जल प्रदूषण पर निबंध-Essay On Water Pollution In Hindi
जल प्रदूषण पर निबंध 1 (100 शब्द)
धरती पर जीवन के लिये जल सबसे ज़रुरी वस्तु है। यहाँ किसी भी प्रकार के जीवन और उसके अस्तित्व को ये संभव बनाता है। जीव मंडल में पारिस्थितिकी संतुलन को ये बनाये रखता है।
पीने, नहाने, ऊर्जा उत्पादन, फसलों की सिंचाई, सीवेज़ के निपटान, उत्पादन प्रक्रिया आदि बहुत उद्देश्यों को पूरा करने के लिये स्वच्छ जल बहुत ज़रुरी है। बढ़ती जनसंख्या के कारण तेज औद्योगिकीकरण और अनियोजित शहरीकरण बढ़ रहा है जो बड़े और छोटे पानी के स्रोतों में ढेर सारा कचरा छोड़ रहें हैं जो अंतत: पानी की गुणवत्ता को गिरा रहा है।
जल प्रदूषण पर निबंध 2 (200 शब्द)
जल पर्यावरण का एक अभिन्न अंग होता है। पानी हमारे जीवन का एक बहुत ही जरूरी श्रोत होता है इसी वजह से कहा जाता है कि जल ही जीवन है। जल के बिना पृथ्वी पर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। जल मनुष्य की मुलभुत आवश्यकताओं में से ही एक होता है।
पिछले दो सौ सालों की वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति ने मनुष्य का जीवन बहुत सुविधाजनक बना दिया है। औद्योगिक क्रांति की वजह से करोड़ों लोगों का जीवन खुशहाल बना गया है। नई-नई दवाईयों की खोज की वजह से मनुष्य की उम्र लंबी होती जा रही है और मृत्यु दर कम होती जा रही है।
इस प्रकार हमे पता चलता है कि इस मशीनी युग ने हमें बहुत कुछ दिया है। लेकिन अगर हम अपने आस-पास के वातावरण को देखते हैं तो हमें पता चलता है कि यह प्रगति ही हमारे जीवन में जहर घोल रही है। इस जहर का एक रूप चारों तरफ फैला हुआ प्रदुषण भी है।
जहाँ पर पानी दूषित हो जाता है वहाँ का जीवन भी संकट में पड़ जाता है। गंगा नदी को बहुत पवित्र माना जाता था और उसमे जो भी स्नान कर लेता था उसे पवित्र माना जाता था लेकिन वही गंगा नदी आज कारखानों से निकलने वाले कचरे की वजह से दूषित हो गई है। लेकिन भारत सरकार ने गंगा की स्वच्छता के लिए कानूनों को लागू किया है।
जल प्रदूषण पर निबंध 3 (300 शब्द)
भूमिका : जल में किसी बाहरी पदार्थ की उपस्थिति जो जल के प्राकृतिक गुणों को इस प्रकार बदल दे की जल स्वास्थ के लिए हानिकारक हो जाए या उसकी उपयोगिता कम हो जाए, तो उसे जल प्रदूषण कहते है|
जल प्रदूषण की परेशानी सबसे अधिक विकसित देशों में होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पिने के पानी का PH 7 से 8.5 के मध्य होना चाहिए। जीवन पानी पर निर्भर करता है। मनुष्य एवं जानवरो के लिए पीने के पानी के स्त्रोत नदियाँ, झीले, नलकूप आदि हैं।
जल प्रदूषण का अर्थ : जल का तेजी से अशुद्ध होना ही जल प्रदूषण कहलाता है। जल प्रदूषण ज्यादातर उद्योग धंधे एवं रासायनिक पदार्थों के द्वारा निकले गंदे पदार्थ या कचरों के द्वारा होता है। मेरी हम बात करें जल प्रदूषण के बारे में, तो जल प्रदूषण एक ऐसी स्थिति है, जिसमें पीने योग्य जल भी गंदे होते जा रहे हैं और पृथ्वी पर जल की मात्रा कम होती जा रही है।
