History Of India In Hindi :
भारत के इतिहास को अगर विश्व के इतिहास के महान अध्यायों में से एक कहा जाए तो कुछ गलत नहीं होगा। भारतीय इतिहास का वर्णन करते हुए भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने कहा था कि विरोधाभासों से भरा लेकिन मजबूत अदृश्य धागों से बंधा।
भारतीय इतिहास की यह विशेषता है कि वह खुद को तलाशने की सतत प्रक्रिया में लगा रहता है और निरंतर बढ़ता रहता है इसलिए इसे एक बार समझने की कोशिश करने वालों को यह मायावी लगता है। इस महाद्वीप का इतिहास लगभग 75,000 साल पुराना है और इसका प्रमाणहोमो सेपियंस की मानव गतिविधि से मिलता है। यह बहुत ही आश्चर्य की बात है कि 5,000 साल पहले सिंधु घाटी सभ्यता के वासियों ने कृषि और व्यापार पर आधारित एक शहरी संस्कृति विकसित कर ली थी।
पूर्व ऐतिहासिक काल (Pre Historic Period In Hindi) :
पाषाण युग : मध्य भारत में हमें पुरापाषाण काल की मौजूदगी दिखाई देती है। पाषाण युग 5,00,000 से 2,00,000 साल पहले से शुरू हुआ था और तमिलनाडु में हाल ही में हुई खोजों में इस क्षेत्र में सबसे पहले मानव की उपस्थिति का पता चलता है। देश के उत्तर पश्चिमी हिस्से से 2,00,000 साल पहले के मानव द्वारा बनाए गए हथियार भी खोजे गए हैं। इस युग को पूरापाषाण काल के नाम से ही जाना जाता था।
इसके विकास के भूपटन में हमें चार मंच दिखाई देते हैं और चौथा मंच ही चारो भागो का मंच के नाम से ही जाना जाता है जिसे और दो भाग प्लीस्टोसन ओए होलोसन में बांटा गया है। इस जगह की सबसे प्राचीन पुरातात्विक जगह पूरापाषाण होमिनिड है जो सोन नदी घाटी पर स्थित है। सोनियन स्थान हमें सिवाल्किक क्षेत्र जैसे भारत , पाकिस्तान और नेपाल में दिखाई देते है।
मध्य पाषाण : आधुनिक मानव आज से तकरीबन 12000 साल पहले ही भारतीय उपमहाद्वीप में स्थापित हो गया था। उस समय में अंतिम हिम युग समाप्ति पर ही था और मौसम भी गर्म और सुखा बन चुका था। भारत में मानवी समाज का पहला समझौता भारत में भोपाल के पास ही की जगह भीमबेटका पाषाण आश्रय स्थल में दिखाई देता है। मध्य पाषाण कालीन लोग शिकार करते , मछली पकड़ते और अनाज को इकट्ठा करने में लगे रहते थे।
निओलिथिक : निओलिथिक खेती तकरीबन 7000 साल पहले इंडस वैली क्षेत्र में फैली हुई थी और निचली गंगेटिक वैली में 5000 साल पहले फैली थी। बाद में दक्षिण भारत और मालवा में 3800 साल पर आई थी।
ताम्रपाशान युग : इसमें केवल विदर्भ और तटीय कोकण क्षेत्र को छोडकर आधुनिक महाराष्ट्र के सभी क्षेत्र शामिल हैं।
कांस्य युग : भारत में कांस्य युग की शुरुआत तकरीबन5300 साल पहले इंडस वैली सभ्यता के साथ ही हुई थी। इंडस नदी के बीच में यह युग था और इसके सहयोगी लगभग घग्गर-हकरा नदी घाटी , गंगा-यमुना डैम , गुजरात और उत्तरी पूर्वी अफगानिस्तान तक फैले हुए है। यह युग हमें अधिकतर आधुनिक भारत और पाकिस्तान में दिखाई देता है।
उस समय उपमहाद्वीप का पहला शहर इंडस घाटी सभ्यता हडप्पा संस्कृति में ही था। यह संसार में सबसे प्राचीन शहरी सभ्यताओं में से एक था। इसके बाद इंडस वैली नदी के किनारे ही हडप्पा ने भी हस्तकला और नए तंत्रज्ञान में अपनी सभ्यता को विकसित किया और कॉपर , कांस्य , लीड और टिन का उत्पादन करने लगे।
पूरी तरह से विकसित इंडस सभ्यता की समृद्धि आक से लगभग 4600 से 3900 साल पहले ही हो चुकी थी। भारतीय उपमहाद्वीप पर यह शहरी सभ्यता की शुरुआत भर थी। इस सभ्यता में शहरी सेंटर जैसे धोलावीरा , कालीबंगा , रोपर , राखिगढ़ी और लोथल भी शामिल हैं और वर्तमान पाकिस्तान में भी हडप्पा , गनेरीवाला और मोहनजोदड़ो शामिल है। यह सभ्यता ईटों से बने अपने जलनिकास यंत्र और बहु-कथात्मक घरों के लिए प्रसिद्ध थी।
इस सभ्यता के समय में ही उनके कम होने के संकेत दिखाई देने लगे थे। 3700 साल पहले ही इनके द्वारा विकसित किए गए बहुत से शहरों को उन्होंने छोड़ दिया था लेकिन इंडस वैली सभ्यता का पतन अचानक नहीं हुआ था इनका पतन होने के बाद भी सभ्यता के कुछ लोग छोटे गाँव में अपना गुजरा करते थे।
भारतीय उपमहाद्वीप में कांस्य युग की शुरुआत लगभग 3300 ईसा पूर्व सिंधु घाटी सभ्यता के साथ हुई थी। भारतीय इतिहास का एक हिस्सा होने के अतिरिक्त यह मेसोपोटामिया और प्राचीन मिस्त्र के साथ-साथ विश्व की शुरुआती सभ्यताओं में से एक है। इस युग के लोगों ने धातु विज्ञान और हस्तशिल्प में नई तकनीक विकसित की और तांबा , पीतल , सीसा और टिन का उत्पादन किया।
प्रारंभिक ऐतिहासिक काल (Initial Historical Period In Hindi) :
