भारतीय मोर (About Peacock In Hindi) :
मोर इस पृथ्वी पर सुंदर पक्षियों में से एक है। मोर बहुत ही सुंदर और आकर्षक पक्षी है। मोर को भारत के राष्ट्रीय पक्षी होने का गौरव हासिल है। मोर अपने रंग-बिरंगे पंख फैलाकर और शानदार नृत्य के लिए संसार-भर में प्रसिद्ध है। मोर के सिर पर कलगी होने की वजह से इसे पक्षियों का राजा भी कहा जाता है।
मोर का बजन ज्यादा होने की वजह से मोर ज्यादा लंबे समय तक उड़ नहीं सकता है। मोर एक प्रकार का पक्षी है जो अपनी लंबी और इंद्रधनुषी पूंछ के लिए प्रसिद्ध है। मोर को राष्ट्रीय पक्षी भारतीय जीवन , संस्कृति , सभ्यता , इसकी सुन्दरता और उपयोगिता के साथ लंबे सहयोग के कारण इस मान्यता को प्राप्त हुआ है।
मोर की आकृति (Peacock’s shape In Hindi) :
मोर दिखने में मुर्गे की तरह लगता है लेकिन यह मुर्गे से बड़ा होता है। भारतीय मोर की शारीरिक संरचना अन्य मोरों से अलग होती है। मोर गिद्ध से भी बड़ा होता है। मोर का वजन 6 किलोग्राम से लेकर 10 किलोग्राम तक होता है। मोर के सिर पर कलगी होती है और इसका सिर बहुत ही छोटा होता है। मोर के सिर पर छोटे-छोटे पंख होते हैं जो प्राय: हरे और भूरे रंग के होते हैं।
मोर की आँखें गहरे भूरे रंग की होती हैं। मोर के पंख हरे-नीले रंग के होते हैं। मोर के पंखों पर नीले रंग की चित्ती को आसानी से देखा जा सकता है। मोर के पैर लंबे और कुरूप होते हैं। मोर की गर्दन बहुत लंबी होती है और गर्दन का रंग सुंदर नीला मखमली होता है। मोर की लंबाई 1 मीटर के आस-पास होती है। मोर की अपेक्षा मोरनी भूरे रंग की होती है और आकार में छोटी होती है।
मोर के नाम (More Name of peacock In Hindi) :
मोर की गर्दन का रंग नीला होने की वजह से इसे नीलकंठ नाम से भी पुकारा जाता है। मोर को नील मोर के नाम से भी जाना जाता है। मोर साँपों को मारकर खाता है इसलिए मोर को संस्कृत में भुजंगभुक भी कहा जाता है। मोर को फारसी में ताउस कहते हैं। मोर का वैज्ञानिक नाम पावो क्रिस्टटस है।
मोर के प्रकार (Types of Peacocks In Hindi) :
संसार में मोर की तीन जातियां पाई जाती हैं जिनमें से भारतीय मोर सबसे आकर्षक और सुंदर होता है। मोर तीन प्रकार के होते हैं भारतीय मोर , हरी मोर , कांगो मोर।
मोर का निवास (Peacock’s Residence In Hindi) :
मोर भारत की सभी जगहों पर पाया जाता है। मोर मुख्य रूप से एक भारतीय पक्षी है लेकिन यह भारत के अतिरिक्त नेपाल , श्रीलंका , भूटान , बांग्लादेश , म्यांमार और पाकिस्तान के अनेक भागों में पाया जाता है। मोर अधिकतर खेतों और बगीचों में पाए जाते हैं। मोर भारत देश की विभिन्न जगहों पर पाए जाते हैं जैसे – उत्तर प्रदेश , हरियाणा , राजस्थान आदि। मोर भारत के कई स्थानों में हरियाली वाली जगहों पर पाया जाता है।
मोर जंगल में रहना अधिक पसंद करता है क्योंकि वहाँ पर उसे खाने और रहने में आसानी होती है। मोर अक्सर ऐसी जगह पर रहना पसंद करते हैं जहाँ पर पानी आसानी से उपलब्ध हो। मोर मुख्य तौर पर एशिया के दक्षिण और दक्षिणपूर्वी हिस्सों में पाया जाता है। मोर एक मुश्किल पक्षी होता है चरम जलवायु परिस्थितियों में इसकी अद्वितीय अनुकूलन क्षमता है इस वजह से यह राजस्थान के गर्म , शुष्क रेगिस्तान क्षेत्र में रह सकता है और स्थ ही यूरोप और अमेरिका के ठंडे मौसम के साथ अच्छी तरह से समायोजित कर सकता है।
