- बुध सौरमंडल का सबसे छोटा और सूर्य के सबसे निकटतम ग्रह है।
- बुध का आकर पृथ्वी के आकर से 18 गुना छोटा है।
- बुध का गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल का 3/8 है।
- मेरिनट 10 बुध का एक मात्र कृत्रिम उपग्रह है।
- बुध ग्रह सूर्य की परिक्रमा सबसे कम समय यानि 88 दिन में पूरी कर लेता है।
- बुध का सबसे ज्यादा ताप 560 सेंटीग्रेट है।
- बुध का कोई भी प्राकृतिक उपग्रह नहीं है।
- बुध गृह का घूर्णन काल 58.6 दिन है।
- बुध ग्रह पर वायुमंडल नहीं है जिसकी वजह से इस ग्रह पर जीवन संभव नहीं है।
बुध ग्रह (Mercury Planet In Hindi) :
बुध, सौरमंडल के आठ ग्रहों में सबसे छोटा और सूर्य से निकटतम है। इसका परिक्रमण काल लगभग 88 दिन होता है। पृथ्वी से देखने पर यह अपनी कक्षा के आसपास 116 दिवसों में घूमता हुआ नजर आता है जो ग्रहों में सबसे तेज है। गर्मी बनाए रखने के लिहाज से इसका वायुमंडल चूँकि करीब-करीब नगण्य है, बुध का भूपटल सभी ग्रहों की तुलना में तापमान का सबसे ज्यादा उतार-चढ़ाव महसूस करता है जो 100K रात से लेकर भूमध्य रेखीय क्षेत्रों में दिन के वक्त 700K तक रहता है।
वहीं पर ध्रुवों का तापमान स्थायी रूप से 180K के नीचे है। बुध के अक्ष का झुकाव सौरमंडल के अन्य किसी भी ग्रह से सबसे कम है लेकिन कक्षीय विकेन्द्रता सबसे अधिक है। बुध ग्रह अपसौर पर उपसौर की तुलना में सूर्य से लगभग डेढ़ गुना ज्यादा दूर होता है। बुध की धरती क्रेटरों से अटी पड़ी है तथा बिलकुल हमारे चंद्रमा जैसी नजर आती है यह संकेत देता है कि यह भूवैज्ञानिक रूप से अरबो सालों तक मृतप्राय रहा है।
बुध ग्रह को पृथ्वी जैसे अन्य ग्रहों की तरह मौसमों का कोई भी अनुभव नहीं है। यह जकड़ा हुआ है इसलिए इसके घूर्णन की राह सौरमंडल में अद्वितीय है। किसी भी स्थिर खड़े सितारे के सापेक्ष देखने पर यह हर दो कक्षीय प्रदक्षिणा के दरम्यान अपनी धुरी के आसपास सही 3 बार घूम लेता है।
सूर्य की तरफ से किसी भी ऐसे फ्रेम ऑफ रिफरेंस में जो कक्षीय गति से घूमता है देखने पर यह प्रत्येक दो बुध वर्षों में मात्र एक बार घूमता नजर आता है इस वजह से बुध ग्रह पर कोई पर्यवेक्षक एक दिवस प्रत्येक दो वर्षों का देखेगा। बुध की कक्षा चूंकि पृथ्वी की कक्षा के अंदर स्थित है यह पृथ्वी के आसमान में सुबह या शाम को दिखाई दे सकता है परंतु अर्धरात्रि को नहीं।
पृथ्वी के सापेक्ष अपनी कक्षा पर सफर करते हुए यह शुक्र और हमारे चंद्रमा की तरह कलाओं के सभी रूपों का प्रदर्शन करता है। हालाँकि बुध ग्रह बहुत उज्ज्वल वस्तु जैसा दिख सकता है जब इसे पृथ्वी से देखा जाए, सूर्य से इसकी निकटता शुक्र की तुलना में इसे देखना और अधिक कठिन बनाता है। ज्योतिष में बुध ग्रह का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है और इसे एक शुभ ग्रह माना जाता है।