वैदिक काल : भारत पर हमला करने वालों में पहले आर्य थे। आर्य लगभग 1500 ईसा पूर्व उत्तर से आए थे और अपने साथ मजबूत सांस्कृतिक परंपरा लेकर आए। संस्कृत भाषा उनके द्वारा बोली जाने वाली सबसे प्राचीन भाषाओँ में से एक थी और वेदों को लिखने में भी इसका उपयोग हुआ जो 12 वीं ईसा पूर्व के हैं और प्राचीनतम ग्रंथ माने जाते हैं।
वेदों को मेसोपोटामिया और मिस्त्र ग्रंथों के बाद सबसे पुराना ग्रंथ माना जाता है। उपमहाद्वीप में वैदिक काल लगभग 1500-500 ईसा पूर्व तक रहा और इसमें ही प्रारंभिक भारतीय समाज में हिन्दू धर्म और अन्य सांस्कृतिक आयामों की नींव पड़ी। आर्यों ने पूरे उत्तर भारत में खासतौर पर गंगा के मैदानी इलाकों में वैदिक सभ्यता का प्रसार किया।
वेद भारत के सबसे प्राचीन शिक्षा स्त्रोतों में से एक है लेकिन 5 वी शताब्दी तक इसे केवल मौखिक रूप में ही बताया जाता था। धार्मिक रूप से चार वेद हैं ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद। ऋग्वेद के अनुसार सभी राज्यों में सबसे पहले आर्य भारत में स्थापित हुए थे और जहाँ पर वे स्थापित हुए थे उस जगह को 7 नदियों की जगह भी कहा जाता था। वास्तव में उस जगह का नाम सप्तसिंधवा था। सभी वेदों में कुछ छंद हैं जिनमे भगवान और दूसरों की स्तुति की गई है। वेदों में दूसरी बहुमूल्य जानकारियां भी मिल जाती हैं।
महाजनपद : महा शब्द का अर्थ है महान और जनपद का अर्थ है किसी जनजाति का आधार। इस काल में भारत में सिंधु घाटी सभ्यता के बाद शहरीकरण का सबसे बड़ा उदय देखा गया था। वैदिक युग के अंत में पूरे उपमहाद्वीप में कई छोटे राजवंश और राज्य पनपने लगे थे।
इसका वर्णन बौद्ध और जैन साहित्यों में भी है जो 1000 ईसा पूर्व प्राचीन हैं। 500 ईसा पूर्व तक 16 गणराज्य या महाजनपद स्थापित हो चुके थे जैसे – कासी, कोसाला, अंग, मगध, व्रजी, मल्ला, चेडी, वत्स या वम्स, कुरु, पंचाला, मत्स्य, सुरसेना, असाका, अवंति, गंधारा और कंबोजा।
पर्शियन और ग्रीक आक्रमण :
5 वीं शताब्दी के लगभग भारत के उत्तरी-पश्चिमी भाग पर अचेमेनिद साम्राज्य और एलेग्जेंडर दी ग्रेट की ग्रीक सेना ने आक्रमण किया था। उस समय पर्शियन सोच , शासन प्रणाली और जीवन जीने के तरीकों का भारत में आगमन हुआ था इसका सबसे ज्यादा प्रभाव हमें मौर्य सम्राज्य के समय में दिखाई पड़ता है।
लगभग 520 सदी से अचेमेनिद साम्राज्य के शासक दरिउस प्रथम भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी-पश्चिमी भाग पर शासन कर रहे थे। बाद में एलेग्जेंडर ने उसके भू-भाग को जित लिया था। उस समय का एक इतिहासकार हेरोडोटस ने लिखा था कि जीता हुआ हिस्सा एलेग्जेंडर के साम्राज्य का सबसे समृद्ध हिस्सा था।
अचेमेनिद ने तकरीबन 186 सैलून तक शासन किया था और इसलिए आज भी उत्तरी भारत में ग्रीक सभ्यता के कुछ लक्ष्ण देखे जा सकते हैं। गरेको-बुद्धिज्म ही ग्रीक और बुद्धिज्म की संस्कृतियों का मिलाप है। इस तरह से संस्कृतियों का मिलाप चौथी शताब्दी से 5 वीं शताब्दी तक लगभग 800 सालों तक चलता रहा।
इस भाग को हम आज वर्तमान समय में अफगानिस्तान और पाकिस्तान के नाम से जानते हैं। संस्कृतियों के मिलाप ने महायान बुद्ध लोगों को बहुत प्रभावित किया और साथ ही चीन , कोरिया , जापान और इबेत में भी हमें इसके प्रभाव देखने को मिलते हैं।
फारसी और यूनानी विजय :
उपमहाद्वीप का अधिकतर उत्तर पश्चिमी क्षेत्र जो वर्तमान में पाकिस्तान और अफगानिस्तान है में फारसी आक्मेनीड साम्राज्य के डायरिस द ग्रेट के शासन में सी. 520 ईसा पूर्व में आया और करीब दो सदियों तक रहा। 326 ईसा पूर्व में सिकंदर ने एशिया माइनर और आक्मेनीड साम्राज्य विजय प्राप्त की फिर उसने भारतीय उपमहाद्वीप की उत्तर पश्चिमी सीमा पर पहुंचकर राजा पोरस को हराया और पंजाब के अधिकतर इलाके पर कब्जा किया।
मौर्य साम्राज्य :
मौर्य वंशजों का मौर्य साम्राज्य 322-185 ईसा पूर्व तक रहा और यह प्राचीन भारत के भौगोलिक रूप से व्यापक एवं राजनीतिक और सैन्य मामले में बहुत शक्तिशाली राज्य था। मौर्य वंश का संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य था। 322 ई.पू. में चन्द्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य की मदद से नन्द वंश के अंतिम शासक धनानंद की हत्या करके मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी।
चन्द्रगुप्त मौर्य ने इसे उपमहाद्वीप में मगध जो आज के समय में बिहार है में स्थापित किया और महान राजा अशोक के शासन में यह बहुत उन्नत हुआ था। यूनानी साहित्य में चन्द्रगुप्त मौर्य को सैंड्रोकोट्स कहा गया है। 305 ई.पू. में चन्द्रगुप्त का संघर्ष सिकंदर के सेनापति सेल्युक्स निकोटर से हुआ जिसमें चन्द्रगुप्त को विजय प्राप्त हुई थी। चन्द्रगुप्त के शासनकाल में मेगस्थनीज दरबार में आया और पांच सैलून तक पाटलिपुत्र रहा था।
