समास (Samas Ki Paribhasha)
समास का तात्पर्य होता है – संछिप्तीकरण। इसका शाब्दिक अर्थ होता है छोटा रूप। अथार्त जब दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर जो नया और छोटा शब्द बनता है उस शब्द को समास कहते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो जहाँ पर कम-से-कम शब्दों में अधिक से अधिक अर्थ को प्रकट किया जाए वह समास कहलाता है।
संस्कृत, जर्मन तथा बहुत सी भारतीय भाषाओँ में समास का बहुत प्रयोग किया जाता है। समास रचना में दो पद होते हैं, पहले पद को ‘पूर्वपद’ कहा जाता है और दूसरे पद को ‘उत्तरपद’ कहा जाता है। इन दोनों से जो नया शब्द बनता है वो समस्त पद कहलाता है।
जैसे :-
- रसोई के लिए घर = रसोईघर
- हाथ के लिए कड़ी = हथकड़ी
- नील और कमल = नीलकमल
- रजा का पुत्र = राजपुत्र |
सामासिक शब्द क्या होता है :- समास के नियमों से निर्मित शब्द सामासिक शब्द कहलाता है। इसे समस्तपद भी कहा जाता है। समास होने के बाद विभक्तियों के चिन्ह गायब हो जाते हैं।
जैसे :- राजपुत्र |
Hindi Grammer Ke Important Topics: भाषा, समास, अलंकार, निबंध, मुहावरे, विलोम शब्द, पर्यायवाची शब्द, हिंदी वर्णमाला
समास विग्रह :
सामासिक शब्दों के बीच के सम्बन्ध को स्पष्ट करने को समास – विग्रह कहते हैं। विग्रह के बाद सामासिक शब्द गायब हो जाते हैं अथार्त जब समस्त पद के सभी पद अलग – अलग किय जाते हैं उसे समास-विग्रह कहते हैं।
जैसे :- माता-पिता = माता और पिता।
समास और संधि में अंतर :-
संधि का शाब्दिक अर्थ होता है मेल। संधि में उच्चारण के नियमों का विशेष महत्व होता है। इसमें दो वर्ण होते हैं इसमें कहीं पर एक तो कहीं पर दोनों वर्णों में परिवर्तन हो जाता है और कहीं पर तीसरा वर्ण भी आ जाता है। संधि किये हुए शब्दों को तोड़ने की क्रिया विच्छेद कहलाती है। संधि में जिन शब्दों का योग होता है उनका मूल अर्थ नहीं बदलता।
जैसे – पुस्तक+आलय = पुस्तकालय।
OR
समास का शाब्दिक अर्थ होता है संक्षेप। समास में वर्णों के स्थान पर पद का महत्व होता है। इसमें दो या दो से अधिक पद मिलकर एक समस्त पद बनाते हैं और इनके बीच से विभक्तियों का लोप हो जाता है। समस्त पदों को तोडने की प्रक्रिया को विग्रह कहा जाता है। समास में बने हुए शब्दों के मूल अर्थ को परिवर्तित किया भी जा सकता है और परिवर्तित नहीं भी किया जा सकता है।
जैसे :- विषधर = विष को धारण करने वाला अथार्त शिव।
उपमान क्या होता है :- जिससे किसी की उपमा दी जाती है उसे उपमान कहती हैं।
उपमेय क्या होता है :- जिसकी उपमा दी जाती है उसे उपमेय कहते हैं।
समास के भेद :
1. अव्ययीभाव समास
2. तत्पुरुष समास
3. कर्मधारय समास
4. द्विगु समास
5. द्वंद्व समास
6. बहुब्रीहि समास
प्रयोग की दृष्टि से समास के भेद :-
1. संयोगमूलक समास
2. आश्रयमूलक समास
3. वर्णनमूलक समास
1. अव्ययीभाव समास क्या होता है :- इसमें प्रथम पद अव्यय होता है और उसका अर्थ प्रधान होता है उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। इसमें अव्यय पद का प्रारूप लिंग, वचन, कारक, में नहीं बदलता है वो हमेशा एक जैसा रहता है।
दूसरे शब्दों में कहा जाये तो यदि एक शब्द की पुनरावृत्ति हो और दोनों शब्द मिलकर अव्यय की तरह प्रयोग हों वहाँ पर अव्ययीभाव समास होता है संस्कृत में उपसर्ग युक्त पद भी अव्ययीभाव समास ही मने जाते हैं।
जैसे :-
- यथाशक्ति = शक्ति के अनुसार
- यथाक्रम = क्रम के अनुसार
- यथानियम = नियम के अनुसार
- प्रतिदिन = प्रत्येक दिन
- प्रतिवर्ष =हर वर्ष
- आजन्म = जन्म से लेकर
- यथासाध्य = जितना साधा जा सके
- धडाधड = धड-धड की आवाज के साथ
- घर-घर = प्रत्येक घर
- रातों रात = रात ही रात में
- आमरण = म्रत्यु तक
- यथाकाम = इच्छानुसार
- यथास्थान = स्थान के अनुसार
- अभूतपूर्व = जो पहले नहीं हुआ
- निर्भय = बिना भय के
- निर्विवाद = बिना विवाद के
- निर्विकार = बिना विकार के
- प्रतिपल = हर पल
- अनुकूल = मन के अनुसार
- अनुरूप = रूप के अनुसार
- यथासमय = समय के अनुसार
- यथाशीघ्र = शीघ्रता से
- अकारण = बिना कारण के
- यथासामर्थ्य = सामर्थ्य के अनुसार
- यथाविधि = विधि के अनुसार
- भरपेट = पेट भरकर
- हाथोंहाथ = हाथ ही हाथ में
- बेशक = शक के बिना
- खुबसूरत = अच्छी सूरत वाली
2. तत्पुरुष समास क्या होता है :- इस समास में दूसरा पद प्रधान होता है। यह कारक से जुदा समास होता है। इसमें ज्ञातव्य-विग्रह में जो कारक प्रकट होता है उसी कारक वाला वो समास होता है। इसे बनाने में दो पदों के बीच कारक चिन्हों का लोप हो जाता है उसे तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे :-
- देश के लिए भक्ति = देशभक्ति
- राजा का पुत्र = राजपुत्र
- शर से आहत = शराहत
- राह के लिए खर्च = राहखर्च
- तुलसी द्वारा कृत = तुलसीदासकृत
- राजा का महल = राजमहल
- राजा का कुमार = राजकुमार
- धर्म का ग्रंथ = धर्मग्रंथ
- रचना करने वाला = रचनाकार
तत्पुरुष समास के भेद :- वैसे तो तत्पुरुष समास के 8 भेद होते हैं किन्तु विग्रह करने की वजह से कर्ता और सम्बोधन दो भेदों को लुप्त रखा गया है। इसलिए विभक्तियों के अनुसार तत्पुरुष समास के 6 भेद होते हैं :-
1. कर्म तत्पुरुष समास
2. करण तत्पुरुष समास
3. सम्प्रदान तत्पुरुष समास
4. अपादान तत्पुरुष समास
5. सम्बन्ध तत्पुरुष समास
6. अधिकरण तत्पुरुष समास
1. कर्म तत्पुरुष समास क्या होता है :- इसमें दो पदों के बीच में कर्मकारक छिपा हुआ होता है। कर्मकारक का चिन्ह ‘को’ होता है। ‘को’ को कर्मकारक की विभक्ति भी कहा जाता है। उसे कर्म तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे :-
- रथचालक = रथ को चलने वाला
- ग्रामगत = ग्राम को गया हुआ
- माखनचोर =माखन को चुराने वाला
- वनगमन =वन को गमन
- मुंहतोड़ = मुंह को तोड़ने वाला
- स्वर्गप्राप्त = स्वर्ग को प्राप्त
- देशगत = देश को गया हुआ
- जनप्रिय = जन को प्रिय
- मरणासन्न = मरण को आसन्न
- गिरहकट = गिरह को काटने वाला
- कुंभकार = कुंभ को बनाने वाला
- गृहागत = गृह को आगत