आंतरिक गठन :
बुध ग्रह सौर मंडल के चार स्थलीय ग्रहों में से एक है और यह पृथ्वी की तरह एक चट्टानी पिंड है। यह 2,439.7 किलोमीटर की विषुववृत्तिय त्रिज्या वाला सौरमंडल का सबसे छोटा ग्रह है। बुध ग्रह सौरमंडल के बड़े उपग्रहों गेनीमेड और टाइटन से भी छोटा है हालाँकि यह उनसे भारी है।
बुध लगभग 70% धातु व 30% सिलिकेट पदार्थ का बना है। बुध का 5.427 ग्राम/सेमी3 के घनत्व सौरमंडल में उच्चतम के दूसरे क्रम पर है, यह पृथ्वी के 5.515 ग्राम/सेमी3 के घनत्व से मात्र थोडा सा ही कम है। अगर गुरुत्वाकर्षण संपीडन के प्रभाव को गुणनखंडों में बाँट दिया जाए तब 5.3 ग्राम/सेमी3 बनाम पृथ्वी के 4.4 ग्राम/सेमी3 के असंकुचित घनत्व के साथ बुध जिस पदार्थ से बना है वह सघनतम होगा।
बुध का घनत्व इसके अंदरूनी गठन के विवरण के अनुमान के लिए प्रयुक्त हो सकता है। पृथ्वी का उच्च घनत्व उसके प्रबल गुरुत्वाकर्षण संपीडन के कारण बहुत है विशेष रूप से कोर का इसके विपरीत बुध बहुत छोटा है और उसके अंदर क्षेत्र उतने संकुचित नहीं हुए हैं। इसलिए इस तरह के किसी उच्च घनत्व के लिए इसका कोर बड़ा और लौहे से समृद्ध जरुर होना चाहिए।
भूवैज्ञानिकों का आकलन है कि बुध का कोर अपने आयतन का करीब 42% हिस्सा घेरता है पृथ्वी के लिए यह अनुपात 17% है। अनुसंधान बताते है कि बुध का एक द्रवित कोर है। यह कोर 500-700 किलोमीटर के सिलिकेट से बने मेंटल से घिरा है। मेरिनर 10 के मिशन से मिले आंकड़ों और भू आधारित प्रेक्षणों के आधार पर बुध की पर्पटी का 100-300 किलोमीटर मोटा होना माना गया है।
बुध की धरती की एक विशिष्ट स्थलाकृति अनेकों संकीर्ण चोटियों की उस्थिति है जो लंबाई में कई सौ किलोमीटर तक फैली है। यह माना गया है कि यह तब निर्मित हुई थी जब बुध के कोर व मेंटल ठीक उस समय ठंडे और संकुचित किये गए जब पर्पटी पहले से जम चुकी थी। बुध का कोर सौरमंडल के किसी भी अन्य बड़े ग्रह की तुलना में उच्च लौह सामग्री वाला हो और इसे समझाने के लिए कई सिद्धांत प्रस्तावित किये गए हैं।
सबसे अधिक व्यापक रूप से स्वीकार किया गया सिद्धांत यह है कि बुध आम कोंड्राइट उल्कापिंड के समान ही मूल रूप से एक धातु-सिलिकेट अनुपात रखता था जो सौरमंडल के चट्टानी पदार्थ में दुर्लभ समझा गया है और साथ ही द्रव्यमान इसके मौजूदा द्रव्यमान का लगभग 2.25 गुना माना गया।
सौरमंडल के इतिहास के पूर्व में बुध ग्रह कई सौ किलोमीटर लंबे-चौड़े व लगभग 1/6 द्रव्यमान के किसी क्षुद्रग्रह द्वारा ठोकर मारा हुआ हो सकता है। टक्कर ने मूल पर्पटी व मेंटल के अधिकांश भाग को दूर छिटक दिया होगा और पीछे अपेक्षाकृत मुख्य घटक के रूप में एक कोर को छोड़ा होगा। इस प्रकार की प्रक्रिया जिसे भीमकाय टक्कर परिकल्पना के रूप में जाना जाता है चंद्रमा के गठन की व्याख्या करने के लिए प्रस्तावित की गई है।
नामकरण :
