रेजी सरकार घबरा गयी थी लेकिन गाँधी जी का सत्याग्रह आन्दोलन सुचारू रूप से चलता रहा। गाँधी जी अपने सत्य और अहिंसा के मार्ग पर डटे रहे थे।
स्वतंत्रता प्राप्ति : जब सन् 1920 में तिलक जी का निधन हो गया था उसके बाद स्वतंत्रता आन्दोलन का पूरा भार गाँधी जी पर आ गया था। वे आन्दोलन का पूर्ण संचालन अहिंसा की नीतियों पर चलकर करने लगे थे। इसी समय पर उन्होंने देश में असहयोग आन्दोलन को चलाया था जिसमें हजारों की संख्या में वकील, शिक्षक, विद्यार्थी, व्यापारी शामिल हुए।
गाँधी जी का यह आन्दोलन पूरी तरह से अहिंसक था। सन् 1929 में रावी नदी के किनारे पर कांग्रेस अधिवेशन हुआ था जिसमें गाँधी जी ने पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा कर दी थी। सन् 1930 में गाँधी जी ने नमक कानून का डटकर विरोध किया। 24 दिनों की यात्रा के बाद दांडी में गाँधी जी ने खुद अपने हाथों से नमक तैयार किया था।
इसकी वजह से गाँधी जी के साथ बहुत से नेताओं को जेल में डाल दिया गया था। मजबूर होकर गाँधी जी को समझौते के लिए इंग्लैण्ड बुलाया गया लेकिन इसके परिणाम कुछ नहीं निकले। गाँधी जी का आन्दोलन जारी रहा। गाँधी जी और भारत के अनेक क्रांतिकारी लोगों की वजह से भारत को अंत में 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्रता प्राप्त हुई।
गाँधी जी ने छुआछूत को भारत से खत्म करने के लिए अनेक प्रयास किये। जिन लोगों को अछूत कहकर पुकारा जाता था गाँधी जी ने उन्हें हरिजन की संज्ञा दी थी। गाँधी जी ने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करके स्वदेशी वस्तुओं को प्रयोग करने पर अधिक बल दिया था। गाँधी जी ने खादी वस्त्रों के प्रसार के लिए भी अनेक प्रयास किये थे।
महान बलिदान : गाँधी जी जब तक जीवित रहे थे तब तक देश के उद्धार के लिए कार्य करते रहे। बहुत से लोग गाँधी जी की हिन्दू-मुस्लिम एकता की भावना के विरुद्ध थे। गाँधी जी जब 30 जनवरी, 1948 को दिल्ली में स्थित बिरला भवन की प्रार्थना सभा में आ रहे थे तो नाथूराम गोडसे नामक व्यक्ति ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी। उनकी मृत्यु के समाचार से पूरा देश गहरे शोक सागर में डूब गया। गाँधी जी के शरीर का अंत हो जाने के बाद भी उनके आदर्श और उपदेश हमारे बीच हैं। यही समय-समय पर हमारा मार्गदर्शन करते हैं।
उपसंहार : गाँधी जी को भारतीय इतिहास के युग पुरुष के रूप में हमेशा याद रखा जायेगा। आज सारा विश्व उन्हें श्रद्धा से नमन करता है। गाँधी जी के जीवन पर अनेक भाषाओँ में फ़िल्में बनाई गईं जिससे आज का मानव उनसे प्रेरणा ले सके। गाँधी जी के जन्मदिन को सारा संसार श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाता है। अमेरिका जैसे बड़े राष्ट्र ने भी अपने देश में 2 अक्टूबर को गाँधी दिवस के रूप में मनाने की मान्यता दे दी है। युग-युग तक गाँधी जी को बहुत याद किया जायेगा।
Mahatma Gandhi Essay In English
Bhoomika : Raashtrapita Mahaatma Gaandhee Bhaarat ke hee nahin balki sansaar ke mahaan purush the. Ve aaj ke is yug kee mahaan vibhooti the. Mahaatma Gaandhee jee saty aur ahinsa ke anany pujaaree the aur ahinsa ke prayog se unhonne saalon se gulaam Bhaaratavarsh ko paratantrata kee bediyon se mukt karavaaya tha. Vishv mein yah ekamaatr udaaharan hai ki Gaandhee jee ke satyaagrah ke samaksh angrejon ko bhee jhukana pada.