पृथ्वी पर जल की मात्रा कम होने का यह अर्थ नहीं है, कि पृथ्वी से जल ही समाप्त हो जाएगा, बल्कि इसका अर्थ यह है, कि पृथ्वी पर पीने योग्य जल नहीं रह जाएगा।
उपसंहार : पानी के लाभ अद्वितीय हैं. धीरे-धीरे दुनिया पर साफ पानी का परिमाण घटता जा रहा है. इससे मानव सभ्यता के भविष्य के लिए संकट पैदा हो गया है। इसलिए जल संरक्षण और प्रदूषण की रोकथाम के क्षेत्र में सामूहिक कार्रवाई अपरिहार्य है. जल प्रदूषण के खतरों से सभी को अवगत होना चाहिए।
जल प्रदूषण पर निबंध 4 (400 शब्द)
भूमिका : जल पर्यावरण का एक अभिन्न अंग होता है। पानी हमारे जीवन का एक बहुत ही जरूरी श्रोत होता है इसी वजह से कहा जाता है कि जल ही जीवन है। जल के बिना पृथ्वी पर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। जल मनुष्य की मुलभुत आवश्यकताओं में से ही एक होता है।
पिछले दो सौ सालों की वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति ने मनुष्य का जीवन बहुत सुविधाजनक बना दिया है। औद्योगिक क्रांति की वजह से करोड़ों लोगों का जीवन खुशहाल बना गया है। नई-नई दवाईयों की खोज की वजह से मनुष्य की उम्र लंबी होती जा रही है और मृत्यु दर कम होती जा रही है।
जल प्रदूषण का समाधान : हमारी सरकार को जल प्रदूषण को रोकने के लिए तुरंत कदम उठाने चाहिएँ। कूड़े-कचरे और प्लास्टिक को समुद्र में न फेंककर उनको रिसाइकल करके उन्हें ऊर्जा पैदा करने के प्रयोग में लाना होगा। जिन कारखानों से ज्यादा प्रदूषण होता है उन्हें बंद करने के आदेशों को जारी करना होगा। समय-समय पर लाल कुओं में लाल दवाईयों का छिडकाव करना होगा। जो पानी गंदा हो गया है उसे फिल्टर की सहायता से पीने योग्य बनाना होगा। जहाँ पर पानी हो वहाँ पर कूड़े-कचरे को फैलने से रोकना होगा।
जल प्रदूषण की समस्या या प्रभाव : आधुनिक युग में जल प्रदूषण एक बहुत ही गंभीर समस्या बन चुका है। पहले जो लोग नदियों और तालाबों के पानी को पीकर जीवित रहते थे आज के समय में उस पानी को पीकर लोग कई बिमारियों का शिकार बन जाते हैं। यहाँ तक कि करोड़ों लोग पीने के पानी की समस्या को भी झेलते हैं।
दूषित जल का सेवन करने से मनुष्य को हैजा, पेचिस, क्षय और उदर से संबंधित समस्याओं का समाना करना पड़ता है। मनुष्य के अंदर केवल दूषित जल ही नहीं बल्कि फीताकृमी और गोलाकृमी भी पहुंच जाते हैं जिसकी वजह से मनुष्य रोग ग्रस्त हो जाता है। जब समुद्रों में परमाणु परिक्षण किये जाते हैं तो उस समय समुद्र में कुछ नाभिकीय कण मिले रह जाते हैं जिसकी वजह से समुद्र के जीव और वनस्पतियों के साथ-साथ समुद्र के पर्यावरण का संतुलन भी बिगड़ जाता है।
उपसंहार : जल प्रदूषण ने आज के समय में आपतकाल का रूप ले लिया है। ऐसी स्थिति में हमें तुरंत ही बहुत बड़े कदम उठाने होंगे। अगर हम भविष्य में पानी के स्त्रोतों को सुरक्षित रखना चाहते हैं और अपने देश के लोगों को पीने के लिए साफ पानी देना चाहते हैं तो हमें इसी समय से इस समस्या को दूर करने के लिए कदम उठाने होंगे। अगर हम इस मामले में देरी करेंगे तो यह और अधिक घातक सिद्ध होगा।