ग्रहीय प्रणाली नामकरण के कार्य समूह में बुध पर 5 घाटियों के लिए नए नामों को इजाजत दी है – एंगकोर घाटी, कैहोकीया घाटी, कैरल घाटी, पाएस्टम घाटी, टिमगेड घाटी।
इतिहास :
रोमन मिथकों के अनुसार बुध व्यापार, यात्रा और चोर्यकर्म का देवता, यूनानी देवता हर्मीश का रोमन रूप, देवताओं का संदेशवाहक देवता है। इसे संदेशवाहक देवता का नाम इस वजह से मिला क्योंकि यह ग्रह आकाश में काफी तेजी से गमन करता है। बुध को ईसा से 3 सहस्त्राब्दि पहले सुमेरियन काल से जाना जाता रहा है। इसे कभी सूर्योदय का तारा तो कभी सूर्यास्त का तारा कहा जाता रहा है।
ग्रीक खगोल विज्ञानियों को पता था कि ये दो नाम एक ही ग्रह के हैं। हेराक्लाइटेस यहाँ तक मानता था कि बुध और शुक्र पृथ्वी की नहीं सूर्य की परिक्रमा करते हैं। बुध पृथ्वी की तुलना में सूर्य के नजदीक है इसलिए पृथ्वी से उसकी चंद्रमा की तरह कलाये दिखाई देती है। गैलिलियो की दूरबीन छोटी थी जिससे वे बुध की कलाये देख नहीं पाए थे लेकिन उन्होंने शुक्र की कलाये देखी थी।
चुंबकीय क्षेत्र :
अपने छोटे आकार व 59-दिवसीय लंबे घूर्णन के बाद भी बुध का एक उल्लेखनीय और वैश्विक चुंबकीय क्षेत्र है। मेरिनर 10 द्वारा लिए गए मापनो के अनुसार यह पृथ्वी की तुलना में लगभग 1.1% सर्वशक्तिशाली है। इस चुंबकीय क्षेत्र की शक्ति बुध के विषुववृत पर लगभग 300 nT है। पृथ्वी की तरह बुध का भी चुंबकीय क्षेत्र दो ध्रुवीय है।
पृथ्वी के विपरीत बुध के ध्रुव ग्रह के घूर्णी अक्ष के करीब-करीब सीध में है। अंतरिक्ष यान मेरिनर 10 व मेसेंजर दोनों से मिले मापनो ने दर्शाया है कि चुंबकीय क्षेत्र का आकार व शक्ति स्थायी है। ऐसा लगता है कि यह चुंबकीय क्षेत्र एक डाइनेमो प्रभाव के माध्यम द्वारा उत्पन्न हुआ है। इस लिहाज से यह पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के समान है।
यह डाइनेमो प्रभाव ग्रह के लौह-बहुल तरल कोर के परिसंचरण का नतीजा रहा होगा। विशेष रूप से ग्रह की उच्च कक्षीय विकेंद्रता द्वारा उत्पन्न शक्तिशाली ज्वारीय प्रभाव ने कोर को तरल अवस्था में रखा होगा जो डाइनेमो प्रभाव के लिए आवश्यक है। बुध का चुंबकीय क्षेत्र ग्रह के आसपास की सौर वायु को मोड़ने के लिए पर्याप्त शक्तिशाली है जो एक मेग्नेटोस्फेयर की रचना करता है।
इस ग्रह का मेग्नेटोस्फेयर यद्यपि पृथ्वी के अंदर समा जाने जितना छोटा होता है पर सौरवायु प्लाज्मा को फांसने के लिए पर्याप्त मजबूत है। यह ग्रह की सतह के अंतरिक्ष अपक्षय के लिए योगदान देता है। अंतरिक्ष यान द्वारा किए निरीक्षणों ने ग्रह के रात्रि-पक्ष के मेग्नेटोस्फेयर में इस निम्न उर्जा प्लाज्मा का पता लगाया। उर्जावान कणों के प्रस्फुटन को ग्रह के चुंबकीय दूम में पाया गया जो ग्रह के मेग्नेटोस्फेयर की एक गतिशील गुणवत्ता को इंगित करता है।