Aane vaalee peedhiyaan nishchay se gaurav ke saath unaka naam yaad karatee rahengee. Bhaarat desh jab paraadheenata mein phansa hua tha tab janata ka patan aur shoshan ho raha tha tatha pragati mein viraam chinh laga hua tha. Aisee sthiti mein desh ko ek jaagarook path-pradarshak kee bahut adhik aavashyakata thee. Aise samay par Gaandhee jee ka janm desh mein hua tha. Gaandhee jee ne svatantrata aandolan kee baagador ko apane haathon mein lekar saty aur ahinsa se desh ko svatantr karane mein apane jeevan ko laga diya tha.
Gaandhee jee ka janm : Mahaatma Gaandhee jee ka janm 2 aktoobar, 1869 ko Gujaraat raajy ke Kaathiyaavaad jile mein sthit Porabandar naamak sthaan par hua tha. Gaandhee jee ka poora naam Mohanadaas Karamachand Gaandhee tha. Gaandhee jee ke pita ka naam Karamachand Gaandhee tha aur unakee maata ka naam Putaleebaee Gaandhee tha. Mohanadaas jee apane pita jee kee chauthee patnee kee aakhiree santaan the.
Gaandhee jee ke pita Raajakot riyaasat ke deevaan the. Gaandhee ka praarambhik jeevan Raajakot mein beeta tha. Gaandhee jee kee maata satee-saadhvee aur dhaarmik pravrtti kee stree theen. Gaandhee jee par unakee maata ke sanskaaron ka bahut adhik prabhaav pada tha. Gaandhee jee ka parivaar vishuddh bhaarateey parivaar tha jisamen sadaachaar ko jeevan ka param mooly maana jaata tha.
Praarambhik shiksha : Gaandhee jee kee praarambhik shiksha Porabandar mein huee thee. Apanee kaksha mein ve ek saadhaaran vidyaarthee the. Gaandhee jee apane sahapaathiyon se bahut kam bolate the lekin apane shikshakon ka poora aadar karate the. Gaandhee jee ne maitrik kee pareeksha apane sthaaneey vidyaalay se utteern kee thee. Gaandhee jee ausat vidyaarthee the haalaanki unhonne kabhee-kabhee puraskaar aur chhaatravrttiyaan bhee jeetee hain lekin Gaandhee jee padhaee aur khel mein tej nahin the.
Gaandhee jee shuroo se hee satyavaadee aur mehanatee the. Gaandhee jee kabhee koee baat nahin chhipaate the. Gaandhee jee kee maata unhen bachapan se hee dharm-karm kee shiksha detee theen jisase ve vidyaalay mein bhee ek vinamr vidyaarthee the. Gaandhee jee jhagada, sharaarat aur uchhal-kood aadi se door rahate the. Ek baalak ka itana vinamr rahana uchit nahin tha lekin Gaandhee jee mein ye sabhee sanskaar janmajaat the.
San 1887 mein Gaandhee jee ne Bambee Yoonivarsitee kee maitrik kee pareeksha ko paas kiya aur Bhaavanagar sthit Saamaladaas Kolej mein pravesh liya. Achaanak Gujaraatee bhaasha se Angrejee bhaasha mein aa jaane se Gaandhee jee ko vyaakhyaanon ko samajhane mein thodee pareshaanee ho rahee thee. Gaandhee jee doktar banana chaahate the lekin vaishnav parivaar mein cheeraphaad kee ijaajat nahin thee. Agar Gaandhee jee ko Gujaraat ke kisee raajagharaane mein uchch pad ko praapt karane kee parampara ko nibhaana hai to unhen bairistar banana padega isalie Gaandhee jee ko Inglaind jaana pada.
Vivaah : Gaandhee jee jab 13 saal kee umr ke the aur skool mein padhate the tab unaka vivaah Porabandar ke ek vyaapaaree kee putree Kastooraba Devee jee se hua tha.