जल प्रदूषण पर निबंध 5 (500 शब्द)
भूमिका : पृथ्वी पर मनुष्य के लिए सबसे आवश्यक चीजों में से एक है, जल। वर्तमान समय में धरती पर जल प्रदूषण लगातार तेजी से वृद्धि कर रहा है। धरती पर लगातार जल प्रदूषण बढ़ने के कारण अनेकों प्रकार की बीमारियां जन्म लेती जा रही हैं।
जल प्रदूषण के कारण सभी जीव जंतु बहुत ही प्रभावित हो रहे हैं, जिसके कारण अनेकों ऐसी जातियां हैं, जोकि विलुप्ती के कगार पर भी पहुंच चुकी हैं। मनुष्य की बढ़ती गतिविधियों के कारण उत्पन्न हो रहे जहरीले प्रदूषक पदार्थों को समुद्रों में ही विसर्जित किया जाता है, जिसके कारण धरती पर पीने योग्य जल केवल 0.01 प्रतिशत ही शेष है।
जल प्रदूषण की रोकथाम : सरकार को कारखानों और उद्योगों पर कचरे को नदियों में डालने के लिए पाबंदी लगानी चाहिए। जो कचरा शहर से निकलता है उसे भी ठीक से परिमार्जित करे बिना पानी में नहीं डालने देना चाहिए। कृषि में रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग की जगह पर जैविक कृषि को अधिक बढ़ावा देना चाहिए।
लोगों के द्वारा नदी या तालाबों पर कपड़ों को धोने पर पाबंदी लगानी चाहिए। धोबी अपने कपड़ों और बर्तनों को तालाबों में धोते हैं उन्हें बढ़ रहे जल प्रदूषण के प्रति सचेत करना चाहिए। ताकि तालाबों के पानी को सुरक्षित किया जा सके और उसे पीने योग्य बनाया जा सके और उसमें रहने वाले जीव-जंतु भी सुरक्षित रह सकें।
जल प्रदूषण की समस्या या प्रभाव : आधुनिक युग में जल प्रदूषण एक बहुत ही गंभीर समस्या बन चुका है। पहले जो लोग नदियों और तालाबों के पानी को पीकर जीवित रहते थे आज के समय में उस पानी को पीकर लोग कई बिमारियों का शिकार बन जाते हैं। यहाँ तक कि करोड़ों लोग पीने के पानी की समस्या को भी झेलते हैं।
दूषित जल का सेवन करने से मनुष्य को हैजा, पेचिस, क्षय और उदर से संबंधित समस्याओं का समाना करना पड़ता है। मनुष्य के अंदर केवल दूषित जल ही नहीं बल्कि फीताकृमी और गोलाकृमी भी पहुंच जाते हैं जिसकी वजह से मनुष्य रोग ग्रस्त हो जाता है। जब समुद्रों में परमाणु परिक्षण किये जाते हैं तो उस समय समुद्र में कुछ नाभिकीय कण मिले रह जाते हैं जिसकी वजह से समुद्र के जीव और वनस्पतियों के साथ-साथ समुद्र के पर्यावरण का संतुलन भी बिगड़ जाता है।
उपसंहार : जल प्रदूषण ने आज के समय में आपतकाल का रूप ले लिया है। ऐसी स्थिति में हमें तुरंत ही बहुत बड़े कदम उठाने होंगे। अगर हम भविष्य में पानी के स्त्रोतों को सुरक्षित रखना चाहते हैं और अपने देश के लोगों को पीने के लिए साफ पानी देना चाहते हैं तो हमें इसी समय से इस समस्या को दूर करने के लिए कदम उठाने होंगे। अगर हम इस मामले में देरी करेंगे तो यह और अधिक घातक सिद्ध होगा।
जल प्रदूषण पर निबंध 6 (700 शब्द)
भूमिका : जल को छोड़कर, कोई जीवन नहीं है, चाहे इंसान हो, जानवर हो या पौधे हर जीवित चीज के लिए जीवन का पहला तत्व है जल। अतीत से, भारतीय जल को जीवन कहा गया है। सभ्यता के विकास के लिए पानी सबसे प्राकृतिक संसाधन है। पानी शरीर के लिए आवश्यक पोषक तत्वों में से एक है।