- कठफोड़वा = कांठ को फोड़ने वाला
- शत्रुघ्न = शत्रु को मारने वाला
- गिरिधर = गिरी को धारण करने वाला
- मनोहर = मन को हरने वाला
- यशप्राप्त = यश को प्राप्त
2. करण तत्पुरुष समास क्या होता है :- जहाँ पर पहले पद में करण कारक का बोध होता है। इसमें दो पदों के बीच करण कारक छिपा होता है। करण कारक का चिन्ह या विभक्ति ‘के द्वारा’ और ‘से’ होता है। उसे करण तत्पुरुष कहते हैं।
जैसे :-
- स्वरचित = स्व द्वारा रचित
- मनचाहा = मन से चाहा
- शोकग्रस्त = शोक से ग्रस्त
- भुखमरी = भूख से मरी
- धनहीन = धन से हीन
- बाणाहत = बाण से आहत
- ज्वरग्रस्त = ज्वर से ग्रस्त
- मदांध = मद से अँधा
- रसभरा = रस से भरा
- आचारकुशल = आचार से कुशल
- भयाकुल = भय से आकुल
- आँखोंदेखी = आँखों से देखी
- तुलसीकृत = तुलसी द्वारा रचित
- रोगातुर = रोग से आतुर
- पर्णकुटीर = पर्ण से बनी कुटीर
- कर्मवीर = कर्म से वीर
- रक्तरंजित = रक्त से रंजित
- जलाभिषेक = जल से अभिषेक
- रोगग्रस्त = रोग से ग्रस्त
- गुणयुक्त = गुणों से युक्त
- अंधकारयुक्त = अंधकार से युक्त
3. सम्प्रदान तत्पुरुष समास क्या होता है :- इसमें दो पदों के बीच सम्प्रदान कारक छिपा होता है। सम्प्रदान कारक का चिन्ह या विभक्ति ‘के लिए’ होती है। उसे सम्प्रदान तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे :-
- विद्यालय = विद्या के लिए आलय
- रसोईघर = रसोई के लिए घर
- सभाभवन = सभा के लिए भवन
- विश्रामगृह = विश्राम के लिए गृह
- गुरुदक्षिणा = गुरु के लिए दक्षिणा
- प्रयोगशाला = प्रयोग के लिए शाला
- देशभक्ति = देश के लिए भक्ति
- स्नानघर = स्नान के लिए घर
- सत्यागृह = सत्य के लिए आग्रह
- यज्ञशाला = यज्ञ के लिए शाला
- डाकगाड़ी = डाक के लिए गाड़ी
- देवालय = देव के लिए आलय
- गौशाला = गौ के लिए शाला
- युद्धभूमि = युद्ध के लिए भूमि
- हथकड़ी = हाथ के लिए कड़ी
- धर्मशाला = धर्म के लिए शाला
- पुस्तकालय = पुस्तक के लिए आलय
- राहखर्च = राह के लिए खर्च
- परीक्षा भवन = परीक्षा के लिए भवन
4. अपादान तत्पुरुष समास क्या होता है :- इसमें दो पदों के बीच में अपादान कारक छिपा होता है। अपादान कारक का चिन्ह या विभक्ति ‘से अलग’ होता है। उसे अपादान तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे :-
- कामचोर = काम से जी चुराने वाला
- दूरागत = दूर से आगत
- रणविमुख = रण से विमुख
- नेत्रहीन = नेत्र से हीन
- पापमुक्त = पाप से मुक्त
- देशनिकाला = देश से निकाला
- पथभ्रष्ट = पथ से भ्रष्ट
- पदच्युत = पद से च्युत
- जन्मरोगी = जन्म से रोगी
- रोगमुक्त = रोग से मुक्त
- जन्मांध = जन्म से अँधा
- कर्महीन = कर्म से हीन
- वनरहित = वन से रहित
- अन्नहीन = अन्न से हीन
- जलहीन = जल से हीन
- गुणहीन = गुण से हीन
- फलहीन = फल से हीन
- भयभीत = भय से डरा हुआ
5. सम्बन्ध तत्पुरुष समास क्या होता है :- इसमें दो पदों के बीच में सम्बन्ध कारक छिपा होता है। सम्बन्ध कारक के चिन्ह या विभक्ति ‘का’, ‘के’, ‘की’होती हैं। उसे सम्बन्ध तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे :-
- राजपुत्र = राजा का पुत्र
- गंगाजल = गंगा का जल
- लोकतंत्र = लोक का तंत्र
- दुर्वादल = दुर्व का दल
- देवपूजा = देव की पूजा
- आमवृक्ष = आम का वृक्ष
- राजकुमारी = राज की कुमारी
- जलधारा = जल की धारा
- राजनीति = राजा की नीति
- सुखयोग = सुख का योग
- मूर्तिपूजा = मूर्ति की पूजा
- श्रधकण = श्रधा के कण
- शिवालय = शिव का आलय
- देशरक्षा = देश की रक्षा
- सीमारेखा = सीमा की रेखा
- जलयान = जल का यान
- कार्यकर्ता = कार्य का करता
- सेनापति = सेना का पति
- कन्यादान = कन्या का दान
- गृहस्वामी = गृह का स्वामी
- पराधीन – पर के अधीन
- आनंदाश्रम = आनन्द का आश्रम
- राजाज्ञा = राजा की आज्ञा
6. अधिकरण तत्पुरुष समास क्या होता है :- इसमें दो पदों के बीच अधिकरण कारक छिपा होता है। अधिकरण कारक का चिन्ह या विभक्ति ‘में’, ‘पर’ होता है। उसे अधिकरण तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे :-
- कार्य कुशल = कार्य में कुशल
- वनवास = वन में वास
- ईस्वरभक्ति = ईस्वर में भक्ति
- आत्मविश्वास = आत्मा पर विश्वास
- दीनदयाल = दीनों पर दयाल
- दानवीर = दान देने में वीर
- आचारनिपुण = आचार में निपुण
- जलमग्न = जल में मग्न
- सिरदर्द = सिर में दर्द
- क्लाकुशल = कला में कुशल
- शरणागत = शरण में आगत
- आनन्दमग्न = आनन्द में मग्न
- आपबीती = आप पर बीती
- नगरवास = नगर में वास
- रणधीर = रण में धीर
- क्षणभंगुर = क्षण में भंगुर
- पुरुषोत्तम = पुरुषों में उत्तम
- लोकप्रिय = लोक में प्रिय
- गृहप्रवेश = गृह में प्रवेश
- युधिष्ठिर = युद्ध में स्थिर
- शोकमग्न = शोक में मग्न
- धर्मवीर = धर्म में वीर
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तत्पुरुष समास के प्रकार :-
1. नञ तत्पुरुष समास
1. नञ तत्पुरुष समास क्या होता है :- इसमें पहला पद निषेधात्मक होता है उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे :-
- असभ्य = न सभ्य
- अनादि = न आदि
- असंभव = न संभव
- अनंत = न अंत
3. कर्मधारय समास क्या होता है :- इस समास का उत्तर पद प्रधान होता है। इस समास में विशेषण-विशेष्य और उपमेय-उपमान से मिलकर बनते हैं उसे कर्मधारय समास कहते हैं।
जैसे :-
- चरणकमल = कमल के समान चरण
- नीलगगन = नीला है जो गगन
- चन्द्रमुख = चन्द्र जैसा मुख
- पीताम्बर = पीत है जो अम्बर
- महात्मा = महान है जो आत्मा
- लालमणि = लाल है जो मणि
- महादेव = महान है जो देव
- देहलता = देह रूपी लता
- नवयुवक = नव है जो युवक
- अधमरा = आधा है जो मरा
- प्राणप्रिय = प्राणों से प्रिय
- श्यामसुंदर = श्याम जो सुंदर है
- नीलकंठ = नीला है जो कंठ
- महापुरुष = महान है जो पुरुष
- नरसिंह = नर में सिंह के समान
- कनकलता = कनक की सी लता
- नीलकमल = नीला है जो कमल
- परमानन्द = परम है जो आनंद
- सज्जन = सत् है जो जन
- कमलनयन = कमल के समान नयन
कर्मधारय समास के भेद :-
1. विशेषणपूर्वपद कर्मधारय समास
