नर हो न निराश करो मन को :
भूमिका : सभी लोगों को पता होता है कि नर शब्द का अर्थ पुरुष होता है। नर और पुरुष दोनों एक शब्द के व्यंजन होते हैं। नर का अर्थ पुरुष होता है लेकिन हम गंभीरता से इस शब्द के बारे में सोचें तो हमें यह पता चलता है कि नर शब्द के व्यंजक प्रयोग से पुरुष की विशिष्टता बताई जाती है। पुरुष एक मननशील प्राणी होता है।
मनुष्य अपने मानसिक बल के आधार पर बहुत से असंभव कामों को भी संभव कर सकता है। जब पुरुष के पुरुषत्व भाव को व्यक्त करना होता है तब नर शब्द को प्रयोग में लाया जाता है। मनुष्य जो भी कामों और उद्योग में उन्नति करने की कोशिश करता है वो सब उसके मन के बल पर ही निर्भर करता है। अगर मनुष्य का मन क्रियाशील नहीं रहता है तो उसका मन मर जाता है।
‘नर हो, न निराश करो मन’ को पंक्ति में उसके अर्थ और भाव-विस्तार का विवेचन करते हैं तो मानव जीवन के जो पक्ष होते हैं वे अपने आप ही उजागर हो जाते हैं। जब किसी व्यक्ति का मन मर जाता है तो उसके लिए सभी आकर्षण तुच्छ और अर्थरहित हो जाते हैं। जब तक मनुष्य का मन मरता नहीं है तब तक वह कुछ भी कर सकता है लेकिन जब व्यक्ति का मन मर जाता है तो व्यक्ति भी हार जाता है।
छोटी सी असफलता से निराश न होना :
जब हम ‘नर हो, न निराश करों मन को’ पंक्ति को सुनते हैं तो ऐसा लगता है जैसे कोई हमें चुनौती देते हुए कुछ कह रहा हो कि तुम सांसारिक जीवन की छोटी कठिनाईयों को से घबरा जाते हो क्योंकि तुमने अभी तक जीवन की बाधाओं का सामना करना नहीं सीखा है। जब वे ऐसे बोलने लगें जैसे जमीन फट जाएगी या आसमान फट जायेगा।
तुम पुरुष हो और वीरता तुम्हारे पास है। एक बार की असफलता से इस तरह से निराश नहीं होना चाहिए हमें परिस्थितियों का डंटकर सामना करना चाहिए। हमें एक चिड़िया से भी सबक लेना चाहिए क्योंकि वह कभी भी हार नहीं मानती है वह अपने घोंसले को बनाने के लिए बहुत मेहनत करती है।
वह तब तक नहीं हारती जब तक अपने घोंसले को पूरा नहीं कर देती। दूसरी तरफ मनुष्य होता है जो छोटी-छोटी बात पर निराश होकर बैठ जाता है उसे कभी भी निराश नहीं होना चाहिए। उसे अपने लक्ष्य तक पहुंचने तक परिश्रम करते रहना चाहिए।
मानसिक बल का महत्व :
जब कोई इंसान अपने लाभ या उन्नति के लिए काम करता है वो उसका मानसिक बल होता है। किसी विद्वान् ने कहा है – मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। जब तक मनुष्य को अपने मानसिक बल पर विश्वास होता है उसे कोई नहीं हरा सकता है लेकिन जब मन मर जाता है तो व्यक्ति भी हार जाता है।
इसी मानसिक बल के आधार पर भगवान संकट मोचन हनुमान ने भगवान शिव को युद्ध में पराजित किया था। नेपोलियन और गुरु गोबिंद सिंह जी ने इसी बल के आधार पर अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी। अगर मनुष्य मानसिक रूप से निष्क्रिय हो जाता है तो वह कोई भी काम नहीं कर पाता है।
मनुष्य के मानसिक बल में अपने अराध्य में आस्था की वजह से वृद्धि होती है। जब कोई व्यक्ति या पशु-पक्षी अपने भगवान का नाम लेकर किसी काम को करता है तो उसके काम में असफल होने का कोई भी कारण नहीं होता है। उससे सफलता प्राप्त करने के लिए बहुत संघर्ष भी करना पड़ सकता है लेकिन उसे सफलता हर हालत में मिलती है। उसे कोई भी पराजित नहीं कर पाता है।
प्रकृति से प्रेरणा :