6 अक्टूबर, 2008 को ग्रह के अपने दूसरे फ्लाईबाई के दौरान मेसेंजर यान ने पता लगाया कि बुध का चुंबकीय क्षेत्र अत्यंत रिसाव वाला हो सकता है। इस अंतरिक्ष यान ने चुंबकीय बवंडर का सामना किया – चुंबकीय क्षेत्र के ऐंठे हुए बंडल जो ग्रहीय चुंबकीय क्षेत्र को अंतरग्रहीय अंतरिक्ष से जोड़ता है और जो 800 किलोमीटर या ग्रह की त्रिज्या के एक तिहाई तक चौड़े थे।
चुंबकीय क्षेत्र सौरवायु द्वारा बुध के चुंबकीय क्षेत्र से संपर्क के लिए जब ढोया जाता ये बवंडर बनते। ग्रहीय चुंबकीय क्षेत्र के अंतरग्रहीय अंतरिक्ष से जुड़ने की प्रक्रिया जो ब्रह्माण्ड में एक सामान्य प्रक्रिया है चुंबकीय पुनर्मिलन यानि कहलाती है। यह पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में भी उत्पन्न होती है जहाँ पर ये चुंबकीय बवंडर के हद तक बन जाती है।
मेसेंजर उपग्रह की गणनाओं के अनुसार बुध ग्रह पर चुंबकीय पुनर्मिलन की प्रक्रिया की गति करीब 10 गुना ज्यादा होती है। बुध ग्रह की सूर्य से अधिक निकटता मेसेंजर द्वारा मापे गए उसके चुंबकीय पुनर्मिलन की गति में केवल तिहाई हिस्से का कारक थी।
परिक्रमा, घूर्णन एवं देशांतर :
बुध की कक्षा सभी ग्रहों में सबसे अधिक चपटी है। इसकी कक्षीय विकेंद्रता 0.21 है। सूर्य से इसकी दुरी 46,000,000 से लेकर 70,000,000 किलोमीटर तक विचरित है। एक पूर्ण परिक्रमा के लिए इसे 87.969 पृथ्वी दिवस लगते हैं। बुध की कक्षा एक वृत्ताकार कक्षा के ऊपर मढ़ी दिखाई देती है जबकि उनकी अर्द्ध प्रमुख धुरी बराबर है।
आधुनिक खगोल विज्ञान :
आज तक दो अंतरिक्ष यान मैरीनर 10 और मैसेंजर बुध ग्रह पर जा चुके है। मैरीनर 10 सन् 1974 और 1975 के बीच 3 बार इस ग्रह की यात्रा कर चुका है। बुध ग्रह की सतह के 45% हिस्से का नक्शा बनाया जा चुका है। मैसेंजर यान 2004 में नासा द्वारा प्रक्षेपित किया गया था। इसने 2011 में बुध ग्रह की परिक्रमा की थी।
इसके पहले जनवरी 2008 में इस यान ने मैरीनर 10 द्वारा न देखे गए क्षेत्र की उच्च गुणवत्ता वाली तस्वीरें भेजी थीं। बुध की कक्षा काफी अधिक विकेंद्रित है इसकी सूर्य से दूरी 46,000,000 किलोमीटर से 70,000,000 किलोमीटर तक रहती है। जब बुध सूर्य के समीप होता है तब उसकी गति काफी धीमी होती है।
19 वीं शताब्दि में खगोलशास्त्रीयों ने बुध की कक्षा का सावधानी से निरिक्षण किया था लेकिन न्युटन के नियमों के आधार पर वे बुध की कक्षा को समझ नहीं पा रहे थे। बुध की कक्षा न्युटन के नियमों का पालन नहीं करती है। निरीक्षित कक्षा और गणना की गई कक्षा में अंतर छोटा था लेकिन दशकों तक परेशान करने वाला था।
पहले यह सोचा गया कि बुध की कक्षा के अंदर एक ग्रह हो सकता है जो बुध की कक्षा को प्रभावित कर रहा है। बहुत सारे निरीक्षणों के बाद भी ऐसा कोई ग्रह नहीं पाया गया था। इस रहस्य का हल बहुत समय बाद आइंस्टीन के साधारण सापेक्षतावाद के सिद्धांत ने दिया था। बुध की कक्षा की सही गणना इस सिद्धांत के स्वीकरण की तरफ पहला कदम था।