2. विशेष्यपूर्वपद कर्मधारय समास
3. विशेषणोंभयपद कर्मधारय समास
4. विशेष्योभयपद कर्मधारय समास
1. विशेषणपूर्वपद कर्मधारय समास :- जहाँ पर पहला पद प्रधान होता है वहाँ पर विशेषणपूर्वपद कर्मधारय समास होता है।
जैसे :-
- नीलीगाय = नीलगाय
- पीत अम्बर = पीताम्बर
- प्रिय सखा = प्रियसखा
2. विशेष्यपूर्वपद कर्मधारय समास :- इसमें पहला पद विशेष्य होता है और इस प्रकार के सामासिक पद ज्यादातर संस्कृत में मिलते हैं।
जैसे :- कुमारी श्रमणा = कुमारश्रमणा
3. विशेषणोंभयपद कर्मधारय समास :- इसमें दोनों पद विशेषण होते हैं।
जैसे :- नील – पीत, सुनी – अनसुनी, कहनी – अनकहनी
4. विशेष्योभयपद कर्मधारय समास :- इसमें दोनों पद विशेष्य होते है।
जैसे :- आमगाछ, वायस-दम्पति।
कर्मधारय समास के उपभेद :-
- उपमानकर्मधारय समास
- उपमितकर्मधारय समास
- रूपककर्मधारय समास
1. उपमानकर्मधारय समास :- इसमें उपमानवाचक पद का उपमेयवाचक पद के साथ समास होता है। इस समास में दोनों शब्दों के बीच से ‘इव’ या ‘जैसा’ अव्यय का लोप हो जाता है और दोनों पद, चूँकि एक ही कर्ता विभक्ति, वचन और लिंग के होते हैं, इसलिए समस्त पद कर्मधारय लक्ष्ण का होता है। उसे उपमानकर्मधारय समास कहते हैं।
जैसे :- विद्युत् जैसी चंचला = विद्युचंचला
2. उपमितकर्मधारय समास :- यह समास उपमानकर्मधारय का उल्टा होता है। इस समास में उपमेय पहला पद होता है और उपमान दूसरा पद होता है। उसे उपमितकर्मधारय समास कहते हैं।
जैसे :- अधरपल्लव के समान = अधर – पल्लव, नर सिंह के समान = नरसिंह।
3. रूपककर्मधारय समास :- जहाँ पर एक का दूसरे पर आरोप होता है वहाँ पर रूपककर्मधारय समास होता है।
जैसे :- मुख ही है चन्द्रमा = मुखचन्द्र।
4. द्विगु समास क्या होता है :- द्विगु समास में पूर्वपद संख्यावाचक होता है और कभी-कभी उत्तरपद भी संख्यावाचक होता हुआ देखा जा सकता है। इस समास में प्रयुक्त संख्या किसी समूह को दर्शाती है किसी अर्थ को नहीं। इससे समूह और समाहार का बोध होता है। उसे द्विगु समास कहते हैं।
जैसे :-
- नवग्रह = नौ ग्रहों का समूह
- दोपहर = दो पहरों का समाहार
- त्रिवेणी = तीन वेणियों का समूह
- पंचतन्त्र = पांच तंत्रों का समूह
- त्रिलोक = तीन लोकों का समाहार
- शताब्दी = सौ अब्दों का समूह
- पंसेरी = पांच सेरों का समूह
- सतसई = सात सौ पदों का समूह
- चौगुनी = चार गुनी
- त्रिभुज = तीन भुजाओं का समाहार
- चौमासा = चार मासों का समूह
- नवरात्र = नौ रात्रियों का समूह
- अठन्नी = आठ आनों का समूह
- सप्तऋषि = सात ऋषियों का समूह
- त्रिकोण = तीन कोणों का समाहार
- सप्ताह = सात दिनों का समूह
- तिरंगा = तीन रंगों का समूह
- चतुर्वेद = चार वेदों का समाहार
द्विगु समास के भेद :-
1. समाहारद्विगु समास
2. उत्तरपदप्रधानद्विगु समास
1. समाहारद्विगु समास :- समाहार का मतलब होता है समुदाय, इकट्ठा होना, समेटना उसे समाहारद्विगु समास कहते हैं।
जैसे :-
- तीन लोकों का समाहार = त्रिलोक
- पाँचों वटों का समाहार = पंचवटी
- तीन भुवनों का समाहार = त्रिभुवन
2. उत्तरपदप्रधानद्विगु समास :- उत्तरपदप्रधानद्विगु समास दो प्रकार के होते हैं।
(1) बेटा या फिर उत्पत्र के अर्थ में।
जैसे :-
दो माँ का =दुमाता
दो सूतों के मेल का = दुसूती।
(2) जहाँ पर सच में उत्तरपद पर जोर दिया जाता है।
जैसे :-
पांच प्रमाण = पंचप्रमाण
पांच हत्थड = पंचहत्थड
5. द्वंद्व समास क्या होता है :- इस समास में दोनों पद ही प्रधान होते हैं इसमें किसी भी पद का गौण नहीं होता है। ये दोनों पद एक-दूसरे पद के विलोम होते हैं लेकिन ये हमेशा नहीं होता है। इसका विग्रह करने पर और, अथवा, या, एवं का प्रयोग होता है उसे द्वंद्व समास कहते हैं।
जैसे :-
- जलवायु = जल और वायु
- अपना-पराया = अपना या पराया
- पाप-पुण्य = पाप और पुण्य
- राधा-कृष्ण = राधा और कृष्ण
- अन्न-जल = अन्न और जल
- नर-नारी = नर और नारी
- गुण-दोष = गुण और दोष
- देश-विदेश = देश और विदेश
- अमीर-गरीब = अमीर और गरीब
- नदी-नाले = नदी और नाले
- धन-दौलत = धन और दौलत
- सुख-दुःख = सुख और दुःख
- आगे-पीछे = आगे और पीछे
- ऊँच-नीच = ऊँच और नीच
- आग-पानी = आग और पानी
- मार-पीट = मारपीट
- राजा-प्रजा = राजा और प्रजा
- ठंडा-गर्म = ठंडा या गर्म
- माता-पिता = माता और पिता
- दिन-रात = दिन और रात
- भाई-बहन = भाई और बहन
द्वंद्व समास के भेद :-
1. इतरेतरद्वंद्व समास
2. समाहारद्वंद्व समास
3. वैकल्पिकद्वंद्व समास
1. इतरेतरद्वंद्व समास :- वो द्वंद्व जिसमें और शब्द से भी पद जुड़े होते हैं और अलग अस्तित्व रखते हों उसे इतरेतर द्वंद्व समास कहते हैं। इस समास से जो पद बनते हैं वो हमेशा बहुवचन में प्रयोग होते हैं क्योंकि वे दो या दो से अधिक पदों से मिलकर बने होते हैं।
जैसे :-
- राम और कृष्ण = राम-कृष्ण
- माँ और बाप = माँ-बाप
- अमीर और गरीब = अमीर-गरीब
- गाय और बैल = गाय-बैल
- ऋषि और मुनि = ऋषि-मुनि
- बेटा और बेटी = बेटा-बेटी
2. समाहारद्वंद्व समास :- समाहार का अर्थ होता है समूह। जब द्वंद्व समास के दोनों पद और समुच्चयबोधक से जुड़ा होने पर भी अलग-अलग अस्तिव नहीं रखकर समूह का बोध कराते हैं, तब वह समाहारद्वंद्व समास कहलाता है। इस समास में दो पदों के अलावा तीसरा पद भी छुपा होता है और अपने अर्थ का बोध अप्रत्यक्ष रूप से कराते हैं।
जैसे :-
- दालरोटी = दाल और रोटी
- हाथपॉंव = हाथ और पॉंव
- आहारनिंद्रा = आहार और निंद्रा
3. वैकल्पिक द्वंद्व समास :- इस द्वंद्व समास में दो पदों के बीच में या, अथवा आदि विकल्पसूचक अव्यय छिपे होते हैं उसे वैकल्पिक द्वंद्व समास कहते हैं। इस समास में ज्यादा से ज्यादा दो विपरीतार्थक शब्दों का योग होता है।
जैसे :-
- पाप-पुण्य = पाप या पुण्य
- भला-बुरा = भला या बुरा
- थोडा-बहुत = थोडा या बहुत
6. बहुब्रीहि समास क्या होता है :- इस समास में कोई भी पद प्रधान नहीं होता। जब दो पद मिलकर तीसरा पद बनाते हैं तब वह तीसरा पद प्रधान होता है। इसका विग्रह करने पर “वाला , है, जो, जिसका, जिसकी, जिसके, वह” आदि आते हैं वह बहुब्रीहि समास कहलाता है।