मगध साम्राज्य : मगध पुराने भारत के 16 साम्राज्यों में से एक है। स साम्राज्य का मुख भाग गंगा नदी के दक्षिण में बसा बिहार था। इसलि पहले राजधानी राजगृह और पाटलिपुत्र थी जिसे आज वर्तमान समय में राजगीर और पटना के नाम से जाना जाता है। मगध साम्राज्य में अधिकतर बिहार और बंगाल का भाग ही शामिल था जिनमे थोडा उत्तर प्रदेश और उड़ीसा भी दिखाई देते हैं।
प्राचीन मगध साम्राज्य की जानकारी हमें जैन और बुद्ध लेखों में मिलती है इसके साथ ही रामायण , महाभारत और पुराण में भी इसका वर्णन किया गया है। मगध राज्य और साम्राज्य को वैदिक ग्रंथों में 600 बीसी से पहले ही लिखा गया था। जैन और बुद्ध धर्म के विकास में मगध ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन साम्राज्यों ने ही प्राचीन भारत में विज्ञान , गणित , धर्म , दर्शनशास्त्र और खगोलशास्त्र के विकास पर जोर दिया था। इन साम्राज्यों का शासनकाल भारत में स्वर्ण युग के नाम से भी जाना जाता है।
मध्यकालीन भारतीय इतिहास (Medieval Indian History In Hindi)
मुगल साम्राज्य : फरगाना वैलर जो आज का उजबेकिस्तान है के तैमूर और चंगेज खान के वंशज बाबर ने सन् 1526 में खैबर दर्रे को पार किया और वहां मुगल साम्राज्य की स्थापना की जहाँ आज अफगानिस्तान , पाकिस्तान , भारत और बांग्लादेश है। सन् 1600 तक मुगल वंश ने अधिकतर भारतीय उपमहाद्वीप पर राज किया। सन् 1700 के बाद इस वंश का पतन होने लगा और आखिरकार भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम के समय सन् 1857 में पूरी तरह खात्मा हो गया।
आधुनिक भारतीय इतिहास (Modern Indian History In Hindi) :
उपनिवेश काल : 16 वीं सदी में पुर्तगाल , नीदरलैंड , फ़्रांस और ब्रिटेन से यूरोपीय शक्तियों ने भारत में अपने व्यापार केंद्र स्थापित किए। बाद में आंतरिक मतभेदों का फायदा उठाकर उन्होंने अपनी कॉलोनियां स्थापित कर लीं।
ब्रिटिश राज : सन् 1600 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत आने पर यहाँ महारानी विक्टोरिया के शासन का ब्रिटिश राज शुरू हुआ। यह सन् 1857 में भारत की स्वतंत्रता की पहली लड़ाई के बाद समाप्त हुआ। लगभग 90 साल तक ब्रिटिशों ने भारत पर राज किया था। उनके पूरे साम्राज्य को आठ मुख्य भागों में बांटा गया है – बर्मा , बंगाल , मद्रास , बॉम्बे , उत्तर प्रदेश , मध्य भाग , पंजाब और असम।
जिनमें कलकत्ता के गवर्नर जनरल ही गवर्नमेंट के मुख्य अधिकारी होते थे। भारत के ब्रिटिश राज में शामिल होने के बाद ब्रिटिशों ने भारत की संस्कृति और समय पर बहुत अत्याचार भी किए। वे भारत से कई बहुमूल्य चीजे ले गए। उन्होंने अखण्ड भारत का विभाजन दो टुकड़ों में कर दिया था और जहाँ पर राजाओं का शासनकाल था उन भागों को भी उन्होंने आक्रमण करके हथिया लिया था।
वे भारत से कई बहुमूल्य चीजे ले गए थे जिनमे भारत का कोहिनूर हिरा भी शामिल है। अकाल और बाढ़ के समय बहुत से लोगों की मृत्यु भी हो गई थी सरकार ने लोगों की पर्याप्त सहायता नहीं की थी। उस वक्त कोई भी भारतीय ब्रिटिशों को टैक्स देने में सक्षम नहीं था लेकिन फिर जो भारतीय टैक्स नहीं देता था उसे ब्रिटिश लोग जेल में डाल देते थे।
ब्रिटिश राज के राजनीतिक विरोधियो को भी जेल जाना पड़ता था। लगभग 100 साल तक भारत पर राज करने के बाद उन्होंने फूट डालो और राज करो नीति को लागू किया था और भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान कई लोगों की मौत हो गई थी। ब्रिटिशों ने भारतीयों पर अत्याचार करने के साथ-साथ भारतीयों के लिए कई अच्छे काम भी किए। उन्होंने रेलरोड और टेलीफोन का निर्माण किया और व्यापार , कानून और पानी की सुविधाओं को भी विकसित किया था।
इनके द्वारा किए गए इन कार्यों परिणाम भारत के विकास और समृद्धि में हुआ था। उन्होंने इंडियन सिविल सर्विस का निर्माण किया और कई जरूरी नियम और कानून बनवाए। उन्होंने भारत देश में विधवा महिलाओं को जलाने की प्रथा पर भी रोक लगाई थी। जब ब्रिटिश लोग भारत पर राज कर रहे थे तो इसका आर्थिक लाभ ब्रिटेन को हो रहा था। भारत में सस्ते दामों में कच्चे काम का उत्पादन किया जाता था और उन्हें विदेशों में भेजा जाता था। उस समय भारतीयों को भी ब्रिटिशों द्वारा बनाई गई चीजों का ही उपयोग पड़ता था।
सतवहना साम्राज्य : सतवहना साम्राज्य हमें 230 बीसी के लगभग दिखाई देता है। इस साम्राज्य को लोग आंध्रस के नाम से भी जाना जाता था। लगभग 450 साल तक बहुत से सतवहना राजाओं ने उत्तरी और मध्य भारत के बहुत से भागों में राज किया था।