सन् 1962 तक यही सोचा जाता था कि बुध का एक दिन और एक साल एक समान होता है जिससे वह अपना एक ही पक्ष सूर्य की ओर रखता है। यह उसी तरह था जिस तरह चंद्रमा का एक पक्ष पृथ्वी की ओर रहता है। लेकिन डाप्लर सिद्धांत ने इसे गलत साबित कर दिया। अब यह माना जाता है कि बुध के दो साल में तीन दिन होते हैं यानि बुध सूर्य की दो परिक्रमाओं में अपने अक्ष पर तीन बार घूमता है।
बुध सौरमंडल में अकेला पिंड है जिसका घूर्णन अनुपात 1:1 नहीं है। बुध की कक्षा में सूर्य से दूरी में परिवर्तन के तथा उसके घूर्णन के अनुपात का बुध की सतह पर कोई निरीक्षक विचित्र प्रभाव देखेगा। कुछ अक्षांशों पर निरीक्षक सूर्य को उदित होते हुए देखेगा और जैसे-जैसे सूर्य क्षितिज से ऊपर शीर्ष बिंदु तक आएगा उसका आकार बढ़ता जाएगा।
इस शीर्ष बिंदु पर आकर सूर्य रुक जाएगा और कुछ देर विपरीत दिशा में जाएगा और उसके बाद फिर रुकेगा और दिशा बदलकर आकार में घटते हुए क्षितिज में जाकर सूर्यास्त हो जाएगा। इस समय में तारे आकाश में सूर्य से तीन गुना तेजी से जाते दिखाई देंगे। निरीक्षक बुध की सतह पर विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग लेकिन सूर्य की विचित्र गति को देखेगा। बुध की सतह पर तापमान 90 डिग्री केल्विन से 700 डिग्री केल्विन तक जाता है। शुक्र पर तापमान इससे गर्म है लेकिन स्थायी है।
वातावरण :
बुध पर एक हल्का वातावरण है जो मुख्यतः सौर वायु से आए परमाणुओं से बना है। बुध बहुत गर्म है जिससे ये परमाणु उडकर अंतरिक्ष में चले जाते हैं। ये पृथ्वी और शुक्र के विपरीत हैं जिसका वातावरण स्थायी है, बुध का वातावरण नवीन होता रहता है।
भूपटल :
बुध की सतह पर गड्ढे बहुत गहरे हैं। ये गड्ढे कुछ सैंकड़ों किलोमीटर लंबे और तीन किलोमीटर तक गहरे है। ऐसा लगता है कि बुध की सतह करीब 0.1% संकुचित हुई है। बुध की सतह पर कैलोरीस घाटी है जो लगभग 1300 किलोमीटर व्यास की है। यह चंद्रमा की मारीया घाटी के जैसी है। शायद यह भी किसी धूमकेतु या क्षुद्रग्रह के टकराने से बनी है। इन गड्ढों के अतिरिक्त बुध ग्रह में कुछ सपाट पठार भी है जो शायद भूतकाल के ज्वालामुखीय गतिविधियों से बने हैं।
जल की उपस्थिति :
मैरिनर से प्राप्त आंकड़े बताते हैं कि बुध पर कुछ ज्वालामुखी गतिविधियाँ हैं लेकिन इसे प्रमाणित करने के लिए कुछ और आंकड़े चाहिएं। आश्चर्यजनक रूप से बुध के उत्तरी ध्रुवों के क्रेटरों में जलीय बर्फ के प्रमाण मिले हैं।
उपग्रह :
बुध का कोई उपग्रह नहीं है।
खगोलीय निरिक्षण :
बुध को सूर्यास्त के बाद या सूर्यास्त से ठीक पहले नंगी आँखों से देखा जा सकता है। सूर्य के बहुत समीप होने की वजह से इसे सीधे देखने बहुत मुश्किल होता है।