जैसे :-
- गजानन = गज का आनन है जिसका (गणेश)
- त्रिनेत्र = तीन नेत्र हैं जिसके (शिव)
- नीलकंठ = नीला है कंठ जिसका (शिव)
- लम्बोदर = लम्बा है उदर जिसका (गणेश)
- दशानन = दश हैं आनन जिसके (रावण)
- चतुर्भुज = चार भुजाओं वाला (विष्णु)
- पीताम्बर = पीले हैं वस्त्र जिसके (कृष्ण)
- चक्रधर= चक्र को धारण करने वाला (विष्णु)
- वीणापाणी = वीणा है जिसके हाथ में (सरस्वती)
- स्वेताम्बर = सफेद वस्त्रों वाली (सरस्वती)
- सुलोचना = सुंदर हैं लोचन जिसके (मेघनाद की पत्नी)
- दुरात्मा = बुरी आत्मा वाला (दुष्ट)
- घनश्याम = घन के समान है जो (श्री कृष्ण)
- मृत्युंजय = मृत्यु को जीतने वाला (शिव)
- निशाचर = निशा में विचरण करने वाला (राक्षस)
- गिरिधर = गिरी को धारण करने वाला (कृष्ण)
- पंकज = पंक में जो पैदा हुआ (कमल)
- त्रिलोचन = तीन है लोचन जिसके (शिव)
- विषधर = विष को धारण करने वाला (सर्प)
बहुब्रीहि समास के भेद :-
1. समानाधिकरण बहुब्रीहि समास
2. व्यधिकरण बहुब्रीहि समास
3. तुल्ययोग बहुब्रीहि समास
4. व्यतिहार बहुब्रीहि समास
5. प्रादी बहुब्रीहि समास
1. समानाधिकरण बहुब्रीहि समास :- इसमें सभी पद कर्ता कारक की विभक्ति के होते हैं लेकिन समस्त पद के द्वारा जो अन्य उक्त होता है, वो कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण आदि विभक्तियों में भी उक्त हो जाता है उसे समानाधिकरण बहुब्रीहि समास कहते हैं।
जैसे :-
- प्राप्त है उदक जिसको = प्रप्तोद्क
- जीती गई इन्द्रियां हैं जिसके द्वारा = जितेंद्रियाँ
- दत्त है भोजन जिसके लिए = दत्तभोजन
- निर्गत है धन जिससे = निर्धन
- नेक है नाम जिसका = नेकनाम
- सात है खण्ड जिसमें = सतखंडा
2. व्यधिकरण बहुब्रीहि समास :- समानाधिकरण बहुब्रीहि समास में दोनों पद कर्ता कारक की विभक्ति के होते हैं लेकिन यहाँ पहला पद तो कर्ता कारक की विभक्ति का होता है लेकिन बाद वाला पद सम्बन्ध या फिर अधिकरण कारक का होता है उसे व्यधिकरण बहुब्रीहि समास कहते हैं।
जैसे :-
- शूल है पाणी में जिसके = शूलपाणी
- वीणा है पाणी में जिसके = वीणापाणी
3. तुल्ययोग बहुब्रीहि समास :- जिसमें पहला पद ‘सह’ होता है वह तुल्ययोग बहुब्रीहि समास कहलाता है। इसे सहबहुब्रीहि समास भी कहती हैं। सह का अर्थ होता है साथ और समास होने की वजह से सह के स्थान पर केवल स रह जाता है।
इस समास में इस बात पर ध्यान दिया जाता है की विग्रह करते समय जो सह दूसरा वाला शब्द प्रतीत हो वो समास में पहला हो जाता है।
जैसे :-
- जो बल के साथ है = सबल
- जो देह के साथ है = सदेह
- जो परिवार के साथ है = सपरिवार
4. व्यतिहार बहुब्रीहि समास :- जिससे घात या प्रतिघात की सुचना मिले उसे व्यतिहार बहुब्रीहि समास कहते हैं। इस समास में यह प्रतीत होता है की ‘इस चीज से और उस चीज से लड़ाई हुई।
जैसे :-
मुक्के-मुक्के से जो लड़ाई हुई = मुक्का-मुक्की
बातों-बातों से जो लड़ाई हुई = बाताबाती
5. प्रादी बहुब्रीहि समास :- जिस बहुब्रीहि समास पूर्वपद उपसर्ग हो वह प्रादी बहुब्रीहि समास कहलाता है।
जैसे :-
- नहीं है रहम जिसमें = बेरहम
- नहीं है जन जहाँ = निर्जन
1. संयोगमूलक समास क्या होता है :- संयोगमूलक समास को संज्ञा समास भी कहते हैं। इस समास में दोनों पद संज्ञा होते हैं अथार्त इसमें दो संज्ञाओं का संयोग होता है।
जैसे :- माँ-बाप, भाई-बहन, दिन-रात, माता-पिता।
2. आश्रयमूलक समास क्या होता है :- आश्रयमूलक समास को विशेषण समास भी कहा जाता है। यह प्राय कर्मधारय समास होता है। इस समास में प्रथम पद विशेषण होता है और दूसरा पद का अर्थ बलवान होता है। यह विशेषण-विशेष्य, विशेष्य-विशेषण, विशेषण, विशेष्य आदि पदों द्वारा सम्पन्न होता है।
जैसे :- कच्चाकेला, शीशमहल, घनस्याम, लाल-पीला, मौलवीसाहब, राजबहादुर।
3. वर्णनमूलक समास क्या होता है :- इसे वर्णनमूलक समास भी कहते हैं। वर्णनमूलक समास के अंतर्गत बहुब्रीहि और अव्ययीभाव समास का निर्माण होता है। इस समास में पहला पद अव्यय होता है और दूसरा पद संज्ञा। उसे वर्णनमूलक समास कहते हैं।
जैसे :- यथाशक्ति, प्रतिमास, घड़ी-घड़ी, प्रत्येक, भरपेट, यथासाध्य।
कर्मधारय समास और बहुब्रीहि समास में अंतर :-
समास के कुछ उदहारण है जो कर्मधारय और बहुब्रीहि समास दोनों में समान रूप से पाए जाते हैं, इन दोनों में अंतर होता है। कर्मधारय समास में एक पद विशेषण या उपमान होता है और दूसरा पद विशेष्य या उपमेय होता है। इसमें शब्दार्थ प्रधान होता है। कर्मधारय समास में दूसरा पद प्रधान होता है तथा पहला पद विशेष्य के विशेषण का कार्य करता है।
जैसे :- नीलकंठ = नीला कंठ
OR
बहुब्रीहि समास में दो पद मिलकर तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं इसमें तीसरा पद प्रधान होता है।
जैसे :- नीलकंठ = नील+कंठ
द्विगु समास और बहुब्रीहि समास में अंतर :-
द्विगु समास में पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता है और दूसरा पद विशेष्य होता है जबकि बहुब्रीहि समास में समस्त पद ही विशेषण का कार्य करता है।
जैसे :-
- चतुर्भुज – चार भुजाओं का समूह
- चतुर्भुज – चार हैं भुजाएं जिसकी
द्विगु और कर्मधारय समास में अंतर :-
(1) द्विगु का पहला पद हमेशा संख्यावाचक विशेषण होता है जो दूसरे पद की गिनती बताता है जबकि कर्मधारय का एक पद विशेषण होने पर भी संख्यावाचक कभी नहीं होता है।
(2) द्विगु का पहला पद्द ही विशेषण बन कर प्रयोग में आता है जबकि कर्मधारय में कोई भी पद दूसरे पद का विशेषण हो सकता है।
जैसे :-
- नवरात्र – नौ रात्रों का समूह
- रक्तोत्पल – रक्त है जो उत्पल
Samas
samaas ka taatpary hota hai – sanchhipteekaran. isaka shaabdik arth hota hai chhota roop. athaart jab do ya do se adhik shabdon se milakar jo naya aur chhota shabd banata hai us shabd ko samaas kahate hain. doosare shabdon mein kaha jae to jahaan par kam-se-kam shabdon mein adhik se adhik arth ko prakat kiya jae vah samaas kahalaata hai.