पश्चिमी क्षत्रप : लगभग 350 साल तक 35 से 405 साल तक सका किंग ने भारत पर राज किया था। उन्होंने भारत के पश्चिमी और मध्य भागों पर राज किया था। आज वर्तमान समय में यह भाग गुजरात , महाराष्ट्र , राजस्थान और मध्य प्रदेश राज्यों में आते हैं। कुल मिलाकर वे 27 स्वतंत्र शासक थे जिन्हें क्षत्रप के नाम से जाना जाता था। सका शासक ने राजा कुशन और राजा सतवहना के साथ मिलकर भारत पर शासन किया था। कुशन राजा भारत के उत्तरी भाग पर शासन करते थे और सतवहना रजा भारत , मध्य और दक्षिणी भागों पर राज करते थे।
इंडो-सायथिंस : इंडो-सायथिंस भारत में साइबेरिया के बैक्टीरिया , सोग्डाना , कश्मीर और अरचोइसा जैसी जगहों से गुजरने के बाद आए थे। दूसरी शताब्दी से पहली शताब्दी तक उनका आना शुरू था। उन्होंने भारत के इंडो-ग्रीक शासकों को हर दिया था और गंधार से मथुरा तक राज करने लगे थे।
गुप्त साम्राज्य : गुप्त साम्राज्य का शासनकाल 320 से 550 एडी के दरमियाँ था। गुप्त साम्राज्य ने बहुत से उत्तरी-मध्य भाग को हथिया लिया था। पश्चिमी भारत और बांग्लादेश में भी उनका कुछ राज्य था। गुप्त समाज के लिए भी हिन्दू मान्यताओं को मानते थे। गुप्त साम्राज्य को भारत का स्वर्णिम युग कहा जाता था। इतिहासकारों ने गुप्त साम्राज्य को हान सम्रजू , टंग साम्राज्य और रोमन साम्राज्य के अनुरूप ही बताया।
हूँ आक्रमण : पाँचवीं शताब्दी के पहले भाग में कुछ लोगों का समूह अफगानिस्तान में स्थापित हो गया था। वे कुछ समय बाद बहुत शक्तिशाली बन चुके थे। उन्होंने बामियान को अपनी राजधानी बनाया था। इसके बाद उन्होंने भारत के उत्तरी-पश्चिम भाग पर आक्रमण करना भी शुरू कर दिया था।
गुप्त साम्राज्य के शासक स्कंदगुप्त ने उनका सामना कर उन्हें कुछ सालों तक तो अपने साम्राज्य से दूर रखा था लेकिन अंततः हूँ को जीत प्राप्त हुई और फिर उन्होंने धीरे-धीरे शेष उत्तरी भारत पर भी आक्रमण करना शुरू किया। इसी के साथ गुप्त साम्राज्य का भी अंत हो गया था।
आक्रमण के बाद उत्तरी भारत का बहुत सा हिस्सा प्रभावित हो गया था लेकिन हूँ की सेना ने इसके बाद डेक्कन प्लाटौ और दक्षिणी भारत पर आक्रमण नहीं किया था। इसलिए भारत ने यह भाग उस समय शांतिपूर्ण थे। लेकिन कोई भी हूँ कि किस्मत के बारे में नहीं जनता था। कुछ इतिहासकारों के अनुसार समय के साथ-साथ वे भी भारतीय लोगों में ही शामिल हो गए थे।
हर्ष साम्राज्य : गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद कनौज के हर्ष ने ही उत्तरी भारत के सभी भागों को मिलाकर एक विशाल साम्राज्य की नींव रखी। उनकी मौत के बाद बहुत से साम्राज्यों ने उत्तरी भारत को संभालने और शासन करने की कोशिश की लेकिन सभी असफल रहे। कोशिश करने वाले उन साम्राज्यों में मालवा के प्रतिहार , बंगाल के पलास और डेक्कन के राष्ट्रकूट भी शामिल हैं।
प्रतिहार , पलास और राष्ट्रकूट : परिहार रजा का साम्राज्य राजस्थान और भारत के कुछ उत्तरी भागों में छठी से 11 वी शताब्दी के बिच था। पलास भारत के पूर्वी भागों पर राज करते थे वे वर्तमान भारत के बिहार , झारखण्ड और पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश जैसे राज्यों पर शासन करते थे।
पलास का शासनकाल 8 से 12 वी शताब्दी के बीच था। भारत के दक्षिणी भाग में मालखेडा के राष्ट्रकूट के शासन था उन्होंने चालुक्य के पतन के बाद 8 से 10 वी शताब्दी तक राज किया था। यह तीनों साम्राज्यों हमेशा पूरे उत्तरी भारत पर शासन करना चाहते थे लेकिन चोल राज के बलशाली और शक्तिशाली होने के बाद वे असफल हुए।
राजपूत :- 6 वी शताब्दी में बहुत से राजपूत राजा राजस्थान में स्थापित होने के इरादों से आये थे। कुछ राजपूत राजा भारत के उत्तरी भाग में राज करते थे उनमे से कुछ भारतीय इतिहास में 100 से भी ज्यादा साल तक राज कर चुके थे।
विजयनगर साम्राज्य : 1336 में हरिहर और बुक्का नाम के दो भाइयों ने मिलकर विजयनगर साम्राज्य की स्थापना वर्तमान भारत के कर्नाटक राज्य में की थी। इस साम्राज्य का सबसे प्रसिद्ध राजा कृष्णदेवराय था। 1565 में इस साम्राज्य के शासकों को एक युद्ध में पराजय का सामना करना पड़ा था। दक्षिण भारत के बहुत से शासकों के अरब और इंडोनेशिया और दूसरे पूर्वी देशों के साथ व्यापारिक संबंध भी थे।