जिस मनुष्य में बल और बुद्धि होती है वह मनुष्य सभी प्राणियों में सबसे श्रेष्ट माना जाता है। अगर वह अपने जीवन में आने वाली कठिनाईयों में मुंह लटकाकर या फिर निराश होकर बैठ जाता है तो उसके प्राणियों में श्रेष्ठ होने का कोई मतलब नहीं होता है। मनुष्य को प्रकृति के हर छोटे से लेकर बड़े प्राणी से हमेशा प्रेरणा लेनी चाहिए।
अगर वो परिश्रम और साहस करना ही छोड़ देगा तो उसका समाज में विकास कैसे होगा? उसके लिए हर तरह की उन्नति के रास्ते बंद हो जायेंगे। इसीलिए मनुष्य को अपने नरत्व को सिद्ध करना ही होगा। अगर निराषा ही जीवन का लक्ष्य होती तो देश में वो सब विकास आज तक हुए ही न होते जो अब तक देश में हुए हैं।
नरता का लक्ष्ण होता है आगे बढ़ते रहना और संघर्ष करते रहना। मनुष्य को नदियों से प्रेरणा लेनी चाहिए। नदियाँ जब तक समुद्र में न मिल जाएँ तब तक थमती नहीं हैं उसी तरह मनुष्य को भी जब तक लक्ष्य पूरा न हो जाये संघर्ष करते रहना चाहिए। हम लोग देख सकते हैं कि कभी-कभी चट्टान नदी की धारा को रोकने की कोशिश करती है लेकिन असफल हो जाती है धारा उसे किनारे पर लगाकर अपना रास्ता खुद ही बना लेती है।
नदी की धारा को किसी की सहायता की जरूरत नहीं पडती है। जब झाड़-झाखंड उसे रोकते हैं तो वह उनके रोकने से भी नहीं रूकती है। मनुष्य को भी नदियों की तरह ही काम करना चाहिए। मनुष्य को जीवन में आने वाली समस्याओं का डटकर सामना करना चाहिए। अपनी समस्याओं में सफलता प्राप्त करनी चाहिए।
समस्याओं के सामने आने से जब मनुष्य निराश होकर बैठ जाता है तो इससे उसकी सार्थकता सिद्ध नहीं होती है। वह नर तभी कहलाता है जब वह जीवन की सभी कठिनाईयों का डटकर सामना करता है इसी को सच्चे अर्थों में जीवन कहते हैं और यही नरत्व को व्यक्त करता है।
जीवन में परिवर्तन शीतलता :
हमारा संसार एक परिवर्तनशील संसार है। इसमें सुख और दुःख आते जाते रहते हैं। दुःख के बाद सुख आता ही है और सुख के बाद दुःख आता है। हमें दुःख से घबराना नहीं चाहिए। जो व्यक्ति बुद्धिमान होते हैं उन्हें अपने जीवन के प्रति आशावान दृष्टिकोण रखना चाहिए।
जिस की वजह से वह अपना और अपने राष्ट्र का कल्याण करने में मदद कर सके। मन को हराने से कुछ प्राप्त नहीं होता है न ही कुछ बनता है बनने के स्थान पर सब कुछ बिगड़ जाता है। सुख-दुःख, सफलता-असफलता दोनों ही भगवान की दी हुई वस्तुएँ होती है लेकिन भगवान भी उन्हीं का साथ देता है जो संघर्ष करते हैं।
अगर आप जीवन में संघर्ष करंगे तो आपको सफलता जरुर मिलेगी। जो लोग भगवान पर सब कुछ छोड़ देते हैं और खुद संघर्ष नहीं करते उनका साथ भगवान भी नहीं देता है। अगर आप अपने ही दुःख से घबरा जाते हैं तो वह आपको कभी भी सुख नहीं देता है।
निरंतर संघर्ष करना जीवन है :
एक नर होकर निराश होना उसके लिए शोभा की बात नहीं होती है। जो लोग हिम्मत हार कर या निराश होकर बैठ जाते हैं उनकी हालत बिलकुल वैसी होती है जैसी हालत मणि के बिना साँप की होती है। मणि की वजह से ही साँप की चमक खत्म हो जाती है। हिम्मत और उत्साह ही मनुष्य की जिंदगी में सार्थकता प्रदान करते हैं इसके बिना मनुष्य का जीवन व्यर्थ होता है।
जब मनुष्य सार्थकता को खो देता है तो वह नर कहलाने के लायक नहीं रह जाता है। ऐसा उसकी नरता के पतित होने के कारण से और अपने आप को कण-ही-कण नहीं छोड़ देने की तरह होता है। इसी वजह से कहा गया है कि नर होकर मन को निराश मत करो। निराषा की वजह से जीवन अंधकार से भर जाता है।