sanskrt, jarman tatha bahut see bhaarateey bhaashaon mein samaas ka bahut prayog kiya jaata hai. samaas rachana mein do pad hote hain, pahale pad ko poorvapad kaha jaata hai aur doosare pad ko uttarapad kaha jaata hai. in donon se jo naya shabd banata hai vo samast pad kahalaata hai.
jaise :-
- rasoee ke lie ghar = rasoeeghar
- haath ke lie kadee = hathakadee
- neel aur kamal = neelakamal
- raja ka putr = raajaputr |
Saamaasik shabd kya hota hai :- samaas ke niyamon se nirmit shabd saamaasik shabd kahalaata hai. ise samastapad bhee kaha jaata hai. samaas hone ke baad vibhaktiyon ke chinh gaayab ho jaate hain.
jaise :- raajaputr |
samaas vigrah :
saamaasik shabdon ke beech ke sambandh ko spasht karane ko samaas – vigrah kahate hain. vigrah ke baad saamaasik shabd gaayab ho jaate hain athaart jab samast pad ke sabhee pad alag – alag kiy jaate hain use samaas-vigrah kahate hain.
jaise :- maata-pita = maata aur pita.
samaas aur sandhi mein antar :-
sandhi ka shaabdik arth hota hai mel. sandhi mein uchchaaran ke niyamon ka vishesh mahatv hota hai. isamen do varn hote hain isamen kaheen par ek to kaheen par donon varnon mein parivartan ho jaata hai aur kaheen par teesara varn bhee aa jaata hai. sandhi kiye hue shabdon ko todane kee kriya vichchhed kahalaatee hai. sandhi mein jin shabdon ka yog hota hai unaka mool arth nahin badalata.
jaise :- pustak+aalay = pustakaalay.
or
samaas ka shaabdik arth hota hai sankshep. samaas mein varnon ke sthaan par pad ka mahatv hota hai. isamen do ya do se adhik pad milakar ek samast pad banaate hain aur inake beech se vibhaktiyon ka lop ho jaata hai. samast padon ko todane kee prakriya ko vigrah kaha jaata hai. samaas mein bane hue shabdon ke mool arth ko parivartit kiya bhee ja sakata hai aur parivartit nahin bhee kiya ja sakata hai.
jaise :- vishadhar = vish ko dhaaran karane vaala athaart shiv.
upamaan kya hota hai :- jisase kisee kee upama dee jaatee hai use upamaan kahatee hain.
upamey kya hota hai :- jisakee upama dee jaatee hai use upamey kahate hain.
samaas ke bhed :
1. avyayeebhaav samaas
2. tatpurush samaas
3. karmadhaaray samaas
4. dvigu samaas
5. dvandv samaas
6. bahubreehi samaas
prayog kee drshti se samaas ke bhed :-
1. sanyogamoolak samaas
2. aashrayamoolak samaas
3. varnanamoolak samaas
1. avyayeebhaav samaas kya hota hai :- isamen pratham pad avyay hota hai aur usaka arth pradhaan hota hai use avyayeebhaav samaas kahate hain. isamen avyay pad ka praaroop ling, vachan, kaarak, mein nahin badalata hai vo hamesha ek jaisa rahata hai.
doosare shabdon mein kaha jaaye to yadi ek shabd kee punaraavrtti ho aur donon shabd milakar avyay kee tarah prayog hon vahaan par avyayeebhaav samaas hota hai sanskrt mein upasarg yukt pad bhee avyayeebhaav samaas hee mane jaate hain.
jaise :-
- yathaashakti = shakti ke anusaar
- yathaakram = kram ke anusaar
- yathaaniyam = niyam ke anusaar
- pratidin = pratyek din
- prativarsh =har varsh
- aajanm = janm se lekar
- yathaasaadhy = jitana saadha ja sake
- dhadaadhad = dhad-dhad kee aavaaj ke saath
- ghar-ghar = pratyek ghar
- raaton raat = raat hee raat mein
- aamaran = mratyu tak
- yathaakaam = ichchhaanusaar
- yathaasthaan = sthaan ke anusaar
- abhootapoorv = jo pahale nahin hua
- nirbhay = bina bhay ke
- nirvivaad = bina vivaad ke
- nirvikaar = bina vikaar ke
- pratipal = har pal
- anukool = man ke anusaar
- anuroop = roop ke anusaar
- yathaasamay = samay ke anusaar
- yathaasheeghr = sheeghrata se
- akaaran = bina kaaran ke
- yathaasaamarthy = saamarthy ke anusaar
- yathaavidhi = vidhi ke anusaar
- bharapet = pet bharakar
- haathonhaath = haath hee haath mein
- beshak = shak ke bina
- khubasoorat = achchhee soorat vaalee
2. tatpurush samaas kya hota hai :- is samaas mein doosara pad pradhaan hota hai. yah kaarak se juda samaas hota hai. isamen gyaatavy-vigrah mein jo kaarak prakat hota hai usee kaarak vaala vo samaas hota hai. ise banaane mein do padon ke beech kaarak chinhon ka lop ho jaata hai use tatpurush samaas kahate hain.