इस्लामिक सल्तनत : 500 साल पहले ही इस्लाम धर्म के लोग पूरे भारत में फैल चुके थे। 10 वी और 11 वी शताब्दी में ही तुर्क और अफगानी शासकों ने भारत पर आक्रमण किया था और दिल्ली की सल्तनत स्थापित की। 16 वी शताब्दी की शुरुआत में जंघिम खान के वंशज ने ही मुगल साम्राज्य की स्थापना की जिन्होंने लगभग 200 साल तक राज किया। 11 वी से 15 वी शताब्दी में दक्षिण भारत को हिन्दू चोला और विजयनगर साम्राज्य ने सुरक्षित रखा। इस समय दो प्रणाली – हिन्दू और मुस्लिम को प्रचलित करना और घुल मिलकर रहने को अपनाया गया था।
दिल्ली सल्तनत : गुलाम साम्राज्य की शुरुआत कुतुबुद्दीन ऐबक ने की थी। वे उनमें से एक थे जिन्होंने आर्किटेक्चरल धरोहर को बनाने की शुरुआत की थी और सबसे पहले उन्होंने मुस्लिम धर्म के हित में कुतुबमीनार का निर्माण करवाया था। चौगल खेलते समय ही कुतुबुद्दीन ऐबक की मौत हो गई थी। अपने घोड़े से गिरने की वजह से उनकी मौत हो गई थी। इसके बाद इल्तुमिश उनके उत्तराधिकारी बनी और साथ ही पहली महिला शासक भी बनी थी।
मैसूर साम्राज्य : मैसूर का साम्राज्य ही दक्षिण भारत का साम्राज्य था। लोगों के अनुसार सन् 1400 में वोदेयार्स ने मैसूर साम्राज्य की स्थापना की थी। इसके बाद हैदर अली और उनके बेटे टीपू सुल्तान ने वोदेयार के साथ लड़ाई की थी। इसके साथ-साथ उन्होंने ब्रिटिश राज के विरुद्ध भी उनका विरोध किया था लेकिन अंततः उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। ब्रिटिश राज में वोदेयार राजा कर्नाटक पर राज करते थे। जब 15 अगस्त , 1947 को भारत आजाद हुआ था तब वोदेयार साम्राज्य भी भारत का ही हिस्सा बना गया था।
पंजाब : गुरु नानक ने सिक्ख धर्म और उनके अनुयायियों की खोज की थी। सिक्खों की ताकत उत्तर भारत में समय के साथ-साथ बढती जा रही थी। उत्तरी भारत के ज्यादातर भागो पर सिक्ख शासको का ही राज था। सिक्ख साम्राज्य में रणजीत सिंह सबसे प्रसिद्ध और प्रक्रम्मी शासक थे। अपनी मौत के वक्त उन्होंने सिक्ख साम्राज्य को बॉर्डर को भी विकसित किया था और अपने साम्राज्य में पंजाब और वर्तमान कश्मीर और पाकिस्तान का कुछ भाग भी शामिल कर लिया था।
सिक्खों और ब्रिटिश सेना के बीच इतिहास में कई लड़ाईयां हुयी थीं। जब तक महाराज रणजीत सिंह जिन्दा थे तब तक ब्रिटिश अधिकारियो को सुल्तेज नदी पार करने में कभी सफलता नहीं मिली। उनकी मौत के बाद उन्होंने पूरे पंजाब को हथिया लिया था और सिक्ख शासकों का पतन कर दिया था।
दुर्रानी साम्राज्य : बहुत कम वक्त के लिए अहमद शाह दुर्रानी उत्तरी भारत के कुछ भागों में राज करने लगे थे। इतिहासकारों ने उनके साम्राज्य को दुर्रानी साम्राज्य का ही नाम दिया था। 1748 में उन्होंने इंडस नदी पार की और लाहौर पर आक्रमण किया जो आज आकिस्तान का एक भाग है। इसके साथ-साथ उन्होंने पंजाब के कई भागों पर भी आक्रमण किया था और फिर दिल्ली पर आक्रमण किया उस समय दिल्ली मुगल साम्राज्य की राजधानी थी। उन्होंने भारत से बहुत सी मूल्यवान चीजे ले गई थी जिसमें भारत का प्रसिद्ध कोहिनूर हिरा भी शामिल है।
कोलोनियल समय : कोलोनियल समय अथार्त वह समय जब पश्चिमी देशों ने भारत पर शासन किया था। इन देशों ने दूसरे देशों जैसे एशिया , अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका पर भी शासन किया था।
कंपनी राज : सन् 1600 से ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी भारत में आई और सबसे पहले बंगाल में स्थापित हुई थी। सन् 1700 के बीच में कंपनी ने भारत पर बहुत प्रभाव डाला और भारत पर बहुत से राज्यों को अपने अधीन कर लिया था और 1757 में प्लासी का युद्ध जीतने के बाद ब्रिटिश अधिकारों की ही बंगाल का गवर्नर बनाया गया था और तभी से भारत में कंपनी राज की शुरुआत हुई थी।
युद्ध के 100 साल बाद ईस्ट इण्डिया कंपनी ने पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में अपनी छाप छोड़ी थी। वे व्यापार , राजनीति और सैन्य बल के जोर पर ही शासन करते थे लेकिन 1857 में भारतियों ने कंपनी का बहुत विरोध किया और इस विरोध ने जल्द ही एक क्रांति का रूप भी ले लिया था और परिणामस्वरूप कंपनी का पतन हो गया। इसके बाद 1858 में भारत भी ब्रिटिश साम्राज्य का ही एक भाग बन गया था और रानी विक्टोरिया भारत ही पहले रानी बनी थी।
बंगाल का विभाजन ( 1905 ) : 19 जुलाई , 1905 को लार्ड कर्जन भारत आये थे। 16 अक्टूबर , 1905 को बंगाल को दो भागों में बांटा गया था। एक भाग वेस्ट बंगाल बना जिसकी राजधानी कलकत्ता बनी और दूसरा भाग ईस्ट बंगाल बना जिसकी राजधानी देक्का बना। बंगाल के विभाजन के विरोध में विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया था।