बुध ग्रह की रुपरेखा :
बुध ग्रह का औसतन व्यास 4880 किलोमीटर है। सूर्य से बुध की औसतन दूरी 5 करोड़ 76 लाख किलोमीटर है। बुध ग्रह सूर्य की परिक्रमा करने में 88 दिन का समय लेता है। इसका द्रव्यमान 1 लाख करोड़ 3285 करोड़ है।
बुध ग्रह की कुछ विशेषताएं :
बुध ग्रह मिथुन और कन्या दोनों राशियों का स्वामी होता है तथा कन्या राशि में उच्च भाव में स्थित रहता है और मीन राशि में नीच भाव में रहता है। इसकी सूर्य और शुक्र के साथ मित्रता तथा चन्द्रमा से शत्रुतापूर्ण और अन्य ग्रहों के प्रति तटस्थ रहता है। यह ग्रह बुद्धि, नेटवर्किंग, विश्लेषण, चेतना, चर्चा, गणित, व्यापार, शिक्षा और अनुसंधान का प्रतिनिधित्व करता है।
बुध तीन नक्षत्रों का स्वामी है अश्लेषा, ज्येष्ठ और रेवती। हरे रंग, धातु कांस्य या पीतल और रत्नों में पन्ना रत्न बुध की प्रिय वस्तुएं हैं। बुध का शुभ अंक 5, दिन – रविवार और दिशा उत्तर पश्चिमी है। बुध का मूल त्रिकोण कन्या, महादशा समय 17 साल और देव – भगवान विष्णु हैं।
बुध का बिज मंत्र – ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम: है। बुध मष्तिष्क, जीवा:, स्नायु तंत्र, त्वचा, वाक-शक्ति, गर्दन आदि का प्रतिनिधित्व करता है। यह स्मरण शक्ति के कम होने, सर दर्द, त्वचा के रोग, दौरे, चेचक, पित, कफ, वायु प्रकृति के रोग, गूंगापन जैसे विभिन्न रोगों का कारक है।
बुध ग्रह के अशुभ फल या लक्षण :
आवाज खराब होना, सूंघने की शक्ति क्षीण होना, बुआ और मौसी पर कष्ट, शिक्षा में व्यवधान, बहुत बोलना, कटु बोलना, जल्दबाजी में निर्णय लेना, दांतों की बीमारी, मानसिक तनाव, व्यापार और शेयर में नुकसान, गणित कमजोर होना, बुद्धिवाद का अहंकार आदि दी गई बाधाओं या अशुभ फलों को अपने जीवन में देख रहे हैं तो हो सकता है कि वो बुध के प्रभाव के कारण हो।
बुध ग्रह के शुभ फल या लक्षण :
बुध ग्रह के शुभ होने पर व्यक्ति के जीवन में कुछ प्रभाव देखे जा सकते हैं जैसे – सुंदर देह और व्यक्ति का ज्ञानी या चतुर होना, ऐसा व्यक्ति अच्छा प्रवक्ता भी होता है और उसकी बातों का असर भी होता है। उस व्यक्ति की सूंघने की क्षमता भी अधिक होती है और व्यापार में भी लाभ प्राप्त करता है। बहन, मौसी और बुआ की स्थिति भी संतोषजनक होती है। बुध ग्रह को ठीक करने के लिए लाल किताब में लिखे हुए फायदों को भी आजमा सकते हैं।
बुध ग्रह से जुड़े कुछ रोचक तथ्य :
बुध ग्रह के दो साल में तीन दिन होते हैं यानि बुध सूर्य की दो बार परिक्रमा करने में अपनी धुरी की तीन बार परिक्रमा करता है। सन् 1962 से पूर्व तक यह माना जाता था कि बुध के एक दिन का समय और एक साल का समय बराबर होता है। बुध ग्रह सूर्य की परिक्रमा अंडाकार पथ पर करता है।
