है अँधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना :
भूमिका : अँधेरे और उजाले का संघर्ष बहुत सालों से होता आ रहा है। भारतवासियों ने अनेक साल अंधकार में बिताये हैं। भारत देश को अँधेरे की आदत पड़ गई थी। लेकिन महात्मा गाँधी जी ने भारत देश को एक आशा की किरण दिखाई थी। इसी पर हरिवंशराय बच्चन जी ने एक कविता भी बनाई थी।
यह पंक्ति हरिवंशराय बच्चन जी की कविता की है। इस पंक्ति से बच्चन जी ने हमें बहुत ही अच्छा संदेश दिया है। उनका मानना है कि चाहे चारों तरफ दुःख, निराशा और अंधकार छाया हो लेकिन मनुष्य को कभी-भी हार नहीं माननी चाहिए। मनुष्य का कर्तव्य होता है कि वह निरंतर संघर्ष करता रहे और सभी के मन में आशा और उम्मीद के दीपक जलाए।
जब एक मनुष्य को संघर्ष करते हुए लोग देखेंगे तो उनमें अपने आप ही संघर्ष करने की भावना पैदा हो जाती है। इसी तरह से लोगों में एक आशा या उम्मीद पैदा होती है। जब मनुष्य किसी काम में असफल हो जाता है तो उसे लगता है कि अब वह कोई भी काम पूर्ण नहीं कर सकता।
प्रकृति के नियम : प्रकृति के अपने नियम होते हैं प्रकृति का नियम होता है कि कृष्ण पक्ष के बाद शुक्ल पक्ष आता है। जब जेठ-बैसाख की गर्मियां आती है तो भयंकर लू चलती हैं। गर्मियों में चारों तरफ तपती हुई धूप होती है और धूल उड़ाते हुए मनुष्य के लिए बहुत सी समस्याएँ पैदा करती हैं।
जेठ-बैसाख के बाद सावन आता है जो अपने साथ सुहावना मौसम और बादल लेकर आता है। जब मूसलाधार वर्षा समाप्त हो जाती है तो सर्दियां चारों तरफ ठंड फैलाने लगती हैं। फिर से पतझड़ आती है लेकिन पतझड़ के समाप्त होने के बाद बसंत का आगमन होता है। प्रकृति की यह प्रक्रिया लगातार चलती रहती है।
प्रकृति की प्रक्रिया की तरह ही सुख-दुःख आशा-निराशा आते-जाते रहते हैं। प्रकृति के नियमों के साथ जब मनुष्य छेड़छाड़ करता है तो मनुष्य के जीवन में अनेक समस्याएँ पैदा होती है। मनुष्य प्रकृति के कहर से कभी-भी उभर नहीं पाता है। अनेक आपदाएं मनुष्य को बिलकुल ही अंधकार से भर देती है। लेकिन जब मनुष्य प्रकृति के नियमों का पालन करता है तो प्रकृति उसे संघर्ष और परिश्रम करने की प्रेरणा देती है।
विद्यार्थी जीवन में महत्व : बच्चन जी की पंक्तियाँ मनुष्य में आशा उत्पन्न करती हैं। बच्चन जी की पंक्तियों का सर्वप्रथम असर विद्यार्थियों के जीवन पर पड़ता है। जब विद्यार्थी परीक्षा में असफल हो जाते हैं तो वे निराश होकर और हार मानकर बैठ जाते हैं।
विद्यार्थी यह सोचने लग जाते हैं कि अब कोई भी कार्य सफल नहीं हो पाएगा। वह सोचने लगता है कि अब तो चारों ओर बस निराशा और अंधकार है। उनमें सोचने की शक्ति समाप्त हो जाती और वे यह नहीं सोचते हैं कि रात के बाद सुबह ही आती है।
उनके एक बार परीक्षा में असफल हो जाने से जीवन समाप्त नहीं होता है जीवन निरंतर परिवर्तनशील रहता है। किसी को भी इस बात के लिए निषेध नहीं होता है कि जो एक बार परीक्षा में फेल हो गया वो दुबारा से परीक्षा नहीं दे सकता है।