असहयोग आंदोलन ( 1921 ) : यह गाँधी जी का प्रथम जन आंदोलन था उस समय के वाइसराय लार्ड चेम्सफोर्ड थे। असहयोग आंदोलन में बहुत मुख मागें रखी गयीं थीं जैसे – रोलेक्त एक्ट को रद्द किया जाए , जलियावाला बाग पीड़ितों को न्याय दिया जाए , खिलाफत आंदोलनकारियों को न्याय दिया जाए , भारत के लिए स्वराज्य की मांग , वित्तीय सहायता के लिए तिलक फंड बनाया जाए , गाँधी जी ने केसरी हिन्द की उपाधि को त्याग दिया , चरखा और कड़ी भारत का राष्ट्रिय प्रतीक बने आदि।
असहयोग आन्दोलन के समय चोरीचोरा कांड हुआ। इस कांड में 2000 की भीड़ शराब के दुकान के पास धरना प्रदर्शन के लिए गए जिनमें से 3 लोगों को अंग्रेज पुलिस वालों ने मार दिया उसके बाद गुस्साई भीड़ ने 23 पुलिस वालों को जिन्दा जला दिया इस कांड के बाद असहयोग आंदोलन बंद हुआ। इस कांड के समय लार्ड रीडिंग भारत के वाइसराय थे।
स्वतंत्रत अभियान : बहुत से भारतीय ब्रिटिश राज से मुक्त होना चाहते थे। भारतीय स्वतंत्रता अभियान का संघर्ष बहुत लंबा और दर्दभर था। भारत के स्वतंत्रता के लिए सेकड़ों-हजारों महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वो ने अपना जीवन बलिदान किया। भारतीय स्वतंत्रत अभियान के संघर्ष में मुख्य नेता महात्मा गाँधी थे। गाँधी को अहिंसा पर पूर्ण विश्वास था और अहिंसा के बल पर ही 15 अगस्त , 1947 को भारत को आजादी मिली और देश आजाद बन गया था।
साइमन कमिसन ( 3 फरवरी 1927 -1928 ) : जॉन साइमन साइमन कमिसन के प्रमुख थे। इन्हें संवैधानिक गतिविधियों को सुधारने के लिए भारत भेजा गया था। 7 स्द्सुय आए थे जो यूनाइटेड किंगडम के पार्लियामेंट सदस्य थे। इसे वाइट कमिसन भी कहा गया था क्योंकि इसमें कोई भी भारतीय नहीं था। साइमन कमिसन के विरुद्ध लाहौर में एक आंदोलन रखा गया जिसका नेतृत्व लाला लाजपतराय ने किया था। इस आंदोलन में लाठी चार्ज में चोटिल हो जाने से लाला लाजपत राय मारे गए थे।
हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ( 1928 ) : साल 1928 में पहले इसे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन नाम से जाना जाता था। इसके बाद सदस्य चन्द्रशेखर आजाद , भगत सिंह , सुखदेव , बटुकेश्वर दत्ता और राजगुरु थे। इस दल को गरम दल भी कहते हैं। ए.एस.पी. जे.पी.सौन्देर्स को 1 दिसंबर , 1928 को सुखदेव , राजगुरु और भगत सिंह जी ने मारा था। बटुकेश्वर दत्ता और भगत सिंह ने सभा में दो बम लगाए थे जिसके बाद इन दोनों को गिरफ्तार किया गया था और 23 मार्च , 1931 को सुखदेव , राजगुरु और भगत सिंह को फंसी हुई थी।
सविनय अवज्ञा आंदोलन ( 1930 ) : सविनय अवज्ञा आंदोलन गाँधी जी का दूसरा जन आंदोलन था। इस आंदोलन का प्रमुख कारण गाँधी जी का 11 सूत्रीय मांगो को लार्ड इरविन द्वारा नहीं मानना था। इसे कर नहीं आंदोलन भी कहा जाता है। इसे साल 1931 में गाँधी इरविन समझौते के द्वारा खत्म कर दिया गया था। इस आंदोलन के समय ही गाँधी जी ने 12 मार्च , 1930 में दांडी मार्च किया यह यात्रा लगभग 390 किलोमीटर की थी।
गाँधी इरविन समझौता : गाँधी इरविन समझौता 5 मार्च , 1931 को किया गया था। इस समझौते में गाँधी जी को कुछ शर्तें माननी पड़ी थीं जैसे – सविनय अवज्ञा आन्दोलन बंद किया गया , कांग्रेस दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेगा , आंदोलन के दौरान अंग्रेजों द्वारा भारतियों पर किए गए अत्याचार पर कोई जाँच आयोग नहीं बनाया जाएगा आदि।
लार्ड इरविन ने भी कुछ शर्तें मानी थीं जैसे – नमक कानून हटेगा , कांग्रेसियों की जप्त संपतियों को वापस दिया जाएगा , महिलाओं को शराब और अफीम की दुकानों के समक्ष शांति पूर्ण ढंग से धरना प्रदर्शन की इजाजत दी जाएगी। हिंसा में लिप्त दोषियों को छोडकर शेष सभी भारतीय बंदियों को रिहा कर दिया जाएगा।
गोलमेज सम्मेलन : कांग्रेस ने सिर्फ दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लिए। डॉ बी.आर.अम्बेडकर इकलौते नेता थे जिन्होंने तीनों गोलमेज सम्मेलनों में भाग लिया। प्रथम गोलमेज सम्मेलन 12 नवंबर , 1930 में रामसे म्क्दोनाल्ड प्रधानमंत्री द्वारा सैंट जेम्स पैलेस लंदन में हुआ था इसमें 89 सदस्यों ने भाग लिया था। द्वितीय गोलमेज सम्मेलन 7 सितम्बर , 1931 में हुआ था।
इस सम्मेलन में कांग्रेस ने भाग लिया था। सरोजनी नायडू ने भारतीय महिलाओं का प्रतिनिधित्व किया था। यह मीटिंग असफल रही थी और इसके असफल होने का कारण बी.आर.अम्बेडकर और गाँधी जी के बीच दलित वर्गों को पृथक निर्वाचन को लेकर विवाद था। तीसरा गोलमेज सम्मेलन 17 नवंबर , 1932 को रखा गया था।
पूना समझौता ( 24 सितम्बर , 1932 ) : पूना समझौता गाँधी जी और बी.आर.आम्बेडकर के बीच म्क्दोनाल्ड अवार्ड को अस्वीकार करने के लिए समझौता किया गया था। म्क्दोनाल्ड अवार्ड के विरोध में गाँधी जी ने यरवदा जेल पुणे में अनसन रख। यह गाँधी जी का यह सबसे लंबा अनसन था। इस आंदोलन में मध्यस्थ के नाम मदनमोहन मालवी , राजेन्द्र प्रसाद , पुरुषोत्तम दास टंडन आदि थे।