आमतौर पर मोर स्थायी जल स्त्रोत के पास झाड़ियों या जंगलों में रहना पसंद करते हैं। रात के समय मोर लंबे पेड़ों की निचली शाखाओं पर आराम से सोता है। मोर जंगल में आधे सूखे घास के मैदानों से लेकर नम पेड़ों वाले जंगल की विशाल रेंज तक पाए जाते हैं। मोर मनुष्य निवास के खेतों , गांवों और शहरी क्षेत्रों के आस-पास पाए जाते हैं।
मोर का भोजन (Peacock’s Food In Hindi) :
मोर का मुख्य भोजन कीड़े-मकोड़े, फल सब्जियां , अनाज होता है। मोर शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार का होता है। मोर को खाने में सांप भी बहुत प्रिय लगते हैं। मोर टमाटर , घास , अमरुद , केला , अफीम की फसल के कोमल अंकुर , हरी और लाल मिर्च बहुत ही चाव से खाता है। मोर छिपकली और कई तरह के कीड़े-मकोड़े खा सकते हैं और अनाज के दाने भी खा सकते हैं। लोग मोर को पसंद करते हैं और मोर जंगल का भोंपू भी होता है।
मोर का जीवनकाल (Peacock’s Lifetime In Hindi) :
मोर का जीवनकाल लगभग 15 से 20 वर्ष तक होता है। मोर का जीवनकाल 22 से 25 साल तक भी माना जाता है और बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्होंने मोर को 40 साल तक भी जीते हुए देखा है।
मोर का स्वभाव (Peacock’s Nature In Hindi) :
मोर जंगल का बहुत ही सुंदर , चौकन्ना , शर्मीला और चतुर पक्षी है। मोर ज्यादा देर तक हवा में नहीं उड़ सकता है। वह उड़ने की जगह पर चलना पसंद करता है। मोर झुंड में रहना पसंद करता है और एक झुड में 5 से 8 मोर होते हैं। वर्षा के मौसम में मोर बादलों की काली घटा को देखकर पंख फैलाकर नाचने लगता है।
मोर को आराम करना बहुत पसंद होता है सर्दियों के दिनों में वह आधे दिन तक आराम करता रहता है और दोपहर के समय पेड़ों की ऊँची शाखाओं पर बैठकर अपने साथियों के पंख संवारता रहता है। मोर ज्यादा गर्मी सहन नहीं कर पाते हैं। ज्यादा गर्मी होने पर वे पेड़ों की ऊँची शाखाओं पर चढ़ जाते हैं।
जब नर मोर मादा मोर को आकर्षित करता है केवल तभी मोर अपने पंख फलकर सुंदर नृत्य करता है। मयूर नृत्य समूह में किया जाता है। नृत्य के समय मोर पंख फैलाकर बहुत ही धीमी गति से बहुत सुंदर नृत्य करता है। मोर के अण्डों में से 30 दिनों के आस-पास अंडे निकल आते हैं। बच्चे बहुत छोटे होते हैं और हल्के कत्थई रंग के होते हैं। मोर बहुत दूर तक की आवाज को सुनने की क्षमता रखता है।
मोर कभी भी जंगल में मनुष्य के समक्ष नहीं नाचता है क्योंकि मोर नाचते समय बेसुध हो जाता है और दुश्मन उसे आसानी से पकड़ लेते हैं। मोर को जब किसी के आने का आभाष होता है तो यह झाड़ियों में तेजी से भाग जाता है। मोर को धूल से स्नान करना बहुत प्रिय होता है। मोर अपने पंखों का प्रयोग अपने साथियों को आकर्षित करने के लिए करता है। जिस मोर के पंख ज्यादा आकर्षित और बड़े होते हैं वह अपने साथियों को बहुत ही जल्द आकर्षित कर लेता है।
भौतिक लक्षण (Physical Characteristics In Hindi) :
प्रजातियों के नरों को मोर कहा जाता है और दुनिया भर में मोर की सराहना की जाती है। मोर चोंच की नोक से लगभग 195 से 225 सैंटीमीटर की लंबाई तक ट्रेन की समाप्ति तक बढ़ सकते हैं। मोर का औसतन वजन 5 किलोग्राम तक कर सकते हैं। मोर के सिर , स्तन और गर्दन रंग में नील होते हैं। मोर के पास आँखों के चरों ओर सफेद रंग की पेंच हैं।
मोर के सिर के शीर्ष पर ईमानदार पंख का एक शिखर है जो दिखने में नील रंग और आधे चन्द्र के समान है। मोर की सबसे उल्लेखनीय विशेषता उसकी सुदर पूंछ है जिसे ट्रेन के रूप में भी जाना जाता है। यह ट्रेन पूरी तरह से केवल चार वर्ष के अंडे देने के बाद ही विकसित होती है।