यह शरीर की वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. सभ्यता की शुरुआत से, मनुष्य प्राकृतिक शुद्ध पानी का उपयोग भोजन और पेय के रूप में करता था; लेकिन सभ्यता और तेजी से औद्योगीकरण के विकास के साथ, पृथ्वी का जल प्रदूषित होता जा रहा है।
पानी के भौतिक और रासायनिक प्रभाव विभिन्न कार्बनिक और अकार्बनिक पदार्थों के संदूषण से नष्ट हो जाते हैं. नतीजतन, यह अनुपयोगी हो जाता है. इस विधि को जल प्रदूषण कहा जाता है।
जल प्रदूषित से स्रोत : जल के प्रदूषित होने का सबसे मुख्य स्रोत उद्योग धंधे एवं रासायनिक संश्लेषण है। उद्योग धंधे के कारण जो कुछ भी कचरे के रूप में निकलता है, उसे जल में ही बहा दिया जाता है, जिसके कारण जल प्रदूषण काफी तेजी से फैल रहा है।
ऐसे उद्योगों में होने वाले रासायनिक संश्लेषण के कारण काफी ज्यादा मात्रा में रसायन युक्त कचरी निकलते हैं, जो कि सीधे जल में बहा दिए जाते हैं, जिसके कारण जल प्रदूषण फैलता है। इन सभी के अलावा कृषि संबंधित मैदान, पशुधन चारा, सड़कों पर जमा हुआ जल, समुद्री तूफान इत्यादि भी जल प्रदूषण के कारण हैं।
समस्याएं : प्रदूषित जल मानव समाज के लिए एक गंभीर खतरा बन गया है. इसके दुष्प्रभाव अकल्पनीय हैं. पानी की प्राकृतिक स्थिति को बदलता है। जब पानी प्रदूषित होता है, तो जलीय जीव मर जाते हैं। दूषित पानी विभिन्न संक्रामक रोगों को फैलाता है। दूषित पानी के इस्तेमाल से मानव और अन्य जानवर संक्रमित हो जाते हैं।
प्रदूषित जल कृषि के लिए अनुपयुक्त है। अम्ल और क्षारीय युक्त प्रदूषित पानी मिट्टी के संपर्क में आने पर इसकी उत्पादकता को कम कर देता है। समुद्री प्रदूषण के वजह से समुद्री जीव मरते हैं।
जल प्रदूषण से होने वाली बीमारियां : जल प्रदूषण के कारण पूरे विश्व में कई प्रकार की बीमारियाँ और लोगों की मौत हो रही है। इसके कारण लगभग प्रतिदिन 14,000 लोगों की मौत हो रही है। इससे मनुष्य, पशु तथा पक्षियों के स्वास्थ्य को खतरा उत्पन्न होता है। इससे टाईफाइड, पीलिया, हैजा, गैस्ट्रिक आदि बीमारियां पैदा होती हैं।
दूषित पानी के सेवन से चर्म रोग, पेट रोग, पीलिया, हैजा, दस्त, उल्टीयां, टाइफाईड बुखार आदि रोग हो सकते हैं। गर्मी व बरसात के दिनों में इनके होने का खतरा ज्यादा होता है।
जल प्रदूषण रोकने के उपाय : जल प्रदूषण पर नियंत्रण हेतु नालों की नियमित रूप से साफ सफाई करना चाहिए। ग्रामीण इलाकों में जल निकास हेतु पक्की नालियों की व्यवस्था नहीं होती है, इस कारण इसका जल कहीं भी अस्त-व्यस्त तरीके से चले जाता है और किसी नदी नहर आदि जैसे स्रोत तक पहुँच जाता है।
इस कारण नालियों को ठीक से बनाना और उसे जल के किसी भी स्रोत से दूर रखने आदि का कार्य भी करना चाहिए। मल, घरेलू त्याज्य पदार्थों एवं कूडे़ कचरे का युक्त वैज्ञानिक परिष्कृत साधनों द्वारा निकास करना चाहिए।