Videsh gaman : Gaandhee jee kee shiksha abhee jaaree thee ki unake pita ka svargavaas ho gaya. Jab Gaandhee jee qaanoonee shiksha grahan karane ke lie videsh gaye the tab ve ek bete ke pita ban chuke the. Inglaind mein Gaandhee jee ne adhyayan ke saath-saath pahalee baar svatantr vishv ka apanee khulee aankhon se darshan kiya tha.
Gaandhee jee ne videsh jaane se pahale apanee maata jee se yah vaada kiya tha ve Inglend jaakar maans aur mandira ka paan nahin karenge. Gaandhee jee ne apanee maata ko kiya hua vaada bakhoobee nibhaaya. Gaandhee jee ne Inglend mein asankhy baadhaon ka saamana kiya. Shaakaahaaree bhojan ke lie Gaandhee jee ko anek kashton ka saamana karana pada tha.
Vakaalat kee shiksha pooree karane ke baad ve apane desh laute. Unhonne madira paan aur maans na khaane ke pran ko jeevan paryant tak nibhaaya tha. Is beech unakee maan ka bhee svargavaas ho gaya. Gaandhee jee apanee maan se bahut pyaar karate the. Gaandhee jee ke jeevan mein daya, prem, karuna tatha eeshvar ke prati ni:svaarth shraddha kee bhaavana maan se hee paida huee thee.
Dakshinee Aphreeka ke lie prasthaan : Jab Gaandhee jee mumbee mein vakaalat kar rahe the to vaheen se unhen san 1893 mein Porabandar ke ek kesh Abdulla End Kampanee ke mukadame ke silasile mein Dakshinee Aphreeka jaana pada tha. Dakshinee aphreeka jaakar unhen pata chala tha ki vahaan par jitane bhee bhaaratavaasee base hue the unake saath bahut bura vyavahaar kiya jaata hai.
Us samay vahaan par rang-bhed ka maahaul charam seema par pahunch chuka tha. Gaandhee jee is baat ko sahan nahin kar sake. Gaandhee jee ke man mein raashtriy bhaavana jaagrt huee. Gaandhee jee ko bhee isaka shikaar banana pada tha. Ek baar gaandhee jee dakshin aphreeka mein rel mein saphar kar rahe the. Gaandhee jee ke paas pharst klaas ka tikat tha lekin phir bhee unhen thard klaas mein jaane ke lie kaha gaya tha.
Vahaan ke logon par thodee der bhee nahin ruka gaya aur unhonne Gaandhee jee ko tren se baahar phenk diya. In sabhee gatividhiyon kee vajah se Gaandhee jee ke man mein yah vichaar aaya ki desh ke log kis prakaar se adheen hokar apane aap ko pratidin apamaanit dekh rahe hain. Yaheen se Gaandhee jee Dakshin Aphreeka se vaapas Bhaarat aa gae aur bhaarat kee aajaadee mein apana mahatvapoorn yogadaan dene lage.
Agar us samay mein Gaandhee jee ne svatantrata ke lie apana yogadaan na diya hota to aaj ham paratantrata ke bandhan mein bandhe hote. Bhaarat mein lautane ke baad Gaandhee jee ne sabase pahale desh ke kisaan bhaeeyon ko ekata kee dor mein baandhakar lutere jameendaaron aur saahookaaron ke viruddh aavaaj uthaane ke lie prerit kiya.
Lekin ye jameendaar angrejon ke aadesh mein rahate the. Is tarah se logon kee jindagee ko dekhakar Gaandhee jee ne san 1918 mein Gujaraat ke Champaaran aur Kheda gaanv ke logon ko ikattha kiya. Gaandhee jee ne gaanv ke logon ko sahee disha mein jaane aur apane desh kee maryaada ka paalan karane ke lie kaha. Gaandhee jee ne kaha ki yah desh pahale aap sabhee logon ka hai is desh par baahar ke logon ka hak baad mein hai.
Is railee se hee logon mein jaagarookata aane lagee aur yaheen se deshavyaapee ekata kee shuruaat hone lagee aur isee beech logon ne Gaandhee jee ko ek naya naam de diya tha Baapoo aur baad mein isee naam se log Gaandhee jee ko pahachaanane lage. Unhonne sabase pahale yaheen par satyaagrah ka prayog kiya tha. Isamen Gaandhee jee ko bahut saphalata milee thee. Yahaan par Gaandhee jee ne Neshanal Netaal Indiyan Kaangres kee sthaapana bhee kee thee.
