सुखासन क्या है :-
सुखासन दो शब्दों से मिलकर बना है सुख + आसन = सुखासन | यहाँ पर सुखासन का शाब्दिक अर्थ होता है सुख को देने वाला आसन | इस आसन को करने से हमारी आत्मा को सुख व् शांति प्राप्त होती है | इसलिए इस आसन को सुखासन कहा जाता है | यह ध्यान और श्वसन के लिए लाभदायक है| सुखासन को करने से पैरों में रक्त का संचार कम हो जाता है जिसके कारण रक्त शरीर के अन्य भागो मे पहुँच जाता है और उन्हें क्रियाशील बनाता है| इस आसन को करने से छाती और पैर दोनों मजबूत होते है| वीर्य रक्षा में मदद मिलती है तथा रीड की हड्डी मजबूत बनती है| आयें जानते हैं इसके फायदे और इस आसन को कैसे किया जाए :-
सुखासन करने के विधि :-
पहली स्थिति :- सबसे पहले समतल जमीन पर कोई चटाई बिछाकर उस पर पालथी मारकर बैठ जाएँ |
दूसरी स्थिति :– अब अपने सिर व् गर्दन को एक सीध में रखें |
तीसरी स्थिति :- अब अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें |
चौथी स्थिति :- अब अपने दोनों कंधों को ढीला छोड़कर उन्हें एक सीध में रखें| तथा अपनी सांस को पहले अंदर की ओर ले फिर बाहर की ओर छोड़ें।
पांचवी स्थिति :- अब अपनी हथेलियों को एक के ऊपर एक करके अपनी पलथी के ऊपर रखें।
छटवी स्थिति :- अपना पूरा ध्यान अपनी श्वास क्रिया पर लगाते हुए सांस लम्बी और गहरी लें।
सुखासन योग करने का समय :-
इसका अभ्यास हर रोज़ करेंगे तो आपको अच्छे परिणाम मिलेंगे। सुबह के समय और शाम के समय खाली पेट इस आसन का अभ्यास करना अधिक फलदायी होता हैं।| इस आसन को नियमित कम से कम 5-10 बार करे|
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सुखासन के लाभ :-
1. मेरूदंड लचीला बनता है :- इस आसन का नियमित रूप से अभ्यास करने से मेरूदंड लचीला व मजबूत बनता है जिससे बुढ़ापे में भी व्यक्ति तनकर चलता है और उसकी रीढ़ की हड्डी झुकती नहीं है।मानव शरीर रचना में ‘रीढ़ की हड्डी’ या मेरुदंड पीठ की हड्डियों का समूह है जो मस्तिष्क के पिछले भाग से निकलकर गुदा के पास तक जाती है। इसमें ३३ खण्ड होते हैं।
2. सकारात्मक सोच बढाने हेतु :- इस आसन के नियमित अभ्यास से हम अपनी स्मरणशक्ति व् सकारात्मक सोच बढ़ा सकते हैं। जब हमारी सोच सकारात्मक बन जाती है तो उसके परिणाम भी सकारात्मक आने लगते है ।और इसके साथ-साथ ही इसके अभ्यास से मन और मस्तिष्क को शांति मिलती हैं।
3. एकाग्रता को बढाता है :- मन और मस्तिषक की एकाग्रता बढती है ।हालांकि एकाग्रता को बढ़ाना एक मुश्किल काम है, पर यह नामुमकिन नहीं है. एकाग्रता को बढ़ाने के लिए ढृढ़ता बेहद जरूरी है|
4. रक्त संचार प्रक्रिया के लिए :- इसके नियमित अभ्यास से शरीर में रक्त संचार प्रक्रिया में सुधार आता है।अगर हमारा रक्त संचार सामान्य रहे तो दिल की बीमारियां न हों और न ही दूसरी बीमारियां |
5- इस आसन का नियमित अभ्यास करने से मानसिक सुख व् शांति की प्राप्ति होती है |
6- इस आसन को करने से क्रोध कम होता है |
7- मानिक चंचलता कम होती है |
8- इस आसन से छाती और पैर मजबूत होते है तथा वीर्य रक्षा में मदद मिलती है|
सुखासन में सावधानियां :-
1- घुटनों के दर्द से पीड़ित व्यक्ति को यह आसन नहीं करना चाहिए |
2- रीढ़ की हड्डी से परेसान व्यक्ति को यह आसन कम समय तक करना चाहिए |
3- यह आसन हमेसा खाली पेट करना चाहिए |
4- इस आसन को एकांत में करना चाहिए |
5- साइटिका के रोगियों को यह आसान नहीं करना चाहिए|
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