उपसंहार : जल प्रत्येक जीव के लिए अमूल्य सम्पदा है, और जल से ही जीवन है, इसलिए धरती पर जीवन को बचाने के लिए प्रत्येक मनुष्य को जल प्रदूषित होने से बचाना चाहिए। और दूसरों को जल प्रदूषित करने से रोकना चाहिए।
जल प्रदूषण पर निबंध 7 (1000+ शब्द)
भूमिका : जल पर्यावरण का एक अभिन्न अंग होता है। पानी हमारे जीवन का एक बहुत ही जरूरी श्रोत होता है इसी वजह से कहा जाता है कि जल ही जीवन है। जल के बिना पृथ्वी पर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। जल मनुष्य की मुलभुत आवश्यकताओं में से ही एक होता है।
पिछले दो सौ सालों की वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति ने मनुष्य का जीवन बहुत सुविधाजनक बना दिया है। औद्योगिक क्रांति की वजह से करोड़ों लोगों का जीवन खुशहाल बना गया है। नई-नई दवाईयों की खोज की वजह से मनुष्य की उम्र लंबी होती जा रही है और मृत्यु दर कम होती जा रही है।
इस प्रकार हमे पता चलता है कि इस मशीनी युग ने हमें बहुत कुछ दिया है। लेकिन अगर हम अपने आस-पास के वातावरण को देखते हैं तो हमें पता चलता है कि यह प्रगति ही हमारे जीवन में जहर घोल रही है। इस जहर का एक रूप चारों तरफ फैला हुआ प्रदुषण भी है।
जहाँ पर पानी दूषित हो जाता है वहाँ का जीवन भी संकट में पड़ जाता है। गंगा नदी को बहुत पवित्र माना जाता था और उसमे जो भी स्नान कर लेता था उसे पवित्र माना जाता था लेकिन वही गंगा नदी आज कारखानों से निकलने वाले कचरे की वजह से दूषित हो गई है। लेकिन भारत सरकार ने गंगा की स्वच्छता के लिए कानूनों को लागू किया है।
प्रदूषण के प्रकार : प्रदूषण कई तरह का होता है – जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, भूमि प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण आदि। प्रदूषण सभी प्रकार का घातक होता है लेकिन जल प्रदूषण ने हमारे देश के लोगों को बहुत अधिक प्रभावित किया है। जल प्रदूषण से तात्पर्य होता है नदी, झीलों, तालाबों, भूगर्भ और समुद्र के पानी में ऐसे पदार्थ मिल जाते हैं जो पानी को जीव-जंतुओं और प्राणियों के प्रयोग करने के लिए योग्य नहीं रहता है वह अयोग्य हो जाता है। इसी वजह से हर एक जीवन जो पानी पर आधारित होता है वह बहुत अधिक प्रभावित होता है।
जल प्रदूषण का कारण : जल प्रदूषण का एक सबसे प्रमुख कारण हमारे उद्योग धंधे होते हैं। हमारे उद्योग धंधों, कल-कारखानों के जो रासायनिक कचरा निकलता है उसे सीधे नदियों और तालाबों में छोड़ दिया जाता है। जो कचरा नदियों और तालाबों में छोड़ा जाता है वह बहुत अधिक जहरीला होता है और यह नदियों और तालाबों के पानी को भी जहरीला बना देता है।
नदियों और तालाबों के पानी के दूषित होने की वजह से उसमें रहने वाले जीव-जंतु मर जाते हैं और अगर उस पानी को कोई पशु या मनुष्य पीता है तो पशु मर जाता है और मनुष्य बहुत सी बिमारियों का शिकार बन जाता है। उद्योग धंधों के अलावा बहुत से और कारण हैं जिनकी वजह से जल प्रदूषण होता है।