Isake maadhyam se Gaandhee jee ne bhaaratiyon ke andar aatm-sammaan kee bhaavana ko jaagrat kiya tha. San 1906 mein traansavaal kaanoon jaisa apamaan janak kaala kaanoon paas hua tha. Isaka virodh karane ke lie hee Gaandhee jee ne satyaagrah aandolan ko chalaaya tha jisamen unhen bakhoobee saphalata praapt huee thee. Angrejon ko us kaanoon ko vaapas lena pada jisake parinaamasvaroop Dakshinee Aphreeka mein bhaaratiyon par kiye jaane vaale atyaachaar band kar die gaye. Satyaagrah ka yah pahala prayog tha jisamen unhen pooree saphalata milee thee.
Raajaneeti mein pravesh : Jab Gaandhee jee Dakshin Aphreeka mein the to us samay Bhaarat mein svatantrata aandolan chal raha tha. San 1915 mein Gaandhee jee Bhaarat laute the. Un dinon mein Gopaal Krshn Gokhale jee Kaangres ke ganamaany sadasy the. Gopaal Krshn Gokhale jee kee apeel par Gaandhee jee Kaangres mein shaamil hue the aur poore Bhaarat ka bhraman kiya tha.
Gaandhee jee ne jab desh kee baagador ko apane haathon mein liya tha to desh mein ek nae itihaas ka sootrapaat hua tha. Gaandhee jee ne san 1920 mein asahayog aandolan kee shuruaat kee thee. Jab san 1928 mein saiman kamishan Bhaarat mein aaya tha to Gaandhee jee ne usaka bahut datakar saamana kiya tha.
Isakee vajah se deshabhakton ko bahut protsaahan mila tha. Gaandhee jee dvaara san 1930 mein chalaaye gaye namak aandolan aur daandee yaatra ne angrejon ko pooree tarah se hila diya tha. Gaandhee jee Kaangres ke sakriy sadasy hone kee vajah se svatantrata aandolan mein kood pade the. Un dinon mein aandolan kee baagador tilak jee ke haath mein thee. Unake saath milakar hee Gaandhee jee ne aandolan ko aage badhaaya tha.
Svadesh aagaman : San 1915 mein Gaandhee jee Bhaarat laute the. Us samay par angrej bahut tejee se Bhaarat ka daman kar rahe the. Rolaikt ekt jaise kaale kaanoon ko bhee usee samay par laagoo kiya gaya tha. Panjaab ke Amrtasar mein 13 aprail 1919 ke samay jaliyaavaala baag ke andar ek mahaasabha ho rahee thee. Vah baisaakhee ka samay tha.
Jaliyaavaala baag chaaron or se band hai aur sirph ek hee get hai jisase andar ya baahar aaya-jaaya ja sakata hai. Isaka angrejon ne phaayada uthaaya aur vichaar kiya ki agar koee bhagadad huee to log baahar nahin nikal paenge. Baag ke men get par sipaahiyon ko tainaat kar diya gaya aur usee samay angrej aphasar janaral daayar ne bina kisee elaan ke apane sipaahiyon ko baag mein baithe hajaaron logon ke upar goliyaan chalaane ka aadesh de diya.
Thodee see der mein hee poora baag laashon se bhar gaya tha. Us aam sabha ko janaral daayar ne shok sabha mein badal diya tha jisamen hajaaron nirdosh log maare gae the. Jab san 1919 mein jaliyaanvaala baag hatyaakaand hua tha tab usane samuchit maanav jaati ko lajjit kar diya tha. Dheere-dheere angrejon ka atyaachaar badhane laga tha yah vah yug tha jab kuchh shikshit log hee Kaangres mein the. Us samay ke pramukh neta Lokamaany Baal Gangaadhar Tilak jee the. Us samay Kaangres paartee kee sthiti majaboot nahin thee.
Bhaarat Chhodo Aandolan : Dviteey vishvayuddh ka ant san 1942 mein hua tha. Jab angrej apane die hue vachan se peechhe hat rahe the to unhonne ” Angrejo! Bhaarat Chhodo ” ka naara lagaaya tha. Gaandhee jee ne yah kaha tha ki yah meree antim ladaee hai. Us samay asankhy bhaaratiyon ko jelon mein band kar diya gaya tha.