अगस्त प्रस्ताव ( 8 अगस्त , 1940 ) : वाइसराय लिनलिथगो ने दूसरे विश्व युद्ध में भारत का सहयोग पाने के लिए अगस्त प्रस्ताव लाया था। इसे कांग्रेस और मुस्लिम संघ ने ठुकरा दिया था।
व्यक्तिगत सत्याग्रह ( 17 अक्टूबर , 1940 ) : व्यक्तिगत सत्याग्रह का मुख्य कारण अगस्त प्रस्ताव था। इसके पहले सत्याग्रही आचार्य विनोबा भावे जी थे और दूसरे जवाहरलाल नेहरु जी थे। यह सत्याग्रह गाँधी जी के सत्याग्रह पर आधारित था।
क्रिप्स मिशंस ( 23 मार्च , 1942 ) : स्टैफोर्ड क्रिप्स की अध्यक्षता में क्रिप्स मिशंस लाया गया था। इसे भारतियों का सहयोग पाने के लिए लाया गया था। गाँधी जी ने इसे ” A post dated cheque ” कहा था। इसे कांग्रेस और मुस्लिम संघ दोनों ने ठुकरा दिया था।
भारत छोड़ो आंदोलन ( 9 अगस्त , 1942 ) : भारत छोड़ो आंदोलन को अगस्त क्रांति और वर्धा प्रस्ताव भी कहते हैं। यह गाँधी जी का अंतिम जन आंदोलन था। गाँधी जी ने इस आंदोलन को बॉम्बे के गोवालिया टैंक मैदान से शुरू किया था। उस वक्त गाँधी जी का नारा ” करो या मरो ” था।
कैबिनेट मिशन ( 24 मार्च , 1946 ) : भारत की पूर्ण स्वाधीनता की मांग को मानते हुए ब्रिटिश कैबिनेट ने भारत में ब्रिटिश कैबिनेट मिशन भेजा। इस समय इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री क्लेमेंट अत्त्ली थे। इस समय में भारत के वाइसराय अर्चिबल्ड वावेल थे। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य भारत को संघ बनाना , भारत में अंतरिम सरकार बनाना , संविधान निर्माता सभा का निर्माण करना , मुस्लिम संघ द्वारा इसे अपनाया जाना आदि थे। इस मिशन में तीन मुख्य सदस्य थे – लार्ड पल्थिक्क लॉरेंस , सर स्टैफ़ोर्ड क्रिप्स , ए.वी. अलेक्सेंडर।
अत्तली की घोषणा ( 20 फरवरी , 1947 ) : ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने ब्रिटेन के संसद में घोषणा किया कि भारत को 30 जून 1948 से पहले पूर्ण रूप से आजदी दे दी जाएगी। लार्ड वावेल को हटा कर लार्ड माउंटबैटन को भारत का वाइसराय बनाकर भारत भेजा गया था।
माउंटबैटन प्लेन ( 3 जून , 1947 ) : भारत को दो भागों में बांटा गया जो आज के समय पाकिस्तान और हिंदुस्तान हैं। रेडक्लिफ आयोग का गठन किया गया। 15 अगस्त , 1947 को भारत का विभाजन पूरा हुआ था और इसके साथ ही भारत आजाद हुआ था।
प्राचीन भारतीय इतिहास का घटनाक्रम (Events of ancient Indian history In Hindi) :
प्रागैतिहासिक काल ( 400000 ई.पू. – 1000 ई.पू. ) : यह वह समय था जब केवल भोजन इकट्ठा करने वाले मानव ने आग और पहिए की खोज की।
सिंधु घाटी सभ्यता ( 2500 ई.पू. – 1500 ई.पू. ) : इसका यह नाम सिंधु नदी की वजह से आया और यह कृषि करके उन्नत हुई थी। यहाँ के लोग प्राकृतिक संसाधनों को भी पूजा करते थे।
महाकाव्य युग ( 1000 ई.पू. – 600 ई.पू. ) : इस कालखण्ड में वेदों का संकलन हुआ और वर्णों के भेद हुए जैसे – आर्य और दास।
हिन्दू धर्म और परिवर्तन ( 600 ई.पू. – 322 ई.पू. ) : इस समय में जाति प्रथा बहुत सख्त हो गई थी और यही वह समय था जब महावीर और बुद्ध का आगमन हुआ और उन्होंने जातिवाद के विरुद्ध बगावत की। इस काल में महाजनपदों का गठन हुआ था और बिम्बिसार के शासन में मगध आया , अजात शत्रु , शिसुनंगा और नंदा राजवंश बने।
मौर्य काल ( 322 ई.पू. – 185 ई.पू. ) : चन्द्रगुप्त द्वारा स्थापित इस साम्राज्य में पूरा उत्तर भारत था और बिंदुसार ने इसे और बढ़ाया था। इस काल में हुए कलिंग युद्ध के बाद रजा अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाया।
आक्रमण ( 185 ई.पू. – 320 ईस्वी ) : इस अवधि में बैक्ट्रियन , पार्थियन , शक और कुषाण के आक्रमण हुए। व्यापार के लिए मध्य एशिया खुला , सोने के सिक्कों का चलन और साका युग का प्रारंभ हुआ।
डेक्कन और दक्षिण ( 65 ई.पू. – 250 ईस्वी ) : इस काल में दक्षिण भाग पर चोल , चेर और पंड्या का शासन रहा और इसी समय में अजंता एलोरा गुफाओं का निर्माण हुआ संगम साहित्य और भारत में ईसाई धर्म का आगमन हुआ।
गुप्त साम्राज्य ( 320 ईस्वी – 520 ईस्वी ) : इस काल में चन्द्रगुप्त प्रथम ने गुप्त साम्राज्य की स्थापना की। उत्तर भारत में शास्त्रीय युग का आगमन हुआ। समुद्रगुप्त ने अपने राजवंश का विस्तार किया और चन्द्र्गुत द्वितीय ने शोक के खिलाफ युद्ध किया। इस युग में ही शाकुंतलम और कामसूत्र की रचना हुई। आर्यभट्ट ने खगोल विज्ञानं में अद्भुत काम किए और भक्ति पन्थ भी इस समय उभरा।