मोर के 200 अजीब प्रदर्शन पंख पीछे से बढ़ते हैं और बहुत लंबा उपरी पूंछ कवर्स का हिस्सा होता है। ट्रेन पंखों को संशोधित किया जाता है ताकि उनके पास पंख न जाएं और इसलिए वे ढीले से जुड़े होते हैं। रंग विस्तृत माइक्रोस्ट्रक्चरस का एक परिणाम है जो ऑप्टिकल घटनाओं का एक प्रकार का उत्पादन करता है।
हर रेलगाड़ी पंख एक आँख वाले अथार्त ओसेलस वाले अंडाकार क्लस्टर से समाप्त होती है जो बहुत ही आकर्षक होती है। इसकी पीठ के पंख भूरे रंग के होते हैं लेकिन छोटे और सुस्त होते हैं। भारतीय मोर की जांघों का रंग चमकता है और वे हिंद से ऊपर के पैर पर प्रेरणा देते हैं। मोरनी में चमकीले रंग बहुत कम होते हैं। मोरनी मुख्यतः भूरे रंग की होती है। मोरनी के पास कभी-कभी शिखा होती है लेकिन वह रंग में भूरे रंग की होती है।
मोरनी पूरी तरह से विस्तृत ट्रेन की कमी रखती हैं लेकिन उनके पास गहरे भूरे इंख की पूंछ के पंख होते हैं। वे सफेद चेहरे और पेट के साथ-साथ भूरे रंग की पीठ , हिन्द गर्दन और एक धातु हरी ऊपरी स्तन है। मूंछें 0.95 मीटर की लंबाई तक बढती हैं और कहीं 2.75 से 4 किलोग्राम के बीच वजन करती हैं।
भारतीय मोर प्रजातियों में पाए जाने वाले कुछ रंग भिन्नताएं हैं। आबादी के भीतर आनुवंशिक भिन्नता से उत्पन्न उत्परिवर्तन से काले कंधे भिन्नता का परिणाम होता है। मेलेनिन का उत्पादन करने वाले जिन में उत्परिवर्तन , सफेद मोहरों के परिणामस्वरूप क्रीम और भूरा चिन्हों के साथ सफेद पंख होते हैं।
मोर से जुड़े तथ्य (Facts related to peacocks In Hindi) :
मोरनी प्रत्येक साल में दो बार अंडे देती है जिनकी संख्या छ: से आठ होती है। मोर नृत्य के माध्यम से मोरनी को प्रजनन के लिए तैयार करता है। मोर को भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय की सवारी माना जाता है। मोर की आँखों की देखने की क्षमता बहुत अधिक होती है। मोर को भारतीय वन्य-जीवन अधिनियम 1972 के तहत संरक्षण दिया गया है और मोर की लगातार घटती हुयी संख्या को रोकने के लिए भारतीय सरकार ने सन् 1982 में मोर के शिकार पर प्रतिबन्ध लगाया था।
मोर आज के समय में लूप होने की कगार पर हैं लोग जहाँ पर इसकी सुंदरता को निहारते हैं वहीं दूसरी ओर मोर का शिकार भी करते हैं। देवी-देवताओं से संबंध होने की वजह से इसे हिन्दू समाज में दिव्य पक्षी माना जाता है। कोई भी हिन्दू मोर का वध नहीं करता है। पूरे शरीर के मुकाबले मोर की टागें बदसूरत होती हैं इसके पीछे एक किस्सा है।
एक बार मैना को किसी शादी में जाना था कि तभी मैना को अपने बदसूरत पैरों का ध्यान आया। मैना मोर के पास गई और कहने लगी कि मामा थोड़ी देर के लिए अपनी टाँगें बदल सकते हैं। मोर इस बात के लिए तैयार हो गया। बाद में मैना ने मोर की टाँगें वापस नहीं की थीं जिसका दुःख मोर को आज भी होता है। मोर किसी भी प्रकार से मनुष्य को हानि नहीं पहुंचाता है।
कहा जाता है कि मोर से प्रभावित होकर शाहजहाँ ने मयूरासन बनवाया था। मोर का नाम फारसी में ताउस होने की वजह से शाहजहाँ ने अपने सिंहासन का नाम तख्त ए ताऊस रखा था। वह सिंहासन बेशकीमती जवाहरातों से सात साल में बनकर तैयार हुआ था। कहा जाता है कि इस मयूरासन को नादिरशाह लूटकर ईरान ले गया था।
मोर के पंख को भगवान कृष्ण अपने सिर पर लगाते थे जिसकी वजह से मोर भारत में सभी जगहों में प्रिय है। मोर हर साल अपने पंख बदलता है। मोर के पुराने पंख झड़ जाते हैं और उसकी जगह पर नए पंख आ जाते हैं। बहुत से प्राचीन सिक्कों और आकृतियों में मोर के पंख बने हुए मिले हैं। मोर का रंग जन्मजात ऐसा नहीं होता है। बचपन में इसका रंग मोरनी की तरह होता है। कुछ महीनों के बाद इसके रंग में बदलाव आता है और इसके पंखों का विकास होता है।