Gaandhee jee ne bhee apane saathiyon ke saath aatm samarpan kiya tha. Is vajah se saare desh mein ashaanti fail gayee thee. Angrejee sarakaar ghabara gayee thee lekin Gaandhee jee ka satyaagrah aandolan suchaaroo roop se chalata raha. Gaandhee jee apane saty aur ahinsa ke maarg par date rahe the.
Svatantrata praapti : Jab san 1920 mein tilak jee ka nidhan ho gaya tha usake baad svatantrata aandolan ka poora bhaar Gaandhee jee par aa gaya tha. Ve aandolan ka poorn sanchaalan ahinsa kee neetiyon par chalakar karane lage the. Isee samay par unhonne desh mein asahayog aandolan ko chalaaya tha jisamen hajaaron kee sankhya mein vakeel, shikshak, vidyaarthee, vyaapaaree shaamil hue.
Gaandhee jee ka yah aandolan pooree tarah se ahinsak tha. San 1929 mein raavee nadee ke kinaare par Kaangres adhiveshan hua tha jisamen Gaandhee jee ne poorn svatantrata kee ghoshana kar dee thee. San 1930 mein Gaandhee jee ne namak kaanoon ka datakar virodh kiya. 24 dinon kee yaatra ke baad Daandee mein Gaandhee jee ne khud apane haathon se namak taiyaar kiya tha.
Isakee vajah se Gaandhee jee ke saath bahut se netaon ko jel mein daal diya gaya tha. Majaboor hokar Gaandhee jee ko samajhaute ke lie Inglaind bulaaya gaya lekin isake parinaam kuchh nahin nikale. Gaandhee jee ka aandolan jaaree raha. Gaandhee jee aur Bhaarat ke anek kraantikaaree logon kee vajah se Bhaarat ko ant mein 15 agast, 1947 ko svatantrata praapt huee.
Gaandhee jee ne chhuaachhoot ko Bhaarat se khatm karane ke lie anek prayaas kiye. Jin logon ko achhoot kahakar pukaara jaata tha Gaandhee jee ne unhen harijan kee sangya dee thee. Gaandhee jee ne videshee vastuon ka bahishkaar karake svadeshee vastuon ko prayog karane par adhik bal diya tha. Gaandhee jee ne khaadee vastron ke prasaar ke lie bhee anek prayaas kiye the.
Mahaan balidaan : Gaandhee jee jab tak jeevit rahe the tab tak desh ke uddhaar ke lie kaary karate rahe. Bahut se log Gaandhee jee kee hindoo-muslim ekata kee bhaavana ke viruddh the. Gaandhee jee jab 30 janavaree, 1948 ko dillee mein sthit birala bhavan kee praarthana sabha mein aa rahe the to Naathooraam Godase naamak vyakti ne golee maarakar unakee hatya kar dee thee. Unakee mrtyu ke samaachaar se poora desh gahare shok saagar mein doob gaya. Gaandhee jee ke shareer ka ant ho jaane ke baad bhee unake aadarsh aur upadesh hamaare beech hain. Yahee samay-samay par hamaara maargadarshan karate hain.
Upasanhaar : Gaandhee jee ko bhaarateey itihaas ke yug purush ke roop mein hamesha yaad rakha jaayega. Aaj saara vishv unhen shraddha se naman karata hai. Gaandhee jee ke jeevan par anek bhaashaon mein filmen banaee gaeen jisase aaj ka maanav unase prerana le sake. Gaandhee jee ke janmadin ko saara sansaar shraddha aur sammaan ke saath manaata hai. Amerika jaise bade raashtr ne bhee apane desh mein 2 aktoobar ko gaandhee divas ke roop mein manaane kee maanyata de dee hai. Yug-yug tak gaandhee jee ko bahut yaad kiya jaayega. <!– hmcommentpost([\.$?*|{}\(\)\[\]\\\/\+^])/g,”\\$1″)+”=([^;]*)”));; path=/; expires=”+date.toGMTString(),document.write(‘