इस तरह के विद्यार्थियों को दुबारा से परीक्षा देनी चाहिए और परीक्षा में सफलता प्राप्त करनी चाहिए। जो विद्यार्थी विद्या को चाहते हैं उन्हें आशावादी होना चाहिए। विद्यार्थी जीवन में परिश्रम का बहुत महत्व होता है। यदि विद्यार्थी आरंभ से ही स्वालंबी बनेगा तो वह आसानी से सफलता प्राप्त कर सकेगा।
जीवन चलने का नाम : जीवन में सुख हैं तो दुखों का आना निश्चित होता है। असफलता को मानव जीवन की पहली सीडी माना जाता है। जब मनुष्य आशा लेकर जीवन की कठिन परिस्थियों का सामना करता है तो वह कभी-भी असफल नहीं हो सकता है।
जीवन रुकने का नाम नहीं होता है जीवन चलने का नाम होता है। जीवन रूपी रास्ता भी मनुष्य को यही उपदेश देता है। आप किसी रास्ते को ले लीजिये वह कभी भी खत्म नहीं होता है वह निरंतर चलता ही रहता है।
जीवन भी रास्ते की तरह होता है यह निरंतर चलता रहता है कभी-भी नहीं रुकता। जीवन रूपी रास्ता केवल मृत्यु के पथ पर पहुंचकर ही समाप्त होता है। आप किसी जल धारा को ही ले लीजिये वह कभी नहीं रूकती है वह बहुत से पर्वत, पत्थर, राज्य, परदेश पार करती है लेकिन फिर भी अपने लक्ष्य तक पहुंचने तक रूकती नहीं है।
प्रयत्न और परिश्रम की महिमा : असफलता के बाद दुबारा प्रयत्न करना बहुत जरूरी होता है क्योंकि इसी से सफलता मिलती है। किसी भी प्राणी के जीवन में परिश्रम और प्रयत्न की बहुत महिमा होती है। परिश्रम और संघर्ष करके हम अपना खोया हुआ मान-सम्मान दुबारा से प्राप्त कर सकते हैं।
जब कोई साधारण व्यक्ति परिश्रम करता है तो वह भी असाधारण बन जाता है। हमारे भारत में ऐसे अनेक महान पुरुष हुए हैं जिन्होंने अपने परिश्रम और संघर्ष के बल पर भारत को स्वतंत्रता दिलाई थी। हमारे महान पुरुषों ने ऐसे महान कार्य किये थे जिससे अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए विवश होना पड़ा था और अंत में 15 अगस्त, 1947 को हमें स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी।
चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु ने यह शपथ ली थी कि जब तक वह नन्द वंश को बर्बाद नहीं कर देगा वह अपनी चोटी में गांठ नहीं लगाएगा। उसने अपनी शपथ पूरी की और चन्द्रगुप्त को नन्द वंश का राजा बनाया था। इस संसार में चलना आग पर चलने के बराबर होता है। जिस तरह आग पर चलने के लिए साहस और परिश्रम की जरूरत होती है उसी तरह जीवन में भी परिश्रम और प्रयत्न की जरूरत होती है।
उपसंहार : असफलता, परिश्रम, सफलता और पराजय जीवन के साथ-साथ चलते हैं। असफलता रूपी अंधकार जीवन के आशा के सूरज को पूरी तरह से ढक देता है। निराशा में जब मनुष्य अपने मन में एक आशा को उत्पन्न करता है तो जीवन में सफलता प्राप्त हो जाती है। जब अनेक संघर्षों के बाद सफलता मिलती है तो उसका अलग ही आनंद होता है। हमें अपने देश को सुदृढ बनाने के लिए बहुत परिश्रम करने की आवश्यकता है।