jaise :-
- desh ke lie bhakti = deshabhakti
- raaja ka putr = raajaputr
- shar se aahat = sharaahat
- raah ke lie kharch = raahakharch
- tulasee dvaara krt = tulaseedaasakrt
- raaja ka mahal = raajamahal
- raaja ka kumaar = raajakumaar
- dharm ka granth = dharmagranth
- rachana karane vaala = rachanaakaar
tatpurush samaas ke bhed :- vaise to tatpurush samaas ke 8 bhed hote hain kintu vigrah karane kee vajah se karta aur sambodhan do bhedon ko lupt rakha gaya hai. isalie vibhaktiyon ke anusaar tatpurush samaas ke 6 bhed hote hain :-
1. karm tatpurush samaas
2. karan tatpurush samaas
3. sampradaan tatpurush samaas
4. apaadaan tatpurush samaas
5. sambandh tatpurush samaas
6. adhikaran tatpurush samaas
1. karm tatpurush samaas kya hota hai :- isamen do padon ke beech mein karmakaarak chhipa hua hota hai. karmakaarak ka chinh ko hota hai. ko ko karmakaarak kee vibhakti bhee kaha jaata hai. use karm tatpurush samaas kahate hain.
jaise :-
- rathachaalak = rath ko chalane vaala
- graamagat = graam ko gaya hua
- maakhanachor =maakhan ko churaane vaala
- vanagaman =van ko gaman
- munhatod = munh ko todane vaala
- svargapraapt = svarg ko praapt
- deshagat = desh ko gaya hua
- janapriy = jan ko priy
- maranaasann = maran ko aasann
- girahakat = girah ko kaatane vaala
- kumbhakaar = kumbh ko banaane vaala
- grhaagat = grh ko aagat
- kathaphodava = kaanth ko phodane vaala
- shatrughn = shatru ko maarane vaala
- giridhar = giree ko dhaaran karane vaala
- manohar = man ko harane vaala
- yashapraapt = yash ko praapt
2. karan tatpurush samaas kya hota hai :- jahaan par pahale pad mein karan kaarak ka bodh hota hai. isamen do padon ke beech karan kaarak chhipa hota hai. karan kaarak ka chinh ya vibhakti ke dvaara aur se hota hai. use karan tatpurush kahate hain.
jaise :-
- svarachit = sv dvaara rachit
- manachaaha = man se chaaha
- shokagrast = shok se grast
- bhukhamaree = bhookh se maree
- dhanaheen = dhan se heen
- baanaahat = baan se aahat
- jvaragrast = jvar se grast
- madaandh = mad se andha
- rasabhara = ras se bhara
- aachaarakushal = aachaar se kushal
- bhayaakul = bhay se aakul
- aankhondekhee = aankhon se dekhee
- tulaseekrt = tulasee dvaara rachit
- rogaatur = rog se aatur
- parnakuteer = parn se banee kuteer
- karmaveer = karm se veer
- raktaranjit = rakt se ranjit
- jalaabhishek = jal se abhishek
- rogagrast = rog se grast
- gunayukt = gunon se yukt
- andhakaarayukt = andhakaar se yukt
3. sampradaan tatpurush samaas kya hota hai :- isamen do padon ke beech sampradaan kaarak chhipa hota hai. sampradaan kaarak ka chinh ya vibhakti ke lie hotee hai. use sampradaan tatpurush samaas kahate hain.
jaise :-
- vidyaalay = vidya ke lie aalay
- rasoeeghar = rasoee ke lie ghar
- sabhaabhavan = sabha ke lie bhavan
- vishraamagrh = vishraam ke lie grh
- gurudakshina = guru ke lie dakshina
- prayogashaala = prayog ke lie shaala
- deshabhakti = desh ke lie bhakti
- snaanaghar = snaan ke lie ghar
- satyaagrh = saty ke lie aagrah
- yagyashaala = yagy ke lie shaala
- daakagaadee = daak ke lie gaadee
- devaalay = dev ke lie aalay
- gaushaala = gau ke lie shaala
- yuddhabhoomi = yuddh ke lie bhoomi
- hathakadee = haath ke lie kadee
- dharmashaala = dharm ke lie shaala
- pustakaalay = pustak ke lie aalay
- raahakharch = raah ke lie kharch
- pareeksha bhavan = pareeksha ke lie bhavan
4. apaadaan tatpurush samaas kya hota hai :- isamen do padon ke beech mein apaadaan kaarak chhipa hota hai. apaadaan kaarak ka chinh ya vibhakti se alag hota hai. use apaadaan tatpurush samaas kahate hain.
jaise :-
- kaamachor = kaam se jee churaane vaala
- dooraagat = door se aagat
- ranavimukh = ran se vimukh
- netraheen = netr se heen
- paapamukt = paap se mukt
- deshanikaala = desh se nikaala
- pathabhrasht = path se bhrasht
- padachyut = pad se chyut
- janmarogee = janm se rogee
- rogamukt = rog se mukt
- janmaandh = janm se andha
- karmaheen = karm se heen
- vanarahit = van se rahit
- annaheen = ann se heen
- jalaheen = jal se heen
- gunaheen = gun se heen
- phalaheen = phal se heen
- bhayabheet = bhay se dara hua
5. sambandh tatpurush samaas kya hota hai :- isamen do padon ke beech mein sambandh kaarak chhipa hota hai. sambandh kaarak ke chinh ya vibhakti ka, ke, keehotee hain. use sambandh tatpurush samaas kahate hain.
jaise :-
- raajaputr = raaja ka putr
- gangaajal = ganga ka jal
- lokatantr = lok ka tantr
- durvaadal = durv ka dal
- devapooja = dev kee pooja
- aamavrksh = aam ka vrksh
- raajakumaaree = raaj kee kumaaree
- jaladhaara = jal kee dhaara
- raajaneeti = raaja kee neeti
- sukhayog = sukh ka yog
- moortipooja = moorti kee pooja
- shradhakan = shradha ke kan
- shivaalay = shiv ka aalay
- desharaksha = desh kee raksha
- seemaarekha = seema kee rekha
- jalayaan = jal ka yaan
- kaaryakarta = kaary ka karata
- senaapati = sena ka pati
- kanyaadaan = kanya ka daan
- grhasvaamee = grh ka svaamee
- paraadheen – par ke adheen
- aanandaashram = aanand ka aashram
- raajaagya = raaja kee aagya
6. adhikaran tatpurush samaas kya hota hai :- isamen do padon ke beech adhikaran kaarak chhipa hota hai. adhikaran kaarak ka chinh ya vibhakti mein, par hota hai. use adhikaran tatpurush samaas kahate hain.
jaise :-
- kaary kushal = kaary mein kushal
- vanavaas = van mein vaas
- eesvarabhakti = eesvar mein bhakti
- aatmavishvaas = aatma par vishvaas
- deenadayaal = deenon par dayaal
- daanaveer = daan dene mein veer
- aachaaranipun = aachaar mein nipun
- jalamagn = jal mein magn
- siradard = sir mein dard
- klaakushal = kala mein kushal
- sharanaagat = sharan mein aagat
- aanandamagn = aanand mein magn
- aapabeetee = aap par beetee
- nagaravaas = nagar mein vaas
- ranadheer = ran mein dheer
- kshanabhangur = kshan mein bhangur
- purushottam = purushon mein uttam
- lokapriy = lok mein priy
- grhapravesh = grh mein pravesh
- yudhishthir = yuddh mein sthir
- shokamagn = shok mein magn
- dharmaveer = dharm mein veer
tatpurush samaas ke prakaar :-
1. nan tatpurush samaas
1. nan tatpurush samaas kya hota hai :- isamen pahala pad nishedhaatmak hota hai use nan tatpurush samaas kahate hain.
jaise :-
- asabhy = na sabhy
- anaadi = na aadi
- asambhav = na sambhav
- anant = na ant
3. karmadhaaray samaas kya hota hai :- is samaas ka uttar pad pradhaan hota hai. is samaas mein visheshan-visheshy aur upamey-upamaan se milakar banate hain use karmadhaaray samaas kahate hain.