इसकी सूर्य से निकटम दुरी लगभग 4 करोड़ 60 लाख किलोमीटर है जबकि अधिकतम दूरी लगभग 7 करोड़ किलोमीटर है। बुध ग्रह का पर्यावरण स्थिर नहीं है। इसके आसपास वायुमंडल की कोई विशेष परत भी नहीं है जो थोड़े बहुत परमाणु सौरवायु के कारण इसके दायरे में आ भी जाते हैं वह बुध के बहुत गर्म होने की वजह से जल्दी ही उडकर अंतरिक्ष में चले जाते हैं।
इसके कारण इसका पर्यावरण स्थिर नहीं रहता। बुध ग्रह की सतह उबड-खाबड़ है और सतह पर कई गड्ढे भी हैं। कुछ गड्ढे तो बहुत बड़े हैं सैंकड़ों किलोमीटर तक लंबे और तीन किलोमीटर तक गहरे। बुध ग्रह बाकी सभी ग्रहों से तेज गति से सूर्य की परिक्रमा करता है जो लगभग 1 लाख 80 हजार किलोमीटर प्रति घंटा।
पृथ्वी लगभग 1 लाख 70 हजार किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से गति करती है। अगर बात सैकेंड्स में करें तो बुध एक सेकेण्ड में 47.362 किलोमीटर की यात्रा कर लेता है और पृथ्वी 29.78 किलोमीटर। बुध पृथ्वी के बाद सबसे ज्यादा घनत्व वाला पिंड है। बुध का घनत्व 5.43 gm/cm3 है जबकि पृथ्वी का घनत्व 5.51 gm/cm3 है। बुध पृथ्वी से 26 गुना छोटा है।
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि पृथ्वी से इतना छोटा होने के बाद भी इतना अधिक घनत्व इस बात की तरफ संकेत करता है कि बुध का केंद्र पृथ्वी के केंद्र की तरह लोहे का बना हुआ है और इसका लौह केंद्र पृथ्वी के लौह केंद्र से बड़ा होगा। बुध ग्रह के दिन के तापमान और रात के तापमान में बहुत भारी अंतर पाया जाता है।
बुध ग्रह के दिन का तापमान 450०C तक पहुंच जाता है जबकि रात का तापमान 0०C से कहीं नीचे -176०C तक ही रह जाता है। बुध ग्रह आकार में शनि के उपग्रह टाइटन और गुरु के उपग्रह गेनीमीड से छोटा है। वैसे प्लूटो भी बुध ग्रह से छोटा है लेकिन अब वैज्ञानिक प्लूटो को ग्रह नहीं मानते उसे बौने ग्रह का दर्जा दे दिया गया है।
पृथ्वी पर से अगर बुध ग्रह को आँखों से देखना हो तो इसे सूर्योदय से ठीक पहले और सूर्यास्त के ठीक बाद देखा जा सकता है। प्राचीन रोम के लोग बुध ग्रह को देवताओं का संदेशवाहक कहते थे क्योंकि यह अंतरिक्ष में बहुत तेजी से गति करता है। बुध ग्रह को अंग्रेजी में Mercury नाम से बुलाया जाता है जो एक रोमन देवता के नाम पर रखा गया है।
लेकिन इसकी खोज किसने और कब की इसके बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं है। इतिहास में बुध ग्रह का सबसे पहला उल्लेख 5000 साल पहले सुमेरी सभ्यता के लोगों द्वारा किया हुआ मिलता है। दूरबीन के माध्यम से बुध ग्रह को देखने वाले इंसान महान वैज्ञानिक गैलिलियो गैलिली थे।
बुध ग्रह का कोई भी उपग्रह नहीं है क्योंकि इसका गुरुत्वाकर्षण बल बहुत कमजोर है। अगर पृथ्वी पर आपका वजन 100 किलो है तो बुध ग्रह पर यह 38 किलो होगा। बुध जब सूर्य के नजदीक होता है तो अगर आप इस पर खड़े होकर सूर्य को देखें तो सूर्य अपने आकार से 3 गुना ज्यादा आकार का दिखाई देता है।