छोटे राज्यों का काल ( 500 ईस्वी – 606 ईस्वी ) : इस युग में हूणों के उत्तर भारत में आने से मध्य एशिया और ईरान में पलायन देखा गया था। उत्तर में कई राजवंशों के परस्पर युद्ध करने से बहुत से छोटे राज्यों का निर्माण हुआ।
हर्षवर्धन ( 606 ई – 647 ईस्वी ) : हर्षवर्धन के शासनकाल में प्रसिद्ध चीनी यात्री हेन त्सांग ने भारत की यात्रा की। हूणों के हमले से हर्षवर्धन का राज्य कई छोटे राज्यों में बंट गया। यह वह समय था जब डेक्कन और दक्षिण बहुत शक्तिशाली बन गए।
दक्षिण राजवंश ( 500 ई – 750 ईस्वी ) : इस युग में चालुक्य , पल्लव और पंड्या साम्राज्य पनपा और पारसी भारत आए।
चोल साम्राज्य ( 9वीं सदी ई – 13 वीं सदी ईस्वी ) : विजयालस द्वारा स्थापित चोल साम्राज्य ने समुद्र निति अपनाई। अब मन्दिर सांस्कृतिक और सामाजिक केंद्र होने लगे और द्रविड़ियन भाषा फलीफूली।
उत्तरी साम्राज्य ( 750 ई – 1206 ईस्वी ) : इस समय राष्ट्रकूट ताकतवर हुआ प्रतिवार ने अवंति और पलस ने बंगाल पर शासन किसा। इस युग ने राजपूत कुलों का उदय देखा। खजुराहो , कांचीपुरम , पुरी में मंदिरों का निर्माण हुआ और लघु चित्रकारी शुरू हुई। इस अवधि में तुर्कों का आक्रमण हुआ।
सन् 1857 के प्रसिद्ध व्यक्ति (Famous person of 1857) :
बहादुर शाह ज़फर : अधिकांश भारतीय विद्रोहियों ने बहादुर शाह ज़फर को भारत का राजा चुना और उनके अधीन वे एकजुट हो गए। अंग्रेजों की साजिश के सामने वो भी नहीं टिक पाए। उनके पतन से भारत में तीन सदी से ज्यादा पुराने मुगल शासन का अंत हो गया।
बख्त खान : ईस्ट इण्डिया कंपनी में सूबेदार रहे बख्त खान ने रोहिल्ला सिपाहियों की एक सेना का निर्माण किया। मई 1857 में अंग्रेजों के विरुद्ध मेरठ में सिपाहियों के विद्रोह करने के बाद वो दिल्लू में सिपाही सेना के कमांडर बन गए।
मंगल पांडे : 34 वीं बंगाल नेटिव इंफैंट्री का हिस्सा रहे मंगल पांडे को 29 मार्च 1857 को बैरकपुर में एक वरिष्ठ अंग्रेज अधिकारी पर हमला करने के लिए जाना जाता है। इस घटना को ही भारत की स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत माना जाता है।
नाना साहिब : निर्वासित मराठा पेशवा बाजी राव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहिब ने कानपुर में विद्रोह का नेतृत्व किया था।
रानी लक्ष्मीबाई : रानी लक्ष्मीबाई तात्या टोपे के साथ मिलकर अंग्रेज सैनिकों के विरुद्ध बहादुरी से लड़ीं। 17 जून 1858 को ग्वालियर के फूल बाग इलाके के पास अंग्रेजों से लड़ते हुए उन्होंने अपना जीवन न्यौछावर कर दिया।
तात्या टोपे : नाना साहिब के करीबी सहयोगी और सेनापति तात्या टोपे ने रानी लक्ष्मीबाई के साथ मिलकर अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी।
वीर कुंवर सिंह : वर्तमान में बिहार के भोजपुर जिले का हिस्सा रहे जगदीशपुर के राजा ने अंग्रेजों के विरुद्ध सशस्त्र सेना का नेतृत्व किया।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और महात्मा गाँधी : 20 वीं सदी में महात्मा गाँधी ने लाखों लोगों का नेतृत्व किया और सन् 1947 में स्वतंत्रता के लिए एक अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया।
आजादी और विभाजन : अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति के कारण पिछले कुछ सैलून में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच धार्मिक तनाव बढ़ता गया खासतौर पर पंजाब और पश्चिम बंगाल जैसे प्रान्तों में। महात्मा गाँधी ने दोनों धार्मिक समुदायों से एकता बनाए रखने की भी अपील की।
दूसरे विश्व युद्ध के बाद कमजोर अर्थव्यवस्था से जूझ रहे अंग्रेजों ने भारत छोड़ने का फैसला किया जिससे अंतरिम सरकार बनाने का रास्ता बना। आखिरकार भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ और अंग्रेजों के कब्जे से इस क्षेत्र को सन् 1947 में आजादी मिली।
आजादी के बाद के काल : कई सभ्यताओं जैसे ग्रीक , रोमन और मिस्त्र ने उदय और पतन देखा। भारतीय सभ्यता और संस्कृति इससे अछूत रही। इस पेश पर एक के बाद एक कई आक्रमण हुए। कई साम्राज्य आए और अलग-अलग हिस्सों पर शासन किया लेकिन भारतवर्ष की अदम्य आत्मा पराजित नहीं हुई।
आज के समय में संसार के सबसे बड़े लोकतंत्र और सबसे जीवंत गणराज्य के तौर पर विश्व में देखा जाता है। यह एक उभरती हुई वैश्विक महाशक्ति और दक्षिण एशिया का एक प्रभावशाली देश है। भारत एशिया का सबसे बड़ा देश है और संसार का सातवां सबसे बड़ा और जनसंख्या के तौर पर दूसरा सबसे बड़ा देश है। इसमें एशिया का एक तिहाई हिस्सा है और मानव जाति का सातवां भाग इसमें है।