jaise :-
- charanakamal = kamal ke samaan charan
- neelagagan = neela hai jo gagan
- chandramukh = chandr jaisa mukh
- peetaambar = peet hai jo ambar
- mahaatma = mahaan hai jo aatma
- laalamani = laal hai jo mani
- mahaadev = mahaan hai jo dev
- dehalata = deh roopee lata
- navayuvak = nav hai jo yuvak
- adhamara = aadha hai jo mara
- praanapriy = praanon se priy
- shyaamasundar = shyaam jo sundar hai
- neelakanth = neela hai jo kanth
- mahaapurush = mahaan hai jo purush
- narasinh = nar mein sinh ke samaan
- kanakalata = kanak kee see lata
- neelakamal = neela hai jo kamal
- paramaanand = param hai jo aanand
- sajjan = sat hai jo jan
- kamalanayan = kamal ke samaan nayan
karmadhaaray samaas ke bhed :-
1. visheshanapoorvapad karmadhaaray samaas
2. visheshyapoorvapad karmadhaaray samaas
3. visheshanombhayapad karmadhaaray samaas
4. visheshyobhayapad karmadhaaray samaas
1. visheshanapoorvapad karmadhaaray samaas :- jahaan par pahala pad pradhaan hota hai vahaan par visheshanapoorvapad karmadhaaray samaas hota hai.
jaise :-
- neeleegaay = neelagaay
- peet ambar = peetaambar
- priy sakha = priyasakha
2. visheshyapoorvapad karmadhaaray samaas :- isamen pahala pad visheshy hota hai aur is prakaar ke saamaasik pad jyaadaatar sanskrt mein milate hain.
jaise :- kumaaree shramana = kumaarashramana
3. visheshanombhayapad karmadhaaray samaas :- isamen donon pad visheshan hote hain.
jaise :- neel – peet, sunee – anasunee, kahanee – anakahanee
4. visheshyobhayapad karmadhaaray samaas :- isamen donon pad visheshy hote hai.
jaise :- aamagaachh, vaayas-dampati.
karmadhaaray samaas ke upabhed :-
- upamaanakarmadhaaray samaas
- upamitakarmadhaaray samaas
- roopakakarmadhaaray samaas
1. upamaanakarmadhaaray samaas :- isamen upamaanavaachak pad ka upameyavaachak pad ke saath samaas hota hai. is samaas mein donon shabdon ke beech se iv ya jaisa avyay ka lop ho jaata hai aur donon pad, choonki ek hee karta vibhakti, vachan aur ling ke hote hain, isalie samast pad karmadhaaray lakshn ka hota hai. use upamaanakarmadhaaray samaas kahate hain.
jaise :- vidyut jaisee chanchala = vidyuchanchala
2. upamitakarmadhaaray samaas :- yah samaas upamaanakarmadhaaray ka ulta hota hai. is samaas mein upamey pahala pad hota hai aur upamaan doosara pad hota hai. use upamitakarmadhaaray samaas kahate hain.
jaise :- adharapallav ke samaan = adhar – pallav, nar sinh ke samaan = narasinh.
3. roopakakarmadhaaray samaas :- jahaan par ek ka doosare par aarop hota hai vahaan par roopakakarmadhaaray samaas hota hai.
jaise :- mukh hee hai chandrama = mukhachandr.
4. dvigu samaas kya hota hai :- dvigu samaas mein poorvapad sankhyaavaachak hota hai aur kabhee-kabhee uttarapad bhee sankhyaavaachak hota hua dekha ja sakata hai. is samaas mein prayukt sankhya kisee samooh ko darshaatee hai kisee arth ko nahin. isase samooh aur samaahaar ka bodh hota hai. use dvigu samaas kahate hain.
jaise :-
- navagrah = nau grahon ka samooh
- dopahar = do paharon ka samaahaar
- trivenee = teen veniyon ka samooh
- panchatantr = paanch tantron ka samooh
- trilok = teen lokon ka samaahaar
- shataabdee = sau abdon ka samooh
- panseree = paanch seron ka samooh
- satasee = saat sau padon ka samooh
- chaugunee = chaar gunee
- tribhuj = teen bhujaon ka samaahaar
- chaumaasa = chaar maason ka samooh
- navaraatr = nau raatriyon ka samooh
- athannee = aath aanon ka samooh
- saptrshi = saat rshiyon ka samooh
- trikon = teen konon ka samaahaar
- saptaah = saat dinon ka samooh
- tiranga = teen rangon ka samooh
- chaturved = chaar vedon ka samaahaar
dvigu samaas ke bhed :-
1. samaahaaradvigu samaas
2. uttarapadapradhaanadvigu samaas
1. samaahaaradvigu samaas :- samaahaar ka matalab hota hai samudaay, ikattha hona, sametana use samaahaaradvigu samaas kahate hain.
jaise :-
- teen lokon ka samaahaar = trilok
- paanchon vaton ka samaahaar = panchavatee
- teen bhuvanon ka samaahaar = tribhuvan
2. uttarapadapradhaanadvigu samaas :- uttarapadapradhaanadvigu samaas do prakaar ke hote hain.
(1) beta ya phir utpatr ke arth mein.
jaise :-
- do maan ka =dumaata
- do sooton ke mel ka = dusootee.
(2) jahaan par sach mein uttarapad par jor diya jaata hai.
jaise :-
- paanch pramaan = panchapramaan
- paanch hatthad = panchahatthad
5. dvandv samaas kya hota hai :- is samaas mein donon pad hee pradhaan hote hain isamen kisee bhee pad ka gaun nahin hota hai. ye donon pad ek-doosare pad ke vilom hote hain lekin ye hamesha nahin hota hai. isaka vigrah karane par aur, athava, ya, evan ka prayog hota hai use dvandv samaas kahate hain.
jaise :-
- jalavaayu = jal aur vaayu
- apana-paraaya = apana ya paraaya
- paap-puny = paap aur puny
- raadha-krshn = raadha aur krshn
- ann-jal = ann aur jal
- nar-naaree = nar aur naaree
- gun-dosh = gun aur dosh
- desh-videsh = desh aur videsh
- ameer-gareeb = ameer aur gareeb
- nadee-naale = nadee aur naale
- dhan-daulat = dhan aur daulat
- sukh-duhkh = sukh aur duhkh
- aage-peechhe = aage aur peechhe
- oonch-neech = oonch aur neech
- aag-paanee = aag aur paanee
- maar-peet = maarapeet
- raaja-praja = raaja aur praja
- thanda-garm = thanda ya garm
- maata-pita = maata aur pita
- din-raat = din aur raat
- bhaee-bahan = bhaee aur bahan
dvandv samaas ke bhed :-
1. itaretaradvandv samaas
2. samaahaaradvandv samaas
3. vaikalpikadvandv samaas
1. itaretaradvandv samaas :- vo dvandv jisamen aur shabd se bhee pad jude hote hain aur alag astitv rakhate hon use itaretar dvandv samaas kahate hain. is samaas se jo pad banate hain vo hamesha bahuvachan mein prayog hote hain kyonki ve do ya do se adhik padon se milakar bane hote hain.
jaise :-
- raam aur krshn = raam-krshn
- maan aur baap = maan-baap
- ameer aur gareeb = ameer-gareeb
- gaay aur bail = gaay-bail
- rshi aur muni = rshi-muni
- beta aur betee = beta-betee
2. samaahaaradvandv samaas :- samaahaar ka arth hota hai samooh. jab dvandv samaas ke donon pad aur samuchchayabodhak se juda hone par bhee alag-alag astiv nahin rakhakar samooh ka bodh karaate hain, tab vah samaahaaradvandv samaas kahalaata hai. is samaas mein do padon ke alaava teesara pad bhee chhupa hota hai aur apane arth ka bodh apratyaksh roop se karaate hain.