हमारे शहरों और गांवों से जो कचरा बाहर निकलता है उसे नदियों और तालाबों में फेंक दिया जाता है। आज के समय में लोग खेती में भी रासायनिक उर्वरक और दवाईयों का प्रयोग करते हैं जिसकी वजह से पानी के स्त्रोत बहुत प्रभावित होते हैं। जब नदियों का दूषित पानी समुद्र में जाकर मिलता है तो समुद्र का पानी भी दूषित हो जाता है।
प्लास्टिक के ढेर के अधिक बढने पर उसे समुद्र में फेंक दिया जाता है। कभी-कभी जब दुर्घटना हो जाती है तो जहाजों का ईंधन समुद्र में फैल जाता है जिससे जल प्रदूषण अधिक होता है। यह तेल समुद्र में चारों तरफ फैल जाता है और पानी पर एक परत बना देता है। इसकी वजह से समुद्र में रहने वाले अनेकों जीव-जंतु मर जाते हैं।
जब लोग तालाबों में स्नान करते हैं और उसी में शरीर की गंदगी और मल-मूत्र कर देते हैं तो तालाब का जल दूषित हो जाता है। जब नदियों और नालों का गंदा पानी जल में मिल जाता है तो जल दूषित हो जाता है। जब जल को एक जगह पर इकट्ठा किया जाता है और उसमें कूड़ा-कचरा जाने से भी जल दूषित हो जाता है।
लोग कपड़ों और बर्तनों को घरों पर धोने की जगह पर नदी या तालाबों के आस-पास जाकर धोते हैं जिसकी वजह से साबुन, बर्तन की गंदगी, सर्प का पानी सभी नदी और तालाब के पानी में मिल जाते हैं जिस वजह से पानी दूषित हो जाता है और यही विनाश का कारण बनता है।
कुछ लोग बचे हुए या खराब भोजन को कचरे की थैली में बांधकर उसे पानी में बहा देते हैं जिससे वह नदी या तालाब के पानी में मिलकर उसको दूषित कर देता है। जो लोग नदी या जलाशयों के पास बसे होते हैं वो लोग किसी व्यक्ति की मृत्यु पर उसे जलाने की अपेक्षा उसे पानी में बहा देते हैं और लाश के सड़ने से पानी में विषैले कीटाणुओं की संख्या और अधिक बढ़ जाती है और प्रदूषण को बहुत अधिक मात्रा में बढ़ा दिया जाता है।
हवा में गैस और धूल मौजूद होते हैं और ये सब वर्षा के पानी के साथ मिल जाते हैं और जहाँ-जहाँ पर यह पानी जमा होता है वहाँ पर जल प्रदूषण बढ़ता है। जब जल में परमाणु के परिक्षण किये जाते हैं तो इसमें कुछ नाभिकीय कण मिल जाते हैं जो जल को दूषित कर देते हैं।
जल प्रदूषण की समस्या या प्रभाव : आधुनिक युग में जल प्रदूषण एक बहुत ही गंभीर समस्या बन चुका है। पहले जो लोग नदियों और तालाबों के पानी को पीकर जीवित रहते थे आज के समय में उस पानी को पीकर लोग कई बिमारियों का शिकार बन जाते हैं। यहाँ तक कि करोड़ों लोग पीने के पानी की समस्या को भी झेलते हैं।
दूषित जल का सेवन करने से मनुष्य को हैजा, पेचिस, क्षय और उदर से संबंधित समस्याओं का समाना करना पड़ता है। मनुष्य के अंदर केवल दूषित जल ही नहीं बल्कि फीताकृमी और गोलाकृमी भी पहुंच जाते हैं जिसकी वजह से मनुष्य रोग ग्रस्त हो जाता है। जब समुद्रों में परमाणु परिक्षण किये जाते हैं तो उस समय समुद्र में कुछ नाभिकीय कण मिले रह जाते हैं जिसकी वजह से समुद्र के जीव और वनस्पतियों के साथ-साथ समुद्र के पर्यावरण का संतुलन भी बिगड़ जाता है।
