मेरी प्रिय पुस्तक रामचरित्रमानस पर निबंध :
भूमिका : महात्मा गाँधी में राम राज्य स्थापित करने की उच्च भावना को जगाने वाली प्रेरणा शक्ति को रामचरितमानस पुस्तक थी। इस पुस्तक को कवि तुलसीदास का अमर स्मारक माना जाता है। इसे तुलसीदास का ही नहीं बल्कि पूरी हिंदी साहित्य समृद्ध होकर समस्त जगत को अलोक देता रहता है। इसकी श्रेष्ठ का पता हमें इस बात से लग जाता है कि कृति संसार की सभी समृद्ध भाषओं में अनुदित हो चुकी है।
मेरी प्रिय पुस्तक : रामचरितमानस मेरी प्रिय पुस्तक है। रामचरितमानस को जीवन की अमूल्य निधि माना जाता है। इसमें कृति के मूल संदेश पत्नी का पति के प्रति, भाई का भाई के प्रति, बहु का सास-ससुर के प्रति, पुत्र का माता-पिता के प्रति कर्तव्यों के बारे में पता चलता है।
इसके अलावा ये हिंदी साहित्य का वो कुसुमित फूल है जिसकी सुगंध से तन-मन में एक अनोखा सुगंधि संचार होता है। ये ग्रंथ दोहा-चौपाई से लिखा हुआ एक महाकाव्य है। ग्रंथ में सात कांड होते हैं। इसमें बाल कांड, अयोध्या कांड, अरण्य कांड, किष्किंधा कांड, सुंदर कांड, उत्तर कांड होते हैं।
हर एक कांड में भाषा और भाव की दृष्टि से पुष्ट और उत्कृष्ट है। हर एक कांड के शुरू में संस्कृत के श्लोक भी हैं। उसके बाद कला फलागम की ओर बढती है।
प्रिय लगने के कारण : यह ग्रंथ अवधि भाषा और दोहा-चौपाई से लिखा गया है। इस ग्रंथ की भाषा में प्रांजलता के साथ-साथ प्रवाह और सजीवता दोनों हैं। इसमें अलंकार स्वाभाविक रूप से आ रहे हैं इसलिए ये सौंदर्य प्रदत्त है। उनकी वजह से कथा का प्रवाह नहीं रुकता और स्वछंद रूप से बहता ही रहता है।
इसमें मुख्य रूप से रूपक और अनुप्रास अलंकार मिलते हैं। इसमें मुख्य दोहा और चौपाई छंद होते हैं। वर्णात्मक शैली होते हुए भी मार्मिक व्यंजना शक्ति का कहीं-कहीं पर रूप ले लेती है। इसमें सभी रसों का समावेश है। वीभत्स रस भी लंका में उभर कर आया है। इसमें जितना प्रभावशाली चरित्र चित्रण हुआ है उतना किसी हिंदी के महाकाव्य में नहीं हुआ है। इसमें बहुत से प्रशंसनीय और उल्लेखनीय चरित्र हैं राम, सीता, लक्ष्मण, दशरथ, रावण, भरत आये हैं।
पुस्तक की विशेषताएं : रामचरितमानस को पढने से परिवार और समाज की समस्याओं को दूर करने की प्रेरणा मिलती है। ऐसा करने से परलोक के साथ-साथ इस लोक के कल्याण का मार्ग दिखाई देता है और मन में शांति आती है। इसके एक बार पढने के बाद बार-बार पढने को मन करता है।
रामचरितमानस से हमारे सामने समंवय का दृष्टिकोण आता है। इसमें भक्ति और ज्ञान का, निराकार का, और साकार का समंवय मिलता है। कवि तुलसीदास जी ज्ञान और भक्ति में कोई भी भेद नहीं मानते थे। रामचरितमानस में धर्म और नीति का प्रशंसनीय उपदेश दिया गया है।
इसमें राम भक्ति का बहुत प्रभावी निरूपण और राम कथा का सरस और धार्मिक कीर्तन किसी और जगह मिलना बहुत ही कठिन है। इस ग्रंथ में जीवन का मार्मिक चित्र का विशद चित्रण किया गया है।
इसमें जीवन के हर रस का संचार किया गया है और लोक मंगल की उच्च भावना का समावेश किया गया है। यह ग्रंथ एक तरीके से पवित्र गंगा के समान है जिसमें डुबकी लगाने से शरीर में एक मधुर रस का संचार होता है। जो भक्त सह्रदय वाले होते हैं उनके लिए यह एक अमर वाणी की तरह है।
उपसंहार : दिए गये उपर्युक्त विवेचन से हम कह सकते हैं कि रामचरितमानस साहित्यिक और धार्मिक दृष्टि से उच्चकोटि की रचना है। यह अपनी उच्चता और भव्यता की कहानी खुद ही कहती है। इसी वजह से यह मेरी प्रिय पुस्तक है।