इस अंधकार की वजह से उसे कोई भी रास्ता समझ में नहीं आता है। अगर वो आशावान और आस्थावान रास्ते को अपनाता है तो उसका जीवन का लक्ष्य अपने आप ही खुल जाता है। मेहनत में जो आनंद आता है वो किसी और में नहीं होता है। अगर आप निराषा को अपनाते हैं तो उस आनंद को भी खो देते हैं।
इच्छा शक्ति का महत्व :
मनुष्य की मानसिक शक्ति केवल उसकी इच्छा शक्ति पर निर्भर करती है। जिस मनुष्य की इच्छा शक्ति जितनी अधिक बलवान होती है उसकी मानसिक शक्ति उतनी अधिक प्रबल और दृढ होती है। इसी इच्छा शक्ति से मनुष्य उस दैव शक्ति को प्राप्त कर सकते हैं जिसके आगे लाखो-करोड़ो लोग खुद ही नत-मस्तक हो जाते हैं।
अगर मनुष्य की इच्छा शक्ति प्रबल होती है तो वह अपनी मौत के रास्ते को भी मोड़ सकता है। गाँधी जी ने अपनी प्रबल इच्छा शक्ति के बल पर ही उन्होंने अनेक दुश्मनों को अपने आगे नत-मस्तक किया था। इसी प्रबल इच्छा शक्ति की वजह से ही गाँधी जी एक आम इंसान से महान बन गये थे।
समस्याएँ और बाधाएँ सभी मनुष्यों के जीवन में आती है चाहे वह एक महान मनुष्य हो या एक आम इंसान। अंतर बस इतना ही होता है कि जो व्यक्ति आम होते हैं वे अपने जीवन की कठिनाईयों को देखकर बहुत ही जल्दी हार मान लेते हैं और जो व्यक्ति महान होते हैं वे अपने जीवन की कठिनाईयों का डटकर सामना करते हैं और उन पर सफलता प्राप्त करते हैं।
कठिन परिस्थियों और उन पर दृढता से सफलता प्राप्त करना ही मनुष्य को महान बनाता है। एक भावी संतान के लिए ये रास्ते ही आदर्श बन जाते हैं और ये ही उनको रास्ता दिखाते हैं।
आशावादिता :
जो आशावान मन होता है वह मनुष्य का संचार सूत्र होता है। जिस मनुष्य के मन में आशा होती है वह अपने जीवन में बड़े-से-बड़े वीरता और साहस के काम को आसानी से पूरा कर लेता है। इसी आशा से मनुष्य को काम करने की प्रेरणा मिलती है। आशा बहुत ही बलवान होती है इसी आशा से हम किसी भी कार्य को आसानी से कर पाते है।
कभी भी आशावादी व्यक्ति अकर्मण्य नहीं होता है वो हमेशा मुश्किल-से-मुश्किल परिस्थिति का डटकर सामना करता है। पल-पल में बदलने वाले इस संसार में सुख, दुःख, लाभ, हानि, उत्कर्ष, अपकर्ष आते-जाते रहते हैं।
जो व्यक्ति बुद्धिमान होता है वह भविष्य में आने वाली मुश्किलों से कभी-भी घबराता नहीं है वह कभी-भी अपने मन को हारने नहीं देता है। वह मुश्किलों का डटकर सामना करता है और उन पर सफलता प्राप्त करता है।
उपसंहार :
नर की नरता को केवल निराशा को त्यागकर संघर्ष को अपनाने में ही देखा जा सकता है। मनुष्य को जीवन में सफलता प्राप्त करनी चाहिए और कठिन-से-कठिन परिस्थिति का सामना करना चाहिए। मनुष्य के संघर्ष और परिश्रम से ही मनुष्य की सार्थकता सिद्ध होती है।
उसे कभी-भी अपने मन को विचलित नहीं करना चाहिए। अगर वो अपने मन की चंचलता को अपने वश में कर लेगा तो उसका मन विचलित नहीं होता है। सुदृढ मनोबल से ही सफलता को प्राप्त किया जा सकता है।
जिसका मनोबल सुदृढ नहीं होता है वह कभी-भी सफलता प्राप्त नहीं कर सकता है। बुद्धिमान लोग ही मन का अनुशरण करके सफलता को प्राप्त कर सकता है क्योंकि वह अपने मन पर विजय प्राप्त कर चुका होता है। इसी वजह से कहा गया है – नर हो, न निराश करो मन को।