मोर के लाभ (Benefits of Peacocks In Hindi) :
मोर किसान का एक बहुत ही अच्छा दोस्त साबित होता है। मोर किसान की फसल को बर्बाद करने वाले कीड़ों को खाता है। मोर के पंखों का प्रयोग सजावट के काम में किया जाता है। मोर के पंखों को गुलदानों में सजाया जाता है। पंखों को वृत्ताकार बनाकर उनके पंख बनाए जाते हैं जो गर्मियों में हवा करने में बहुत ही काम आते हैं। मोर के पंखों का प्रयोग देवी-देवताओं पर चढ़ाने के लिए भी किया जाता है।
मोर के पंखों का प्रयोग जादू-टोने में भी किया जाता है। मोर के पंख का प्रयोग जले हुए भाग पर दवाई लगाने के लिए भी किया जाता है। बुरी नजर से बच्चों को बचाने के लिए मोर पंखों से बच्चों की हवा की जाती है और उनके गले में बांधा जाता है। मोर अपन चोंच से सांप को मारकर दुसरे प्राणियों की रक्षा करता है और अपनी भूख भी मिटाता है।
ऐसा माना जाता है कि मोर के पंखों में कुछ विशेष प्रकार के पदार्थ होते हैं जो जड़ी-बूटी में काम आते हैं। मोर के पंखों को हिन्दू धर्म में शुभ माना जाता है। मोर के ख़ूबसूरत पंखों का प्रयोग लकड़ी के साथ सजावट के लिए और कई प्रकार की फैंसी वस्तुओं के लिए कुटीर उद्योगों में किया जाता है।
मोर राष्ट्रीय पक्षी (Peacock national bird In Hindi) :
मोर भारत का राष्ट्रीय पक्षी है। मोर को भारत का राष्ट्रीय पक्षी 26 जनवरी , 1963 में भारत सरकार द्वारा घोषित किया गया था। छठी शताब्दी में कवि कालिदास ने भी मोर को राष्ट्रीय पक्षी का दर्जा दिया था। मोर दुसरे पक्षियों की तुलना में बड़ा और रंगबिरंगा पक्षी होता है। मोर के सिर पर जन्म से ही मुकुट के रूप में कलगी होती है। मोर के पंख लंबे सतरंगी और चमकदार होते हैं।
मोर की गर्दन लंबी और चमकदार नीले रंग की होती है। मोर के पंजे नुकीले और तीखे होते है जिनका प्रयोग मोर सांप और चूहों को खाने के लिए प्रयोग करता है। मोर भारत और श्रीलंका का राष्ट्रीय पक्षी है। मोर को राष्ट्रीय पक्षी इसलिए बनाया गया क्योंकि पहले यह भारत में ही पाया जाता था।
राष्ट्रीय पक्षी के लिए पहले सारस , हंस , ब्राम्हिणी काइट के नामों पर भी विचार किया गया था लेकिन मोर को ही चुना गया। इसके पीछे बहुत से कारण हैं। नेशनल बर्ड सिलेक्शन के लिए 1960 में तमिलनाडु राज्य के उधगमंडलम में एक मीटिंग हुई थी। मीटिंग की गाइडलाइन्स के अनुसार देश के प्रत्येक हिस्से में पाए जाने वाले पक्षी को नेशनल बर्ड के लिए चुनना जरूरी था। आम आदमी उस पक्षी को भी जानता हो और वो भारतीय संस्कृति का हिस्सा हो , इन बातों पर मोर सबसे अधिक खरा उतरा था।
मोर संरक्षण कानून (Peacock Protection law In Hindi)
हमारे देश में मोर का शिकार करने वाले अपराधी को सरकार द्वारा दंड दिया जाता है। भारत में मोर की सुरक्षा के लिए सन् 1972 में मोर संरक्षण कानून बनाया गया। यह संरक्षण कानून मोर की संख्या बढ़ाने और उनकी रक्षा करने के लिए बड़ा ही अच्छा कानून है।
मोर की संख्या में बढ़ोतरी करने के लिए सरकार कई तरह के मोर संरक्षण के अभियान चलाती रहती है। इस कानून के बनने के बाद से मोर की संख्या में बहुत सुधार हुआ है। यह सरकार ने यह कानून बनाया गया तो मोर की संख्या बढने लगी इसके अतिरिक्त सरकार ने मोर के बचाव के लिए तथा उनकी सुरक्षा व्यवस्था के लिए कई प्रकार के संगठन तथा कानून बनाए हुए हैं।