jaise :-
- daalarotee = daal aur rotee
- haathaponv = haath aur ponv
- aahaaranindra = aahaar aur nindra
3. vaikalpik dvandv samaas :- is dvandv samaas mein do padon ke beech mein ya, athava aadi vikalpasoochak avyay chhipe hote hain use vaikalpik dvandv samaas kahate hain. is samaas mein jyaada se jyaada do vipareetaarthak shabdon ka yog hota hai.
jaise :-
- paap-puny = paap ya puny
- bhala-bura = bhala ya bura
- thoda-bahut = thoda ya bahut
6. bahubreehi samaas kya hota hai :- is samaas mein koee bhee pad pradhaan nahin hota. jab do pad milakar teesara pad banaate hain tab vah teesara pad pradhaan hota hai. isaka vigrah karane par “vaala , hai, jo, jisaka, jisakee, jisake, vah” aadi aate hain vah bahubreehi samaas kahalaata hai.
jaise :-
- gajaanan = gaj ka aanan hai jisaka (ganesh)
- trinetr = teen netr hain jisake (shiv)
- neelakanth = neela hai kanth jisaka (shiv)
- lambodar = lamba hai udar jisaka (ganesh)
- dashaanan = dash hain aanan jisake (raavan)
- chaturbhuj = chaar bhujaon vaala (vishnu)
- peetaambar = peele hain vastr jisake (krshn)
- chakradhar= chakr ko dhaaran karane vaala (vishnu)
- veenaapaanee = veena hai jisake haath mein (sarasvatee)
- svetaambar = saphed vastron vaalee (sarasvatee)
- sulochana = sundar hain lochan jisake (meghanaad kee patnee)
- duraatma = buree aatma vaala (dusht)
- ghanashyaam = ghan ke samaan hai jo (shree krshn)
- mrtyunjay = mrtyu ko jeetane vaala (shiv)
- nishaachar = nisha mein vicharan karane vaala (raakshas)
- giridhar = giree ko dhaaran karane vaala (krshn)
- pankaj = pank mein jo paida hua (kamal)
- trilochan = teen hai lochan jisake (shiv)
- vishadhar = vish ko dhaaran karane vaala (sarp)
bahubreehi samaas ke bhed :-
1. samaanaadhikaran bahubreehi samaas
2. vyadhikaran bahubreehi samaas
3. tulyayog bahubreehi samaas
4. vyatihaar bahubreehi samaas
5. praadee bahubreehi samaas
1. samaanaadhikaran bahubreehi samaas :- isamen sabhee pad karta kaarak kee vibhakti ke hote hain lekin samast pad ke dvaara jo any ukt hota hai, vo karm, karan, sampradaan, apaadaan, sambandh, adhikaran aadi vibhaktiyon mein bhee ukt ho jaata hai use samaanaadhikaran bahubreehi samaas kahate hain.
jaise :-
- praapt hai udak jisako = praptodk
- jeetee gaee indriyaan hain jisake dvaara = jitendriyaan
- datt hai bhojan jisake lie = dattabhojan
- nirgat hai dhan jisase = nirdhan
- nek hai naam jisaka = nekanaam
- saat hai khand jisamen = satakhanda
2. vyadhikaran bahubreehi samaas :- samaanaadhikaran bahubreehi samaas mein donon pad karta kaarak kee vibhakti ke hote hain lekin yahaan pahala pad to karta kaarak kee vibhakti ka hota hai lekin baad vaala pad sambandh ya phir adhikaran kaarak ka hota hai use vyadhikaran bahubreehi samaas kahate hain.
jaise :-
- shool hai paanee mein jisake = shoolapaanee
- veena hai paanee mein jisake = veenaapaanee
3. tulyayog bahubreehi samaas :- jisamen pahala pad sah hota hai vah tulyayog bahubreehi samaas kahalaata hai. ise sahabahubreehi samaas bhee kahatee hain. sah ka arth hota hai saath aur samaas hone kee vajah se sah ke sthaan par keval sa rah jaata hai.
is samaas mein is baat par dhyaan diya jaata hai kee vigrah karate samay jo sah doosara vaala shabd prateet ho vo samaas mein pahala ho jaata hai.
jaise :-
- jo bal ke saath hai = sabal
- jo deh ke saath hai = sadeh
- jo parivaar ke saath hai = saparivaar
4. vyatihaar bahubreehi samaas :- jisase ghaat ya pratighaat kee suchana mile use vyatihaar bahubreehi samaas kahate hain. is samaas mein yah prateet hota hai kee is cheej se aur us cheej se ladaee huee.
jaise :-
- mukke-mukke se jo ladaee huee = mukka-mukkee
- baaton-baaton se jo ladaee huee = baataabaatee
5. praadee bahubreehi samaas :- jis bahubreehi samaas poorvapad upasarg ho vah praadee bahubreehi samaas kahalaata hai.
jaise :-
- nahin hai raham jisamen = beraham
- nahin hai jan jahaan = nirjan
1. sanyogamoolak samaas kya hota hai :- sanyogamoolak samaas ko sangya samaas bhee kahate hain. is samaas mein donon pad sangya hote hain athaart isamen do sangyaon ka sanyog hota hai.
jaise :- maan-baap, bhaee-bahan, din-raat, maata-pita.
2. aashrayamoolak samaas kya hota hai :- aashrayamoolak samaas ko visheshan samaas bhee kaha jaata hai. yah praay karmadhaaray samaas hota hai. is samaas mein pratham pad visheshan hota hai aur doosara pad ka arth balavaan hota hai. yah visheshan-visheshy, visheshy-visheshan, visheshan, visheshy aadi padon dvaara sampann hota hai.
jaise :- kachchaakela, sheeshamahal, ghanasyaam, laal-peela, maulaveesaahab, raajabahaadur.
3. varnanamoolak samaas kya hota hai :- ise varnanamoolak samaas bhee kahate hain. varnanamoolak samaas ke antargat bahubreehi aur avyayeebhaav samaas ka nirmaan hota hai. is samaas mein pahala pad avyay hota hai aur doosara pad sangya. use varnanamoolak samaas kahate hain.
jaise :- yathaashakti, pratimaas, ghadee-ghadee, pratyek, bharapet, yathaasaadhy.
karmadhaaray samaas aur bahubreehi samaas mein antar :-
samaas ke kuchh udahaaran hai jo karmadhaaray aur bahubreehi samaas donon mein samaan roop se pae jaate hain, in donon mein antar hota hai. karmadhaaray samaas mein ek pad visheshan ya upamaan hota hai aur doosara pad visheshy ya upamey hota hai. isamen shabdaarth pradhaan hota hai. karmadhaaray samaas mein doosara pad pradhaan hota hai tatha pahala pad visheshy ke visheshan ka kaary karata hai.
jaise :- neelakanth = neela kanth
or
bahubreehi samaas mein do pad milakar teesare pad kee or sanket karate hain isamen teesara pad pradhaan hota hai.
jaise :- neelakanth = neel+kanth
dvigu samaas aur bahubreehi samaas mein antar :-
dvigu samaas mein pahala pad sankhyaavaachak visheshan hota hai aur doosara pad visheshy hota hai jabaki bahubreehi samaas mein samast pad hee visheshan ka kaary karata hai.
jaise :-
- chaturbhuj – chaar bhujaon ka samooh
- chaturbhuj – chaar hain bhujaen jisakee
dvigu aur karmadhaaray samaas mein antar :-
(1) dvigu ka pahala pad hamesha sankhyaavaachak visheshan hota hai jo doosare pad kee ginatee bataata hai jabaki karmadhaaray ka ek pad visheshan hone par bhee sankhyaavaachak kabhee nahin hota hai.
(2) dvigu ka pahala padd hee visheshan ban kar prayog mein aata hai jabaki karmadhaaray mein koee bhee pad doosare pad ka visheshan ho sakata hai.
jaise :-
- navaraatr – nau raatron ka samooh
- raktotpal – rakt hai jo utpal