जब जलों में कारखानों से अवशिष्ट पदार्थ, गर्म जल मिलता है तो जल प्रदूषण के साथ-साथ वातावरण भी गर्म होता है जिसकी वजह से वहाँ के जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की संख्या कम होने लगती है और जलीय पर्यावरण भी असंतुलित हो जाता है। अगर इसी तरह से जल प्रदूषण होगा तो स्वच्छ जल की आवश्यकता पूर्ति नहीं हो पायेगी।
जल प्रदूषण का समाधान : हमारी सरकार को जल प्रदूषण को रोकने के लिए तुरंत कदम उठाने चाहिएँ। कूड़े-कचरे और प्लास्टिक को समुद्र में न फेंककर उनको रिसाइकल करके उन्हें ऊर्जा पैदा करने के प्रयोग में लाना होगा। जिन कारखानों से ज्यादा प्रदूषण होता है उन्हें बंद करने के आदेशों को जारी करना होगा। समय-समय पर लाल कुओं में लाल दवाईयों का छिडकाव करना होगा। जो पानी गंदा हो गया है उसे फिल्टर की सहायता से पीने योग्य बनाना होगा। जहाँ पर पानी हो वहाँ पर कूड़े-कचरे को फैलने से रोकना होगा।
जल प्रदूषण की रोकथाम : सरकार को कारखानों और उद्योगों पर कचरे को नदियों में डालने के लिए पाबंदी लगानी चाहिए। जो कचरा शहर से निकलता है उसे भी ठीक से परिमार्जित करे बिना पानी में नहीं डालने देना चाहिए। कृषि में रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग की जगह पर जैविक कृषि को अधिक बढ़ावा देना चाहिए।
लोगों के द्वारा नदी या तालाबों पर कपड़ों को धोने पर पाबंदी लगानी चाहिए। धोबी अपने कपड़ों और बर्तनों को तालाबों में धोते हैं उन्हें बढ़ रहे जल प्रदूषण के प्रति सचेत करना चाहिए। ताकि तालाबों के पानी को सुरक्षित किया जा सके और उसे पीने योग्य बनाया जा सके और उसमें रहने वाले जीव-जंतु भी सुरक्षित रह सकें।
जानवरों को तालाबों में नहाने से रोकना चाहिए क्योंकि तालाब का पानी स्थिर होता है और जानवरों के नहाने की वजह से वह पानी धीरे-धीरे गंदा होने लगता है और फिर किसी भी प्रकार से उपयोगी नहीं रहता है। लोगों को भी नहाने से मना करना चाहिए क्योंकि वे नहाते समय साबुन या शैम्पू का प्रयोग करते हैं जिससे जल प्रदूषण बढ़ता है।
घरों से जो पानी निकलता है उसमें कम-से-कम कैमिकल का प्रयोग करें जिससे कि वह भूमि में जाकर उसे दूषित न कर सके। शहरों, कस्बों और गांवों में कम-से-कम साल में एक बार तालाबों और नदियों को साफ जरुर करना चाहिए और तालाबों के आस-पास के कचरे को हटा देना चाहिए।
कारखानों से निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थों के निष्कासन की व्यवस्था होनी चाहिए। इन पदार्थों के निष्पादन के साथ-साथ दोषरहित करने की व्यवस्था भी की जानी चाहिए। समुद्र में होने वाले परमाणु परीक्षणों पर रोक लगानी चाहिए।
उपसंहार : जल प्रदूषण ने आज के समय में आपतकाल का रूप ले लिया है। ऐसी स्थिति में हमें तुरंत ही बहुत बड़े कदम उठाने होंगे। अगर हम भविष्य में पानी के स्त्रोतों को सुरक्षित रखना चाहते हैं और अपने देश के लोगों को पीने के लिए साफ पानी देना चाहते हैं तो हमें इसी समय से इस समस्या को दूर करने के लिए कदम उठाने होंगे। अगर हम इस मामले में देरी करेंगे तो यह और अधिक घातक सिद्ध होगा।